%%%%%Godan Written by Premchand %%%https://6b9bae36-a-62cb3a1a-s-sites.googlegroups.com/site/hindiebooks/Godan%20pdf%20hindiebook.rar?attachauth=ANoY7crBLE4d12R0QEe_QMtGXZLl8nStqzypulLJMbNQMZNtt_OGjeA2AJrOj82DjtgdZbcsbcwgkFKnwLI14f9H5x8mBTpF5FmkdSuQwJ5mWMbPulRs3Z2ydsJ-GUASI-RTZm3mqsRmSPHfGWRtv_frobh4sFDegZUuuCEEv80CH4LeHGx_IiRsxJ2RIs50PrAuTT8PLhxoDvcjLEjHucRdrbPwdyJ8Reat75x5VJqiltSpuUuTLuA%3D&attredirects=0 ूेमच द रिचत गोदान Godan by Premcand Devanagari text reconstituted from the roman transcription made under the direction of Professors T. Nara and K. Machida of the Institute for Study of Languages http://www.aa.tufs.ac.jp/ and Cultures of Asia and Africa at Tokyo University of Foreign Studies Recoded: 20 Sept. 1999 to 6 Oct 1999. Chapter one posted: 6 Oct 1999. Updated and parahraphed: 8 Oct 1999, 17 Oct 1999. Converted into Unicode by Sanjay Khatri on 1 May 2005. होर राम ने दोन बैल को सानी-पानी दे कर अपनी ी धिनया से कहा -- गोबर को ऊख गोड़ने भेज दे ना। म न जाने कब लौटँ ू । ज़रा मेर लाठ दे दे । धिनया के दोन हाथ गोबर से भरे थे। उपले पाथकर आयी थी। कर लो। ऐसी ज द बोली -- अरे , कुछ रस-पानी तो या है । होर ने अपने झु रय से भरे हए माथे को िसकोड़कर कहा -- तुझे रस-पानी क पड़ है , मुझे यह िच ता है क अबेर हो गयी तो मािलक से भट न होगी। असनान-पूजा करने लगगे , तो घंट बैठे बीत जायगा। 'इसी से तो कहती हँू , कुछ जलपान कर लो। और आज न जाओगे तो कौन हरज़ होगा। अभी तो परस गये थे। ' 'तू जो बात नह ं समझती, उसम टाँग य अड़ाती है भाई! मेर लाठ दे दे और अपना काम दे ख। यह इसी िमलते - जुलते रहने का परसाद है क अब तक जान बची हई है । नह ं कह ं पता न लगता क कधर गये। गाँव म इतने आदमी तो ह, कस पर बेदख़ली नह ं आयी, कस पर कुड़क नह ं आयी। जब दसर के पाँव -तले अपनी गदन दबी हई है , तो उन पाँव को सहलाने म ह कुशल है । ' धिनया इतनी यवहार-कुशल न थी। उसका वचार था क हमने ज़मींदार के खेत जोते ह, तो वह अपना लगान ह तो लेगा। उसक ख़ुशामद य कर, उसके तलव य सहलाय। य प अपन ववा हत जीवन के इन बीस बरस म उसे अ छ तरह अनुभव हो गया था क चाहे कतनी ह कतर- य त करो, कतना ह पेट -तन काटो, चाहे एक-एक कौड़ को दाँत से पकड़ो; मगर लगान बेबाक़ होना मु ँकल है । फर भी वह हार न मानती थी, और इस वषय पर ी-पु ष म आये दन संमाम िछड़ा रहता था। उसक छः स तान म अब केवल तीन ज़ दा ह, एक लड़का गोबर कोई सोलह साल का, और दो लड़ कया सोना और पा, बारह और आठ साल क । तीन लड़के बचपन ह म मर गये। कहता था, अगर उनक दवादा उसक ह उॆ अभी उसका मन आज भी होती तो वे बच जाते ; पर वह एक धेले क दवा भी न मँगवा सक थी। या थी। छ ीसवाँ ह साल तो था; पर सारे बाल पक गये थे , चेहरे पर झु रयाँ पड़ गयी थीं। सार दे ह ढल गयी थी, वह सु दर गेह ु आँ रं ग सँवला गया था और आँख से भी कम सूझने लगा था। पेट क िच ता ह के कारण तो। कभी तो जीवन का सुख न िमला। इस िचरःथायी जीऩावःथा नउसके आ म-स मान को उदासीनता का उसके िलए इतनी ख़ुशामद प दे दया था। जस गृहःथी म पेट क रो टयाँ भी न िमल, य ? इस प र ःथित से उसका मन बराबर विोह कया करता था। और दो चार घुड़ कयाँ खा लेने पर ह उसे यथाथ का नान होता था। उसने पराःत होकर होर क लाठ , िमरजई, जूते , पगड़ और तमाखू का बटआ लाकर सामन पटक दये। होर ने उसक ओर आँख तरे र कर कहा -- या ससुराल जाना है जो पाँच पोसाक लायी है ? ससुराल म भी तो कोई जवान साली-सलहज नह ं बैठ है , जसे जाकर दखाऊँ। होर के गहरे साँवले , पचके हए झलक पड़ । धिनया ने लजात चेहरे पर मुःकराहट क मृदता हए कहा -- ऐसे ह तो बड़े सजीले जवान हो क साली-सलहज तु ह दे ख कर र झ जायँगी! होर ने फट हई िमरजई को बड़ सावधानी से तह करके खाट पर रखते हए कहा -- तो या त समझती है , म बूढ़ा हो गया? अभी तो चालीस भी नह ं हए। मद साठे पर पाठे होते ह। 'जाकर सीसे म मुँह दे खो। तुम -जैसे मद साठे पर पाठे नह ं होते। दध -घी अंजन लगाने तक को तो िमलता नह ं , पाठे ह गे ! तु हार दशा दे ख -दे खकर तो म और भी सूखी जाती हँ ू क भगवान ् यह बुढ़ापा कैसे कटे गा? कसके होर क वह ार पर भीख माँग गे ?' णक मृदता बोला यथाथ क इस आँच म जैसे झुलस गयी। लकड़ सँभालता हआ -- साठे तक पहँ ु चने क नौबत न आने पायेगी धिनया ! इसके पहले ह चल दगे। धिनया ने ितरःकार कया -- अ छा रहने दो, मत असुभ मुँह से िनकालो। तुमसे कोई अ छ बात भी कहे , तो लगते हो कोसने। होर लाठ क धे पर रखकर घर से िनकला, तो धिनया उसके इन िनराशा-भरे श द ने धिनया के चोट खाये हए ार पर खड़ उसे दे र तक दे खती रह । दय म आतंकमय क पन -सा डाल दया था। वह जैसे अपने नार व के स पूऩर ् तप और ोत से अपने पित को अभय -दान दे रह थी। उसके अ तःकरण से जैसे आशीवाद का यूह -सा िनकल कर होर को अपने अ दर िछपाये लेता था। वप नता के इस अथाह सागर म सोहाग ह वह तृण था, जसे पकड़े हए वह सागर को पार कर रह थी। इन असंगत श द ने यथाथ के िनकट होने पर भी मानो झटका दे कर उसके हाथ से वह ितनके का सहारा छ न लेना चाहा ब क यथाथ के िनकट होने के कारण ह उनम इतनी वेदना-श कहने से काने को जो दःख होता है , वह आ गयी थी। काना या दो आँख वाले आदमी को हो सकता है ? होर क़दम बढ़ाये चला जाता था। पगडं ड के दोन ओर ऊख के पौध क लहराती हई ह रयाली दे ख कर उसने मन म कहा -- भगवान ् कह ं ग से बरखा कर द और डाँड़ भी सुभीते से रहे , तो एक गाय ज़ र लेगा। दे शी गाय तो न दध द न उनके बछवे ह को ह ू म चले। नह ं , वह पछा गाय लेगा। कसी काम के ह । बहत तो तेली के हआ उसक ख़ूब सेवा करे गा। कुछ नह ं तो चार-पाँच सेर दध होगा। गोबर दध के िलए तरस -तरस कर रह जाता है । इस उिमर म न खाया- पया, तो फर कब खायेगा। साल-भर भी दध पी ले , तो दे खने लायक़ हो जाय। बछवे भी अ छे बैल िनकलगे। दो सौ से कम क ग ई न होगी। फर, गऊ से ह तो ार क सोभा है । सबेरे - सबेरे गऊ के दशन हो जायँ तो या कहना। न जान कब यह साध पूर होगी, कब वह शुभ दन आयेगा! हर एक गृहःथ क भाँित होर के मन म भी गऊ क लालसा िचरकाल से संिचत चली आतीथी। यह उसके जीवन का सबसे बड़ा ःव न, सबसे बड़ साध थी। बक सूद से चैन करने या ज़मीन ख़र दने या महल बनवाने क वशाल आकां ाएँ उसके न ह-स दय म कैसे समातीं। जेठ का सूय आम के झुरमुट म से िनकलकर आकाश पर छायी हई लािलमा को अपने रजत - ूताप से तेज ूदान करता हआ ऊपर चढ़ रहा था और हवा म गमीर ् आने लगी थी। दोन ओर खेत म काम करनेवाले कसान उसे दे खकर राम-राम करते और स मान-भाव से िचलम पीने का िनम ऽण दे ते थे ; पर होर को इतना अवकाश कहाँ था। उसके अ दर बैठ हई स मान -लालसा ऐसा आदर पाकर उसके सूखे मुख पर गव क झलक पैदा कर रह थी। मािलक से िमलते - जुलते रहने ह का तो यह ूसाद है क सब उसका आदर करते ह। नह ं उसे कौन पूछता? पाँच बीघे के कसान क बसात ह या? यह कम आदर नह ं है क तीन-तीन, चार-चार हलवाले महतो भी उसके सामने िसर झुकाते ह। अब वह खेत के बीच क पगडं ड छोड़कर एक खलेट म आ गया था, जहाँ बरसात म पानी भर जाने के कारण तर रहती थी और जेठ म कुछ ह रयाली नज़र आती थी। आस-पास के गाँव क गउए यहाँ चरने आया करती थीं। उस समय म भी यहाँ क हवा म कुछ ताज़गी और ठं डक थी। होर ने दो-तीन साँस ज़ोर से लीं। उसके जी म आया, कुछ दे र यह ं बैठ जाय। दन-भर तो लू - लपट म मरना है ह । कई कसान इस ग ढे का प टा िलखाने को तैयार थे। अ छ रक़म दे ते थे ; पर ई र भला करे राय साहब का क उ ह ने साफ़ कह दया, यह ज़मीन जानवर क चराई के िलए छोड़ द गयी है और कसी दाम पर भी न उठायी जायगी। कोई ःवाथ ज़मींदार होता, तो कहता, गाय जायँ भाड़ म, हम पए िमलते ह, य छोड़। पर राय साहब अभी तक पुरानी मयादा िनभाते आते ह। जो मािलक ूजा को न पाले , वह भी कोई आदमी है ? सहसा उसने दे खा, भोला अपनी गाय िलये इसी तरफ़ चला आ रहा है । भोला इसी गाँव स िमले हए -म खन का यवसाय करता था। अ छा दाम िमल जाने पर कभी- पुरवे का वाला था और दध कभी कसान के हाथ गाय बेच भी दे ता था। होर का मन उन गाय को दे ख कर ललचा गया। अगर भोला वह आगेवाली गाय उसे दे तो या कहना! पए आगे पीछे दे ता रहे गा। वह जानता था घर म पए नह ं ह, अभी तक लगान नह ं चुकाया जा सका, बसेसर साह का दे ना भी बाक़ है , जस पर आन पए का सूद चढ़ रहा है ; ले कन द रिता म जो एक ूकार क अदरदिशता होती है , वह िनल जता जो तक़ाज़े , गाली और मार से भी भयभीत नह ं होती, उसने उसे ूो सा हत कया। बरस से जो साध मन को आ दोिलत कर रह थी, उसने उसे वचिलत कर दया। भोला के समीप जाकर बोला -- राम-राम भोला भाई, कहो या रं ग -ढं ग है । सुना अबक मेले से नयी गाय लाये हो। भोला न खाई से जवाब दया। होर के मन क बात उसने ताड़ ली थी -- हाँ , दो बिछय और दो गाय लाया। पहलेवाली गाय सब सूख गयी थीं। बँधी पर दध न पहँ ु चे तो गुज़र कैसे हो। होर न आनेवाली गाय के पु ठे पर हाथ रखकर कहा -- दधार तो मालूम होती है । कतने म ली ? भोला ने शान जमायी -- अबक बाज़ार बड़ा तेज़ रहा महतो, इसके अःसी िनकल गयीं। तीस-तीस पए तो दोन कलोर के दये। ितस पर गाहक पए दे ने पड़े । आँख पए का आठ सेर दध माँगता है । 'बड़ा भार कलेजा है तुम लोग का भाई, ले कन फर लाये भी तो वह माल क यहाँ दस-पाँच गाँव म तो कसी के पास िनकलेगी नह ं। ' भोला पर नशा चढ़ने लगा। बोला -- राय साहब इसके सौ पए दे ते थे। दोन कलोर के पचास-पचास ' इसम पए, ले कन हमने न दये। भगवान ् ने चाहा , तो सौ या स दे ह है भाई ! मािलक लोग का गुदार ् है क अँजुली -भर पए इसी यान म पीट लूँगा। या खाके लगे। नज़राने म िमल जाय, तो भले ले ल। यह तु ह पए तक़द र के भरोसे िगन दे ते हो। यह जी चाहता है क इसके दरसन करता रहँ ू । ध य है तु हारा जीवन क गउओं क इतनी सेवा करते हो। हम तो गाय का गोबर भी मयःसर नह ं। िगरःत के घर म एक गाय भी न हो, तो कतनी ल जा क बात है । साल-के -साल बीत जाते ह, गोरस के दरसन नह ं होते। घरवाली बार-बार कहती है , भोला भैया स दे ता हँू , कभी िमलगे तो कहँ ू गा। य नह ं कहते। म कह तु हारे सुभाव से बड़ परसन रहती है । कहती है , ऐसा मद ह नह ं दे खा क जब बात करगे , नीची आँख करके , कभी िसर नह ं उठाते। ' भोला पर जो नशा चढ़ रहा था, उसे इस भरपूर याले ने और गहरा कर दया। बोला -- भला आदमी वह है , जो दसर क बह ू - बेट को अपनी बहू - बेट समझे। जो द कसी मेह रया क ओर ताके , उसे गोली मार दे ना चा हए। 'यह तुमने लाख आब पये क बात कह द भाई। बस स जन वह , जो दसर क आब को अपनी समझे। ' ' जस तरह मद के मर जाने से औरत अनाथ हो जाती है , उसी तरह औरत के मर जाने से मद जाते ह। मेरा तो घर उजड़ गया महतो , कोई एक लोटा पानी दे नेवाला भी नह ं। ' के हाथ-पाँव टट गत वष भोला क ी लू लग जाने से मर गयी थी। का खंखड़ भोला भीतर से इतना ःन ध है , वह न जानता था। गयी थी। होर को आसन िमल गया। उसक यावहा रक कृ षक-ब यह होर जानता था, ले कन पचास बरस ी क लालसा उसक आँख म सजल हो सजग हो गयी। 'पुरानी मसल झूठ थोड़ है -- बन घरनी घर भूत का डे रा। कह ं सगाई नह ं ठ क कर लेते ? ' 'ताक म हँ ू महतो , पर कोई ज द फँसता नह ं। सौ-पचास ख़रच करने को भी तैयार हँ ू । जैसी भगवान ् क इ छा। ' 'अब म भी फ़क म रहँ ू गा। भगवान ् चाहगे , तो ज द घर बस जायगा। ' 'बस यह समझ लो क उबर जाऊँगा भैया! घर म खाने को भगवान ् का दया बहत है । चार पसेर रोज़ दध हो जाता है , ले कन कस काम का। ' 'मेरे ससुराल म एक मेह रया है । गया। बेचार तीन-चार साल हए , उसका आदमी उसे छोड़-कर कलक े चला पसाई करके गुज़र कर रह है । बाल-ब चा भी कोई नह ं। दे खने - सुनने म अ छ है । बस, ल छमी समझ लो। ' भोला का िसकुड़ा हआ चेहरा जैसे िचकना गया। आशा म कतनी सुधा है । बोला -- अब तो तु हारा ह आसरा है महतो! छ ु ट हो , तो चलो एक दन दे ख आय। 'म ठ क-ठाक करके तब तुमसे कहँ ू गा। बहत उतावली करने से भी काम बगड़ जाता है । ' 'जब तु हार इ छा हो तब चलो। उतावली काहे क । इस कबर पर मन ललचाया हो, तो ले लो। ' 'यह गाय मेरे मान क नह ं है दादा। म तु ह नुक़सान नह ं पहँ ु चाना चाहता। अपना धरम यह नह ं है क िमऽ का गला दबाय। जैसे इतने दन बीते ह, वैसे और भी बीत जायगे। ' 'तुम तो ऐसी बात करते हो होर , जैसे हम-तुम दो ह। तुम गाय ले जाओ, दाम जो चाहे दे ना।जैसे मेरे घर रह , वैसे तु हारे घर रह । अःसी पए म ली थी, तुम अःसी पये ह दे दे ना। जाओ। ' 'ले कन मेरे पास नगद नह ं है दादा, समझ लो। ' 'तो तुमसे नगद माँगता कौन है भाई!' होर क छाती गज़-भर क हो गयी। अःसी पए म गाय मँहगी न थी। ऐसा अ छा ड ल-डौल, दोन जून म छः-सात सेर दध , सीधी ऐसी क ब चा भी दह ले। इसका तो एक -एक बाछा सौ-सौ का होगा। ार पर बँधेगी तो ार क शोभा बढ़ जायगी। उसे अभी कोई चार सौ पए दे ने थे ; ले कन उधार को वह एक तरह से मुझत समझता था। कह ं भोला क सगाई ठ क हो गयी तो साल दो साल तो वह बोलेगा भी नह ं। सगाई न भी हई , तो होर का करने आयेगा, बगड़े गा, गािलयाँ दे गा। या बगड़ता है । यह तो होगा, भोला बार-बार तगादा ले कन होर को इसक एयादा शम न थी। इस यवहार का वह आद था। कृ षक के जीवन का तो यह ूसाद है । भोला के साथ वह छल कर रहा था और यह यापार उसक मयादा के अनुकूल था। अब भी लेन -दे न म उसके िलए िलखा-पढ़ होने और न होने म कोई अ तर न था। सूखे - बूड़े क वपदाएँ उसके मन को भी, बनाये रहती थीं। ई र का रौि रहता था। पर यह छल उसक नीित म छल न था। यह केवल ःवाथ-िस थी। इस तरह का छल तो वह दन-रात करता रहता था। घर म दो-चार प सदै व उसके सामन थी और यह कोई बुर बात न पये पड़े रहने पर भी महाजन के सामने क़ःम खा जाता था क एक पाई भी नह ं है । सन को कुछ गीला कर दे ना और ई म कुछ बनौले भर दे ना उसक नीित म जायज था। और यहाँ तो केवल ःवाथ न था, थोड़ा-सा मनोरं जन भी था। बु ढ का बुढ़भस हाःयाःपद वःतु है और ऐसे बु ढ से अगर कुछ ऐंठ भी िलया जाय, तो कोई दोष-पाप नह ं। भोला ने गाय क पग हया होर के हाथ म दे ते हए कहा -- ले जाओ महतो, तुम भी याद करोगे। याते ह छः सेर दध ले लेना। चलो , म तु हारे घर तक पहँ ु चा दँ । ू साइत तु ह अनजान समझकर राःत म कुछ दक करे । अब तुमसे सच कहता हँू , मािलक न ब या क़दर। मुझसे लेकर कसी हा कम-ह ु काम को दे दे ते। पए दे ते थे , पर उनके यहाँ गउओं क हा कम को गऊ क सेवा से मतलब। वह तो ख़ून चूसना-भर जानते ह। जब तक दध दे ती , रखते , फर कसी के हाथ बेच दे ते। कसके प ले पड़ती कौन जाने। पया ह सब कुछ नह ं है भैया, कुछ अपना धरम भी तो है । तु हारे घर आराम से रहे गी तो। यह न होगा क तुम आप खाकर सो रहो और गऊ भूखी खड़ रहे । उसक सेवा करोगे , चुमकारोगे। गऊ हम आिसरवाद दे गी। तुमस या कहँ ू भैया , घर म चंगुल भर भी भूसा नह ं रहा। पए सब बाज़ार म िनकल गये। सोचा था महाजन से कुछ लेकर भूसा ले लगे ; ले कन महाजन का पहला ह नह ं चुका। उसने इनकार कर दया। इतने जानवर को खलाऊँ , तो मन-भर रोज़ का ख़रच है । या खलाव, यह िच ता मारे डालती है । चुटक -चुटक भर भगवान ् ह पार लगाय तो लगे। होर ने सहानुभूित के ःवर म कहा -- तुमने हमसे पहल य नह ं कहा? हमने एक गाड़ भूसा बेच दया। भोला ने माथा ठोककर कहा -- इसीिलए नह ं कहा भैया क सबसे अपना दःख कोई नह ं , हँ सते सब ह। य रोऊँ। बाँटता जो गाय सूख गयी ह उनका ग़म नह ं , प ी-स ी खलाकर जला लूँगा; ले कन अब यह तो राितब बना नह ं रह सकती। हो सके , तो दस-बीस पये भूसे के िलए दे दो। कसान प का ःवाथ होता है , इसम स दे ह नह ं। उसक गाँठ से र त के पैसे बड़ मु ँकल सिनकलते ह, भाव-ताव म भी वह चौकस होता है , याज क एक-एक पाई छड़ान के िलए वह महाजन क घंट िचरौर करता है , जब तक प का व ास न हो जाय, वह कसी के फुसलाने म नह ं आता, ले कन उसका स पूण जीवन ूकृ ित से ःथायी सहयोग है । व म फल लगते ह, उ ह जनता खाती है ; खेती म अनाज होता है , वह संसार के काम आता है ; गाय के थन म दध होता है , वह ख़ुद पीने नह ं जाती दसर ह पीते ह; मेघ से वषा होती है , उससे पृ वी त ःथान। होर होती है । कसान था और कसी के जलते हए घर म हाथ सकना उसने सीखा ह न था। भोला क संकट-कथा सुनते ह उसक मनोव लौटाता हआ बोला -- उठवा लो। ऐसी संगित म कु सत ःवाथ के िलए कहा बदल गयी। पग हया को भोला के हाथ म पए तो दादा मेरे पास नह ं ह, हाँ थोड़ा-सा भूसा बचा है , वह तु ह दँ ग ा। चलकर भूसे के िलए तुम गाय बेचोगे , और म लूँगा। मेरे हाथ न कट जायगे ? भोला ने आि कंठ से कहा -- तु हारे बैल भूख न मरगे ! तु हारे पास भी ऐसा कौन-सा बहत -सा भूसा रखा है । 'नह ं दादा, अबक भूसा अ छा हो गया था।' 'मने तुमसे नाहक़ भूसे क चचा क । ' 'तुम न कहते और पीछे से मुझे मालूम होता, तो मुझे बड़ा रं ज होता क तुमने मुझे इतना ग़ैर समझ िलया। अवसर पड़ने पर भाई क मदद भाई भी न करे , तो काम कैसे चले। ' 'मुदा यह गाय तो लेते जाओ। ' 'अभी नह ं दादा, फर ले लूँगा। ' 'तो भूसे के दाम दध म कटवा लेना। ' होर ने दः ु खत ःवर म कहा -- दाम-कौड़ क इसम कौन बात है दादा, म एक-दो जून तु हार घर खा लूँ , तो तुम मुझसे दाम माँगोगे ? ' ले कन तु हारे बैल भूख मरगे क नह ं ? ' ' भगवान ् कोई -न-कोई सबील िनकालगे ह । असाढ़ िसर पर है । कड़बी बो लूँगा। ' ' मगर यह गाय तु हार हो गयी। जस दन इ छा हो आकर ले जाना। ' ' कसी भाई का िनलाम पर चढ़ा हआ बैल लेने म जो पाप है , वह इस समय तु हार गाय लेने म है । ' होर म बाल क खाल िनकालने क श भोला जब नक़द पए नह ं माँगता तो ःप कुछ और आशय है ; ले कन जैसे प होती, तो वह ख़ुशी से गाय लेकर घर क राह लेता। था क वह भूसे के िलए गाय नह ं बेच रहा है , ब क इसका के खड़कने पर घोड़ा अकारण ह आगे क़दम नह ं उठाता वह दसा होर क थी। ठठक जाता है और मारने पर भी संकट क चीज़ लेना पाप है , यह बात ज म-ज मा तर से उसक आ मा का अंश बन गयी थी। भोला ने ग गद कंठ से कहा -- तो कसी को भेज दँ ू भूसे के िलए ? होर ने जवाब दया -- अभी म राय साहब क डयोढ़ पर जा रहा हँ ू । वहाँ से घड़ -भर म लौटँ ू गा , तभी कसी को भेजना। भोला क आँख म आँसू भर आये। बोला -- तुमने आज मुझे उबार िलया होर भाई! मुझे अब मालूम हआ क म संसार म अकेला नह ं हँ ू । मेरा भी कोई हतू है । एक ण के बाद उसने फर कहा --उस बात को भूल न जाना। होर आगे बढ़ा, तो उसका िच ूस न था। मन म एक विचऽ ःफूित हो रह थी। या हआ , दस-पाँच मन भूसा चला जायगा, बेचारे को संकट म पड़ कर अपनी गाय तो न बेचनी पड़े गी। जब मेरे पास चारा हो जायगा, तब गाय खोल लाऊँगा। भगवान ् कर , मुझे कोई मेह रया िमल जाय। फर तो कोई बात ह नह ं। उसने पीछे फर कर दे खा। कबर गाय पूँछ से म खयाँ उड़ाती, िसर हलाती, मःतानी, म द- गित से झूमती चली जाती थी, जैसे बाँ दय के बीच म कोई रानी हो। कैसा शुभ होगा वह दन, जब यह कामधेनु उसके ार पर बँधेगी! गोदान २ ूेमच द सेमर और बेलार दोन अवध-ूा त के गाँव ह। होर बेलार म रहता है , है । ज़ले का नाम बताने क कोई ज़ रत नह ं। राय साहब अमरपाल िसंह सेमर म। दोन गाँव म केवल पाँच मील का अ तर पछले स यामह-संमाम म राय साहब ने बड़ा यश कमाया था। गये थे। क िसल क मे बर छोड़कर जेल चल तब से उनके इलाक़े के असािमय को उनसे बड़ ौ ा हो गयी थी। म असािमय के साथ कोई ख़ास रयायत क जाती हो, यह नह ं क उनके इलाक़े या डाँड़ और बेगार क कड़ाई कुछ कम हो; मगर यह सार बदनामी मुउतार के िसर जाती थी। राय साहब क क ित पर कोई कलंक न लग सकता था। ज़ा ते का काम तो जैसे होता चला आया है , वह बेचारे भी तो उसी यवःथा के ग़ुलाम थे। ह होगा। राय साहब क स जनता उस पर कोई असर न डाल सकती थी; इसिलए आमदनी और अिधकार म जौ-भर क भी कमी न होने पर भी उनका यश मानो बढ़ गया था। कर बोल लेते थे। यह या कम है ? के बदले मीठ बोली बोल सकता, िसंह का काम तो िशकार करना है ; वैसा असािमय से वह हँ स अगर वह गरजने और गुरान तो उसे घर बैठे मनमाना िशकार िमल जाता। िशकार क खोज म जंगल म न भटकना पड़ता। राय साहब रा वाद होने पर भी ह ु काम से मेल -जोल बनाये रखते थे। और कमचा रय क दःतू रयाँ जैसी क तैसी चली आती थीं। शौक़ न, थे ; अ छे व ा थे , अ छे लेखक, मगर दसर शाद न क थी। होर अ छे िनशाने - बाज़। मनोरं जन का साधन बना दया था। वशाल था। भाई, थे। दे ते थे। थे। क बड़ ज़ोर स कह ं मेहमान का आित य-गृह , पर राय साहब ख़ुद काम म लगे हए थे। भी पायी थी और धनुष -य इस अवसर पर उनके यार-दोःत, और दो-तीन दन इलाक़े म बड़ चहल-पहल रहती थी। कोई डे ढ़ सौ सरदार एक साथ भोजन करते थे। बीिसय नाते के भाई। भ कह ं मंडप, धूप तेज़ हो गयी थी ; के साथ-साथ उ ह ने राम क भ िनमं ऽत होते थे। सामा के उनक प ी को मरे आज दस साल हो चुके योढ़ पर पहँ ु चा तो दे खा जेठ के दशहरे के अवसर पर होनेवाले धनुष -य दकानदार के िलए दकान। िश सा ह य और संगीत के ूेमी थे , हँ स -बोलकर अपने वधुर जीवन को बहलाते रहते थे। तैया रयाँ हो रह ह। कह ं रं ग -मंच बन रहा था, से स प उनक नज़र और डािलया कई चचा थे , को नाटक का कह अपने पता प दे कर उस हा कम-ह ु काम सभी राय साहब का प रवार बहत दरजन चचेरे भाई, कई सग एक चचा साहब राधा के अन य उपासक थे और बराबर वृ दाबन म रहत -रस के कतने ह क वता रच डाले थे और समय-समय पर उ ह छपवाकर दोःत क भट कर एक दसर चचा थे , जो राम के परमभ रयासत से सबके वसीके बँधे हए थे। थे और फ़ारसी-भाषा म रामायण का अनुवाद कर रह कसी को कोई काम करने क ज़ रत न थी। होर मंडप म खड़ा सोच रहा था क अपने आने क सूचना कैसे दे क सहसा राय साहब उधर ह आ िनकले और उसे दे खते ह बोले --अरे ! तू आ गया होर , अबक तुझे राजा जनक का माली बनना पड़े गा। म तो तुझे बुलवानेवाला था। समझ गया न, दे ख , जस वईत जानक जी म दर म पूजाकरने जाती ह, उसी वईत तू एक गुलदःता िलये खड़ा रहे गा और जानक जी क भट करे गा। करना और दे ख , असािमय से ताक द करके कह दे ना क सब-के -सब शगुन करने आय। ग़लती न मेरे साथ कोठ म आ, तुझसे कुछ बात करनी ह। घने व क छाया म एक कुरसी पर बैठ गये और होर को ज़मीन पर बैठने का इशारा करके बोले -- समझ गया, मन या कहा। वह आगे - आगे कोठ क ओर चले , कारकुन को तो जो कुछ करना है , मन से असामी क बात सुनता है , कारकुन क नह ं सुनता। ूब ध करना है । कैसे होगा, य अपना दखड़ा ले बैठे। समझ म नह ं आता। इतना जानता हँ ू क तुम मन म मुझ पर हँ सोगे नह ं। सकूँगा। नह ं सह सकता उनक हँ सी, जलन है । खोलकर, और व य न हँ स गे। तािलयाँ बजाकर। ले कन जानते हो, य ? कोरा अहं कार है , वश पट जाय, मौज उड़ा रहे ह, नह ं। य क उनक हँ सी म ईंया, हम भी दान दे ते ह, फुफेरे , ममेरे , तो मुझे सुख होता है । नह ं बढ़ाता तो यह मेर नीच ःवाथपरता है ; शराब नह ं पीता तो मेर कंजूसी है । करता, तो अरिसक हँू , बग़ल बजायगे , या अपन मानो सार वह मेरे दःख को दःख समझनेवाला कोई म अगर रोता हँ ू , तो दःख क हँ सी म अगर अपना याह करके घर म कलह तो वह वलासा धता होगी। तो वह ूजा का र तो फर कहना ह फँसाने के िलए कम चाल नह ं चलीं और अब तक चलते जाते ह। जाऊँ और ये लोग मुझे लूट ल, वधवा बह ू शराब पी रहे ह और ऐयाशी कर रहे ह, अगर याह कर लूँ , शराब पीने लगूँ , ऐयाशी करने लगूँ , कसी क मौसेरे भाई जो इसी रयासत क बदौलत और आज मर जाऊँ तो घी के िचराग़ जलाय। म अगर बीमार होता हँ ू , बक़ाया जैसे हमारे पसीने क जगह ख़ून बहान उनक नज़र म मुझे दखी होने का कोई अिधकार ह नह ं है । उड़ाता हँ ू । हमारा दान और धम कोई कसी वेँया के हाथ उ लू बन जाय, और तो और, हमारे चचेरे , दल धम करते ह। क़ुक़ आ जाय, कसी का जवान बेटा मर जाय, और िमलगे तो इतने ूेम से , यंग और और पतन पर हँ सता हँ ू , हम म से कसी पर डमी हो जाय, क वता कर रहे ह और जुए खेल रहे ह, भी मुझसे जलते ह, तो तु हार हँ सी म वरदाँत कर तो उसके और सभी भाई उस पर हँ स गे , संसार क स पदा िमल गयी है । अरे , मुझ टके के आदमी से मािलक केवल अपने बराबरवाल को नीचा दखाने के िलए। अहं कार। ले कन असामी जतन य तु हारे ऊपर व ास होता है । और हँ सो भी , और स दयता म वैर है । िनकल जाय, कसी के घर म आग लग जाय, को तैयार ह। न जान म भी तो उनक ददशा और वप स प वह ं एक हम इ ह ं पाँच -सात दन म बीस हज़ार का जो अपने बराबर के ह, मालगुज़ार क इ लत म हवालात हो जाय, असािमय के हाथ वह करे गा ह , तुम सोचते होगे , कससे अपने मन क कहँ ू ? होर पीछे -पीछे चला। या। होगा। अगर अगर ऐयाशी नह इन लोग ने मुझे भोग- वलास म उनक यह इ छा है क म अ धा हो और मेरा धम यह है क सब कुछ दे खकर भी कुछ न दे खूँ। सब कुछ जानकर भी गधा बना रहँ ू । राय साहब ने गाड़ को आगे बढ़ाने के िलए दो बीड़े पान खाये और होर के मुँह क ओर ताकन लगे , जैसे उसके मनोभाव को पढ़ना चाहते ह । होर ने साहस बटोरकर कहा -- हम समझते थे क ऐसी बात हमीं लोग म होती ह, पर जान पड़ता है , बड़े आदिमय म उनक कमी नह ं है । राय साहब ने मुँह पान से भरकर कहा -- तुम हम बड़ा आदमी समझते हो ? ह, पर दशन थोड़े । ग़र ब म अगर ईंया या वैर है तो ःवाथ के िलए या पेट के िलए। हमारे नाम बड़ ऐसी ईंया औरवैर को म य समझता हँ ू । हमारा धम हो जाता है । के िलए है । हमारे मुँह क रोट कोई छ न ले तो उसके गले म उँ गली डालकर िनकालना अगर हम छोड़ द, तो दे वता ह। हम इतने बड़े आदमी हो गये ह क हम नीचता और कु टलता म ह िनःःवाथ और परम आन द िमलता है । हम दे वतापन के उस दज पर पहँ ु च गये ह जब हम दसर के रोने पर हँ सी आती है । जब इतना बड़ा कुट ु ब है , इसे तुम छोट साधना मत समझो। ह । और बड़े आदिमय के रोग भी बड़े होते ह। मामूली बड़े आदिमय क ईंया और वैर केवल आन द वर भी आ जाय, ज़हरबाद बन जाती है । वह बड़ा आदमी ह तो हम सरसाम क दवा द जाती है , जसे कोई छोटा रोग हो। या, मामूली फुंसी भी िनकल आये , तो वह अब छोटे सजन और मझोले सजन और बड़े सजन तार से बुलाये जा रहे ह, मसीहलम क को लाने के िलए द ली आदमी भेजा जा रहा है , उधर दे वालय म दगापाठ हो रहा है और अपने अनु ान म लगे हए ह। व तो कोई-न-कोई तो हमेशा बीमार रहे गा िभषगाचाय को लाने के िलए कलक ा। योितषाचाय कुंडली का वचार कर रहे ह और त ऽ के आचाय राजा साहब को यमराज के मुँह से िनकालने के िलए दौड़ लगी हई है । और डा टर इस ताक म रहते ह क कब िसर म दद हो और कब उनके घर म सोने क वषा हो। और य पए तुमसे और तु हारे भाइय से वसूल कये जाते ह, भाले क नोक पर। आ य होता है क य तु हार आह का दावानल हम भःम नह ं कर डालता; क कोई बात नह ं। भःम होने म तो बहत दे र नह ं लगती , मुझे तो यह मगर नह ं , आ य करन वेदना भी थोड़ ह दे र क होती है । हम जौ-जौ और अंगुल -अंगुल और पोर-पोर भःम हो रहे ह। उस हाहाकार से बचने के िलए हम पुिलस क , ह ु काम क , और अदालत क , खलौना बनते ह। चाकर, क़रज़, चाहे कुछ हो, वक ल क शरण लेते ह। दिनया समझती है , हम बड़े सुखी ह। वेँयाएँ , या नह ं ह, आदमी नह ं है । पवती ी क भाँित सभी के हाथ का हमारे पास इलाक़े , ले कन जसक आ मा म बल नह ं , महल, सवा रयाँ , अिभमान नह ं , जसे दँमन के भय के मारे रात को नींद न आती हो , नौकर- वह और जसके दःख पर सब हँ स और रोनेवाला कोई न हो, जसक चोट दसर के पैर के नीचे दबी हो , म अपने को बलकुल भूल गया हो, जो ह ु काम के तलवे चाटता हो और अपने अधीन का ख़ून चूसता हो, उसे म सुखी नह ं कहता। दौरे पर, सूखे। वह तो संसार का सबसे अभागा ूाणी है । मेरा कत य है क उनक दम के पीछे लगा रहँ ू । उ ह ूस न करने के िलए हम व ास न आये। या नह ं करते। साहब िशकार खेलने आय या उनक भ ह पर िशकन पड़ और हमारे ूाण मगर वह पचड़ा सुनाने लगूँ तो शायद तु ह डािलय और र त तक तो ख़ैर ग़नीमत है , मुझतख़ोर ने हम अपंग बना दया है , जो भोग- वलास के नश हम िसजदे करने को भी तैयार रहते ह। हम अपने पु षाथ पर लेशमाऽ भी व ास नह ं , केवल अफ़सर के सामने दम हला - हलाकर कसी तरह उनके कृ पापाऽ बने रहना और उनक सहायता से अपनी ूजा पर आतंक ज़माना ह हमारा उ म है । बना दया है क हमम शील, पछलगुओं क ख़ुशामद ने हम इतना अिभमानी और तुनकिमज़ाज वनय और सेवा का लोप हो गया है । म तो कभी-कभी सोचता हँ ू क अगर सरकार हमारे इलाक़े छ नकर हम अपनी रोज़ी के िलए मेहनत करना िसखा दे तो हमारे साथ महान उपकार करे , और यह तो िन य है क अब सरकार भी हमार र ा न करे गी। ःवाथ नह ं िनकलता। हमसे अब उसका कोई ल ण कह रहे ह क बहत ज द हमारे वग क हःती िमट जानेवाली है । दन का ःवागत करने को तैयार बैठा हँ ू । हम प रःथितय के िशकार बने हए ह। ई र वह दन ज द लाये। म उस वह हमारे उ ार का दन होगा। यह प र ःथित ह हमारा सवनाश कर रह है और जब तकस प क यह बेड़ हमारे पैर से न िनकलेगी, जब तक यह अिभशाप हमारे िसर पर मँडराता रहे गा, हम मानवता का वह पद न पा सक गे जस पर पहँ ु चना ह जीवन का अ तम लआय है । राय साहब ने फर िगलौर -दान िनकाला और कई िगलौ रयाँ िनकालकर मुँह म भर लीं। कुछ और कहने वाले थे क एक चपरासी ने आकर कहा -- सरकार बेगार ने काम करने से इनकार कर दया है । कहते ह, जब तक हम खाने को न िमलेगा हम काम न करगे। हमने धमकाया, तो सब काम छोड़कर अलग हो गये। राय साहब के माथे पर बल पड़ गये। करता हँ ू । जब कभी खाने को नह ं दया , मजूर िमलेगी, जो हमेशा िमलती रह है ; आँख िनकालकर बोले --चलो, तो आज यह नयी बात य ? म इन द को ठ क एक आने रोज़ के हसाब स और इस मजूर पर उ ह काम करना होगा, सीधे कर या टे ढ़े। फर होर क ओर दे खकर बोले -- तुम अब जाओ होर , कह है , उसका ख़याल रखना। अपनी तैयार करो। जो बात मन तु हारे गाँव से मुझे कम-से - कम पाँच सौ क आशा है । राय साहब झ लाते हए चले गये। होर ने मन म सोचा , अभी यह कैसी-कैसी नीित और धरम क बात कर रहे थे और एकाएक इतने गरम हो गये ! सूय िसर पर आ गया था। उसके तेज से अिभभूत होकर व ने अपना पसार समेट िलया था। आकाश पर िमटयाला गद छाया हआ था और सामने क पृ वी काँपती हई जान पड़ती थी। होर ने अपना डं डा उठाया और घर चला। िसर पर सवार थी। शगून के पये कहाँ से आयगे , यह िच ता उसके ूेमच द रिचत गोदान होर अपने गाँव के समीप पहँ ु चा , तो दे खा, अभी तक गोबर खेत म ऊख गोड़ रहा है और दोन लड़ कया भी उसके साथ काम कर रह ह। लू चल रह थी, बगूले उठ रहे थे , भूतल धधक रहा था। जैसे ूकृ ित न वायु म आग घोल दया हो। यह सब अभी तक खेत म य ह? या काम के पीछे सब जान दे ने पर तुले हए ह ? वह खेत क ओर चला और दर ू ह से िच लाकर बोला -- आता य नह ं गोबर, या काम ह करता रहे गा? दोपहर ढल गया, कुछ सूझता है क नह ं ? उसे दे खते ह तीन ने कुदाल उठा लीं और उसके साथ हो िलये। गोबर साँवला, ल बा, एकहरा युवक था, जसे इस काम स िच न मालूम होती थी। ूस नता क जगह मुख पर अस तोष और विोह था। वह इसिलये काम म लगा हआ था क वह दखाना चाहता था , उसे खाने - पीने क कोई फ़ब नह ं है । बड़ लड़क सोना ल जा-शील कुमार थी, साँवली, सुडौल, ूस न और चपल। गाढ़े क लाल साड़ जसे वह घुटन से मोड़ कर कमर म बाँधे हए थी , उसके हलके शर र पर कुछ लद हई सी थी , और उसे ूौढ़ता क ग रमा दे रह थी। छोट पा पाँच -छः साल क छोकर थी, मैली, िसर पर बाल का एक घ सला-सा बना हआ , एक लँगोट कमर म बाँधे , बहत ह ढ ठ और रोनी। पा ने होर क टाँग म िलपट कर कहा -- काका! दे खो, मैने एक ढे ला भी नह ं छोड़ा। बहन कहती है , जा पेड़ तले बैठ। ढे ले न तोड़े जायँगे काका, तो िम ट कैसे बराबर होगी। होर ने उसे गोद म उठाकर यार करते हए कहा -- तूने बहत अ छा कया बेट , चल घर चल। कुछ दे र अपने विोह को दबाये रहने के बाद गोबर बोला -- यह तुम रोज़-रोज़ मािलक क ख़ुशामद करन य जाते हो? बाक़ न चुके तो यादा आकर गािलयाँ सुनाता है , बेगार दे नी ह पड़ती है , नज़र-नज़राना सब तो हमसे भराया जाता है । फर कसी क य सलामी करो! इस समय यह भाव होर के मन म भी आ रहे थे ; ले कन लड़के के इस विोह-भाव को दबाना ज़ र था। बोला -- सलामी करने न जायँ , तो रह कहाँ। भगवान ् ने जब ग़ुलाम बना दया है तो अपना यह इसी सलामी क बरकत है क या बस है । ार पर मड़ै या डाल ली और कसी ने कुछ नह ं कहा। घूरे न खूँटा गाड़ा था, जस पर का र द ने दो ार पर पए डाँड़ ले िलये थे। तलैया से कतनी िम ट हमने खोद , का र दा ने कुछ नह ं कहा। दसरा खोदे तो नज़र दे नी पड़े । अपने मतलब के िलए सलामी करने जाता हँ ू , पाँव म सनीचर नह ं है और न सलामी करने म कोई बड़ा सुख िमलता है । घंट खड़े रहो, तब जाके मािलक को ख़बर होती है । कभी बाहर िनकलते ह, कभी कहला दे ते ह क फ़ुरसत नह ं है ।गोबर ने कटा कया -- बड़े आदिमय क हाँ - म-हाँ िमलाने म कुछ-न-कुछ आन द तो िमलता ह है । नह ं लोग मे बर के िलए य खड़े ह ? 'जब िसर पर पड़े गी तब मालूम होगा बेटा, अभी जो चाहे कह लो। पहले म भी यह सब बात सोचा करता था; पर अब मालूम हआ क हमार गरदन दसर के पैर के नीचे दबी हई है अकड़ कर िनबाह नह ं हो सकता।' ोध उतारकर गोबर कुछ शा त हो गया और चुपचाप चलने लगा। सोना ने दे खा, पता पर अपना बाप क गोद म चढ़ बैठ है तो ईंया हई। उसे डाँटकर बोली -- अब गोद से उतरकर पाँव -पाँव चलती, पा य नह गये ह ? या पाँव टट पा ने बाप क गरदन म हाथ डालकर ढठाई से कहा -- न उतरगे जाओ। काका, बहन हमको रोज़ िचढ़ाती है क त पा है , म सोना हँ ू । मेरा नाम कुछ और रख दो। होर ने सोना को बनावट रोष से दे खकर कहा -- तू इस िनबाह तो पा से होता है । सोना ने अपने प पा न हो, तो य िचढ़ाती है सोिनया? सोना तो दे खने को है । पए कहाँ से बन, बता। का समथन कया -- सोना न हो मोहन कैसे बने , नथुिनयाँ कहाँ से आय, कंठा कैस बने ? गोबर भी इस वनोदमय ववाद म शर क हो गया। तरह पीला है , पा से बोला -- तू कह दे क सोना तो सूखी प ी क पा तो उजला होता है जैसे सूरज। सोना बोली -- शाद - याह म पीली साड़ पहनी जाती है , उजली साड़ कोई नह ं पहनता। पा इस दलील से पराःत हो गयी। गोबर और होर क कोई दलील इसके सामने न ठहर सक । उसन ध आँख से होर को दे खा। होर को एक नयी य सूझ गयी। बोला -- सोना बड़े आदिमय के िलए है । हम ग़र ब के िलए तो पा ह है । जैसे जौ को राजा कहते ह, गेह ू ँ को चमार ; इसिलए न क गेह ू ँ बड़े आदमी खाते ह , जौ हम लोग खाते ह। सोना के पास इस सबल य गये , नह पया को का कोई जवाब न था। पराःत होकर बोली -- तुम सब जने एक ओर हो लाकर छोड़ती।पा ने उँ गली मटकाकर कहा -- ए राम, सोना चमार -- ए राम, सोना चमार। इस वजय का उसे इतना आन द हआ क बाप क गोद म रह न सक । ज़मीन पर कूद पड़ और उछल - उछलकर यह रट लगाने लगी -- ये लोग घर पहँ ु चे तो धिनया पा राजा, सोना चमार -- पा राजा, सोना चमार! ार पर खड़ इनक बाट जोह रह थी। होकर बोली -- आज इतनी दे र य क गोबर? काम के पीछे कोई परान थोड़े ह दे दे ता है । फर पित से गम होकर कहा -- तुम भी वहाँ से कमाई करके लौटे तो खेत म पहँ ु च गये। खेत कह ं भागा जाता था! ार पर कुआँ था। होर और गोबर ने एक-एक कलसा पानी िसर पर उँ ड़े ला, पा को नहलाया और भोजन करने गये। जौ क रो टयाँ थीं ; पर गेह ू ँ - जैसी सुफ़ेद और िचकनी। अरहर क दाल थी जसम क चे आम पड़े हए थे। पा बाप क थाली म खाने बैठ । सोना ने उसे ईंयार - ् भर आँख से दे खा, मानो कह रह थी, वाह रे दलार ! धिनया ने पूछा -- मािलक स या बात-चीत हई ? होर ने लोटा-भर पानी चढ़ाते हए कहा -- यह तहसील-वसूल क बात थी और या। हम लोग समझते ह, बड़े आदमी बहत ह। हम अपने पेट ह क सुखी ह गे ; ले कन सच पूछो, तो वह हमसे भी एयादा दःखी िच ता है , उ ह हज़ार िच ताएँ घेरे रहती ह। राय साहब ने और या- या कहा था, वह कुछ होर को याद न था। उस सारे कथन का ख़ुलासा-माऽ उसके ःमरण म िचपका हआ रह गया था। गोबर ने यं य कया -- तो फर अपना इलाक़ा हम य नह ं दे दे ते ! हम अपने खेत , बैल , हल, कुदाल सब उ ह दे ने को तैयार ह। करगे बदला? यह सब धूत ता है , िनर मोटमरद । जसे दःख होता है , वह दरजन मोटर नह ं रखता, महल म नह ं रहता, हलवा-पूर नह ं खाता और न नाच-रं ग म िल रहता है । मज़े से राज का सुख भोग रहे ह, उस पर दखी ह ! होर ने झुँझलाकर कहा -- अब तुमसे बहस कौन करे भाई! जैजात कसी से छोड़ जाती है क वह छोड़ दगे। हमीं को खेती स या िमलता है ? एक आने नफ़र क मजूर भी तो नह ं पड़ती। जो दस पए मह न का भी नौकर है , वह भी हमसे अ छा खाता-पहनता है , ले कन खेत को छोड़ा तो नह ं जाता। खेती छोड़ द, तो और कर या? नौकर कह ं िमलती है ? फर मरजाद भी तो पालना ह पड़ता है । खेती म जो मरजाद है वह नौकर म तो नह ं है । इसी तरह ज़मींदार का हाल भी समझ लो! उनक जान को भी तोसैकड़ रोग लगे हए ह , हा कम को रसद पहँ ु चाओ , उनक सलामी करो, अमल को ख़ुश करो। तार ख़ पर मालगुज़ार न चुका द, तो हवालात हो जाय , कुड़क आ जाय। हम तो कोई हवालात नह ं ले जाता। दो- चार गिलयाँ - घुड़ कयाँ ह तो िमलकर रह जाती ह। गोबर ने ूितवाद कया -- यह सब कहने क बात ह। हम लोग दाने - दाने को मुहताज ह, दे ह पर सा बत कपड़े नह ं ह, चोट का पसीना एड़ तक आता है , तब भी गुज़र नह ं होता। उ ह लगाये बैठे ह, सैकड़ नौकर-चाकर ह, हज़ार आदिमय पर हक ू मत है । सभी तरह का भोगते ह। धन लेकर आदमी और या, मज़े से ग -मसनद पए न जमा होते ह ; पर सुख तो या करता है ? 'तु हार समझ म हम और वह बराबर ह?' 'भगवान ् ने तो सबको बराबर ह बनाया है । ' 'यह बात नह ं है बेटा, छोटे - बड़े भजवान के घर से बनकर आते ह। स प बड़ तपःया से िमलती है । उ ह ने पूव ज म म जैसे कम कये ह, उनका आन द भोग रहे ह। हमने कुछ नह ं संचा, तो भोग या? 'यह सब मन को समझाने क बात ह। भगवान ् सबको बराबर बनाते ह। यहाँ जसके हाथ म लाठ है , वह ग़र ब को कुचलकर बड़ा आदमी बन जाता है । ' 'यह तु हारा भरम है । मािलक आज भी चार घंटे रोज़ भगवान ् का भजन करते ह। ' ' कसके बल पर यह भजन-भाव और दान-धम होता है ?' 'अपने बल पर।' 'नह ं , कसान के बल पर और मज़दर ू के बल पर। यह पाप का धन पचे कैसे ? इसीिलए दान-धम करना पड़ता है , भगवान ् का भजन भी इसीिलए होता है , भूखे - नंगे रहकर भगवान ् का भजन कर , तो हम भी दे ख । हम कोई दोन जून खाने को दे तो हम आठ पहर भगवान ् का जाप ह करते रह। एक दन खेत म ऊख गोड़ना पड़े तो सार िभ भूल जाय।' होर ने हार कर कहा -- अब तु हारे मुँह कौन लगे भाई, तुम तो भगवान ् क लीला म भी टाँग अड़ाते हो। तीसरे पहर गोबर कुदाल लेकर चला, तो होर ने कहा -- ज़रा ठहर जाओ बेटा, हम भी चलते ह। तब तक थोड़ा-सा भूसा िनकालकर रख दो। मने भोला को दे ने को कहा है । बेचारा आजकल बहत तंग है । गोबर ने अव ा-भर आँख से दे खकर कहा -- हमारे पास बेचने को भूसा नह ं है ।'बेचता नह ं हँ ू भाई , य ह दे रहा हँ ू । वह संकट म है , उसक मदद तो करनी ह पड़े गी।' 'हम तो उ ह ने कभी एक गाय नह ं दे द ।' 'दे तो रहा था; पर हमने ली ह नह ं। ' धिनया मट कर बोली -- गाय नह ं वह दे रहा था। इ ह गाय दे दे गा! आँख म अंजन लगाने को कभी िच लू - भर दध तो भेजा नह ं , गाय दे गा! होर ने क़सम खायी -- नह ं , जवानी क़सम, अपनी पछाई गाय दे रहे थे। हाथ तंग है , भूसा-चारा नह ं रख सके। अब एक गाय बेचकर भूसा लेना चाहते ह। मने सोचा, संकट म पड़े आदमी क गाय थोड़ा-सा भूसा दये दे ता हँू , कुछ अःसी या लूँगा। पए हाथ आ जायँगे तो गाय ले लूँगा। थोड़ा-थोड़ा करके चुका दँ ग ा। पए क है ; मगर ऐसी क आदमी दे खता रहे । गोबर ने आड़े हाथ िलया -- तु हारा यह धमा मापन तो तु हार दगत कर रहा है । साफ़ -साफ़ तो बात है । अःसी पए क गाय है , हमसे बीस पए का भूसा ले ल ओर गाय हम दे द। साठ पए रह जायँगे , वह हम धीरे - धीरे दे दगे। होर रहःयमय ढं ग से मुःकुराया -- मने ऐसी चाल सोची है क गाय सत-मत म हाथ आ जाय। कह भोला क सगाई ठ क करनी है , बस। दो-चार मन भूसा तो ख़ाली अपना रं ग जमाने को दे ता हँ ू । गोबर ने ितरःकार कया -- तो तुम अब सब क सगाई ठ क करते फरोगे ? धिनया ने तीखी आँख से दे खा -- अब यह एक उ म तो रह गया है । नह ं दे ना है हम भूसा कसी को। यहाँ भोली-भाली कसी का करज़ नह ं खाया है । होर ने अपनी सफ़ाई द -- अगर मेरे जतन से कसी का घर बस जाय, तो इसम कौन-सी बुराई है ? गोबर ने िचलम उठाई और आग लेने चला गया। उसे यह झमेला ब कुल नह ं भाता था। धिनया ने िसर हला कर कहा -- जो उनका घर बसायेगा, वह अःसी पए क गाय लेकर चुप न होगा। एक थैली िगनवायेगा। होर ने पुचारा दया -- यह म जानता हँू ; ले कन उनक भलमनसी को भी तो दे खो। मुझसे जब िमलताहै , तेरा बखान ह करता है -- ऐसी लआमी है , ऐसी सलीके -दार है । धिनया के मुख पर ःन धता झलक पड़ । मनभाय मु ड़या हलाये वाले भाव से बोली -- म उनके बखान क भूखी नह ं हँू , अपना बखान धरे रह। होर ने ःनेह -भर मुःकान के साथ कहा -- मने तो कह दया, भैया, वह नाक पर म खी भी नह ं बैठन दे ती, गािलय से बात करती है ; ले कन वह यह कहे जाय क वह औरत नह ं ल मी है । बात यह है क उसक घरवाली ज़बान क बड़ तेज़ थी। बेचारा उसके डर के मारे भागा-भागा फरता था। कहता था, जस दन तु हार घरवाली का मुँह सबेरे दे ख लेता हँू , उस दन कुछ-न-कुछ ज़ र हाथ लगता है । मने कहा -- तु हारे हाथ लगता होगा, यहाँ तो रोज़ दे खते ह, कभी पैसे से भट नह ं होती। 'तु हारे भाग ह खोटे ह, तो म या क ँ ।' 'लगा अपनी घरवाली क बुराई करने -- िभखार को भीख तक नह ं दे ती थी, झाड़ ू लेकर मारने दौड़ती थी , लालिचन ऐसी थी क नमक तक दसर के घर से माँग लाती थी !' 'मरने पर कसी क या बुराई क ँ । मुझे दे खकर जल उठती थी।' 'भोला बड़ा ग़मख़ोर था क उसके साथ िनबाह कर दया। दसरा होता तो ज़हर खाके मर जाता। मुझसे दस साल बड़े ह गे भोला; पर राम-राम पहले ह करते ह।' 'तो या कहते थे क जस दन तु हार घरवाली का मुँह दे ख लेता हँू , तो या होता है ?' 'उस दन भगवान ् कह ं -न-कह ं से कुछ भेज दे ते ह।' 'बहए भी तो वैसी ह चटो रन आयी ह। अबक सब ने दो पए के ख़रबूज़े उधार खा डाले। उधार िमल जाय, फर उ ह िच ता नह ं होती क दे ना पड़े गा या नह ं। ' 'और भोला रोते काहे को ह? गोबर आकर बोला -- भोला दादा आ पहँ ु चे। मन दो मन भूसा ह वह उ ह दे दो , फर उनक सगाई ढँ ू ढ़न िनकलो। धिनया ने समझाया -- आदमी ार पर बैठा है उसके िलए खाट-वाट तो डाल नह ं द , ऊपर से लग भुनभुनाने। कुछ तो भलमंसी सीखो। कलसा ले जाओ, पानी भरकर रख दो, हाथ-मुँह धोय, कुछ रस-पानीपला दो। मुसीबत म ह आदमी दसर के सामने हाथ फैलाता है । होर बोला -- रस-वस का काम नह ं है , कौन कोई पाहन ह। धिनया बगड़ -- पाहन और कैसे होते ह ! रोज़-रोज़ तो तु हार म आये ह, यास लगी ह होगी। ार पर नह ं आते ? इतनी दर ू से धूप -घाम पया, दे ख ड बे म तमाखू है क नह ं , गोबर के मारे काहे को बची होगी। दौड़कर एक पैसे का तमाखू सहआइन क दकान से ले ले। भोला क आज जतनी ख़ाितर हई , और कभी न हई होगी। गोबर ने खाट डाल द , सोना रस घोल लायी, पा तमाखू भर लायी। धिनया ार पर कवाड़ क आड़ म खड़ अपने कान से अपना बखान सुनने के िलए अधीर हो रह थी। भोला ने िचलम हाथ म लेकर कहा -- अ छ घरनी घर म आ जाय, तो समझ लो लआमी आ गयी। वह जानती है छोटे - बड़े का आदर-स कार कैसे करना चा हए। धिनया के दय म उ लास का क पन हो रहा था। िच ता और िनराशा और अभाव से आहत आ मा इन श द म एक कोमल शीतल ःपश का अनुभव कर रह थी। होर जब भोला का खाँचा उठाकर भूसा लाने अ दर चला, तो धिनया भी पीछे -पीछे चली। होर ने कहा -- जाने कहाँ से इतना बड़ा खाँचा िमल गया। कसी भड़भूजे से माँग िलया होगा। मन-भर से कम म न भरे गा। दो खाँचे भी दये , तो दो मन िनकल जायँगे। धिनया फूली हई थी। मलामत क आँख से दे खती हई बोली -- या तो कसी को नेवता न दो, और दो तो भरपेट खलाओ। तु हारे पास फूल-पऽ लेने थोड़े ह आये ह क चँगेर लेकर चलते। दे ते ह हो, तो तीन खाँचे दे दो। भला आदमी लड़क को य नह ं लाया। अकेले कहाँ तक ढोयेगा। जान िनकल जायगी। 'तीन खाँचे तो मेरे दये न दये जायँगे !' 'तब या एक खाँचा दे कर टालोगे ? गोबर से कह दो, अपना खाँचा भरकर उनके साथ चला जाय।' 'गोबर ऊख गोड़ने जा रहा है । ' 'एक दन न गोड़ने से ऊख न सूख जायगी।' 'यह तो उनका काम था क कसी को अपने साथ ले लेते। भगवान ् के दये दो -दो बेटे ह।''न ह गे घर पर। दध लेकर बाज़ार गये ह गे। ' 'यह तो अ छ द लगी है क अपना माल भी दो और उसे घर तक पहँ ु चा भी दो। लाद दे , लदा दे , लादनेवाला साथ कर दे । ' 'अ छा भाई, कोई मत जाय। म पहँ ु चा दँ ग ी। बड़ क सेवा करने म लाज नह ं है । ' 'और तीन खाँचे उ ह दे दँ , ू तो अपने बैल या खायगे ?' 'यह सब तो नेवता दे ने के पहले ह सोच लेना था। न हो, तुम और गोबर दोन जने चले जाओ।' 'मुरौवत मुरौवत क तरह क जाती है , अपना घर उठाकर नह ं दे दया जाता!' 'अभी ज़मींदार का यादा आ जाय, तो अपने िसर पर भूसा लादकर पहँ ु चाओगे तुम , तु हारा लड़का, लड़क सब। और वहाँ साइत मन-दो-मन लकड़ भी फाड़नी पड़े । ' 'ज़मींदार क बात और है । ' 'हाँ , वह डं डे के ज़ोर से काम लेता है न।' 'उसके खेत नह ं जोतते ?' 'खेत जोतते ह, तो लगान नह ं दे ते ?' 'अ छा भाई, जान न खा, हम दोन चले जायँगे। कहाँ - से - कहाँ मने इ ह भूसा दे ने को कह दया। या तो चलेगी नह ं , या चलेगी तो दौड़ने लगेगी।' तीन खाँचे भूसे से भर दये गये। गोबर कुढ़ रहा था। उसे अपने बाप के यवहार म ज़रा भी व ास न था। वह समझता था, यह जहाँ जाते ह, वह ं कुछ-न-कुछ घर से खो आते ह। धिनया ूस न थी। रहा होर , वह धम और ःवाथ के बीच म डब -उतरा रहा था। होर और गोबर िमलकर एक खाँचा बाहर लाये। भोला ने तुर त अपने अँगोछे का बीड़ा बनाकर िसर पर रखते हए कहा -- म इसे रखकर अभी भागा आता हँ ू । एक खाँचा और लूँगा।होर बोला -- एक नह ं , अभी दो और भरे धरे ह। और तु ह आना नह ं पड़े गा। म और गोबर एक-एक खाँचा लेकर तु हारे साथ ह चलते ह। भोला ःत भत हो गया। होर उसे अपना भाई ब क उससे भी िनकट जान पड़ा। उसे अपने भीतर एक ऐसी तृि का अनुभव हआ , जसने मानो उसके स पूण जीवन को हरा कर दया। तीन भूसा लेकर चले , तो राह म बात होने लगीं। भोला ने पूछा -- दशहरा आ रहा है , मािलक के ार पर तो बड़ धूमधाम होगी? 'हाँ , त बू सािमयाना गड़ गया है । अब क लीला म म भी काम क ँ गा। राय साहब ने कहा है , तु ह राजा जनक का माली बनना पड़े गा।' 'मािलक तुमसे बहत ख़ुश ह। ' 'उनक दया है । ' एक ण के बाद भोला ने फर पूछा -- सगुन करने के पए का कुछ जुगाड़ कर िलया है ? माली बन गा। जाने से तो गला न छट होर ने मुँह का पसीना प छकर कहा -- उसी क िच ता तो मारे डालती है दादा -- अनाज तो सब-का-सब खिलहान म ह तुल गया। ज़मींदार ने अपना िलया, महाजन ने अपना िलया। मेरे िलए पाँच सेर अनाज बच रहा। यह भूसा तो मने रात रात ढोकर िछपा दया था, नह ं ितनका भी न बचता। ज़मींदार तो एक ह ह; मगर महाजन तीनतीन ह, सहआइन अलग , मँग भी पूरा न चुका। ज़मींदार के भी आध अलग और दाताद न प डत अलग। कसी का याज पए बाक़ पड़ गये। सहआइन से फर पए उधार िलये तो काम चला। सब तरह कफ़ायत कर के दे ख िलया भैया, कुछ नह ं होता। हमारा जनम इसी िलए हआ है क अपना र बहाय और बड़ का घर भर। मूलका दगना सूद भर चुका ; पर मूल य -का- य िसर पर सवार है । लोग कहते ह, सद -गम म, तीरथ-बरत म हाथ बाँधकर ख़रच करो। मुदा राःता कोई नह ं दखाता। राय साहब ने बेटे के याह म बीस हज़ार लुटा दये। उनसे कोई कुछ नह ं कहता। मँग ने अपने बाप के ि◌ या-करम म पाँच हज़ार लगाये। उनसे कोई कुछ नह ं पूछता। वैसा ह मरजाद तो सबका है । भोला ने क ण भाव से कहा -- बड़े आदिमय क बराबर तुम कैसे कर सकते हो भाई? 'आदमी तो हम भी ह।'कौन कहता है क हम तुम आदमी ह। हमम आदिमयत कहाँ ? आदमी वह ह, जनके पास धन है , अ उतयार है , इलम है , हम लोग तो बैल ह और जुतने के िलए पैदा हए को दे ख नह ह। उसपर एक दसर सकता। एका का नाम नह ं। एक कसान दसर के खेत पर न चढ़े तो कोई जाफ़ा कैसे करे , ूेम तो संसार से उठ गया।' बूढ़ के िलए अतीत के सुख और वतमान के दःख और भ वंय के सवनाश से एयादा मनोरं जक और कोई ूसंग नह ं होता। दोन िमऽ अपने - अपने दखड़ रोते रहे । भोला ने अपने बेट के करतूत सुनाये , होर ने अपने भाइय का रोना रोया और तब एक कुएँ पर बोझ रखकर पानी पीने के िलए बैठ गये। गोबर न बिनये से लोटा माँगा और पानी खींचने लगा। भोला ने स दयता से पूछा -- अलगौझे के समय तो तु ह बड़ा रं ज हआ होगा। भाइय को तो तुमने बेट क तरह पाला था। होर आिर ् कंठ से बोला -- कुछ न पूछो दादा, यह जी चाहता था क कह ं जाके डब म ँ । मेरे जीते जी सब कुछ हो गया। जनके पीछे अपनी जवानी धूल म िमला द , वह मेरे मु ई हो गये और झगड़े क जड़ या थी? यह क मेर घरवाली हार म काम करन य नह ं जाती। पूछो, घर दे खनेवाला भी कोई चा हए क नह ं। लेना-दे ना, धरना उठाना, सँभालना-सहे जना, यह कौन करे । फर वह घर बैठ तो नह ं रहती थी, झाड़ू -बुहा , रसोई, चौका-बरतन, लड़क क दे ख -भाल यह कोई थोड़ा काम है । सोभा क औरत घर सँभाल लेती क ह रा क औरत म यह सलीका था? जब से अलगौझा हआ है , दोन घर म एक जून रोट पकती है । नह ं सब को दन म चार बार भूख लगती थी। अब खायँ चार दफ़े , तो दे खूँ। इस मािलकपन म गोबर क माँ क जो दगती हई है , वह म ह जानता हँ ू । बेचार अपनी दे वरािनय के फटे -पुराने कपड़े पहनकर दन काटती थी, ख़ुद भूखी सो रह होगी; ले कन बहओ के िलए जलपान तक का यान रखती थी। अपनी दे ह पर गहने के नाम क चा धागा भी न था, दे वरािनय के िलए दो-दो चार-चार गहने बनवा दये। के न सह चाँद के तो ह। जलन यह थी क यह मािलक सोन य है । बहत क अलग हो गये। अ छा हआ मेरे िसर से बला टली। भोला ने एक लोटा पानी चढ़ाकर कहा -- यह हाल घर-घर है भैया! भाइय क बात ह या, यहाँ तो लड़क से भी नह ं पटती और पटती इसिलए नह ं क म कसी क कुचाल दे खकर मुँह नह ं ब द कर सकता। तुम जुआ खेलोगे , चरस पीओगे , गाँजे के दम लगाओगे , मगर आये कसके घर से ? ख़रचा करना चाहते हो तो कमाओ; मगर कमाई तो कसी से न होगी। ख़रच दल खोलकर करगे। जेठा कामता सौदा लेकर बाज़ार जायगा, तो आधे पैसे ग़ायब। पूछो तो कोई जवाब नह ं। छोटा जंगी है , वह संगत के पीछ मतवाला रहता है । साँझ हई और ढोल -मजीरा लेकर बैठ गये। संगत को म बुरा नह ं कहता। गाना-बजाना ऐब नह ं ; ले कन यह सब काम फ़ुरसत के ह। यह नह ं क घर का तो कोई काम न करो, आठ पहर उसी धुन म पड़े रहो। जाती है मेरे िसर; सानी-पानी म क ँ , गाय-भस म दहँुू , दध लेकर बाज़ार म जाऊँ। यह गृहःथी जी का जंजाल है , सोने क हँ िसया, जसे न उगलते बनता है , न िनगलते। लड़क है , झुिनया, वहभी नसीब क खोट । तुम तो उसक सगाई म आये थे। कतना अ छा घर-बर था। उसका आदमी ब बई म दध करता था। उन दन वहाँ ह द - ू मुसलमान म दं गा हआ क दकान , तो कसी ने उसके पेट म छरा भ क दया। घर ह चौपट हो गया। वहाँ अब उसका िनबाह नह ं। जाकर िलवा लाया क दसर सगाई कर दँ ग ा ; मगर वह राज़ी ह नह ं होती। और दोन भावज ह क रात- दन उसे जलाती रहती ह। घर म महाभारत मचा रहता है । वपत क मार यहाँ आई, यहाँ भी चैन नह ं। इ ह ं दखड़ म राःता कट गया। भोला का पुरवा था तो छोटा ; मगर बहत गुलज़ार। अिधकतर अह र ह बसते थे। और कसान के दे खते इनक दशा बहत बुर न थी। भोला गाँव का मु खया था। ार पर बड़ -सी चरनी थी जस पर दस-बारह गाय-भस खड़ सानी खा रह थीं। ओसारे म एक बड़ा-सा तउत पड़ा था जो शायद दस आदिमय से भी न उठता। कसी खूँट पर ढोलक लटक रह थी कसी पर मजीरा। एक ताख पर कोई पुःतक बःते म बँधी रखी हई थी , जो शायद रामायण हो। दोन बहए सामने बैठ गोबर पाथ रह थीं और झुिनया चौखट पर खड़ थी। उसक आँख लाल थीं और नाक के िसरे पर भी सुख़ीर ् थी। मालूम होता था, अभी रोकर उठ है । उसके मांसल, ःवःथ, सुग ठत अंग म मानो यौवन लहर मार रहा था। मुँह बड़ा और गोल था, कपोल फूले हए , आँख छोट और भीतर धँसी हई , माथा पतला; पर व का उभार और गात का वह गुदगुदापन आँख को खींचता था। उस पर छपी हई गुलाबी साड़ उसे और भी शोभा ूदान कर रह थी। भोला को दे खते ह उसने लपककर उनके िसर से खाँचा उतरवाया। भोला ने गोबर और होर के खाँचे उतरवाये और झुिनया से बोले -- पहले एक िचलम भर ला, फर थोड़ा-सा रस बना ले। पानी न हो तो गगरा ला, म खींच दँ । ू होर महतो को पहचानती है न ? फर होर से बोला -- घरनी के बना घर नह ं रहता भैया। पुरानी कहावत है -- नाटन खेती बह ु रयन घर। नाटे बैल या खेती करगे और बहए या घर सँभालगी। जब से इसक माँ मर है , जैसे घर क बरकत ह उठ गयी। बहए आटा पाथ लेती ह। पर गृहःथी चलाना या जान। हाँ , मुँह चलाना ख़ूब जानती ह। ल ड कह ं फड़ पर जमे ह गे। सब-के -सब आलसी ह, कामचोर। जब तक जीता हँू , इनके पीछे मरता हँ ू । मर जाऊँगा, तो आप िसर पर हाथ धरकर रोयगे। लड़क भी वैसी ह है । छोटा-सा अढ़ौना भी करे गी, तो भुन - भुनाकर। म तो सह लेता हँू , ख़सम थोड़े ह सहे गा। झुिनया एक हाथ म भर हई म लोटे का रस िलये बड़ फुतीर ् से आ पहँ ु ची। फर रःसी और िचलम , दसर कलसा लेकर पानी भरने चली। गोबर ने उसके हाथ से कलसा लेने के िलए हाथ बढ़ाकर झपते हए कहा -- तुम रहने दो, म भरे लाता हँ ू । झुिनया ने कलसा न दया। कुएँ के जगत पर जाकर मुःकराती हई बोली -- तुम हमारे मेहमान हो। कहोग एक लोटा पानी भी कसी ने न दया।'मेहमान काहे से हो गया। तु हारा पड़ोसी ह तो हँ ू । ' 'पड़ोसी साल-भर म एक बार भी सूरत न दखाये , तो मेहमान ह है । ' 'रोज़-रोज़ आने से मरजाद भी तो नह ं रहती।' झुिनया हँ सकर ितरछ नज़र से दे खती हई बोली -- वह मरजाद तो दे रह हँ ू । मह ने म एक बेर आओगे , ठं डा पानी दँ ग ी। प िहव दन आओगे , िचलम पाओगे। सातव दन आओगे , ख़ाली बैठने को माची दँ ग ी। रोज़ -रोज़ आओगे , कुछ न पाओगे। 'दरसन तो दोगी?' 'दरसन के िलए पूजा करनी पड़े गी।' यह कहते - कहते जैसे उसे कोई भूली हई बात याद आ गयी। उसका मुँह उदास हो गया। वह वधवा है । उसके नार व के ार पर पहले उसका पित र क बना बैठा रहता था। वह िन कोई र क न था, इसिलए वह उस वह त थी। अब उस ार पर ार को सदै व ब द रखती है । कभी-कभी घर के सूनेपन से उकताकर ार खोलती है ; पर कसी को आते दे खकर भयभीत होकर दोन पट भेड़ लेती है । गोबर ने कलसा भरकर िनकाला। सब ने रस पया और एक िचलम तमाखू और पीकर लौटे । भोला न कहा -- कल तुम आकर गाय ले जाना गोबर, इस बखत तो सानी खा रह है । गोबर क आँख उसी गाय पर लगी हई जाता था। गाय इतनी सु दर थी और मन -ह -मन वह मु ध हआ और सुडौल है , इसक उसने क पना भी न क थी। होर ने लोभ को रोककर कहा -- मँगवा लूँगा, ज द 'तु ह ज द न हो, हम तो ज द है । उस 'उसक मुझे बड़ या है ? ार पर दे खकर तु ह वह बात याद रहे गी।' फ़कर है दादा!' 'तो कल गोबर को भेज दे ना।' दोन ने अपने - अपने खाँचे िसर पर रखे और आगे बढ़े । दोन इतने ूस न थे मानो याह करके लौटे ह । होर को तो अपनी िचर संिचत अिभलाषा के पूरे होने का हष था, और बना पैसे के। गोबर को इससे भी बहम य वःतु िमल गयी थी। उसके मन म अिभलाषा जाग उठ थी।अवसर पाकर उसने पीछे क तरफ़ दे खा। झुिनया ार पर खड़ थी, मन आशा क भाँित अधीर, चंचल। ूेमच द गोदान होर को रात भर नींद नह ं आयी। नीम के पेड़ -तले अपनी बाँस क खाट पर पड़ा बार-बार तार क ओर दे खता था। गाय के िलए एक नाँद गाड़नी है । बैल से अलग उसक नाँद रहे तो अ छा। अभी तो रात को बाहर ह रहे गी; ले कन चौमासे म उसके िलए कोई दसर जगह ठ क करनी होगी। बाहर लोग नज़र लगा दे ते ह। कभी-कभी तो ऐसा टोना-टोटका कर दे ते ह क गाय का दध ह सूख जाता है । थन म हाथ ह नह ं लगाने दे ती। लात मारती है । नह ं , बाहर बाँधना ठ क नह ं। और बाहर नाँद भी कौन गाड़न दे गा। का र दा साहब नज़र के िलए मुँह फुलायगे। छोट छोट बात के िलए राय साहब के पास फ़ रयाद ल जाना भी उिचत नह ं। और का र दे के सामने मेर सुनता कौन है । उनसे कुछ कहँू , तो का र दा दँमन हो जाय। जल म रहकर मगर से बैर करना लड़कपन है । भीतर ह बाँधूँगा। आँगन है तो छोटा-सा; ले कन एक मड़ै या डाल दे ने से काम चल जायगा। अभी पहला ह भर तो गोबर ह को चा हए। यान है । पाँच सेर से कम या दध दे गी। सेर - पया दध दे खकर कैसी ललचाती रहती है । अब पये जतना चाहे । कभी - कभी दो-चार सेर मािलक को दे आया क ँ गा। का र दा साहब क पूजा भी करनी ह होगी। और भोला के पए भी दे दे ना चा हये। सगाई के ढकोसले म उस उससे दग़ा करना नीचता है । अःसी नह ं पितयाता। सन म य डालूँ। जो आदमी अपने ऊपर इतना व ास करे , पए क गाय मेरे व ास पर दे द । नह ं यहाँ तो कोई एक पैसे को या कुछ न िमलेगा? अगर प चीस पए भी दे दँ , ू तो भोला को ढाढ़स हो जाय। धिनया से नाहक़ बता दया। चुपके से गाय लेकर बाँध दे ता तो चकरा जाती। लगती पूछने , कसक गाय है ? कहाँ से लाये हो?। ख़ूब दक करके तब बताता; ले कन जब पेट म बात पचे भी। कभी दो-चार पैसे ऊपर से आ जाते ह; उनको भी तो नह ं िछपा सकता। और यह अ छा भी है । उसे घर क िच ता रहती है ; अगर उसे मालूम हो जाय क इनके पास भी पैसे रहते ह, तो फर नख़रे बघारने लगे। गोबर ज़रा आलसी है , नह ं म गऊ क ऐसी सेवा करता क जैसी चा हए। आलसी-वालसी कुछ नह ं है । इस उिमर म कौन आलसी नह ं होता। म भी दादा के सामने मटरगःती ह काटने लगते। कभी कया करता था। बेचारे पहर रात से कु ट ार पर झाड़ ू लगाते , कभी खेत म खाद फ कते। म पड़ा सोता रहता था। कभी जगा दे ते , तो म बगड़ जाता और घर छोड़कर भाग जाने क धमक दे ता था। लड़के जब अपने माँ - बाप के सामने भी ज़ दगी का थोड़ा-सा सुख न भोगगे , तो फर जब अपने िसर पड़ गयी तो के मरते ह या भोगगे ? दादा या मने घर नह ं सँभाल िलया? सारा गाँव यह कहता था क होर घर बरबाद कर दे गा; ले कन िसर पर बोझ पड़ते ह मने ऐसा चोला बदला क लोग दे खते रह गये। सोभा और ह रा अलग ह हो गये , नह ं आज इस घर क और ह बात होती। तीन हल एक साथ चलते। अब तीन अलग-अलग चलत ह। बस, समय का फेर है । धिनया का या दोष था। बेचार जब से घर म आयी, कभी तो आराम से न बैठ । डोली से उतरते ह सारा काम िसर पर उठा िलया। अ मा को पान क तरह फेरती रहती थी। जसन घर के पीछे अपने को िमटा दया, दे वरािनय से काम करने को कहती थी, तो या बुरा करती थी। आ ख़रउसे भी तो कुछ आराम िमलना चा हये। ले कन भा य म आराम िलखा होता तब तो िमलता। तब दे वर के िलए मरती थी, अब अपने ब च के िलए मरती है । वह इतनी सीधी, ग़मख़ोर, िनछल न होती, तो आज सोभा और ह रा जो मूँछ पर ताव दे ते फरते ह, कह ं भीख माँगते होते। आदमी कतना ःवाथ हो जाता है । जसके िलए लड़ो वह जान का दँमन हो जाता है । होर ने फर पूव क ओर दे खा। साइत िभनसार हो रहा है । गोबर काहे को जगने लगा। नह ं , कहके तो यह सोया था क म अँधेरे ह चला जाऊँगा। जाकर नाँद तो गाड़ दँ , ू ले कन नह ं , जब तक गाय ार पर न आ जाय, नाँद गाड़ना ठ क नह ं। कह ं भोला बदल गये या और कसी कारन से गाय न द , तो सारा गाँव तािलयाँ पीटने लगेगा, चले थे गाय लेने। प ठे न इतनी फुत से नाँद गाड़ द , मानो इसी क कसर थी। भोला है तो अपने घर का मािलक; ले कन जब लड़के सयाने हो गये , तो बाप क कौन चलती है । कामता और जंगी अकड़ जायँ , तो या भोला अपने मन से गाय मुझे दे दगे , कभी नह ं। सहसा गोबर च ककर उठ बैठा और आँख मलता हआ बोला -- अरे ! यह तो भोर हो गया। तुमने नाँद गाड़ द दादा? होर गोबर के सुग ठत शर र और चौड़ छाती क ओर गव स दे खकर और मन म यह सोचते हए क कह ं इसे गोरस िमलता , तो कैसा प ठा हो जाता, बोला -- नह ं , अभी नह ं गाड़ । सोचा, कह ं न िमले , तो नाहक़ भ हो। गोबर न योर चढ़ाकर कहा -- िमलेगी य नह ं ? ' उनके मन म कोई चोर पैठ जाय? ' ' चोर पैठे या डाकू , गाय तो उ ह दे नी ह पड़े गी। ' गोबर ने और कुछ न कहा। लाठ क धे पर रखी और चल दया। होर उसे जाते दे खता हआ अपना कलेजा ठं ठा करता रहा। अब लड़के क सगाई म दे र न करनी चा हये। सऽहवाँ लग गया; मगर कर कैसे ? कह ं पैसे के भी दरसन ह । जब से तीन भाइय म अलगौझा हो गया, घर क साख जाती रह । महतो लड़का दे खने आते ह, पर घर क दशा दे खकर मुँह फ का करके चले जाते ह। दो-एक राज़ी भी हए , तो पए माँगते ह। दो-तीन सौ लड़क का दाम चुकाये और इतना ह ऊपर से ख़च करे , तब जाकर याह हो। कहाँ से आये इतन पए। रास खिलहान म तुल जाती है । खाने - भर को भी नह ं बचता। याह कहाँ से हो? और अब तो सोना याहने यो य हो गयी। लड़के का याह न हआ , तो सार न सह । लड़क का याह न हआ , बरादर म हँ सी होगी। पहले तो उसी क सगाई करनी है , पीछे दे खी जायगी। एक आदमी न आकर राम-राम कया और पूछा -- तु हार कोठ म कुछ बाँस ह गे महतो? होर ने दे खा, दमड़ बँसार सामने खड़ा है , नाटा काला, ख़ूब मोटा, चौड़ा मुँह , बड़ -बड़ मूँछ , लाल आँख , कमर म बाँस काटने क कटार ख से हए। साल म एक -दो बार आकर िचक , कुरिसयाँ , मोढ़े , टोक रयाँ आ द बनाने के िलए कुछ बाँस काट ले जाता था। होर ूस न हो गया। मु ठ गम होने क कुछ आशा बँधी। चौधर को ले जाकर अपनी तीन को ठयाँ दखायीं , मोल-भाव कया और प चीस पए सैकड़े म पचास बाँस का बयाना ल िलया। फर दोन लौटे । होर ने उसे िचलम पलायी, जलपान कराया और तब रहःयमय भाव से बोला -- मेरे बाँस कभी तीस पए से कम म नह ं जाते ; ले कन तुम घर के आदमी हो, तुमस या मोल-भाव करता। तु हारा वह लड़का, जसक सगाई हई थी , अभी परदे स से लौटा क नह ं ? चौधर ने िचलम का दम लगाकर खाँसते हए कहा -- उस ल डे के पीछे तो मर िमटा महतो! जवान बह ू घर म बैठ थी और वह बरादर क एक दसर औरत के साथ परदे स म मौज करने चल दया। बह ू भी दसर के साथ िनकल गयी। बड़ ना कस जात है , महतो, कसी क नह ं होती। कतना समझाया क तू जो चाहे खा, जो चाहे पहन,मेर नाक न कटवा, मुदा कौन सुनता है । औरत को भगवान ् सब कुछ दे , प न दे , नह ं वह क़ाबू म नह रहती। को ठयाँ तो बँट गयी ह गी? होर ने आकाश क ओर दे खा और मानो उसक महानता म उड़ता हआ बोला -- सब कुछ बँट गया चौधर ! जनको लड़क क तरह पाला-पोसा, वह अब बराबर के हःसेदार ह; ले कन भाई का हःसा खाने क अपनी नीयत नह ं है । इधर तुमस बाँट दँ ग ा। चार दन क बेचे ह तो उ ह ज़ दगी म य पए िमलगे , उधर दोन भाइय को कसी से छल -कपट क ँ । नह ं कह दँ ू क बीस पए सैकड़े म या पता लगेगा। तुम उनसे कहने थोड़े ह जाओगे। तु ह तो मने बराबर अपना भाई समझा है । यवहार म हम ' भाई ' के अथ का कतना ह द ु पयोग कर , ले कन उसक भावना म जो प वऽता है , वह हमार कािलमा से कभी मिलन नह ं होती। होर ने अू य प से यह ूःताव करके चौधर के मुँह क ओर दे खा क वह ःवीकार करता है या नह ं। उसके मुख पर कुछ ऐसा िम या वनीत भाव ूकट हआ जो िभ ा माँगते समय मोटे िभ ुक पर आ जाता है । चौधर ने होर का आसन पाकर चाबुक जमाया -- हमारा तु हारा पुराना भाई चारा है महतो, ऐसी बात है भला; ले कन बात यह है क ईमान आदमी बेचता है , तो कसी लालच से। बीस पए नह ं म प िह पए कहँ ू गा ; ले कन जो बीस के दाम लो। होर ने खिसयाकर कहा -- तुम तो चौधर अँधेर करते हो, बीस ह? ' ऐस या, इससे अ छे बाँस जाते ह दस पए पए म कह ं ऐसे बाँस जात पए पर, हाँ दस कोस और प छम चले जाओ। मोल बाँस का नह ं है , शहर के नगीच होने का है । आदमी सोचता है , जतनी दे र वहाँ जाने म लगेगी, उतनी दे र म तो दो-चार पए का काम हो जायगा। ' सौदा पट गया। चौधर ने िमरज़ई उतार कर छान पर रख द और बाँस काटने लगा। ऊख क िसंचाई हो रह थी। ह रा-बह ू कलेवा लेकर कुएँ पर जा रह थी। चौधर को बाँस काटते दे खकर घूँघट के अ दर स बोली -- कौन बाँस काटता है ? यहाँ बाँस न कटगे। चौधर ने हाथ रोककर कहा -- बाँस मोल िलए ह, प िह पए सैकड़े का बयाना हआ है । सत म नह ं काट रहे ह। ह रा -बह ू अपने घर क माल कन थी। उसी के विोह से भाइय म अलगौझा हआ था। धिनया को पराःत करके शेर हो गयी थी। ह रा कभी -कभी उस पीटता था। अभी हाल म इतना मारा था क वह कई दन तक खाट से न उठ सक , ले कन अपनी पदािधकार वह कसी तरह न छोड़ती थी। ह रा बोध म उसे मारता था; ले कन चलता था उसी के इशार पर, उस घोड़े क भाँित जो कभी-कभी ःवामी को लात मारकर भी उसी के आसन के नीचे चलता है । कलेवे क टोकर िसर से उतार कर बोली -- प िह इस वषय म बात-चीत करना नीित- व पए म हमारे बाँस न जायँगे। चौधर औरत जात स समझते थे। बोले -- जाकर अपने आदमी को भेज दे । जो कुछ कहना हो, आकर कह। ह रा-बह ू का नाम था पु नी। ब चे दो ह हए थे। ले कन ढल गयी थी। बनाव - िसंगार से समय के आघात का शमन करना चाहती थी, ले कन गृहःथी म भोजन ह का ठकाना न था, िसंगार के िलए पैसे कहाँ से आते। इस अभाव और ववशता ने उसक ूकृ ित का जल सुखाकर कठोर और शुंक बना दया था, जस पर एक बार फावड़ा भी उचट जाता था। समीप आकर चौधर का हाथ पकड़न क चे ा करती हई बोली -- आदमी को य भेज दँ । ू जो कुछ कहना हो , मुझसे कहो न। मने कह दया, मेरे बाँस न कटगे। चौधर हाथ छड़ाता था , और पु नी बार-बार पकड़ लेती थी। एक िमनट तक यह हाथा- पाई होती रह । अ त म चौधर ने उसे ज़ोर से पीछे ढकेल दया। पु नी ध का खाकर िगर पड़ ; मगर फर सँभली और पाँव से त ली िनकालकर चौधर के िसर, मुँह , पीठ पर अ धाधु ध जमाने लगी। बँसोर होकर उसे ढकेल दे ? उसका यह अपमान! मारती जाती थी और रोती भी जाती थी। चौधर उसे ध कादे कर -- नार जाित पर बल का ूयोग करके -- ग चा खा चुका था। खड़े - खड़े मार खाने के िसवा इस संकट से बचने क उसके पास और कोई दवा न थी। पु नी का रोना सुनकर होर भी दौड़ा हआ आया। पु नी ने उसे दे खकर और ज़ोर से िच लाना श कया। होर ने समझा, चौधर ने पुिनया को मारा है । ख़ून ने जोश मारा और अलगौझे क ऊँची बाँध को तोड़ता हआ , सब कुछ अपने अ दर समेटने के िलए बाहर िनकल पड़ा। चौधर को ज़ोर से एक लात जमाकर बोला -- अब अपना भला चाहते हो चौधर , तो यहाँ से चले जाओ, नह ं तु हार लहास उठे गी। तुमने अपने को समझा या है ? तु हार इतनी मजाल क मेर बह ू पर हाथ उठाओ। चौधर क़सम खा -खाकर अपनी सफ़ाई दे ने लगा। त लय क चोट म उसक अपराधी आ मा मौन थी। यह लात उसे िनरपराध िमली और उसके फूले हए गाल आँसुओं से भींग गये। उसने तो बह ू को छआ भी नह ं। या वह इतना गँवार है क महतो के घर क औरत पर हाथ उठायेगा। होर ने अ व ास करके कहा -- आँख म धूल मत झ को चौधर , तुमने कुछ कहा नह ं , तो बह ू झूठ -मूठ रोती है ? पए क गम है , तो वह िनकाल द जायगी। अलग ह तो या हआ , ह तो एक ख़ून। कोई ितरछ आँख से दे खे , तो आँख िनकाल ल। पु नी चंड बनी हई थी। गला फाड़कर बोली -- तूने मुझे ध का दे कर िगरा नह ं दया? खा जा अपने बेटे क क़सम! ह रा को भी ख़बर िमली क चौधर और पुिनया म लड़ाई हो रह है । चौधर ने पुिनया को ध का दया। पुिनया ने उसे त लय से पीटा। उसने पुर वह ं छोड़ा और औंगी िलए घटनाःथल क ओर चला। गाँव म अपने बोध के िलए ूिस था। छोटा ड ल, गठा हआ शर र , आँख कौड़ क तरह िनकल आयी थीं और गदन क नस तन गयी थी; मगर उसे चौधर पर बोध न था, बोध था पुिनया पर। वह बँसोर से लड़ने - झगड़ने का उस य चौधर से लड़ ? य उसक इएज़त िम ट म िमला द ? या ूयोजन था? उसे जाकर ह रा से सारा समाचार कह दे ना चा हए था। ह रा जैसा उिचत समझता, करता। वह उससे लड़न य गयी? उसका बस होता, तो वह पुिनया को पदे र म रखता। पुिनया कसी बड़े से मुँह खोलकर बात करे , यह उसे अस पुिनया को उतना ह शा त रखना चाहता था। जब भैया ने प िह था। वह ख़ुद जतना उ ं ड था, पये म सौदा कर िलया, तो यह बीच म कूदनेवाली कौन! आते ह उसने पु नी का हाथ पकड़ िलया और घसीटता हआ अलग ले जाकर लगा लात जमाने -- हरामज़ाद , तू हमार नाक कटाने पर लगी हई है ! तू छोटे - छोटे आदिमय से लड़ती फरती है , कसक पगड़ नीची होती है बता! । ( एक लात और जमाकर) हम तो वहाँ कलेऊ क बाट दे ख रहे ह, तू यहाँ लड़ाई ठाने बैठ है । इतनी बेसम ! आँख का पानी ऐसा िगर गया! खोदकर गाड़ दँ ग ा। पु नी हाय-हाय करती जाती थी और कोसती जाती थी, ' तेर िम ट उठे , तुझे है ज़ा हो जाय, तुझे मर आये , दे वी मैया तुझे लील जायँ , तुझे इ पलुएंजा हो जाय। भगवान ् करे , तू कोढ़ हो जाय। हाथ-पाँव कट- कट िगर। ' और गािलयाँ तो ह रा खड़ा-खड़ा सुनता रहा, ले कन यह पछली गाली उसे लग गयी। है ज़ा, मर आ द म वशेष क न था। इधर बीमार पड़े , उधर वदा हो गये , ले कन कोढ़! यह िघनौनी मौत, और उससे भी िघनौना जीवन। वह ितलिमला उठा, दाँत पीसता हआ फर पुिनया पर झपटा और झोटे पकड़कर फर उसका िसर ज़मीन पर रगड़ता हआ बोला -- हाथ-पाव कटकर िगर जायँगे , तो म तुझे लेकर चाटँ ू गा ! तू ह मेरे बाल-ब च को पालेगी? ऐं ! तू ह इतनी बड़ िगरःती चलायेगी? तू तो दसरा भरतार करके कनार खड़ हो जायगी। चौधर को पुिनया क इस दगित पर दया आ गयी। ह रा को उदारतापूव क समझाने लगा -- ह रा महतो, अब जाने दो, बहत हआ। या हआ , बह ू ने मुझे मारा। म तो छोटा नह ं हो गया। ध यभाग क भगवान ् ने यह तो दखाया। ह रा ने चौधर को डाँटा -- तुम चुप रहो चौधर , नह ं मेरे बोध म पड़ जाओगे तो बुरा होगा। औरत जात इसी तरह बकती है । आज को तुमसे लड़ गयी, कल को दसर स लड़ जायगी। तुम भले मानस हो, हँ सकर टाल गये , दसरा तो बरदास न करे गा। कह ं उसने भी हाथ छोड़ दया, तो कतनी आब रह जायेगी, बताओ। इस ख़याल ने उसके बोध को फर भड़काया। लपका था क न होर ने दौड़कर पकड़ िलया और उसे पीछे हटाते हए बोला -- अरे हो तो गया। दे ख तो िलया दिनया क बड़े बहादर ु हो। अब या उसे पीसकर पी जाओगे ? ह रा अब भी बड़े भाई का अदब करता था। सीधे - लेता ; ले कन इतनी बेअदबी न कर सका। सीधे न लड़ता था। चाहता तो एक झटके म अपना हाथ छड़ा चौधर क ओर दे खकर बोला -- अब खड़ प िह या ताकते हो। जाकर अपने बाँस काटो। मने सह कर दया। पए सैकड़े म तय है । कहाँ तो पु नी रो रह थी। कहाँ झमककर उठ और अपना िसर पीटकर बोली -- लगा दे घर म आग, मुझे या करना है । भाग फूट गया क तुम -जैसी क़साई के पाले पड़ । लगा दे घर म आग! उसने कलेऊ क टोकर वह ं छोड़ द और घर क ओर चली। ह रा गरजा -- वहाँ कहा जाती ह, चल कुएँ पर, नह ं ख़ून पी जाऊँगा। पुिनया के पाँव क गये। इस नाटक का दसरा अंक न खेलना चाहती थी। चुपके से टोकर उठाकर रोती हई कुएँ क ओर चली। ह रा भी पीछे -पीछे चला। होर न कहा -- अब फर मार-धाड़ न करना। इससे औरत बेसरम हो जाती है । धिनया न लगायी -- तुम वहाँ खड़े - खड़ ार पर आकर हाँक या तमाशा दे ख रहे हो। कोई तु हार सुनता भी है क य ह िश ा दे रह हो। उस दन इसी बह ू ने तु ह घूँघट क आड़ म डाढ़ जार कहा था , भूल गये। बह ु रया होकर पराये मरद से लड़े गी, तो डाँट न जायेगी। होर ार पर आकर नटखटपन के साथ बोला -- और जो म इसी तरह तुझे मा ँ ? ' या कभी मारा नह ं है , जो मारने क साध बनी हई है ? ' ' इतनी बेदरद से मारता, तो तू घर छोड़कर भाग जाती! पुिनया बड़ ग़मख़ोर है । ' ' ओहो! ऐसे ह तो बड़े दरदवाले हो। अभी तक मार का दाग़ बना हआ है । ह रा मारता है तो दलारता भी ' है । तुमने ख़ाली मारना सीखा, दलार करना सीखा ह नह ं। म ह ऐसी हँ ू क तु हारे साथ िनबाह हआ। ' अ छा रहने दे , बहत अपना बखान न कर ! तू ह ठ--ठकर नैहर भागती थी। ' जब मह न ख़ुशामद करता था, तब जाकर आती थी! ' ' जब अपनी गरज सताती थी, तब मनाने जाते थे लाला! मेरे दलार से नह ं जाते थे। ' ' इसी से तो म सबसे तेरा बखान करता हँ ू । ' वैवा हक जीवन के ूभात म लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और है । फर म या दय के सारे आकाश को अपने माधुय क सुनहर का ूखर ताप आता है , ण- ण पर बगूले उठते ह, और पृ वी काँपने लगती है । लालसा का सुनहरा आवरण हट जाता है और वाःत वकता अपने न न वौाममय स करण से रं जत कर दे ती प म सामने आ खड़ है । उसके बाद या आती है , शीतल और शा त, जब हम थके हए पिथक क भाँित दन -भर क याऽा का वृ ा त कहते और सुनते ह तटःथ भाव से , मानो हम कसी ऊँचे िशखर पर जा बैठे ह जहाँ नीचे का जन रव हम तक नह ं पहँ ु चता। धिनया ने आँख म रस भरकर कहा -- चलो-चलो, बड़े बखान करनेवाले। ज़रा-सा कोई काम बगड़ जाय, तो गरदन पर सवार हो जाते हो। होर ने मीठे उलाहने के साथ कहा -- ले , अब यह तेर बेइंसाफ़ मुझे अ छ नह ं लगती धिनया! भोला से पूछ , मने उनसे तेरे बारे म या कहा था? धिनया ने बात बदलकर कहा -- दे खो, गोबर गाय लेकर आता है क ख़ाली हाथ। चौधर ने पसीने मलथ-पथ आकर कहा -- महतो, चलकर बाँस िगन लो। कल ठे ला लाकर उठा ले जाऊँगा। होर ने बाँस िगनने क ज़ रत न समझी। चौधर ऐसा आदमी नह ं है । फर एकाध बाँस बेसी ह काट लेगा, तो या। रोज़ ह तो मँगनी बाँस कटते रहते ह। सहालग म तो मंडप बनाने के िलए लोग दरजन बाँस काट ल जाते ह। चौधर ने साढ़े सात पए िनकालकर उसके हाथ म रख दये। होर ने िगनकर कहा -- और िनकालो। हसाब से ढाई और होते ह। चौधर ने बेमुरौवती से कहा -- प िह ' प िह पए म नह ं , बीस पये म। ' ' ह रा महतो ने तु हारे सामने प िह ' तय तो बीस पये म तय हए ह क नह ं ? पये कहे थे। कहो तो बुला लाऊँ। ' पये म ह हए थे चौधर ! अब तु हार जीत है , जो चाहो कहो। ढाई पये िनकलते ह, तुम दो ह दे दो। ' मगर चौधर क ची गोिलयाँ न खेला था। अब उसे कसका डर। होर के मुँह म तो ताला पड़ा हआ था। या कहे , माथा ठ ककर रह गया। बस इतना बोला -- यह अ छ बात नह ं है , चौधर , दो राजा न हो जाओगे। चौधर तीआण ःवर म बोला -- और तुम जाओगे ? ढाई पए दबाकर या भाइय के थोड़े - से पैसे दबाकर राजा हो पये पर अपना ईमान बगाड़ रहे थे , उस पर मुझे उपदे स दे ते हो। अभी परदा खोल दँ , ू तो िसर नीचा हो जाय। होर पर जैसे सैकड़ जूते पड़ गये। चौधर तो पए सामने ज़मीन पर रखकर चला गया; पर वह नीम के नीचे बैठा बड़ दे र तक पछताता रहा। वह कतना लोभी और ःवाथ , इसका उस आज पता चला। चौधर ने ढाई सराहता क बैठे -बैठाये ढाई पए दे दये होते , तो वह ख़ुशी से कतना फूल उठता। अपनी चालाक को पए िमल गये। ठोकर खाकर ह तो हम सावधानी के साथ पग उठाते ह। धिनया अ दर चली गयी थी। बाहर आयी तो पए ज़मीन पर पड़े दे खे , िगनकर बोली -- और हए , दस न चा हए? होर ने ल बा मुँह बनाकर कहा -- ह रा ने प िह ' ह रा पाँच पए म दे दये , तो म पए या या करता। पए म दे दे । हम नह ं दे ते इन दाम । ' ' वहाँ मार-पीट हो रह थी। म बीच म या बोलता। ' होर ने अपनी पराजय अपने मन म ह डाल ली, जैसे कोई चोर से आम तोड़ने के िलए पेड़ पर चढ़े और िगर पड़ने पर धूल झाड़ता हआ उठ खड़ा हो क कोई दे ख न ले। जीतकर आप अपनी धोखेबा ज़य क ड ंग मार सकते ह; जीत से सब-कुछ माफ़ है । हार क ल जा तो पी जाने क ह वःतु है । धिनया पित को फटकारने लगी। ऐसे सुअवसर उसे बहत कम िमलते थे। होर उससे चतुर था ; पर आज बाज़ी धिनया के हाथ थी। हाथ मटकाकर बोली -- य न हो, भाई ने प िह पये कह दये , तो तुम कैसे टोकते। अर राम-राम! लाड़ले भाई का दल छोटा हो जाता क नह ं। फर जब इतना बड़ा अनथ हो रहा था क लाड़ली बह ू के गले पर छर चल रह थी , तो भला तुम कैसे बोलते। उस बखत कोई तु हारा सरबस लूट लेता, तो भी तु ह सुध न होती। होर चुपचाप सुनता रहा। िमनका तक नह ं। झुँझलाहट हई , बोध आया, ख़ून खौला, आँख जली, दाँत पसे ; ले कन बोला नह ं। चुपके -से कुदाल उठायी और ऊख गोड़ने चला। धिनया न कुदाल छ नकर कहा -- या अभी सबेरा है जो ऊख गोड़ने चले ? सूरज दे वता माथे पर आ गये। नहाने - धोने जाओ। रोट तैयार है । होर ने घु नाकर कहा -- मुझे भूख नह ं है । धिनया ने जले पर नोन िछड़का -- हाँ काहे को भूख लगेगी। भाई ने बड़े - बड़े ल ड ू खला दये ह न ! भगवान ् ऐसे सपूत भाई सबको द। होर बगड़ा। बोध अब र ःसयाँ तुड़ा रहा था -- तू आज मार खाने पर लगी हई है । धिनया ने नक़ली वनय का नाटक करके कहा -- या क ँ , तुम दलार ह इतना करते हो क मेरा िसर फर गया है ।' तू घर म रहने दे गी क नह ं ? ' ' घर तु हारा, मािलक तुम , म भला कौन होती हँ ू तु ह घर से िनकालनेवाली। ' होर आज धिनया से कसी तरह पेश नह ं पा सकता। उसक अ ल जैसे कु द हो गयी है । इन यं य- बाण के रोकने के िलए उसके पास कोई ढाल नह ं है । धीरे से कुदाल रख द और गमछा लेकर नहान चला गया। लौटा कोई आध घंटे म; मगर गोबर अभी तक न आया था। अकेले कैसे भोजन करे । ल डा वहाँ जा कर सो रहा। भोला क वह मदमाती छोकर है न झुिनया। उसके साथ हँ सी- द लगी कर रहा होगा। कल भी तो उसके पीछे लगा हआ था। नह ं गाय द , तो लौट धिनया ने कहा -- अब खड़ य नह ं आया। या वहाँ ढई दे गा। या हो? गोबर साँझ को आयेगा। होर ने और कुछ न कहा। कह ं धिनया फर न कुछ कह बैठे। भोजन करके नीम क छाँह म लेट रहा। पा रोती हई आई नंगे बदन एक लँगोट लगाये , झबरे बाल इधर-उधर बखरे हए। होर क छाती पर लोट गयी। उसक बड़ बहन सोना कहती ह -- गाय आयेगी, तो उसका गोबर म पाथूँगी। रानी है क सारा गोबर आप पाथ डाले। पा यह नह ं बरदाँत कर सकती। सोना ऐसी कहाँ क बड़ पा उससे कस बात म कम है । सोना रोट पकाती है , तो पा बरतन नह ं माँजती? सोना पानी लाती है , तो या कलसा भरकर इठलाती चली आती है । रःसी समेटकर खेत गोड़ने जाती है , तो अ याय या या पा कुएँ पर रःसी नह ं ले जाती? सोना तो पा ह लाती है । गोबर दोन साथ पाथती ह। सोना पा बकर चराने नह ं जाती? फर सोना य अकेली गोबर पाथेगी? यह पा कैसे सहे ? होर ने उसके भोलेपन पर मु ध होकर कहा -- नह ं , गाय का गोबर तू पाथना सोना गाय के पास जाये तो भगा दे ना। पा ने पता के गले म हाथ डालकर कहा -- दध भी म ह दहँ ु ू गी। ' हाँ - हाँ , तू न दहे ु गी तो और कौन दहे ु गा ? ' ' वह मेर गाय होगी। ' हाँ , सोलहो आने तेर । ' पा ूस न होकर अपनी वजय का शुभ समाचार परा जता सोना को सुनाने चली गयी। गाय मेर होगी, उसका दध म दहँ ु ू गी , उसका गोबर म पाथूँगी, तुझे कुछ न िमलेगा। सोना उॆ से कशोर , दे ह के गठन म युवती और ब से बािलका थी, जैसे उसका यौवन उसे आगे खींचता था, बालपन पीछे । कुछ बात म इतनी चतुर क मेजुएट युवितय को पढ़ाये , कुछ बात म इतनी अ हड़ क िशशुओं से भी पीछे । ल बा, खा, क तु ूस न मुख , ठोड़ नीचे को खंची हई , आँख म एक ूकार क तृि न केश म तेल , न आँख म काजल, न दे ह पर कोई आभूषण, जैसे गृहःथी के भार ने यौवन को दबाकर बौना कर दया हो। िसर को एक झटका दे कर बोली -- जा तू गोबर पाथ। जब तू दध रखेगी तो म पी जाऊँगी। दहकर ' म दध क हाँड़ ताले म ब द करके रखूँगी। ' ' म ताला तोड़ कर दध िनकाल लाऊँगी। ' यह कहती हई वह बाग़ क तरफ़ चल द । आम गदरा गये थे। हवा के झ क से एकाध ज़मीन पर िगर पड़ते थे , लू के मारे चुचके , पीले ; ले कन बाल-वृ द उ ह टपके समझकर बाग़ को घेरे रहते थे। बहन के पीछे हो ली। जो काम सोना करे , वह पा भी पा ज़ र करे गी। सोना के ववाह क बातचीत हो रह थी, पा के ववाह क कोई चचार ् नह ं करता ; इसिलए वह ःवयम ् अपने ववाह के िलए आमह करती है । उसका द ू हा कैसा होगा , या- या लायेगा, उसे कैसे रखेगा, उस या खलायेगा, या पहनायेगा, इसकावह बड़ा वशद वणन करती, जसे सुनकर कदािचत ् कोई बालक उससे ववाह करने पर राज़ी न होता। साँझ हो रह थी। होर ऐसा अलसाया क ऊख गोड़ने न जा सका। बैल को नाँद म लगाया, सानी-खली द और एक िचलम भरकर पीने लगा। इस फ़सल म सब कुछ खिलहान म तौल दे ने पर भी अभी उस पर कोई तीन सौ क़रज़ था, जस पर कोई सौ बैल के िलए साठ पए सूद के बढ़ते जाते थे। मँग पए िलए थे , उसम साठ दे चुका था; पर वह साठ दाताद न प डत से तीस पए साह से आज पाँच साल हए य -के - य बने हए थे। पए लेकर आलू बोये थे। आलू तो चोर खोद ले गये , और उस तीस के इन तीन बरस म सौ हो गये थे। दलार वधवा सहआइन थी , जो गाँव म नोन तेल तमाखू क दकान रखे हए थी। बटवारे के समय उससे चालीस पए लेकर भाइय को दे ना पड़ा था। उसके भी लगभग सौ थे , य क आन दन शगुन के पये का याज था। लगान के भी अभी प चीस पय का भी कोई ूब ध करना था। बाँस के पए हो गय पए बाक़ पड़े हए थे और दशहरे के पए बड़े अ छे समय पर िमल गये। शगुन क समःया हल हो जायगी; ले कन कौन जाने। यहाँ तो एक धेला भी हाथ म आ जाय, तो गाँव म शोर मच जाता है , और लेनदार चार तरफ़ से नोचने लगते ह, ये पाँच पये तो वह शगुन म दे गा, चाहे कुछ हो जाय; मगर अभी ज़ दगी के दो बड़े - बड़े काम िसर पर सवार थे। गोबर और सोना का ववाह। बहत हाथ बाँधने पर भी तीन सौ से कम ख़च न ह गे। ये तीन सौ कसके घर से आयगे ? कतना चाहता है क कसी से एक पैसा क़रज़ न ले , जसका आता है , उसका पाई-पाई चुका दे ; ले कन हर तरह का क उठान पर भी गला नह ं छटता। इसी तरह सूद बढ़ता जायगा और एक दन उसका घर - ार सब नीलाम हो जायगा, उसके बाल-ब चे िनराौय होकर भीख माँगते फरगे। होर जब काम-ध धे से छ ु ट पाकर िचलम पीने लगता था, तो यह िच ता एक काली द वार क भाँित चार ओर से घेर लेती थी, जसम से िनकलन क उसे कोई गली न सूझती थी। अगर स तोष था तो यह क यह व प अकेले उसी के िसर न थी। ूायःसभी कसान का यह हाल था। अिधकांश क दशा तो इससे भी बदतर थी। शोभा और ह रा को उसस अलग हए अभी कुल तीन साल हए थे ; मगर दोन पर चार-चार सौ का बोझ लद गया। झींगुर दो हल क खेती करता है । उस पर एक हज़ार से कुछ बेसी ह दे ना है । जयावन महतो के घर-िभखार भीख भी नह पाता; ले कन करजे का कोई ठकाना नह ं। यहाँ कौन बचा है । सहसा सोना और पा दोन दौड़ हई आयी और एक साथ बोलीं -- भैया गाय ला रहे ह। आगे - आगे गाय, पीछे -पछे भीया ह। पा ने पहले गोबर को आते दे खा था। यह ख़बर सुनाने क सुख़ ई उसे िमलनी चा हए थी। सोना बराबर क हःसेदार हई जाती है , यह उससे कैसे सहा जाता। उसने आगे बढ़कर कहा -- पहले मने दे खा था। तभी दौड़ । बहन ने तो पीछे से दे खा। सोना इस दावे को ःवीकार न कर सक । बोली -- तूने भैया को कहाँ पहचाना। तू तो कहती थी, कोई गाय भागी आ रह है । मने ह कहा, भैया ह। दोन फर बाग़ क तरफ़ दौड़ ं , गाय का ःवागत करने के िलए। धिनया और होर दोन गाय बाँधने का ूब ध करने लगे। होर बोला -- चलो, ज द स नाँद गाड़ द। धिनया के मुख पर जवानी चमक उठ थी -- नह ं , पहले थाली म थोड़ा-सा आटा और गुड़ घोलकर रख द। बेचार धूप म चली होगी। यासी होगी। तुम जाकर नाँद गाड़ो, म घोलती हँ ू । ' कह ं एक घंट पड़ थी। उसे ढँ ू ढ़ ले। उसके गले म बाँध गे। ' ' सोना कहाँ गयी। सहआइन क दकान से थोड़ा -सा काला डोरा मँगवा लो, गाय को नज़र बहत लगती है । ' ' आज मेरे मन क बड़ भार लालसा पूर हो गयी। 'धिनया अपने हा दक उ लास को दबाये रखना चाहती थी। इतनी बड़ स पदा अपने साथ कोई नयी बाधा न लाये , यह शंका उसके िनराश दय म क पन डाल रह थी। आकाश क ओर दे खकर बोली -- गाय के आने का आन द तो जब है क उसका पौरा भी अ छा हो। भगवान ् के मन क बात है । मानो वह भगवान को भी धोखा दे ना चाहती थी। भगवान ् को भी दखाना चाहती थी क इस गाय के आने से उसे इतना आन द नह ं हआ क ईंयालु भगवान ् सुख का पलड़ा ऊँचा करने के िलए कोई नयी वप अभी आटा घोल ह रह थी क गोबर गाय को िलये बालक के एक जुलूस के साथ भेज द। वह ार पर पहँ ु चा। होर दौड़कर गाय के गले से िलपट गया। धिनया ने आटा छोड़ दया और ज द से एक पुरानी साड़ का काला कनारा फाड़कर गाय के गले म बाँध दया। होर ौ ा- व ल नेऽ से गाय को दे ख रहा था, मानो सा ात दे वीजी ने घर म पदापण कया हो। आज भगवान ् ने यह दन दखाया क उसका घर गऊ के चरण स प वऽ हो गया। यह सौभा य! न जाने कसके पु य-ूताप से। धिनया ने भयातुर होकर कहा -- खड़ या हो, आँगन म नाँद गाड़ दो। आँगन म, जगह कहाँ है ? ' ' बहत जगह है । ' ' म तो बाहर ह गाड़ता हँ ू । ' ' पागल न बनो। गाँव का हाल जानकर भी अनजान बनते हो। ' ' अरे ब े - भर के आँगन म गाय कहाँ बँधेगी भाई? ' ' जो बात नह ं जानते , उसम टाँग मत अड़ाया करो। संसार-भर क होर सचमुच आपे म न था। गऊ उसके िलए केवल भ वह उससे अपन ब ा तु ह ं नह ं पढ़े हो। ' और ौ ा क वःतु नह ं , सजीव स प भी थी। ार क शोभा और अपने घर का गौरव बढ़ाना चाहता था। वह चाहता था, लोग गाय को ार पर बँधे दे खकर पूछ -- यह कसका घर है ? लोग कह -- होर महतो का। तभी लड़क वाले भी उसक वभूित से ूभा वत ह गे। आँगन म बँधी, तो कौन दे खेगा? धिनया इसके वपर त सशंक थी। वह गाय को सात परद के अ दर िछपाकर रखना चाहती थी। अगर गाय आठ पहर कोठर म रह सकती, तो शायद वह उसे बाहर न िनकालने दे ती। य हर बात म होर क जीत होती थी। वह अपने प पर अड़ जाता था और धिनया को दबना पड़ता था, ले कन आज धिनया के सामने होर क एक न चली। धिनया लड़ने पर तैयार हो गयी। गोबर, सोना और पा, सारा घर होर के प म था; पर धिनया ने अकेले सब को पराःत कर दया। आज उसम एक विचऽ आ म- व ास और होर म एक विचऽ वनय का उदय हो गया था। मगर तमाशा कैस क सकता था। गाय डोली म बैठकर तो आयी न थी। कैसे स भव था क गाँव म इतनी बड़ बात हो जाय और तमाशा न लगे। जसने सुना, सब काम छोड़कर दे खने दौड़ा। यह मामूली दे शी गऊ नह ं है । भोला के घर से अःसी पये म आयी है । होर अःसी म लाये ह गे। गाँव के इितहास म पचास-साठ पचास पए या दगे , पचास-साठ पए पए क गाय का आना भी अभूतपूव बात थी। बैल तो पए के भी आये , सौ के भी आये , ले कन गाय के िलए इतनी बड़ रक़म कसान करे गा। यह तो वाल ह का कलेजा है क अँजुिलय पए िगन आते ह। गाय या खा के ख़च या है , सा ात ् दे वी का प है । दशक , आलोचक का ताँता लगा हआ था , और होर दौड़-दौड़कर सबका स कार कर रहा था। इतना वनॆ, इतना ूस न िच वह कभी न था। स र साल के बूढ़े प डत दाताद न ल ठया टे कते हए आये और पोपले मुँह से बोले -- कहाँ हो होर , तिनक हम भी तु हार गाय दे ख ल। सुना बड़ सु दर है । होर ने दौड़कर पालागन कया और मन म अिभमानमय उ लास का आन द उठाता हआ , बड़े स मान सप डतजी को आँगन म ले गया। महाराज ने गऊ को अपनी पुरानी अनुभवी आँख से दे खा, सींगे दे खीं , थन दे खा, पु ठा दे खा और घनी सफ़ेद भ ह के नीचे िछपी हई आँख म जवानी क उमंग भरकर बोले -- कोई दोष नह ं है बेटा, बाल-भ र , सब ठ क। भगवान ् चाहगे , तो तु हारे भाग खुल जायगे , ऐसे अ छ ल छन ह क वाह! बस राितब न कम होने पाये। एक-एक बाछा सौ-सौ का होगा। होर ने आन द के सागर म डब कयाँ खाते हए कहा -- सब आपका असीरबाद है , दादा! दाताद न ने सुरती क पीक थूकते हए कहा -- मेरा असीरबाद नह ं है बेटा, भगवान ् क दया है । यह सब ूभु क दया है । पए नगद दये ? होर ने बे - पर क उड़ाई। अपने महाजन के सामने भी अपनी समृ -ूदशन का ऐसा अवसर पाकर वह कैस छोड़े । टके क नयी टोपी िसर पर रखकर जब हम अकड़ने लगते ह, ज़रा दे र के िलए कसी सवार पर बैठकर जब हम आकाश म उड़ने लगते ह, तो इतनी बड़ वभूित पाकर य न उसका दमाग़ आसमान पर चढ़े । बोला -- भोला ऐसा भलामानस नह ं है महाराज! नगद िगनाये , पूरे चौकस। अपने महाजन के सामने यह ड ंग मारकर होर ने नादानी तो क थी; पर दाताद न के मुख पर अस तोष का कोई िच न दखायी दया। इस कथन म कतना स य है , यह उनक उन बूझी आँख से िछपा न रह सका जनम योित क जगह अनुभव िछपा बैठा था। ूस न होकर बोले -- कोई हरज़ नह ं बेटा, कोई हरज़ नह ं। भगवान ् सब क यान करगे। पाँच सेर दध है इसम ब चे के िलए छोड़कर। धिनया ने तुर त टोका -- अर नह ं महाराज, इतना दध कहाँ। बु ढ़या तो हो गयी है । फर यहाँ राितब कहाँ धरा है । दाताद न ने मम -भर आँख से दे खकर उसक सतकता को ःवीकार कया, मानो कह रहे ह , ' गृ हणी का यह धम है , सीटना मरद का काम है , उ ह सीटने दो। ' फर रहःय-भरे ःवर म बोले -- बाहर न बाँधना, इतना कहे दे ते ह। धिनया ने पित क ओर वजयी आँख से दे खा, मानो कह रह हो -- लो अब तो मानोगे। दाताद न स बोली -- नह ं महाराज, बाहर या बाँध गे , भगवान ् द तो इसी आँगन म तीन गाय और बँध सकती ह। सारा गाँव गाय दे खने आया। नह ं आये तो सोभा और ह रा जो अपने सगे भाई थे। होर के दय म भाइय के िलए अब भी कोमल ःथान था। वह दोन आकर दे ख लेते और ूस न हो जाते तो उसक मनोकामना पूर हो जाती। साँझ हो गयी। दोन पुर लेकर लौट आये। इसी ार से िनकले , पर पूछा कुछ नह ं। होर ने डरते - डरते धिनया से कहा -- न सोभा आया, न ह रा। सुना न होगा? धिनया बोली -- तो यहाँ कौन उ ह बुलाने जाता है । ' तू बात तो समझती नह ं। लड़ने के िलए तैयार रहती है । भगवान ् ने जब यह दन दखाया है , तो हम िसर झुकाकर चलना चा हए। आदमी को अपने संग के मुँह से अपनी भलाई- बुराई सुनने क जतनी लालसा होती है , बाहरवाल के मुँह से नह ं। फर अपने भाई लाख बुरे ह , ह तो अपने भाई ह । अपने हःसे - बखरे के िलए सभी लड़ते ह, पर इससे ख़ून थोड़े ह बट जाता है । दोन को बुलाकर दखा दे ना चा हए। नह ं कहगे गाय लाये , हमसे कहा तक नह ं। ' धिनया ने नाक िसकोड़कर कहा -- मने तुमसे सौ बार हज़ार बार कह दया मेरे मुँह पर भाइय का बखान न कया करो, उनका नाम सुनकर मेर दे ह म आग लग जाती है । सारे गाँव ने सुना, या उ ह ने न सुना होगा? कुछ इतनी दर ू भी तो नह ं रहते। सारा गाँव दे खने आया, उ ह ं के पाँव म महद लगी हई थी ; मगर आये कैसे ? जलन हो रह होगी क इसके घर गाय आ गयी। छाती फट जाती होगी। दया-ब ी का समय आ गया था। धिनया ने जाकर दे खा, तो बोतल म िम ट का तेल न था। बोतल उठा कर तेल लाने चली गयी। पैसे होते , तो पा को भेजती, उधार लाना था, कुछ मुँह दे खी कहे गी; कुछ ल लो-च पो करे गी, तभी तो तेल उधार िमलेगा। होर न पा को बुलाकर यार से गोद म बैठाया और कहा -- ज़रा जाकर दे ख , ह रा काका आगये क नह ं। सोभा काका को भी दे खती आना। कहना, दादा ने तु ह बुलाया है । न आये , हाथ पकड़कर खींच लाना। पा ठनककर बोली -- छोट काक मुझे डाँटती है । ' काक के पास या करने जायगी। फर सोभा-बह ू तो तुझे यार करती है ? ' ' सोभा काका मुझे िचढ़ाते ह, कहते ह ... म न कहँ ू गी। ' ' या कहते ह, बता? ' ' िचढ़ाते ह। ' ' या कहकर िचढ़ाते ह? ' ' कहते ह, तेरे िलए मूस पकड़ रखा है । ले जा, भूनकर खा ले। ' होर के अ तःतल म गुदगुद हई। ' तू कहती नह ं , पहले तुम खा लो, तो म खाऊँगी। ' ' अ माँ मने करती ह। कहती ह उन लोग के घर न जाया करो। ' ' तू अ माँ क बेट है क दादा क ? ' पा ने उसके गले म हाथ डालकर कहा -- अ माँ क , और हँ सने लगी। ' तो फर मेर गोद से उतर जा। आज म तुझे अपनी थाली म न खलाऊँगा। ' घर म एक ह फूल क थाली थी, होर उसी थाली म खाता था। थाली म खाने का गौरव पाने के िलए पा होर के साथ खाती थी। इस गौरव का प र याग कैसे करे ? हमककर बोली -- अ छा, तु हार । ' तो फर मेरा कहना मानेगी क अ माँ का? ' ' तु हारा। ' ' तो जाकर ह रा और सोभा को खींच ला। ' ' और जो अ माँ बगड़। ' ' अ माँ से कहने कौन जायगा। ' पा कूदती हई ह रा के घर चली। ष का मायाजाल बड़ -बड़ मछिलय को ह फँसाता है । छोट मछिलया या तो उसम फँसती ह नह ं या तुर त िनकल जाती ह। उनके िलए वह घातक जाल ब ड़ा क वःतु है , भय क नह ं। भाइय से होर क बोलचाल ब द थी; पर बैर ! ले कन पा दोन घर म आती-जाती थी। ब च स या पा घर से िनकली ह थी क धिनया तेल िलए िमल गयी। उसने पूछा -- साँझ क बेला कहा जाती है , चल घर। पा माँ को ूस न करने के ूलोभन को न रोक सक । धिनया ने डाँटा -- चल घर, कसी को बुलाने नह ं जाना है । पा का हाथ पकड़े हए वह घर आयी और होर से बोली -- मने तुमस हज़ार बार कह दयाॡ मेरे लड़क को कसी के घर न भेजा करो। कसी ने कुछ कर-करा दया, तो म तु ह लेकर चाटँ ू गी ? ऐसा ह बड़ा परे म है , तो आप य नह ं जाते ? अभी पेट नह ं भरा जान पड़ता है । होर नाँद जमा रहा था। हाथ म िम ट लपेटे हए अ ान का अिभनय करके बोला -- कस बात पर बगड़ती है भाई! यह तो अ छा नह ं लगता क अ धे कूकर क तरह हवा को भूँका करे । धिनया को कु पी म तेल डालना था, इस समय झगड़ा न बढ़ाना चाहती थी। पा भी लड़क म जा िमली। पहर रात स एयादा जा चुक थी। नाँद गड़ चुक थी। सानी और खली डाल द गयी थी। गाय मनमारे उदास बैठ थी, जैसे कोई वधू ससुराल आयी हो। नाँद म मुँह तक न डालती थी। होर और गोबर खाकर आधी-आधी रो टयाँ उसके िलए लाये , पर उसने सूँघा तक नह ं। मगर यह कोई नयी बात न थी। जानवर को भी बहधा जाने का दःख घर छट होता है । होर बाहर खाट पर बैठ कर िचलम पीने लगा , तो फर भाइय क यादआयी। नह ं , आज इस शुभ अवसर पर वह भाइय क उपे ा नह ं कर सकता। उसका पाकर वशाल हो गया था। भाइय से अलग हो गया है , तो दय वह वभूित या हआ। उनका दँमन तो नह ं है । यह गाय तीन साल पहले आयी होती, तो सभी का उस पर बराबर अिधकार होता। और कल को यह गाय दध दे ने लगेगी, तो या वह भाइय के घर दध न भेजेगा या दह न भेजेगा ? ऐसा तो उसका धरम नह ं है । भाई उसका बुरा चेत , वह य उसका बुरा चेते। अपनी-अपनी करनी तो अपने - अपने साथ है । उसने ना रयल खाट के पाये से लगाकर रख दया और ह रा के घर क ओर चला। सोभा का घर भी उधर ह था। दोन अपने - अपन ार पर लेटे हए थे। काफ़ अँधेरा था। होर पर उनम से कसी क िनगाह नह ं पड़ । दोन म कुछ बात हो रह थीं। होर ठठक गया और उनक बात सुनने लगा। ऐसा आदमी कहाँ है , जो अपनी चचार ् सुनकर टाल जाय। ह रा ने कहा -- जब तक एक म थे , एक बकर भी नह ं ली। अब पछाई गाय ली जाती है । भाई का हक़ मारकर कसी को फलते - फूलते नह ं दे खा। सोभा बोला -- यह तुम अ याय कर रहे हो ह रा! भैया ने एक-एक पैसे का हसाब दे दया था। यह म कभी न मानूँगा क उ ह ने पहले क कमाई िछपा रखी थी। ' तुम मानो चाहे न मानो, है यह पहले क कमाई। ' ' कसी पर झूठा इलज़ाम न लगाना चा हए। ' ' अ छा तो यह पए कहाँ से आ गये ? कहाँ से हन बरस पड़ा। उतने ह खेत तो हमारे पास भी ह। उतनी ह उपज हमार भी है । फर य हमारे पास कफ़न को कौड़ नह ं और उनके घर नयी गाय आती है ? ' ' उधार लाये ह गे। ' ' भोला उधार दे नेवाला आदमी नह ं है । ' ' कुछ भी हो, गाय है बड़ सु दर, गोबर िलये जाता था, तो मने राःते म दे खा। ' ' बेईमानी का धन जैसे आता है , वैसे ह जाता है । भगवान ् चाहगे , तो बहत दन गाय घर म न रहे गी। ' होर से और न सुना गया। वह बीती बात को बसारकर अपन पास आया था। इस आघात ने जैसे उसके दय म ःनेह और सौहाद भरे भाइय के दय म छे द कर दया और वह रस-भाव उसम कसी तरह नह टक रहा था। ल े और िचथड़े ठँ ू सकर अब उस ूवाह को नह ं रोक सकता। जी म एक उबाल आया क उसी ण इस आ ेप का जवाब दे ; ले कन बात बढ़ जाने के भय से चुप रह गया। अगर उसक नीयत साफ़ है , तो कोई कुछ नह ं कर सकता। भगवान ् के सामने वह िनदोष है । दसर क उसे परवाह नह ं। उलटे पाँव लौट आया। और वह जला हआ त बाकू पीने लगा। ले कन जैसे वह वष ूित ण उसक धमिनय म फैलता जाता था। उसने सो जाने का ूयास कया, पर नींद न आयी। बैल के पास जाकर उ ह सहलाने लगा, वष शा त न हआ। दसर िचलम भर ; ले कन उसम भी कुछ रस न था। वष ने जैसे चेतना को आ ा त कर दया हो। जैसे नशे म चेतना एकांगी हो जाती है , जैसे फैला हआ पानी एक दशा म बहकर वेगवान हो जाता है , वह मनोव अभी उसक हो रह थी। उसी उ माद क दशा म वह अ दर गया। ार खुला हआ था। आँगन म एक कनारे चटाई पर लेट हई धिनया सोना से दे ह दबवा रह थी और पा जो रोज़ साँझ होते ह सो जाती थी, आज खड़ गाय का मुँह सहला रह थी। होर ने जाकर गाय को खूँटे से खोल िलया और ार क ओर ले चला। वह इसी वईत गाय को भोला के घर पहँ ु चाने का ढ़ िन य कर चुका था। इतना बड़ा कलंक िसर पर लेकर वह अब गाय को घर म नह ं रख सकता। कसी तरह नह ं। धिनया ने पूछा -- कहाँ िलये जाते हो रात को? होर ने एक पग बढ़ाकर कहा -- ले जाता ह ूभोला के घर। लौटा दँ ग ा। धिनया को वःमय हआ , उठकर सामने आ गयी और बोली -- लौटा य दोगे ? लौटाने के िलए ह लाये थे। ' हाँ इसके लौटा दे ने म ह कुशल है ? ' ' य बात या है ? इतने अरमान से लाये और अब लौटाने जा रहे हो? या भोला पए माँगते ह? ' ' नह ं , भोला यहाँ कब आया? ' ' तो फर ' या बात हई ? ' या करोगी पूछकर? ' धिनया ने लपककर पग हया उसके हाथ से छ न ली। उसक चपल ब ने जैसे उड़ती हई िच ड़या पकड़ ली। बोली -- तु ह भाइय का डर हो, तो जाकर उसके पैर पर िगरो। म कसी से नह ं डरती। अगर हमार बढ़ती दे खकर कसी क छाती फटती है , तो फट जाय, मुझे परवाह नह ं है । होर ने वनीत ःवर म कहा -- धीरे - धीरे बोल महरानी! कोई सुने , तो कहे , ये सब इतनी रात गये लड़ रहे ह! म अपने कान स सुन आया हँू , त या जाने ! यहाँ चरचा हो रह है क मने अलग होते समय भाइय को धोखा दया था, यह या पए दबा िलये थे और पए अब िनकल रहे ह। ' ' ह रा कहता होगा? ' ' सारा गाँव कह रहा है ! ह रा को य बदनाम क ँ । ' ' सारा गाँव नह ं कह रहा है , अकेला ह रा कह रहा है । म अभी जाकर पूछती हँ ू न क तु हारे बाप कतन पए छोड़कर मरे थे। डाढ़ जार के पीछे हम बरबाद हो गये , सार ज़ दगी िम ट म िमला द , पाल- पोसकर संडा कया, और अब हम बेईमान ह! म कहे दे ती हँू , अगर गाय घर के बाहर िनकली, तो अनथ हो जायगा। रख िलये हमन पए, दबा िलये , बीच खेत दबा िलये। डं के क चोट कहती हँू , मने हं डे भर अश फ़ याँ िछपा लीं। ह रा और सोभा और संसार को जो करना हो, कर ले। य न पए रख ल? दो-दो संड का याह नह ं कया, गौना नह ं कया? ' होर िसट पटा गया। धिनया ने उसके हाथ से पग हया छ न ली, और गाय को खूँटे से बाँधकर ार क ओर चली। होर ने उसे पकड़ना चाहा; पर वह बाहर जा चुक थी। वह ं िसर थामकर बैठ गया। बाहर उस पकड़ने क चे ा करके वह कोई नाटक नह ं दखाना चाहता था। धिनया के बोध को ख़ूब जानता था। बगड़ती है , तो चंड बन जाती है । मारो, काटो, सुनेगी नह ं ; ले कन ह रा भी तो एक ह ग़ुःसेवर है । कह हाथ चला दे तो परलै ह हो जाय। नह ं , ह रा इतना मूरख नह ं है । मने कहाँ - से - कहाँ यह आग लगा द । उसे अपने आप पर बोध आने लगा। बात मन म रख लेता, तो य यह टं टा खड़ा होता। सहसा धिनया का ककश ःवर कान म आया। ह रा क गरज भी सुन पड़ । फर पु नी क पैनी पीक भी कान म चुभी। सहसा उसे गोबर क याद आयी। बाहर लपककर उसक खाट दे खी। गोबर वहाँ न था। ग़ज़ब हो गया! गोबर भी वहाँ पहँ ु च गया। अब कुशल नह ं। उसका नया ख़ून है , न जान या कर बैठे ; ले कन होर वहा कैसे जाय? ह रा कहे गा, आप बोलते नह ं , जाकर इस डाइन को लड़ने के िलए भेज दया। कोलाहल ूित ण ूचंड होता जाता था। सारे गाँव म जाग पड़ गयी। मालूम होता था, कह ं आग लग गयी है , और लोग खाट से उठ-उठ बुझाने दौड़े जा रहे ह। इतनी दे र तक तो वह ज़ त कये बैठा रहा। फर न रह गया। धिनया पर बोध आया। वह य चढ़कर लड़ने गयी। अपने घर म आदमी न जाने कसको या कहता है । जब तक कोई मुँह पर बात न कहे , यह समझना चा हए क उसने कुछ नह ं कहा। होर क कृ षक ूकृ ितझगड़े से भागती थी। चार बात सुनकर ग़म खा जाना इससे कह ं अ छा है क आपस म तनाज़ा हो। कह मार-पीट हो जाय तो थाना-पुिलस हो, बँधे - बँधे फरो, सब क िचरौर करो, अदालत क धूल फाँको, खेती- बार जह नुम म िमल जाय। उसका ह रा पर तो कोई बस न था; मगर धिनया को तो वह ज़बरदःती खींच ला सकता है । बहत होगा , गािलयाँ दे लेगी, एक-दो दन आयेगी। जाकर ह रा के ठ रहे गी, थाना-पुिलस क नौबत तो न ार पर सबसे दर ू द वार क आड़ म खड़ा हो गया। एक सेनापित क भाँित मैदान म आने के पहले प र ःथित को अ छ तरह समझ लेना चाहता था। अगर अपनी जीत हो रह है , तो बोलने क कोई ज़ रत नह ं ; हार हो रह है , तो तुर त कूद पड़े गा। दे खा तो वहाँ पचास आदमी जमा हो गये ह। प डत दाताद न, लाला पटे र , दोन ठाकुर, जो गाँव के करता-धरता थे , सभी पहँ ु चे हए ह। धिनया का प ला हलका हो रहा था। उसक उमता जनमत को उसके व कये दे ती थी। वह रणनीित म कुशल न थी। बोध म ऐसी जली-कट सुना रह थी क लोग क सहानुभूित उससे दर ू होती जाती थी। वह गरज रह थी -- तू हम दे खकर य जलता है ? हम दे खकर य तेर छाती फटती है ? पाल-पोसकर जवान कर दया, यह उसका इनाम है ? हमने न पाला होता तो आज कह ं भीख माँगते होते। ख क छाँह भी न िमलती। होर को ये श द ज़ रत से एयादा कठोर जान पड़े । भाइय का पालना-पोसना तो उसका धम था। उनके हःसे क जायदाद तो उसके हाथ म थी। कैसे न पालता-पोसता? दिनया म कह ं मुँह दखाने लायक़ रहता? ह रा ने जवाब दया -- हम कसी का कुछ नह ं जानते। तेरे घर म कु क तरह एक टकड़ा खाते थे और दन -भर काम करते थे। जाना ह नह ं क लड़कपन और जवानी कैसी होती है । दन- दन भर सूखा गोबर बीना करते थे। उस पर भी तू बना दस गाली दये रोट न दे ती थी। तेर -जैसी रा छिसन के हाथ म पड़कर ज़ दगी तलख़ हो गयी। धिनया और भी तेज़ हई -- ज़बान सँभाल, नह -ख़ोर, नमक-हराम। जीभ खींच लूँगी। रा छिसन तेर औरत होगी। तू है कस फेर म मूँड़ -काटे , टकड़ दाताद न ने टोका -- इतना कटु -वचन उज डा है , य कहती है धिनया? नार का धरम है क ग़म खाय। वह तो य उसके मुँह लगती है ? लाला पटे र पटवार ने उसका समथन कया -- बात का जवाब बात है , गाली नह ं। तूने लड़कपन म उसे पाला-पोसा; ले कन यह य भूल जाती है क उसक जायदाद तेरे हाथ म थी? धिनया ने समझा, सब-के -सब िमलकर मुझे नीचा दखाना चाहते ह। चौमुख लड़ाई लड़न के िलए तैयार हो गयी -- अ छा, रहने दो लाला! म सबको पहचानती हँ ू । इस गाँव म रहते बीस साल हो गये। एक-एक क नस-नस पहचानती हँ ू । म गाली दे रह हँ ू , वह फूल बरसा रहा है , य ? दलार सहआइन ने आग पर घी डाला -- बाक़ बड़ गाल-दराज़ औरत है भाई! मरद के मुँह लगती है । होर ह जैसा मरद है क इसका िनबाह होता है । दसरा मरद होता तो एक दन न पटती। अगर ह रा इस समय ज़रा नम हो जाता, तो उसक जीत हो जाती; ले कन ये गािलयाँ सुनकर आपे से बाहर हो गया। और को अपने प म दे खकर वह कुछ शेर हो रहा था। गला फाड़कर बोला -- चली जा मेरे ार से , नह ं जूत स बात क ँ गा। झ टा पकड़कर उखाड़ लूँगा। गाली दे ती है डाइन! बेटे का घमंड हो गया है । ख़ून ... पाँसा पलट गया। होर का ख़ून खौल उठा। बा द म जैसे िचनगार पड़ गयी हो। आगे आकर बोला -- अ छा बस, अब चुप हो जाओ ह रा, अब नह ं सुना जाता। म इस औरत को धूल लगती है , तो इसी के कारन। न जान या कहँ ू । जब मेर पीठ म य इससे चुप नह ं रहा जाता। चार ओर से ह रा पर बौछार पड़ने लगी। दाताद न ने िनल ज कहा, पटे र ने गुंडा बनाया, झंगुर िसंह ने शैतान क उपािध द । दलार सहआइन ने कपूत कहा। एक उ ं ड श द ने धिनया का प ला ह का कर दया था। दसर उम श द ने ह राको ग चे म डाल दया। उस पर होर के संयत वा य ने रह -सह कसर भी पूर कर द । ह रा सँभल गया। सारा गाँव उसके व हो गया। अब चुप रहने म ह उसक कुशल है । बोध के नशे म भी इतना होश उस बाक़ था। धिनया का कलेजा दना हो गया। होर से बोली -- सुन लो कान खोल के। भाइय के िलए मरत रहते हो। ये भाई ह, ऐसे भाई का मुँह न दे खे। यह मुझे जूत से मारे गा। खला- पला... होर ने डाँटा -- फर य बक-बक करने लगी तू ! घर य नह ं जाती? धिनया ज़मीन पर बैठ गयी और आत ःवर म बोली -- अब तो इसके जूते खा के जाऊँगी। ज़रा इसक मरदमी दे ख लू , ँ कहाँ है गोबर? अब कस दन काम आयेगा? तू दे ख रहा है बेटा, तेर माँ को जूते मार जा रहे ह! य वलाप करके उसने अपने बोध के साथ होर के बोध को भी बयाशील बना डाला। आग को फूँक-फूँक कर उसम वाला पैदा कर द । ह रा परा जत-सा पीछे हट गया। पु नी उसका हाथ पकड़कर घर क ओर खींच रह थी। सहसा धिनया ने िसंहनी क भाँित झपटकर ह रा को इतने ज़ोर से ध का दया क वह धम से िगर पड़ा और बोली -- कहाँ जाता है , जूते मार, मार जूते , दे खूँ तेर मरदमी ! होर न दौड़कर उसका हाथ पकड़ िलया और घसीटता हआ घर ले चला।ूेमच द गोदान उधर गोबर खाना खाकर अ हराने म पहँ ु चा। आज झुिनया से उसक बहत -सी बात हई थीं। जब वह गाय लेकर चला था, तो झुिनया आधे राःते तक उसके साथ आयी थी। गोबर अकेला गाय को कैसे ल जाता। अप रिचत य के साथ जाने म उसे आप होना ःवाभा वक था। कुछ दर ू चलने के बाद झुिनया ने गोबर को ममभर आँख से दे खकर कहा -- अब तुम काहे को यहाँ कभी आओगे। एक दन पहले तक गोबर कुमार था। गाँव म जतनी युवितयाँ थीं , वह या तो उसक बहन थीं या भािभयाँ। बहन से तो कोई छे ड़छाड़ हो ह या सकती थी, भािभयाँ अलब ा कभी-कभी उससे ठठोली कया करती थीं , ले कन वह केवल सरल वनोद होता था। उनक म अभी उसके यौवन म केवल फूल लगे थे। जब तक फल न लग जायँ , उस पर ढे ले फ कना यथ क बात थी। और कसी ओर से ूो साहन न पाकर उसका कौमाय उसके गले से िचपटा हआ था। झुिनया का वंिचत मन , जसे भािभय के यंग और हास- वलास ने और भी लोलुप बना दया था, उसके कौमाय ह पर ललचा उठा। और उस कुमार म भी प ा खड़कते ह कसी सोये हए िशकार जानवर क तरह यौवन जाग उठा। गोबर ने आवरण -ह न रिसकता के साथ कहा -- अगर िभ ुक को भीख िमलने क आसा हो, तो वह दन-भर और रात-भर दाता के कटा करके कहा -- तो यह कहो तुम भी मतलब के यार हो। गोबर क धमिनय का र बोला -- भूखा आदमी अगर हाथ फैलाये तो उस -- िभ ुक जब तक दस ूबल हो उठा। मा कर दे ना चा हए। झुिनया और गहरे पानी म उतर ारे न जाय, उसका पेट कैसे भरे गा। म ऐसे िभ क को मुँह नह ं लगाती। ऐस तो गली-गली िमलते ह। फर िभ ुक दे ता ब ार पर खड़ा रहे । झुिनया न या है , असीस! असीस से तो कसी का पेट नह ं भरता। म द- गोबर झुिनया का आशय न समझ सका। झुिनया छोट -सी थी तभी से माहक के घर दध लेकर जाया करती थी। ससुराल म उसे माहक के घर दध पहँ ु चाना पड़ता था। आजकल भी दह बेचने का भार उसी पर था। उसे तरह-तरह के मनुंय से सा बक़ा पड़ चुका था। दो-चार पए उसके हाथ लग जाते थे , घड़ -भर के िलए मनोरं जन भी हो जाता था; मगर यह आन द जैसे मँगनी क चीज़ हो। उसम टकाव न था, समपण न था, अिधकार न था। वह ऐसा ूेम चाहती थी, जसके िलए वह जये और मरे , जस पर वह अपने को सम पत कर दे । वह केवल जुगनू क चमक नह ं , द पक का ःथायी ूकाश चाहती थी। वह एक गृहःथ क बािलका थी, जसके गृ हणी व को रिसक क लगावटबा ज़य ने कुचल नह ं पाया था। गोबर ने कामना से उ मुख से कहा -- िभ ुक को एक ह ार पर भरपेट िमल जाय, तो य ार- ार घूमे ? झुिनया ने सदय भाव से उसक ओर ताका। कतना भोला है , कुछ समझता ह नह ं। ' िभ ुक को एक ार पर भरपेट कहाँ िमलता है । उसे तो चुटक ह िमलेगी। सबस तो तभी पाओगे , जब अपना सबस दोगे। ' ' मेरे पास या है झुिनया? ' ' तु हारे पास कुछ नह ं है ? म तो समझती हँू , मेरे िलए तु हारे पास जो कुछ है , वह बड़े - बड़े लखपितय के पास नह ं है । तुम मुझसे भीख न माँगकर मुझे मोल ले सकते हो। ' गोबर उसे च कत नेऽ से दे खने लगा। झुिनया ने फर कहा -- और जानते हो, दाम या दे ना होगा? मेरा होकर रहना पड़े गा। फर कसी के सामने हाथ फैलाये दे खूँगी, तो घर से िनकाल दँ ग ी। गोबर को जैसे अँधेरेम टटोलते हए इ छत वःतु िमल गयी। एक विचऽ भय -िमिौत आन द से उसका रोम-रोम पुल कत हो उठा। ले कन यह कैसे होगा? झुिनया को रख ले , तो रखेली को लेकर घर म रहे गा कैसे। बरादर का झंझट जो है । सारा गाँव काँव -काँव करने लगेगा। सभी दसमन हो जायँगे। अ माँ तो इसे घर म घुसने भी न दे गी। ले कन जब ी होकर यह नह ं डरती, तो पु ष होकर वह य डरे । बहत होगा , लोग उसे अलग कर दगे। वह अलग ह रहे गा। झुिनया जैसी औरत गाँव म दसर कौन है ? कतनी समझदार क बात करती है । या जानती नह ं क म उसके जोग नह ं हँ ू । फर भी मुझसे ूेम करती है । मेर होने को राज़ी है । गाँववाले िनकाल दगे , तो या संसार म दसरा गाँव ह नह ं है ? और गाँव चमा रन बैठा ली, तो कसी न य छोड़े ? माताद न न या कर िलया। दाताद न दाँत कटकटाकर रह गये। माताद न ने इतना ज़ र कया क अपना धरम बचा िलया। अब भी बना असनान-पूजा कये मुँह म पानी नह ं डालते। दोन जून अपना भोजन आप पकाते ह और अब तो अलग भोजन नह ं पकाते। दाताद न और वह साथ बैठकर खाते ह। झंगुर िसंह ने बा हनी रख ली, उनका कसी न या कर िलया? उनका जतना आदर-मान तब था, उतना ह आज भी है ; ब क और बढ़ गया। पहले नौकर खोजते फरते थे। अब उसके पए स महाजन बन बैठे। ठकुराई का रोब तो था ह , महाजनी का रोब भी जम गया। मगर फर उयाल आया, कह ं झुिनया द लगी न कर रह हो। पहले इसक ओर से िन त हो जाना आवँयक था। उसने पूछा -- मन से कहती हो झूना क ख़ाली लालच दे रह हो? म तो तु हारा हो चुका; ले कन तुम भी हो जाओगी? ' तुम मेरे हो चुके , कैसे जानूँ ? ' ' तुम जान भी चाहो, तो दे दँ । ू ' ' जान दे ने का अरथ भी समझते हो? ' ' तुम समझा दो न। ' ' जान दे ने का अरथ है , साथ रहकर िनबाह करना। एक बार हाथ पकड़कर उिमर भर िनबाह करते रहना, चाहे दिनया कुछ कहे , चाहे माँ - बाप, भाई-ब द, घर- ार सब कुछ छोड़ना पड़े । मुँह से जान दे नेवाले बहत को दे ख चुक । भौर क भाँित फूल का रस लेकर उड़ जाते ह। तुम भी वैसे ह न उड़ जाओगे ? ' बर के एक हाथ म गाय क पग हया थी। दसर हाथ से उसने झुिनया का हाथ पकड़ िलया। जैसे बजली के तार पर हाथ गया हो। सार दे ह यौवन के पहले ःपश से काँप उठ । कतनी मुलायम, गुदगुद , कोमल कलाई! झुिनया ने उसका हाथ हटाया नह ं , मानो इस ःपश का उसके िलए कोई मह व ह न हो। फर एक ण के बाद ग भीर भाव से बोली -- आज तुमने मेरा हाथ पकड़ा है , याद रखना। ' ख़ूब याद रखूँगा झूना और मरते दम तक िनबाहँ ू गा। झुिनया अ व ास-भर मुःकान से बोली -- इसी तरह तो सब कहते ह गोबर! ब क इससे भी मीठे , िचकन श द म। अगर मन म कपट हो, मुझे बता दो। सचेत हो जाऊँ। ऐस को मन नह ं दे ती। उनसे तो ख़ाली हँ स -बोल लेने का नाता रखती हँ ू । बरस से दध लेकर बाज़ार जाती हँ ू । एक -से - एक बाबू , महाजन, ठाकुर, वक ल, अमले , अफ़सर अपना रिसयापन दखाकर मुझे फँसा लेना चाहते ह। कोई छाती पर हाथ रखकर कहता है , झुिनया, तरसा मत; कोई मुझे रसीली, नसीली िचतवन से घूरता है , मानो मारे ूेम के बेहोश हो गया है , कोई पए दखाता है , कोई गहने। सब मेर ग़ुलामी करने को तैयार रहते ह, उिमर भर, ब क उस जनम म भी, ले कन म उन सब क नस पहचानती हँ ू । सब -के -सब भ रे रस लेकर उड़ जानेवाले। म भी उ ह ललचाती हँू , ितरछ नज़र से दे खती हँू , मुसकराती हँ ू । वह मुझे गधी बनाते ह , म उ ह उ लबनाती हँ ू । म मर जाऊँ , तो उनक आँख म आँसू न आयेगा। वह मर जायँ , तो म कहँ ू गी , अ छा हआ , िनगोड़ा मर गया। म तो जसक हो जाऊँगी, उसक जनम-भर के िलए हो जाऊँगी, सुख म, दःख म , स पत म, बपत म, उसके साथ रहँ ू गी। हरजाई नह ं हँ ू क सबसे हँ सती -बोलती फ ँ । न पए क भूखी हँू , न गहने - कपड़े क । बस भले आदमी का संग चाहती हँू , जो मुझे अपना समझे और जसे म भी अपना समझूँ। एक प डत जी बहत लेते ह। एक दन उनक घरवाली कह ितलक -मुिा लगाते ह। आध सेर दध नेवते म गयी थी। मुझे या मालूम। और दन क तरह दध िलये भीतर चली गयी। वहाँ पुकारती हँ ू , बहजी , बहजी ! कोई बोलता ह नह ं। इतने म दे खती हँ ू तो प डतजी बाहर के कवाड़ ब द कये चले आ रहे ह। म समझ गयी इसक नीयत ख़राब है । मने डाँटकर पूछा -- तुमने कवाड़ या बहजी कह ं गयी ह ? घर म स नाटा य ब द कर िलये ? य है ? उसने कहा -- वह एक नेवते म गयी ह; और मेर ओर दो पग और बढ़ आया। मने कहा -- तु ह दध लेना हो तो लो , नह ं म जाती हँ ू । बोला -- आज तो तुम यहाँ से न जाने पाओगी झूनी रानी, रोज़-रोज़ कलेजे पर छर चलाकर भाग जाती हो , आज मेरे हाथ से न बचोगी। तुमसे सच कहती हँू , गोबर, मेरे रोएँ खड़े हो गये। गोबर आवेश म बोला -- म ब चा को दे ख पाऊँ , तो खोदकर ज़मीन म गाड़ दँ । ू ख़ून चूस लूँ। तुम मुझे दखा तो दे ना। ' सुनो तो, ऐस का मुँह तोड़न के िलए म ह काफ़ हँ ू । मेर छाती धक -धक करने लगी। यह कुछ बदमासी कर बैठे , तो या क ँ गी। कोई , तो दध िच लाना भी तो न सुनेगा; ले कन मन म यह िन य न कर िलया था क मेर दे ह छई क भर हाँड़ उसके मुँह पर पटक दँ ग ी। बला से चार -पाँच सेर दध जायगा , बचा को याद तो हो जायगी। कलेजा मज़बूत करके बोली -- इस फेर म न रहना प डतजी! म अह र क लड़क हँ ू । मूँछ का एक -एक बाल चुनवा लूँगी। यह िलखा है तु हारे पोथी-पऽे म क दसर क बह ू - बेट को अपने घर म ब द करके बेईएज़त करो। इसीिलए ितलक-मुिा का जाल बछाये बैठे हो? लगा हाथ जोड़ने , पैर पड़ने -- एक ूेमी का मन रख दोगी, तो तु हारा या बगड़ जायगा, झूना रानी! कभी-कभी ग़र ब पर दया कया करो, नह भगवान ् पूछ गे , मने तु ह इतना पधन दया था, तुमने उससे एक ॄा ण का उपकार भी नह ं कया, तो या जवाब दोगी? बोले , म वू हँू , पए-पैसे का दान तो रोज़ ह पाता हँू , आज मने य ह उसका मन परखने को कह दया, म पचास प का दान दे दो। ' पए लूँगी। सच कहती हँ ू गोबर , तुर त कोठर म गया और दस-दस के पाँच नोट िनकालकर मेरे हाथ म दे ने लगा और जब मने नोट ज़मीन पर िगरा दय और ार क ओर चली, तो उसने मेरा हाथ पकड़ िलया। म तो पहले ह से तैयार थी। हाँड़ उसके मुँह पर दे मार । िसर से पाँव तक सराबोर हो गया। चोट भी ख़ूब लगी। िसर पकड़कर बैठ गया और लगा हाय- हाय करने। मने दे खा, अब यह कुछ नह ं कर सकता, तो पीठ म दो लात जमा द ं और कवाड़ खोलकर भागी। ' गोबर ठ ठा मारकर बोला -- बहत से नहा गया होगा। ितलक -मुिा भी अ छा कया तुमने। दध धुल गयी होगी। मूँछ भी य न उखाड़ लीं ? ' दसर दन म फर उसके घर गयी। उसक घरवाली आ गयी थी। अपने बैठक म िसर म प ट बाँधे पड़ा था। मने कहा -- कहो तो कल क तु हार करतूत खोल दँ प डत ! लगा हाथ जोड़ने। मने कहा -- अ छा थूककर चाटो, तो छोड़ दँ । ू िसर ज़मीन पर रगड़कर कहने लगा -- अब मेर इएज़त तु हारे हाथ है झूना, यह समझ लो क प डताइन मुझे जीता न छोड़गी। मुझे भी उस पर दया आ गयी। ' गोबर को उसक दया बुर लगी -- यह तुमन से जाकर कह या कया? उसक औरत य नह ं दया? जूत से पीटती। ऐसे पाख डय पर दया न करनी चा हए। तुम मुझे कल उनक सूरत दखा दो, फर दे खना कैसी मर मत करता हँ ू । झुिनया ने उसके अध - वकिसत यौवन कोदे खकर कहा -- तुम उसे न पाओगे। ख़ासा दे व है । मुझत का माल उड़ाता है क नह ं। गोबर अपने यौवन का यह ितरःकार कैसे सहता। ड ंग मारकर बोला -- मोटे होने स या होता है । यहाँ फ़ौलाद क ह डया ह। तीन सौ डं ड रोज़ मारता हँ ू । दध -घी नह ं िमलता, नह ं अब तक सीना य िनकल आया होता। यह कहकर उसने छाती फैला कर दखायी। झुिनया ने आ ःत आँख से दे खा -- अ छा, कभी दखा दँ ग ी। ले कन यहाँ तो सभी एक-से ह, तुम कस- कस क मर मत करोगे। न जाने मरद क या आदत है क जहाँ कोई जवान, सु दर औरत दे खी और बस लगे घूरने , छाती पीटने। और यह जो बड़े आदमी कहलात ह, ये तो िनरे ल पट होते ह। फर म तो कोई सु दर नह ं हँ ू ... । गोबर ने आप क -- तुम ! तु ह दे खकर तो यह जी चाहता है क कलेजे म बठा ल। झुिनया ने उसक पीठ म हलका-सा घूँसा जमाया -- लगे और क तरह तुम भी चापलूसी करने। म जैसी कुछ हँू , वह म जानती हँ ू । मगर इन लोग को तो जवान िमल जाय। घड़ -भर मन बहलाने को और या चा हये। गुन तो आदमी उसम दे खता है , जसके साथ जनम-भर िनबाह करना हो। सुनती भी हँ ू और दे खती भी हँ ू , आजकल बड़े घर क विचऽ लीला है । जस मह ले म मेर ससुराल है , उसी म गपडू -गपड ू नाम के कासमीर रहते थे। बड़े भार आदमी थे। उनके यहाँ पाँच सेर दध लगता था। उनक तीन लड़ कयाँ थीं। कोई बीस -बीस, प चीस-प चीस क ह गी। एक-से - एक सु दर। तीन बड़े कािलज म पढ़ने जाती थीं। एक साइत कािलज म पढ़ाती भी थी। तीन सौ का मह ना पाती थी। िसतार वह सब बजाव, हरमुिनयाँ वह सब बजाव, नाच वह, गाव वह; ले कन याह कोई न करती थी। राम जाने , वह कसी मरद को पस द नह ं करती थीं क मरद उ ह ं को पस द नह करता था। एक बार मने बड़ बीबी से पूछा, तो हँ सकर बोलीं -- हम लोग यह रोग नह ं पालते ; मगर भीतर-ह -भीतर ख़ूब गुलछर उड़ाती थीं। जब दे खूँ , दो-चार ल डे उनको घेरे हए ह। जो सबसे बड़ थी , वह तो कोट-पतलून पहनकर घोड़े पर सवार होकर मद के साथ सैर करने जाती थी। सारे सहर म उनक लीला मशहर थी। गपड ू बाबू िसर नीचा कये , जैसे मुँह म कािलख-सी लगाये रहते थे। लड़ कय को डाँटत थे , समझाते थे ; पर सब-क -सब खु लमखु ला कहती थीं -- तुमको हमारे बीच म बोलने का कुछ मजाल नह ं है । हम अपने मन क रानी ह, जो हमार इ छा होगी, वह हम करगे। बेचारा बाप जवान-जवान लड़ कय स या बोले। मारने - बाँधने से रहा, डाँटने - डपटने से रहा; ले कन भाई बड़े आदिमय क बात कौन चलाये। वह जो कुछ कर, सब ठ क है । उ ह तो बरादर और पंचायत का भी डर नह ं। मेर समझ म तो यह नह ं आता क कसी का रोज़-रोज़ मन कैसे बदल जाता है । या आदमी गाय-बकर से भी गया-बीता हो गया है ? ले कन कसी को बुरा नह ं कहती भाई! मन को जैसा बनाओ, वैसा बनता है । ऐस को भी दे खती हँू , ज ह रोज़-रोज़ क दाल-रोट के बाद कभी-कभी मुँह का सवाद बदलने के िलए हलवा-पूर भी चा हए। और ऐस को भी दे खती हँू , ज ह घर क रोट -दाल दे खकर वर आता है । कुछ बेचा रयाँ ऐसी भी ह, जो अपनी रोट -दाल म ह मगन रहती ह। हलवा-पूर से उ ह कोई मतलब नह ं। मेर दोन भावज ह को दे खो। हमारे भाई काने - कुबड़े नह ं ह, दस जवान म एक जवान ह; ले कन भावज को नह ं भाते। उ ह तो वह चा हए, जो सोने क बािलयाँ बनवाये , मह न सा ड़याँ लाये , रोज़ चाट खलाये। बािलयाँ और िमठाइयाँ मुझे भी कम अ छ नह ं लगतीं ; ले कन जो कहो क इसके िलए अपनी लाज बेचती फ ँ तो भगवान ् इससे बचायँ। एक के साथ मोटा -झोटा खा-पहनकर उिमर काट दे ना, बस अपना तो यह राग है । बहत करके तो मद ह औरत को बगाड़ते ह। जब मद इधर -उधर ताक-झाँक करे गा तो औरत भी आँख लड़ायेगी। मद दसर औरत के पीछे दौड़े गा , तो औरत भी ज़ र मद के पीछे दौड़े गी। मद का हरजाईपनऔरत को भी उतना ह बुरा लगता है , जतना औरत का मद को। यह समझ लो। मने तो अपने आदमी से साफ़-साफ़ कह दया था, अगर तुम इधर-उधर लपके , तो मेर भी जो इ छा होगी वह क ँ गी। यह चाहो क तुम तो अपने मन क करो और औरत को मार के डर से अपने क़ाबू म रखो, तो यह न होगा। तुम खुले - ख़ज़ाने करते हो, वह िछपकर करे गी। तुम उसे जलाकर सुखी नह ं रह सकते। गोबर के िलए यह एक नयी दिनया क बात थीं। त मय होकर सुन रहा था। कभी -कभी तो आप-ह -आप उसके पाँव फर सचेत होकर चलने लगता। झुिनया ने पहले अपन प से मो हत कया था। आज उसने अपन और अनुभव से भर बात और अपने सती व के बखान से मु ध कर िलया। ऐसी आगर उसे िमल जाय, तो ध य भाग। फर वह क जाते , प, गुण , ान ान क य पंचायत और बरादर से डरे ? झुिनया ने जब दे ख िलया क उसका गहरा रं ग जम गया, तो छाती पर हाथ रखकर जीभ दाँत से काटती हई बोली -- अरे , यह तो तु हारा गाँव आ गया! तुम भी बड़े मुरहे हो, मुझसे कहा भी नह ं क लौट जाओ। यह कहकर वह लौट पड़ । गोबर ने आमह करके कहा -- एक छन के िलए मेरे घर य नह ं चली चलती? अ माँ भी तो दे ख ल। झुिनया ने ल जा से आँख चुराकर कहा -- तु हारे घर य न जाऊँगी। मुझे तो यह अचरज होता है क म इतनी दर ू कैसे आ गयी। अ छा , बताओ अब कब आओगे ? रात को मेरे ार पर अ छ संगत होगी। चले आना, म अपने पछवाड़े िमलूँगी। ' और जो न िमली? ' ' तो लौट जाना। ' ' तो फर म न आऊँगा। ' ' आना पड़े गा, नह ं कहे दे ती हँ ू । ' ' तुम भी वचन दो क िमलोगी? ' ' म वचन नह ं दे ती। ' ' तो म भी नह ं आता। ' ' मेर बला से ! ' झुिनया अँगूठा दखाकर चल द । ूथम-िमलन म ह दोन एक दसर पर अपना -अपना अिधकार जमा चुके थे। झुिनया जानती थी, वह आयेगा, कैसे न आयेगा? गोबर जानता था, वह िमलेगी, कैसे न िमलेगी? गोबर जब अकेला गाय को हाँकता हआ चला , तो ऐसा लगता था, मानो ःवग से िगर पड़ा है । ूेमच द गोदान जेठ क उदास और गम स या सेमर क सड़क और गिलय म पानी के िछड़काव से शीतल और ूस न हो रह थी। मंडप के चार तरफ़ फूल और पौध के गमले सजा दये गये थे और बजली के पंखे चल रहे थे। राय साहब अपने कारख़ाने म बजली बनवा लेते थे। उनके िसपाह पीली व दयाँ डाटे , नीले साफ़े बाँधे , जनता पर रोब जमाते फरते थे। नौकर उजले कुरते पहने और केस रया पाग बाँधे , मेहमान और मु खय का आदर-स कार कर रहे थे। उसी वईत एक मोटर िसंह - ार के सामने आकर क और उसम से तीन महानुभाव उतरे । वह जो ख र का कुरता और च पल पहने हए ह उनका नाम प डत ओंकारनाथ है । आप दै िनक-पऽ ' बजली ' के यशःवी स पादक ह, ज ह दे श -िच ता ने घुला डाला है । दसर महाशप जो कोट -पट म ह, वह ह तो वक ल, पर वकालत न चलने के कारण एक बीमा-क पनी क दलाली करते ह और ता लुक़ेदार को महाजन और बक से क़रज़ दलाने म वकालत से कह ं एयादा कमाई करते ह। इनका नाम है ँयाम बहार तंखा और तीसरे स जन जो रे शमी अचकन और तंग पाजामा पहने हए ह , िमःटर बी. मेहता, युिनविसट म दशनशा के अ यापक ह। ये तीन स जन राय साहब के सहपा ठय म ह और शगुन के उ सव म िनमं ऽत हए ह। आज सारे इलाक़े के असामी आयगे और शगुन के पए भट करगे। रात को धनुष -य होगा और मेहमान क दावत होगी। होर ने पाँच पए शगुन के द दये ह और एक गुलाबी िमरज़ई पहने , गुलाबी पगड़ बाँधे , घुटने तक कछनी काछे , हाथ म एक खुरपी िलये और मुख पर पाउडर लगवाये राजा जनक का माली बन गया है और ग र से इतना फूल उठा ह मानो यह सारा उ सव उसी के पु षाथ से हो रहा है । राय साहब ने मेहमान का ःवागत कया। दोहर बदन के ऊँचे आदमी थे , गठा हआ शर र , तेजःवी चेहरा, ऊँचा माथा, गोरा रं ग , जस पर शबती रे शमी चादर ख़ूब खल रह थी। प डत ओंकारनाथ ने पूछा -- अबक कौन-सा नाटक खेलने का वचार है ? मेरे रस क तो यहाँ वह वःतु है । राय साहब ने तीन स जन को अपनी रावट के सामने कुिसय पर बैठात हए कहा -- पहले तो धनुष -य होगा, उसके बाद एक ूहसन। नाटक कोई अ छा न िमला। कोई तो इतना ल बा क शायद पाँच घंट म भी ख़तम न हो और कोई इतना ल क शायद यहाँ एक य भी उसका अथ न समझे। आ ख़र मने ःवयम ् एक ूहसन िलख डाला , जो दो घंट म पूरा हो जायगा। ओंकारनाथ को राय साहब क रचना-श म बहत स दे ह था। उनका उयाल था क ूितभा तो ग़र बी ह म चमकती है द पक क भाँित, जो अँधेरे ह म अपना ूकाश दखाता है । उपे ा के साथ, जसे िछपाने क भी उ ह ने चे ा नह ं क , प डत ओंकारनाथ ने मुँह फेर िलया। िमःटर तंखा इन बेमतलब क बात म न पड़ना चाहते थे , फर भी राय साहब को दखा दे ना चाहते थे क इस वषय म उ ह कुछ बोलने का अिधकार है । बोले -- नाटक कोई भी अ छा हो सकता है , अगर उसके अिभनेता अ छे ह । अ छा-से - अ छा नाटक बुरे अिभनेताओं के हाथ म पड़कर बुरा हो सकता है । जब तक ःटे ज पर िश त अिभने ऽया नह ं आतीं , हमार ना य-कला का उ ार नह ं हो सकता। अबक तो आपने क िसल म ू क धूम मचा द । म तो दावे के साथ कह सकता हँ ू क कसी मे बर का रकाड इतना शानदार नह ं है । दशन के अ यापक िमःटर मेहता इस ूशंसा को सहन न कर सकते थे। वरोध तो करना चाहते थे पर िस ा त क आड़ म। उ ह ने हाल ह म एक पुःतक कई साल के प रौम से िलखी थी। उसक जतनी धूम होनीचा हए थी, उसक शतांश भी नह ं हई थे। बोले -- भाई, म ू थी। इससे बहत दखी का कायल नह ं। म चाहता हँ ू हमारा जीवन हमारे िस ा त के अनुकूल हो। आप कृ षक के शुभे छ ु ह , उ ह तरह-तरह क रयायत दे ना चाहते ह, ज़मींदार के अिधकार छ न लेना चाहते ह, ब क उ ह आप समाज का शाप कहत ह, फर भी आप ज़मींदार ह, वैसे ह ज़मींदार जैसे हज़ार और ज़मींदार ह। अगर आपक धारणा है क कृ षक के साथ रयायत होनी चा हए, तो पहले आप ख़ुद श कर -- काँतकार को बग़ैर नज़राने िलए प टे िलख द, बेगार ब द कर द, इज़ाफ़ा लगान को ितलांजिल दे द, चरावर ज़मीन छोड़ द। मुझे उन लोग से ज़रा भी हमदद र ् नह ं है , जो बात तो करते ह क युिनःट क -सी, मगर जीवन है रईस का-सा, उतना ह वलासमय, उतना ह ःवाथ से भरा हआ। राय साहब को आघात पहँ ु चा। वक ल साहब के माथ पर बल पड़ गये और स पादकजी के मुँह म जैसे कािलख लग गयी। वह ख़ुद सिम वाद के पुजार थे , पर सीधे घर म आग न लगाना चाहते थे। तंखा ने राय साहब क वकालत क -- म समझता हँू , राय साहब का अपने असािमय के साथ जतना अ छा यवहार है , अगर सभी ज़मींदार वैसे ह हो जायँ , तो यह ू ह न रहे । मेहता ने हथौड़े क दसर चोट जमायी -- मानता हँू , आपका अपने असािमय के साथ बहत अ छा बताव है , मगर ू यह है क उसम ःवाथ है या नह ं। इसका एक कारण क म म आँच म भोजन ःवा द या यह नह ं हो सकता पकता है ? गुड़ से मारनेवाला ज़हर से मारनेवाले क अपे ा कह ं सफल हो सकता है । म तो केवल इतना जानता हँू , हम या तो सा यवाद ह या नह ं ह। ह तो उसका यवहार कर, नह ं ह, तो बकना छोड़ द। म नक़ली ज़ दगी का वरोधी हँ ू । अगर मांस खाना अ छा समझते हो तो खुलकर खाओ। बुरा समझते हो, तो मत खाओ, यह तो मेर समझ म आता है ; ले कन अ छा समझना और िछपकर खाना, यह मेर समझ म नह ं आता। म तो इसे कायरता भी कहता हँ ू और धूत ता भी , जो वाःतव म एक ह। राय साहब सभा-चतुर आदमी थे। अपमान और आघात को धैय और उदारता से सहन का उ ह अ यास था। कुछ असमंजस म पड़े हए बोले -- आपका वचार ब कुल ठ क है मेहताजी। आप जानते ह, म आपक साफ़गोई का कतना आदर करता हँू , ले कन आप यह भूल जाते ह क अ य याऽाओ क भाँित वचार क याऽा म भी पड़ाव होते ह, और आप एक पड़ाव को छोड़कर दसर पड़ाव तक नह ं जा सकते। मानव-जीवन का इितहास इसका ू य ूमाण है । म उस वातावरण म पला हँू , जहाँ राजा ई र ह और ज़मींदार ई र का म ऽी। मेरे ःवगवासी पता असािमय पर इतनी दया करते थे क पाले या सूखे म कभी आधा और कभी पूरा लगान माफ़ कर दे ते थे। अपने बखार से अनाज िनकालकर असािमय को खला दे ते थे। घर के गहने बेचकर क याओं के ववाह म मदद दे ते थे ; मगर उसी वईत तक, जब तक ूजा उनको सरकार और धमावतार कहती रहे , उ ह अपना दे वता समझकर उनक पूजा करती रहे । ूजा का पालन उनका सनातन-धम था, ले कन अिधकार के नाम पर वह कौड़ का एक दाँत भी फोड़कर दे ना न चाहते थे। म उसी वातावरण म पला हँ ू और मुझे गव है क म यवहार म चाहे जो कुछ क ँ , वचार म उनसे आगे बढ़ गया हँ ू और यह मानने लग गया हँ ू क जब तक कसान को ये रयायत अिधकार के म न िमलगी, केवल स ावना के आधार पर उनक दशा सुधर नह ं सकती। ःवे छा अगर अपना ःवाथ छोड़ दे , तो अपवाद है । म ख़ुद स ावना करते हए भी ःवाथ नह ं छोड़ सकता और चाहता हँ ू क हमार वग को शासन और नीित के बल से अपना ःवाथ छोड़ने के िलए मज़बूर कर दया जाय। इसे आप कायरता कहगे , म इसे ववशता कहता हँ ू । म इसे ःवीकार करता हँ ू क कसी को भी दसर के ौम पर मोटे होने का अिधकार नह ं है । उपजीवी होना घोर ल जा क बात है । कम करना ूाणीमाऽ का धम है । पसमाज क ऐसी यवःथा, जसम कुछ लोग मौज कर और अिधक लोग पीस और खप, कभी सुखद नह हो सकती। पूँजी और िश ा, जसे म पूँजी ह का एक प समझता हँू , इनका क़ला जतनी ज द टट जाय, उतना ह अ छा है । ज ह पेट क रोट मयःसर नह ं , उनके अफ़सर और िनयोजक दस-दस पाँच - पाँच हज़ार फटकार, यह हाःयाःपद है और ल जाःपद भी। इस यवःथा ने हम ज़मींदार म कतनी वलािसता, कतना दराचार , कतनी पराधीनता और कतनी िनल जता भर द है , यह म ख़ूब जानता हँू ; ले कन म इन कारण से इस यवःथा का वरोध नह ं करता। मेरा तो यह कहना है क अपने ःवाथ क से भी इसका अनुमोदन नह ं कया जा सकता। इस शान को िनभाने के िलए हम अपनी आ मा क इतनी ह या करनी पड़ती है क हमम आ मािभमान का नाम भी नह ं रहा। हम अपने असािमय को लूटन के िलए मज़बूर ह। अगर अफ़सर को क़ मती-क़ मती डािलयाँ न द, तो बागी समझे जायँ , शान से न रह, तो कंजूस कहलाय। ूगित क ज़रा-सी आहट पाते ह हम काँप उठते ह, और अफ़सर के पास फ़ रयाद लेकर दौड़ते ह क हमार र ा क जए। हम अपने ऊपर व ास नह ं रहा, न पु षाथ ह रह गया। बस, हमार दशा उन ब च क -सी है , ज ह च मच से दध पलाकर पाला जाता है , बाहर से मोटे , अ दर स दबल , स वह न और मुहताज। मेहता ने ताली बजाकर कहा -- हयर, हयर! आपक ज़बान म जतनी ब है , काश उसक आधी भी म ःतंक म होती! खेद यह है क सब कुछ समझते हए भी आप अपने वचार को यवहार म नह ं लाते। ओंकारनाथ बोले -- अकेला चना भाड़ नह ं फोड़ सकता, िमःटर मेहता! हम समय के साथ चलना भी ह और उसे अपने साथ चलाना भी। बुरे काम म ह सहयोग क ज़ रत नह ं होती। अ छे काम के िलए भी सहयोग उतना ह ज़ र है । आप ह आठ य आठ सौ पए मह ने हड़पते ह, जब आपके करोड़ भाई केवल पए म अपना िनवाह कर रहे ह? राय साहब ने ऊपर खेद , ले कन भीतर स तोष से स पादकजी को दे खा और बोले -- य गत बात पर आलोचना न क जए स पादक जी! हम यहाँ समाज क यवःथा पर वचार कर रहे ह। िमःटर मेहता उसी ठं ठे मन से बोले -- नह ं - नह ं , म इसे बुरा नह समझता। समाज य ह से बनता है । और य को भूलकर हम कसी यवःथा पर वचार नह ं कर सकते। म इसिलये इतना वेतन लेता हँ ू क मेरा इस यवःथा पर व ास नह ं है । स पादकजी को अच भा हआ -- अ छा, तो आप वतमान यवःथा के समथक ह? ' म इस िस ा त का समथक हँ ू क संसार म छोटे -बड़े हमेशा रहगे , और उ ह हमेशा रहना चा हए। इस िमटाने क चे ा करना मानव-जाित के सवनाश का कारण होगा। ' कुँती का जोड़ बदल गया। राय साहब कनारे खड़े हो गये। स पादक जी मैदान म उतरे -- आप इस बीसवीं शता द म भी ऊँच-नीच का भेद मानते ह। ' जी हाँ , मानता हँ ू और बड़े ज़ोर से मानता हँ ू । जस मत के आप समथक ह , वह भी तो कोई नयी चीज़ नह ं। जब से मनुंय म मम व का वकास हआ ब , तभी उस मत का ज म हआ। और लेटो और ईसा सभी समाज म समता के ूवतक थे। यूनानी और रोमन और सी रयाई, सभी स यताओं ने उसक पर क पर अूाकृ ितक होने के कारण कभी वह ःथायी न बन सक । ' ' आपक बात सुनकर मुझे आ य हो रहा है । ' ' आ य अ ान का दसरा नाम है । ' ' म आपका कृ त हँू ! अगर आप इस वषय पर कोई लेखमाला श कर द। ' ा' जी, म इतना अहमक नह ं हँू , अ छ रक़म दलवाइए, तो अलब ा। ' ' आपने िस ा त ह ऐसा िलया है क खुले ख़ज़ाने प लक को लूट सकते ह। ' ' मुझम और आपम अ तर इतना ह है क म जो कुछ मानता हँ ू उस पर चलता हँ ू । आप लोग मानत कुछ ह, करते कुछ ह। धन को आप कसी अ याय से बराबर फैला सकते ह। ले कन ब और प को, ूितभा को और बल को बराबर फैलाना तो आपक श को, च रऽ को, के बाहर है । छोटे - बड़े का भेद केवल धन से ह तो नह ं होता। मने बड़े - बड़े धन-कुबेर को िभ ुक के सामने घुटने टे कते दे खा है , और आपन भी दे खा होगा। आप प के चौखट पर बड़े - बड़े मह प नाक रगड़ते ह। प क िमसाल दगे। वहाँ इसके िसवाय और िलया है । ब या है क िमल के मािलक ने राज कमचार का प ल तब भी राज करती थी, अब भी करती है और हमेशा करे गी। तँतर म पान आ गये थे। राय साहब ने मेहमान को पान और इलायची दे ते हए कहा -- ब उसक ूभुता मानने म कोई आ प इसीिलए िसर झुकाते ह क उनम अगर ःवाथ से म हो, तो हम नह ं। समाजवाद का यह आदश है । हम साधु - महा माओं के सामन याग का बल है । इसी तरह हम ब चाहते ह, स मान भी, नेत ृ व भी; ले कन स प के साथ चला जाता है , ले कन उसक स प ब या यह सामा जक वषमता नह ं है ? कसी तरह नह ं। ब के हाथ म अिधकार भी दे ना का अिधकार और स मान य वष बोने के िलए, उसके बाद और भी ूबल हो जाती है । के बग़ैर कसी समाज का संचालन नह ं हो सकता। हम केवल इस ब छ ू का डं क तोड़ दे ना चाहते ह। दसर मोटर आ पहँ ु ची और िमःटर ख ना उतरे , जो एक बक के मैनेजर और श करिमल के मैने जंग डाइरे टर ह। दो दे वयाँ भी उनके साथ थीं। राय साहब ने दोन दे वय को उतारा। वह जो ख र क साड़ पहने बहत म हला जो ग भीर और वचारशील -सी ह, िमःटर ख ना क प ी, कािमनी ख ना ह। दसर ऊँची एड़ का जूता पहने हए ह और जनक मुख -छ व पर हँ सी फूट पड़ती है , िमस मालती ह। आप इं गलड से डा टर पढ़ आयी ह और अब ूै कटस करती ह। ता लुक़ेदार के महल म उनका बहत ूवेश है । आप नवयुग क सा ात ् ूितमा ह। गात कोमल , पर चपलता कूट-कूट कर भर हई। झझक या संकोच का कह ं नाम नह ं , मेक -अप म ूवीण, बला क हा ज़र-जवाब, पु ष-मनो व ान क अ छ जानकार, आमोद-ूमोद को जीवन का त व समझनेवाली, लुभाने और रझाने क कला म िनपुण। जहाँ आ मा का ःथान है , वहाँ ूदशन; जहा दय का ःथान है , वहाँ हाव-भाव; मनो ार पर कठोर िनमह, जसम इ छा या अिभलाषा का लोप-सा हो गया। आपने िमःटर मेहता से हाथ िमलाते हए कहा -- सच कहती हँू , आप सूरत से ह फ़लासफ़र मालूम होते ह। इस नयी रचना म तो आपने आ मवा दय को उधेड़कर रख दया। पढ़ते - पढ़ते कई बार मेरे जी म ऐसा आया क आपसे लड़ जाऊँ। फ़लासफ़र म स दयता य ग़ायब हो जाती है ? मेहता झप गये। बना- याहे थे और नवयुग क रिमणय से पनाह माँगते थे। पु ष क मंडली म ख़ूब चहकते थे ; मगर था। सूरत म य से िश य ह कोई म हला आयी और आपक ज़बान ब द हई। जैसे ब पर ताला लग जाता यवहार तक करने क सुिध न रहती थी। िमःटर ख ना ने पूछा -- फ़लासफ़र क या ख़ास बात होती है दे वीजी? मालती ने मेहता क ओर दया-भाव से दे खकर कहा -- िमःटर मेहता बुरा न मान, तो बतला दँ । ू ख ना िमस मालती के उपासक म थे। जहाँ िमस मालती जाय, वहाँ ख ना का पहँ ु चना ला ज़म था। उनके आस - पास भ रे क तरह मँडराते रहते थे। हर समय उनक यह इ छा रहती थी क मालती से अिधक-से - अिधकवह बोल, उनक िनगाह अिधक-से - अिधक उ ह ं पर रहे । ख ना ने आँख मारकर कहा -- फ़लासफ़र कसी क बात का बुरा नह ं मानते। उनक यह िसफ़त है । ' तो सुिनए, फ़लासफ़र हमेशा मुदा- दल होते ह, जब दे खए, अपने वचार म मगन बैठे ह। आपक तरफ़ ताक गे , मगर आपको दे ख गे नह ं ; आप उनसे बात कये जायँ , कुछ सुन गे नह ं। जैसे शू य म उड़ रहे ह । ' सब लोग ने क़हक़हा मारा। िमःटर मेहता जैसे ज़मीन म गड़ गये। ' आ सफ़ोड म मेरे फ़लासफ़ के ूोफ़ेसर िमःटर हसबड थे ... ' ख ना ने टोका -- नाम तो िनराला है । ' जी हाँ , और थ वाँरे ...। ' ' िमःटर मेहता भी तो वाँरे ह ... ' ' यह रोग सभी फ़लासफ़र को होता है । ' अब मेहता को अवसर िमला। बोले -- आप भी तो इसी मरज़ म िगरझतार ह? 'मने ूित ा क है कसी फ़लासफ़र से शाद क ँ गी और यह वग शाद के नाम से घबराता है । हसबड साहब तो ी को दे खकर घर म िछप जाते थे। उनके िशंय म कई लड़ कयाँ थीं। अगर उनम से कोई कभी कुछ पूछने के िलए उनके आ फ़स म चली जाती थी तो आप ऐसे घबड़ा जाते जैसे कोई शेर आ गया हो। हम लोग उ ह ख़ूब छे ड़ा करते थे , मगर थे बेचारे सरल- दय। कई हज़ार क आमदनी थी, पर मन उ ह हमेशा एक ह सूट पहने दे खा। उनक एक वधवा बहन थी। वह उनके घर का सारा ूब ध करती थीं। िमःटर हसबड को तो खाने क फ़ब ह न रहती थी। िमलने - वाल के डर से अपने कमरे का ार ब द करके िलखा-पढ़ करते थे। भोजन का समय आ जाता, तो उनक बहन आ हःता से भीतर के ार स उनके पास जाकर कताब ब द कर दे ती थीं , तब उ ह मालूम होता क खाने का समय हो गया। रात को भी भोजन का समय बँधा हआ था। उनक बहन कमरे क ब ी बुझा दया करती थीं। एक दन बहन न कताब ब द करना चाहा, तो आपने पुःतक को दोन हाथ से दबा िलया और बहन-भाई म ज़ोर-आज़माई होने लगी। आ ख़र बहन उनक प हयेदार कुस को खींच कर भोजन के कमरे म लायी। ' राय साहब बोले -- मगर मेहता साहब तो बड़े ख़ुशिमज़ाज और िमलनसार ह, नह ं इस हं गामे म य आते। ' तो आप फ़लासफ़र न ह गे। जब अपनी िच ताओं से हमारे िसर म दद होने लगता है , तो व क िच ता िसर पर लादकर कोई कैसे ूस न रह सकता है ! ' उधर स पादकजी ौीमती ख ना से अपनी आिथक क ठनाइय क कथा कह रहे थे -- बस य सम झए ौीमतीजी, क स पादक का जीवन एक द घ वलाप है , जसे सुनकर लोग दया करने के बदले कान पर हाथ रख लेते ह। बेचारा न अपना उपकार कर सके न और का। प लक उससे आशा तो यह रखती है क हर-एक आ दोलन म वह सबसे आगे रहे जेल , जाय, मार खाय, घर के माल-असबाब क क़ुक़ कराये , यह उसका धम समझा जाता है , ले कन उसक क ठनाइय क ओर कसी का यान नह ं। हो तो वह सब कुछ। उसे हर-एक व ा, हर-एक कला म पारं गत होना चा हए; ले कन उसे जी वत रहने का अिधकार नह ं। आप तो आजकल कुछ िलखती ह नह ं। आपक सेवा करने का जो थोड़ा-सा सौभा य मुझे िमल सकता है , उसस य मुझे वंिचत रखती ह? िमसेज़ ख ना को क वता िलखने का शौक़ था। इस नाते स स पादकजी कभी-कभी उनसे िमल आया करते थे ; ले कन घर के काम-ध ध म यःत रहने के कारणइधर बहत दन से कुछ िलख नह ं सक थी। सच बात तो यह है क स पादकजी ने ह उ ह ूो सा हत करके क व बनाया था। स ची ूितभा उनम बहत कम थी। ' या िलखूँ कुछ सूझता ह नह ं। आपने कभी िमस मालती से कुछ िलखने को नह ं कहा? ' स पादकजी उपे ा भाव से बोले -- उनका समय मू यवान है कािमनी दे वी! िलखते तो वह लोग ह, जनके अ दर कुछ दद है , अनुराग है , लगन है , वचार है , ज ह ने धन और भोग- वलास को जीवन का लआय बना िलया, वह या िलखगे। कािमनी ने ईंया-िमिौत वनोद से कहा -- अगर आप उनसे कुछ िलखा सक , तो आपका ूचार दगना हो जाय। लखनऊ म तो ऐसा कोई रिसक नह ं है , जो आपका माहक न बन जाय। ' अगर धन मेरे जीवन का आदश होता, तो आज म इस दशा म न होता। मुझे भी धन कमाने क कला आती है । आज चाहँू , तो लाख कमा सकता हँू ; ले कन यहाँ तो धन को कभी कुछ समझा ह नह ं। सा ह य क सेवा अपने जीवन का येय है और रहे गा। ' ' कम-से - कम मेरा नाम तो माहक म िलखवा द जए। ' ' आपका नाम माहक म नह ं , संर क म िलखूँगा। ' ' संर क म रािनय -महारािनय को र खए, जनक थोड़ -सी ख़ुशामद करके आप अपने पऽ को लाभ क चीज़ बना सकते ह। ' ' मेर रानी-महारानी आप ह। म तो आपके सामने कसी रानी-महारानी क हक़ क़त नह ं समझता। जसम दया और ववेक है , वह मेर रानी है । ख़ुशामद से मुझे घृणा है । ' कािमनी ने चुटक ली -- ले कन मेर ख़ुशामद तो आप कर रहे ह स पादकजी! स पादकजी ने ग भीर होकर ौ ा-पूण ःवर म कहा -- यह ख़ुशामद नह ं है दे वीजी, दय के स चे उ ार ह। राय साहब ने पुकारा -- स पादकजी, ज़रा इधर आइएगा। िमस मालती आपसे कुछ कहना चाहती ह। स पादकजी क वह सार अकड़ ग़ायब हो गयी। नॆता और वनय क मू र बने हए आकर खड़े हो गये। मालती ने उ ह सदय नेऽ से दे खकर कहा -- म अभी कह रह थी क दिनया म मुझे सबसे एयादा डर स पादक से लगता है । आप लोग जसे चाह, एक ण म बगाड़ द। मुझी से चीफ़ सेबेटर साहब ने एक बार कहा -- अगर म इस लड ओंकारनाथ को जेल म ब द कर सकूँ , तो अपने को भा यवान समझूँ। ओंकारनाथ क बड़ -बड़ मूँछ खड़ हो गयीं। आँख म गव क योित चमक उठ । य वह बहत ह शा त ूकृ ित के आदमी थे ; ले कन ललकार सुनकर उनका पु ष व उ े जत हो जाता था। आपका कृ त हँ ू । उस बएम ढ़ता भरे ःवर म बोले -- इस कृ पा के िलए म अपना ज़ब तो आता है , चाहे कसी तरह आये। आप सेबेटर महोदय स कह द जयेगा क ओंकारनाथ उन आदिमय म नह ं है जो इन धम कय से डर जाय। उसक क़लम उसी वईत वौाम लेगी, जब उसक जीवन-याऽा समा हो जायगी। उसने अनीित और ःवे छाचार को जड़ स खोदकर फ क दे ने का ज़ मा िलया है । िमस मालती ने और उकसाया -- मगर मेर समझ म आपक यह नीित नह ं आती क जब आप मामूली िश ाचार से अिधका रय का सहयोग ूा कर सकते ह, तो य उनसे क नी काटते ह? अगर आप अपनी आलोचनाओं म आग और वष ज़रा कम द, तो म वादा करती हँ ू क आपको गवनमट से काफ़ मदद दला सकती हँ ू । जनता को तो आपने दे ख िलया। उससे अपील क , उसक ख़ुशामद क , अपनी क ठनाइय क कथा कह , मगर कोई नतीजा न िनकला। अब ज़रा अिधका रय को भी आज़मा दे खए। तीसरे मह ने आप मोटर पर न िनकलने लग, और सरकार दावत म िनमं ऽत न होने लग तो मुझे जतना चाह कोिसएगा। तब यह रईस और नेशनिलःट जो आपक परवा नह ं करते ,आपके ार के च कर लगायगे। ओंकारनाथ अिभमान के साथ बोले -- यह तो म नह ं कर सकता दे वीजी! मने अपने िस ा त को सदै व ऊँचा और प वऽ रखा है , और जीते - जी उनक र ा क ँ गा। दौलत के पुजार तो गली-गली िमलगे , म िस ा त के पुजा रय म हँ ू । ' म इसे द भ कहती हँ ू । ' ' आपक इ छा। ' ' धन क आपको परवा नह ं है ? ' ' िस ा त का ख़ून करके नह ं। ' ' तो आपके पऽ म वदे शी वःतुओं के व ापन य होते ह? मने कसी भी दसर पऽ म इतने वदे शी व ापन नह ं दे खे। आप बनते तो ह आदशवाद और िस ा तवाद , पर अपने फ़ायदे के िलए दे श का धन वदे श भेजते हए आपको ज़रा भी खेद नह ं होता ? आप कसी तकर ् से इस नीित का समथन नह ं कर सकते। ' ओंकारनाथ के पास सचमुच कोई जवाब न था। उ ह बग़ल झाँकते दे खकर राय साहब ने उनक क -- तो आ ख़र आप हमायत या चाहती ह? इधर से भी मारे जायँ , उधर से भी मारे जायँ , तो पऽ कैसे चले ? िमस मालती ने दया करना न सीखा था। ृ पऽ नह ं चलता, तो ब द क जए। अपना पऽ चलाने के िलए आपको वदे शी वःतुओं के ूचार का कोई अिधकार नह ं। अगर आप मज़बूर ह, तो िस ा त का ढ ग छो ड़ए। म तो िस ा तवाद पऽ को दे खकर जल उठती हँ ू । जी चाहता है , दयासलाई दखा दँ । ू जो य कम और वचन म सामंजःय नह ं रख सकता, वह और चाहे जो कुछ हो िस ा तवाद नह ं है । ' मेहता खल उठे । थोड़ दे र पहले उ ह ने ख़ुद इसी वचार का ूितपादन कया था। उ ह मालूम हआ क इस रमणी म वचार क श भी है , केवल िततली नह ं। संकोच जाता रहा। ' यह बात अभी म कह रहा था। वचार और यवहार म सामंजःय का न होना ह धूत ता है , म कार है । ' िमस मालती ूस न मुख स बोली -- तो इस वषय म आप और म एक ह, और म भी फ़लासफ़र होने का दावा कर सकती हँ ू । ख ना क जीभ म खुजली हो रह थी। बोले -- आपका एक-एक अंग फ़लासफ़ म डबा है । मालती न हआ उनक लगाम खींची -- अ छा, आपको भी फ़लासफ़ म दख़ल है । म तो समझती थी, आप बहत पहल अपनी फ़लासफ़ को गंगा म डबो बैठे। नह ं , आप इतने बक और क पिनय के डाइरे टर न होते। राय साहब ने ख ना को सँभाला -- तो या आप समझती ह क फ़लासफ़र को हमेशा फ़ाकेमःत रहना चा हए। ' जी हाँ। फ़लासफ़र अगर मोह पर वजय न पा सके , तो फ़लासफ़र कैसा? ' ' इस िलहाज़ से तो शायद िमःटर मेहता भी फ़लासफ़र न ठहर! ' मेहता ने जैसे आःतीन चढ़ाकर कहा -- मने तो कभी यह दावा नह ं कया राय साहब! म तो इतना ह जानता हँ ू क जन औजार से लोहार काम करता है , उ ह ं औजार से सोनार नह ं करता। या आप चाहत ह, आम भी उसी दशा म फल-फूल जसम बबूल या ताड़? मेरे िलए धन केवल उन सु वधाओं का नाम ह जनम म अपना जीवन साथक कर सकूँ। धन मेरे िलए बढ़ने और फलने - फूलनेवाली चीज़ नह ं , केवल साधन है । मुझे धन क कर सकूँ। ब कुल इ छा नह ं , आप वह साधन जुटा द, जसम म अपने जीवन का उपयोगओंकारनाथ सिम वाद थे। य क इस ूधानता को कैसे ःवीकार करते ? ' इसी तरह हर एक मज़दर ू कह सकता है क उसे काम करने क सु वधाओं के िलए एक हज़ार मह ने क ज़ रत है । ' ' अगर आप समझते ह क उस मज़दर ू के बग़ैर आपका काम नह ं चल सकता , तो आपको वह सु वधाए दे नी पड़गी। अगर वह काम दसरा मज़दर ू थोड़ -सी मज़दर ू म कर दे , तो कोई वजह नह ं क आप पहल मज़दर ू क ख़ुशामद कर। ' ' अगर मज़दर ू के हाथ म अिधकार होता , तो मज़दर ू के िलए ी और शराब भी उतनी ह ज़ र सु वधा हो जाती जतनी फ़लासफ़र के िलए। ' ' तो आप व ास मािनए, म उनसे ईंया न करता। ' ' जब आपका जीवन साथक करने के िलए य नह ं कर लेते ? ' ी इतनी आवँयक है , तो आप शाद मेहता ने िनःसंकोच भाव से कहा -- इसीिलए क म समझता हँू , म भोग आ मा के वकास म बाधक नह ं होता। ववाह तो आ मा को और जीवन को पंजरे म ब द कर दे ता है । ख ना ने इसका समथन कया -- ब धन और िनमह पुरानी यो रयाँ ह। नयी योर है म भोग। मालती ने चोट पकड़ -- तो अब िमसेज़ ख ना को तलाक़ के िलए तैयार रहना चा हए। ' तलाक़ का बल पास तो हो। ' ' शायद उसका पहला उपयोग आप ह करगे। ' कािमनी ने मालती क ओर वष-भर आँख से दे खा और मुँह िसकोड़ िलया, मानो कह रह है -- ख ना तु ह मुबारक रह, मुझे परवा नह ं। मालती ने मेहता क तरफ़ दे खकर कहा -- इस वषय म आपके मेहता ग भीर हो गये। वह कसी ू या वचार ह िमःटर मेहता? पर अपना मत ूकट करते थे , तो जैसे अपनी सार आ मा उसम डाल दे ते थे। ' ववाह को म सामा जक समझौता समझता हँ ू और उसे तोड़ने का अिधकार न पु ष को ह न ी को। समझौता करने के पहले आप ःवाधीन ह, समझौता हो जाने के बाद आपके हाथ कट जाते ह। ' ' तो आप तलाक़ के वरोधी ह, ' प का। ' ' और म य ? ' भोग वाला िस ा त? ' ' वह उनके िलए है , जो ववाह नह ं करना चाहते। ' ' अपनी आ मा का स पूण वकास सभी चाहते ह; फर ववाह कौन करे और सभी चाहते ह; पर ऐसे बहत सक । ' कम ह , जो लोभ से अपना गला छड़ा ' इसीिलए क म ' आप ौ कसे समझते ह, ववा हत जीवन को या अ ववा हत जीवन को? ' ' समाज क धनुष -य य करे ? ' से ववा हत जीवन को, य क से अ ववा हत जीवन को। ' का अिभनय िनकट था। दस से एक तक धनुष -य , एक से तीन तक ूहसन, यह ूोमाम था। भोजन क तैयार श हो गयी। मेहमान के िलए बँगले म रहने का अलग-अलग ूब ध था। ख ना- प रवार के िलए दो कमरे रखे गये थे। और भी कतने ह मेहमान आ गये थे। सभी अपने - अपने कमर म -छात का कोई भेद न था। सभी गये और कपड़े बदल-बदलकर भोजनालय म जमा हो गये। यहाँ छत जाितय और वण के लोग साथ भोजन करने बैठे। केवल स पादक ओंकारनाथ सबसे अलग अपने कमर म फलाहार करने गये। और कािमनी ख ना को िसर दद हो रहा था, उ ह ने भोजन करने से इनकारकया। भोजनालय म मेहमान क सं या प चीस से कम न थी। शराब भी थी और मांस भी। इस उ सव के िलए राय साहब अ छ क़ःम क शराब ख़ास तौर पर खंचवाते थे ? खींची जाती थी दवा के नाम से ; पर होती थी ख़ािलस शराब। मांस भी कई तरह के पकते थे , कोफ़ते , कबाब और पुलाव। मुरग़, मुिग़या, बकरा, हरन, तीतर, मोर, जसे जो पस द हो, वह खाये। भोजन श हो गया तो िमस मालती ने पूछा -- स पादकजी कहाँ रह गये ? कसी को भेजो राय साहब, उ ह पकड़ लाये। राय साहब ने कहा -- वह वैंणव ह, उ ह यहाँ बुलाकर य बेचारे का धम न करोगी। बड़ा ह आचारिन आदमी है । ' अजी और कुछ न सह , तमाशा तो रहे गा। ' सहसा एक स जन को दे खकर उसने पुकारा -- आप भी तशर फ़ रखते ह िमरज़ा खुश द, यह काम आपके सुपुद । आपक िलयाकत क पर ा हो जायगी। िमरज़ा खुश द गोरे - िच टे आदमी थे , भूर -भूर मूँछ , नीली आँख , दोहर दे ह , चाँद के बाल सफ़ाचट। छकिलया अचकन और चूड़ दार पाजामा पहने थे। ऊपर से है ट लगा लेते थे। वो टं ग के समय च क पड़ते थे और नेशनिलःट क तरफ़ वोट दे ते थे। सूफ़ मुसलमान थे। दो बार हज कर आये थे ; मगर शराब ख़ूब पीते थे। कहते थे , जब हम ख़ुदा का एक ह ु म भी कभी नह मानते , तो द न के िलए य जान द! बड़े द लगीबाज़, बे फ़बे जीव थे। पहले बसरे म ठ के का कारोबार करते थे। लाख कमाये , मगर शामत आयी क एक मेम से आशनाई कर बैठे। मुक़दमेबाज़ी हई। जेल जाते - जाते बचे। चौबीस घंटे के अ दर मु क से िनकल जाने का ह ु म हआ। जो कुछ जहाँ था , वह ं छोड़ा, और िसफ़ पचास हज़ार लेकर भाग खड़े हए। ब बई म उनके एजट थे। सोचा था , उनसे हसाब- कताब कर ल और जो कुछ िनकलेगा उसी म ज़ दगी काट दगे , मगर एजट ने जाल करके उनसे वह पचास हज़ार भी ऐंठ िलये। िनराश होकर वहाँ से लखनऊ चले। गाड़ म एक महा मा से सा ात ् हआ। महा माजी न उ ह स ज़ बाग़ दखाकर उनक घड़ , अँगू ठयाँ , पए सब उड़ा िलये। बेचारे लखनऊ पहँ ु चे तो दे ह के कपड़ के िसवा और कुछ न था। राय साहब से पुरानी मुलाक़ात थी। कुछ उनक मदद से और कुछ अ य िमऽ क मदद से एक जूते क दकान खोल ली। वह अब लखनऊ क सबसे चलती हई थी जूते क दकान चार-पाँच सौ रोज़ क बब थी। जनता को उन पर थोड़े ह दन म इतना व ास हो गया क एक बड़ भार मु ःलम ता लुक़ेदार को नीचा दखाकर क िसल म पहँ ु च गये। अपनी जगह पर बैठे -बैठे बोले -- जी नह ं , म कसी का द न नह ं बगाड़ता। यह काम आपको ख़ुद करना चा हए। मज़ा तो जब है क आप उ ह शराब पलाकर छोड़। यह आपके हःन के जाद ू क आज़माइश है । चार तरफ़ से आवाज़ आयीं -- हाँ - हाँ , िमस मालती, आज अपना कमाल दखाइए। मालती ने िमरज़ा को ललकारा, कुछ इनाम दोगे ? ' सौ पए क एक थैली! ' ' हश ! सौ पए! लाख पए का धम बगाड़ँ ू सौ के िलए। ' ' अ छा, आप ख़ुद अपनी फ़ स बताइए। ' ' एक हज़ार, कौड़ कम नह ं। ' ' अ छा मंज़ूर। ' ' जी नह ं , लाकर मेहताजी के हाथ म रख द जए। 'िमरज़ाजी ने तुर त सौ पए का नोट जेब से िनकाला और उसे दखाते हए खड़े होकर बोले -- भाइयो! यह हम सब मरद क इएज़त का मामला है । अगर िमस मालती क फ़रमाइश न पूर हई , तो हमारे िलए कह मुँह दखाने क जगह न रहे गी; अगर मेरे पास पए होते तो म िमस मालती क एक-एक अदा पर एक- एक लाख कुरबान कर दे ता। एक पुराने शायर ने अपने माशूक़ के एक काले ितल पर समरक़ द और बोखारा के सूबे कुरबान कर दये थे। आज आप सभी साहब क जवाँमरद और हःनपरःती का इ तहान है । जसके पास जो कुछ हो, स चे सूरमा क तरह िनकालकर रख दे । आपको इ म क क़सम, माशूक़ क अदाओं क क़सम, अपनी इएज़त क क़सम, पीछे क़दम न हटाइए। मरदो! पए ख़च हो जायँगे , नाम हमेशा के िलए रह जायगा। ऐसा तमाशा लाख म भी सःता है । दे खए, लखनऊ के हसीन क रानी एक जा हद पर अपने हःन का म ऽ कैसे चलाती है ? भाषण समा तलाशी श करते ह िमरज़ाजी ने हर एक क जेब क कर द । पहले िमःटर ख ना क तलाशी हई। उनक जेब से पाँच पए िनकले। िमरज़ा ने मुँह फ का करके कहा -- वाह ख ना साहब, वाह! ! नाम बड़े दशन थोड़े । इतनी क पिनय के डाइरे टर, लाख क आमदनी और आपके जेब म पाँच ख ना से कम-से - कम सौ पए! लाहौल बला कूबत! कहाँ ह मेहता? आप ज़रा जाकर िमसेज़ पए वसूल कर लाय। ख ना खिसयाकर बोले -- अजी, उनके पास एक पैसा भी न होगा। कौन जानता था क यहाँ आप तलाशी लेना श करगे ? ' ख़ैर आप ख़ामोश र हए। हम अपनी तक़द र तो आज़मा ल। ' ' अ छा तो म जाकर उनसे पूछता हँ ू । ' ' जी नह ं , आप यहाँ से हल नह ं सकते। िमःटर मेहता, आप फ़लासफ़र ह, मनो व ान के प डत। दे खए अपनी भेद न कराइएगा। ' मेहता शराब पीकर मःत हो जाते थे। उस मःती म उनका दशन उड़ जाता था और वनोद सजीव हो जाता था। लपककर िमसेज़ ख ना के पास गये और पाँच िमनट ह म मुँह लटकाये लौट आये। िमरज़ा न पूछा -- अर या ख़ाली हाथ? राय साहब हँ से -- क़ाज़ी के घर चूहे भी सयाने। िमरज़ा ने कहा -- हो बड़े ख़ुशनसीब ख ना, ख़ुदा क क़सम! मेहता ने क़हक़हा मारा और जेब से सौ-सौ पए के पाँच नोट िनकाले। िमरज़ा ने लपककर उ ह गले लगा िलया। चार तरफ़ से आवाज़ आने लगीं -- कमाल है , मानता हँ ू उःताद , य न हो, फ़लासफ़र ह जो ठहरे ! िमरज़ा ने नोट को आँख से लगाकर कहा -- भई मेहता, आज से म तु हारा शािगद हो गया। बताओ, या जाद ू मारा ? मेहता अकड़कर, लाल-लाल आँख से ताकते हए बोले -- अजी कुछ नह ं। ऐसा कौन-सा बड़ा काम था। जाकर पूछा, अ दर आऊँ ? बोलीं -- आप ह मेहताजी, आइए! मने अ दर जाकर कहा, वहाँ लोग ॄज खेल रहे ह। अँगूठ एक हज़ार से कम क नह ं है । आपने तो दे खा है । बस वह । आपके पास सौ पए ह , तो पाँच पए दे कर एक हज़ार क चीज़ ले ली जए। ऐसा मौक़ा फर न िमलेगा। िमस मालती ने इस वईत पए न दये , तो बेदाग़ िनकल जायँगी। पीछे से कौन दे ता है , शायद इसीिलए उ ह ने अँगूठ िनकाली ह क पाँच सौ पए कसके पास धरे ह गे। मुसकरा से पाँच नोट िनकालकर दे दये , और चट अपने बटव और बोलीं -- म बना कुछ िलये घर से नह ं िनकलती। न जाने कब या ज़ रत पड़े । ख ना खिसयाकरबोले -- जब हमारे ूोफ़ेसर का यह हाल है , तो यूिनविसट का ई र ह मािलक है । खुश द ने घाव पर नमक िछड़का -- अरे तो ऐसी कौन-सी बड़ रक़म है जसके िलए आपका दल बैठा जाता है । ख़ुदा झूठ न बुलवाये तो यह आपक एक दन क आमदनी है । समझ ली जएगा, एक दन बीमार पड़ गये और जायगा भी तो िमस मालती ह के हाथ म। आपके दद-ए- जगर क दवा िमस मालती ह के पास तो है । मालती ने ठोकर मार -- दे खए िमरज़ाजी तबेले म लितआहज अ छ नह ं। िमरज़ा न दम हलायी -- कान पकड़ता हँ ू दे वीजी। िमःटर तंखा क तलाशी हई। मु ँकल से दस स जन ने एक-एक, दो-दो पए िनकले , मेहता क जेब से केवल अठ नी िनकली। कई पए ख़ुद दे दये। हसाब जोड़ा गया, तो तीन सौ क कमी थी। यह कमी राय साहब ने उदारता के साथ पूर कर द । स पादकजी ने मेवे और फल खाये थे और ज़रा कमर सीधी कर रहे थे क राय साहब ने जाकर कहा -- आपको िमस मालती याद रह ह। ख़ुश होकर बोले -- िमस मालती मुझे याद कर रह ह, ध य-भाग! राय साहब के साथ ह हाल म आ वराजे। उधर नौकर ने मेज़ साफ़ कर द थीं। मालती ने आगे बढ़कर उनका ःवागत कया। स पादकजी ने नॆता दखायी -- बै ठए तक लुफ़ न क जए। म इतना बड़ा आदमी नह ं हँ ू । मालती ने ौ ा भरे ःवर म कहा -- आप तक लुफ़ समझते ह गे , म समझती हँू , म अपना स मान बढ़ा रह हँू ; य आप अपने को कुछ समझ और आपको शोभा भी नह ं दे ता है ले कन यहाँ जतने स जन जमा ह, सभी आपक रा भाँित प रिचत ह। आपने इस और सा ह य-सेवा से भली- ेऽ म जो मह वपूण काम कया है , अभी चाहे लोग उसका मू य न समझ; ले कन वह समय बहत दर ू नह ं है -- म तो कहती हँ ू वह समय आ गया है -- जब हर-एक नगर म आपके नाम क सड़क बनगी, लब बनगे , टाउन हाल म आपके िचऽ लटकाये जायगे। इस वईत जो थोड़ बहत जागृित है , वह आप ह के महान ् उ ोग का ूसाद है । आपको यह जानकर आन द होगा क दे श म अब आपके ऐसे अनुयायी पैदा हो गये ह जो आपके दे हात-सुधार आ दोलन म आपका हाथ बँटाने को उ सुक ह, और उन स जन क बड़ इ छा है क यह काम संग ठत प से कया जाय और एक दे हात- सुधार संघ ःथा पत कया जाय, जसके आप सभापित ह । ओंकारनाथ के जीवन म यह पहला अवसर था क उ ह चोट के आदिमय म इतना स मान िमले। य वह कभी-कभी आम जलस म बोलते थे और कई सभाओं के म ऽी और उपम ऽी भी थे ; ले कन िश त-समाज म अब तक उनक उपे ा ह क थी। उन लोग म वह कसी तरह िमल न पाते थे , इसीिलए आम जलस म उनक िन ंबयता और ःवाथा धता क िशकायत कया करते थे , और अपने पऽ म एक-एक को रगेदते थे। क़लम तेज़ थी, वाणी कठोर, साफ़गोई क जगह उ छं ृ खलता कर बैठते थे , इसिलए लोग उ ह ख़ाली ढोल समझते थे। उसी समाज म आज उनका इतना स मान! कहाँ ह आज ' ःवराज ' और ' ःवाधीन भारत ' और ' हं टर ' के स पादक, आकर दे ख और अपना कलेजा ठं ठा कर। आज अवँय ह दे वताओं क उन पर कृ पा है । सद ु ोग कभी िनंफल नह जाता, यह ऋ षय का वा य है । वह ःवयम ् अपनी नज़र म उठ गये। कृ त ता से पुल कत होकर बोले -- दे वीजी, आप तो मुझे काँट म घसीट रह ह। मने तो जनता क जो कुछ भी सेवा क , अपना कत य समझकर क । म इस स मान को अपना नह ं , उस उ े ँय का स मान समझ रहा हँू , जसके िलए मन अपना जीवन अ पत कर दया है , ले कन मेरा नॆ-िनवेदन है क ूधान का पद कसी ूभावशाली पु ष को दया जाय, म पद म व ास नह ं रखता। म तो सेवक हँ ू और सेवा करना चाहता हँ ू । िमस मालती इसे कसी तरह ःवीकार नह ं कर सकतीं। सभापित प डतजी को बनना पड़े गा। नगर म उसे ऐसाूभावशाली य य दसरा नह ं दखायी दे ता। जसक क़लम म जाद ू है , जसक ज़बान म जाद ू है , जसके व म जाद ू है , वह कैसे कहता है क वह ूभावशाली नह ं है । वह ज़माना गया, जब धन और ूभाव म मेल था। अब ूितभा और ूभाव के मेल का युग है । स पादकजी को यह पद अवँय ःवीकार करना पड़े गा। म ऽी िमस मालती ह गी। इस सभा के िलए एक हज़ार का च दा भी हो गया है और अभी तो सारा शहर और ूा त पड़ा हआ है । चार -पाँच लाख िमल जाना मामूली बात है । ओंकारनाथ पर कुछ नशा- सा चढ़ने लगा। उनके मन म जो एक ूकार क फुरहर सी उठ रह थी, उसने ग भीर उ रदािय व का प धारण कर िलया। बोले -- मगर यह आप समझ ल, िमस मालती, क यह बड़ ज़ मेदार का काम ह और आपको अपना बहत समय दे ना पड़े गा। म अपनी तरफ़ से आपको व ास दलाता हँ ू क आप सभा - भवन म मुझे सबसे पहले मौजूद पायँगी। िमरज़ाजी ने पुचारा दया -- आपका बड़े - से - बड़ा दँमन भी यह नह ं कह सकता क आप अपना फ़रज़ अदा करने म कभी कसी से पीछे रहे । िमस मालती ने दे खा, शराब कुछ-कुछ असर करने लगी है , तो और भी ग भीर बनकर बोलीं -- अगर हम लोग इस काम क महानता न समझते , तो न यह सभा ःथा पत होती और न आप इसके सभापित होते। हम कसी रईस या ता लुक़ेदार को सभापित बनाकर धन ख़ूब बटोर सकते ह, और सेवा क आड़ म ःवाथ िस कर सकते ह, ले कन यह हमारा उ े ँय नह ं। हमारा एकमाऽ उ े ँय जनता क सेवा करना है । और उसका सबसे बड़ा साधन आपका पऽ है । हमने िन य कया है क हर-एक नगर और गाँव म उसका ूचार कया जाय और ज द-से - ज द उसक माहक-सं या को बीस हज़ार तक पहँ ु चा दया जाय। ूा त क सभी युिनिसपैिल टय और जला बोड के चेयरमैन हमारे िमऽ ह। कई चेयरमैन तो यह ं वराजमान ह। अगर हर-एक ने पाँच -पाँच सौ ूितयाँ भी ले लीं , तो पचीस हज़ार ूितयाँ तो आप यक़ नी समझ। फर राय साहब और िमरज़ा साहब क यह सलाह है क क िसल म इस वषय का एक ूःताव रखा जाय क ू येक गाँव के िलए ' बजली ' क एक ूित सरकार तौर पर मँगाई जाय, या कुछ वा षक सहायता ःवीकार क जाय। और हम पूरा व ास है क यह ूःताव पास हो जायगा। ओंकारनाथ ने जैसे नशे म झूमते हए कहा -- हम गवनर के पास डे पुटेशन ले जाना होगा। िमरज़ा खुश द बोले -- ज़ र-ज़ र! ' उनसे कहना होगा क कसी स य शासन के िलए यह कतनी ल जा और कलंक क बात है क मामो थान का अकेला पऽ होने पर भी ' बजली ' का अ ःत व तक नह ःवीकार कया जाता। ' िमरज़ा खुश द ने कहा -- अवँय-अवँय! ' म गव नह ं करता। अभी गव करने का समय नह ं आया; ले कन मुझे इसका दावा है क मा य-संगठन के िलए ' बजली ' ने जतना उ ोग कया है ... ' िमःटर मेहता ने सुधारा -- नह ं महाशय, तपःया क हए। ' म िमःटर मेहता को ध यवाद दे ता हँ ू । हाँ , इसे तपःया ह कहना चा हए, बड़ कठोर तपःया। ' बजली ' ने जो तपःया क है , वह इस ूा त के ह नह ं , इस रा के इितहास म अभूतपूव है । ' िमरज़ा खुश द बोले -- ज़ र-ज़ र! िमस मालती ने एक पेग और दया -- हमारे संघ ने यह िन य भी कया है क क िसल म अब क जो जगह ख़ाली हो, उसके िलए आपको उ मेदवार खड़ा कया जाय। आपको केवल अपनी ःवीकृ ित दे नी होगी। शेष सारा काम हम लोग कर लगे। आपको न ख़च से मतलब, न ूोपेग डा, न दौड़-धूप से।ओंकारनाथ क आँख क योित दग नी हो गयी। गव -पूण नॆता से बोले -- म आप लोग का सेवक हँू , मुझसे जो काम चाहे ले ली जए। ' हम लोग को आपसे ऐसी ह आशा है । हम अब तक झूठे दे वताओं के सामने नाक रगड़ते - रगड़ते हार गये और कुछ हाथ न लगा। अब हमने आप म स चा पथ-ूदशक, स चा ग पाया है और इस शुभ दन के आन द म आज हम एकमन, एकूाण होकर अपने अहं कार को, अपने द भ को ितलांजिल दे दे ना चा हए। हमम आज से कोई ॄा ण नह ं है , कोई शूि नह ं है , कोई ह द ू नह ं है , कोई मुसलमान नह ं है , कोई ऊँच नह ं है , कोई नीच नह ं है । हम सब एक ह माता के बालक, एक ह गोद के खेलनेवाले , एक ह थाली के खानेवाले भाई ह। जो लोग भेद -भाव म व ास रखते ह, जो लोग पृथकता और क टरता के उपासक ह, उनके िलए हमार सभा म ःथान नह ं है । जस सभा के सभापित पू य ओंकारनाथजी जैसे वशाल- दय य ह , उस सभा म ऊँच-नीच का, खान-पान का और जाित-पाँित का भेद नह ं हो सकता। जो महानुभाव एकता म और रा ीयता म व ास न रखते ह , वे कृ पा करके यहाँ से उठ जायँ। राय साहब ने शंका क -- मेरे वचार म एकता का यह आशय नह ं है क सब लोग खान-पान का वचार छोड़ द। म शराब नह ं पीता, तो या मुझे इस सभा से अलग हो जाना पड़े गा? मालती ने िनमम ःवर म कहा -- बेशक अलग हो जाना पड़े गा। आप इस संघ म रहकर कसी तरह का भेद नह ं रख सकते। मेहता जी ने घड़े को ठोका -- मुझे स दे ह है क हमारे सभापितजी ःवयम ् खान -पान क एकता म व ास नह ं रखते ह। ओंकारनाथ का चेहरा जद पड़ गया। इस बदमाश ने यह द या बेव क शहनाई बजा द । कह ं गड़े मुद न उखाड़ने लगे , नह ं , यह सारा सौभा य ःव न क भाँित शू य म वलीन हो जायगा। िमस मालती ने उनके मुँह क ओर ज ासा क है मेहता महोदय! या आप समझते ह क रा से दे खकर ढ़ता से कहा -- आपका स दे ह िनराधार क एकता का ऐसा अन य उपासक, ऐसा उदारचेता पु ष, ऐसा रिसक क व इस िनरथक और ल जा-जनक भेद को मा य समझेगा? ऐसी शंका करना उसक रा ीयता का अपमान करना है । ओंकारनाथ का मुख -मंडल ूद हो गया। ूस नता और स तोष क आभा झलक पड़ । मालती ने उसी ःवर म कहा -- और इससे भी अिधक उनक पु ष-भावना का। एक रमणी के हाथ से शराब का याला पाकर वह कौन भि पु ष है जो इनकार कर दे ? यह तो नार -जाित का अपमान होगा, उस नार -जाित का जसके नयन-बाण से अपन ◌ृदय को ब धवाने क लालसा पु ष-माऽ म होती है , जसक अदाओं पर मर-िमटने के िलए बड़े - बड़े मह प लालाियत रहते ह। लाइए, बोतल और याले , और दौर चलने द जए। इस महान ् अवसर पर कसी तरह क शंका , कसी तरह क आ प रा -िोह से कम नह ं। पहले हम अपने सभापित क सेहत का जाम पीयगे। बफ़ , शराब और सोडा पहले ह से तैयार था। मालती ने ओंकारनाथ को अपने हाथ से लाल वष से भरा हआ लास दया , और उ ह कुछ ऐसी जाद - ू भर िचतवन से दे खा क उनक सार िन ा, सार वणर - ् ौे ता काफ़ूर हो गयी। मन ने कहा -- सारा आचार- वचार प र ःथितय के अधीन है । आज तुम द रि हो, कसी मोटरकार को धूल उड़ाते दे खते हो, तो ऐसा बगड़ते हो क उसे प थर से चूर -चूर कर दो; ले कन प र ःथित ह या तु हारे मन म कार क लालसा नह ं है ? विध है और कुछ नह ं। बाप-दाद ने नह ं पी थी, न पी हो। उ ह ऐसा अवसर ह कब िमला था। उनक जी वका पोथी-पऽ पर थी। शराब लाते कहाँ से , और पीते भी तो जाते कहाँ ? फर वह तो रे लगाड़ पर न चढ़ते थे , कल का पानी न पीते थे , अँमेज़ी पढ़ना पाप समझते थे। समय कतना बदल गया है । समय के साथ अगर नह ं चल सकते , तो वह तु ह पीछे छोड़कर चला जायगा। ऐसी म हला केकोमल हाथ से वष भी िमले , तो िशरोधाय करना चा हये। जस सौभा य के िलए बड़े - बड़े राजे तरसते ह; वह आज उनके सामने खड़ा है । या वह उसे ठकरा सकते ह ? उ ह ने लास ले िलया और िसर झुकाकर अपनी कृ त ता दखाते हए एक ह साँस म पी गये और तब लोग को गव भर आँख से दे खा , मानो कह रहे ह , अब तो आपको मुझ पर व ास आया। या समझते ह, म िनरा प गा प डत हँ ू । अब तो मुझे द भी और पाखंड कहने का साहस नह ं कर सकते ? हाल म ऐसा शोर गुल मचा क कुछ न पूछो, जैसे पटारे म ब द गहगहे िनकल पड़े ह । वाह दे वीजी! या कहना है ! कमाल है िमस मालती, कमाल है । तोड़ दया, नमक का क़ानून तोड़ दया, धम का क़ला तोड़ दया, नेम का घड़ा फोड़ दया! ओंकारनाथ के कंठ के नीचे शराब का पहँ ु चना था क उनक रिसकता वाचाल हो गयी। मुःकराकर बोले -- मने अपने धम क थाती िमस मालती के कोमल हाथ म स प द और मुझे व ास है , वह उसक यथोिचत र ा करगी। उनके चरण-कमल के इस ूसाद पर म ऐसे एक हज़ार धम को योछावर कर सकता हँ ू । क़हक़ह से हाल गूँज उठा। स पादकजी का चेहरा फूल उठा था, आँख झुक पड़ती थीं। दसरा लास भरकर बोले -- यह िमस मालती क सेहत का जाम है । आप लोग पय और उ ह आशीवाद द। लोग ने फर अपने - अपन लास ख़ाली कर दये। उसी वईत िमरज़ा खुश द ने एक माला लाकर स पादकजी के गले म डाल द और । बोले -- स जनो, फ़दवी ने अभी अपने पू य सदर साहब क शान म एक क़सीदा कहा है । आप लोग क इजाज़त हो तो सुनाऊँ। चार तरफ़ से आवाज़ आयीं -- हाँ - हाँ , ज़ र सुनाइए। ओंकारनाथ भंग तो आय दन पया करते थे और उनका म ःतंक उसका अ यःत हो गया था, मगर शराब पीने का उ ह यह पहला अवसर था। भंग का नशा म थर गित से एक ःव न क भाँित आता था और म ःतंक पर मेघ के समान छा जाता था। उनक चेतना बनी रहती थी। उ ह ख़ुद मालूम होता था क इस समय उनक वाणी बड़ ल छे दार है , और उनक क पना बहत ूबल। शराब का नशा उनके ऊपर िसंह क भाँित झपटा और दबोच बैठा। वह कहते कुछ ह, मुँह से िनकलता कुछ है । फर यह और ान भी जाता रहा। वह या कहते ह या करते ह, इसक सुिध ह न रह । यह ःव न का रोमानी वैिच य न था, जागृित का वह च कर था, जसम साकार िनराकार हो जाता है । न जाने कैसे उनके म ःतंक म यह क पना जाग उठ क क़सीदा पढ़ना कोई बड़ा अनुिचत काम है । मेज़ पर हाथ पटककर बोले -- नह ं , कदा प नह ं। यहाँ कोई क़सीदा नयी ओगा, नयी ओगा। हम सभापित ह। हमारा ह ु म है । हम अबी इस सबा को तोड़ सकते ह। अबी तोड़ सकते ह। सभी को िनकाल सकते ह। कोई हमारा कुछ नह ं कर सकता। हम सभापित ह। कोई दसरा सभापित नयी है । िमरज़ा ने हाथ जोड़कर कहा -- हज़ र , इस क़सीदे म तो आपक तार फ़ क गयी है । स पादकजी ने लाल, पर योितह न नेऽ से दे खा -- तुम हमार तार प य क ? य क ? बोलो, य हमार तार प क ? हम कसी का नौकर नयी है । कसी के बाप का नौकर नयी है , कसी साले का दया नह ं खाते। हम ख़ुद स पादक है । हम ' बजली ' का स पादक है । हम उसम सबका तार प करे गा। दे वीजी, हम तु हारा तार प नयी करे गा। हम कोई बड़ा आदमी नयी है । हम सबका ग़ुलाम है । हम आपका चरण-रज है । मालती दे वी हमार लआमी, हमारा सरःवती, हमार राधा ... यह कहते हए वे मालती के चरण क तरफ़ झुके और मुँह के बल फ़श पर िगर पड़े । िमरज़ा खुश द ने दौड़कर उ ह सँभाला और कुिसयाँ हटाकर वह ं ज़मीन पर िलटा दया। फर उनके कान के पास मुँह ले जाकर बोले -- राम-राम स है ! क हए तो आपका जनाज़ा िनकाल। राय साहब ने कहा -- कल दे खना कतना बगड़ता है । एक-एक को अपने पऽ म रगेदेगा। और ऐसा-ऐसा रगेदेगा क आप भी याद करगे ! एक ह द है , कसी पर दया नहकरता। िलखने म तो अपना जोड़ नह ं रखता। ऐसा गधा आदमी कैसे इतना अ छा िलखता है , यह रहःय है । कई आदिमय ने स पादकजी को उठाया और ले जाकर उनके कमरे म िलटा दया। उधर पंडाल म धनुष -य हो रहा था। कई बार इन लोग को बुलाने के िलए आदमी आ चुके थे। कई ह ु काम भी पंडाल म आ पहँ ु चे थे। लोग उधर जाने को तैयार हो रहे थे क सहसा एक अफ़गान आकर खड़ा हो गया। गोरा रं ग , बड़ -बड़ मूँछ , ऊँचा क़द, चौड़ा सीना, आँख म िनभयता का उ माद भरा हआ , ढ ला नीचा कुरता, पैर म शलवार, ज़र के काम क सदर , िसर पर पगड़ और कुलाह, क धे म चमड़े का बैग लटकाये , क धे पर ब दक़ रखे और कमर म तलवार बाँधे न जाने कधर से आ खड़ा हो गया और गरजकर बोला -- ख़बरदार! कोई यहाँ से मत जाओ। अमारा साथ का आदमी पर डाका पड़ा ह। यहाँ का जो सरदार है । वह अमारा आदमी को लूट िलया है , उसका माल तुमको दे ना होगा! एक-एक कौड़ दे ना होगा। कहाँ है सरदार, उसको बुलाओ। राय साहब ने सामने आकर बोध-भरे ःवर म कहा -- ' कैसी लूट ! कैसा डाका? यह तुम लोग का काम है । यहाँ कोई कसी को नह ं लूटता। साफ़-साफ़ कहो, या मामला है ? अफ़गान ने आँख िनकालीं और ब दक़ का कु दा ज़मीन पर पटककर बोला -- अमसे पूछता है कैसा लूट , कैसा डाका? तुम लूटता है , तु हारा आदमी लूटता है । अम यहाँ क कोठ का मािलक है । अमार कोठ म पचास जवान है । अमारा आदमी पए तहसील कर लाता था। एक हज़ार। वह तुम लूट िलया, और कहता है कैसा डाका? अम बतलायेगा कैसा डाका होता है । अमारा पचीस जवान अबी आता है । अम तु हारा गाँव लूट लेगा। कोई साला कुछ नयीं कर सकता, कुछ नयीं कर सकता। ख ना ने अफ़गान के तेवर दे खे तो चुपके से उठे क िनकल जायँ। सरदार ने ज़ोर से डाँटा -- काँ जाता तुम ? कोई कई नयीं जा सकता। नयी अम सबको क़तल कर दे गा। अबी फैर कर दे गा। अमारा तुम कुछ नयीं कर सकता। अम तु हारा पुिलस स नयीं डरता। पुिलस का आदमी अमारा सकल दे खकर भागता है । अमारा अपना काँसल है , अम उसको खत िलखकर लाट साहब के पास जा सकता है । अम याँ से कसी को नयीं जाने दे गा। तुम अमारा एक हज़ार पया लूट िलया। अमारा पया नयीं दे गा, तो अम कसी को ज़ दा नह ं छोड़े गा। तुम सब आदमी दसर के माल को लूट करता है और याँ माशूक़ के साथ शराब पीता है । िमस मालती उसक आँख बचाकर कमर से िनकलने लगीं क वह बाज़ क तरह टटकर उनके सामने आ खड़ा हआ और बोला -- तुम इन बदमाश से अमारा माल दलवाये , नयीं अम तुमको उठा ले जायगा और अपनी कोठ म जशन मनायेगा। तु हारा हःन पर अम आिशक़ हो गया। या तो अमको एक हज़ार अबी -अबी दे दे या तुमको अमारे साथ चलना पड़े गा। तुमको अम नह ं छोड़े गा। अम तु हारा आिशक़ हो गया है । अमारा दल और जगर फटा जाता है । अमारा इस जगह पचीस जवान है । इस जला म हमारा पाँच सौ जवान काम करता है । अम अपने क़बील का खान है । अमारे क़बीला म दस हज़ार िसपाह ह। अम क़ाबुल के अमीर से लड़ सकता है । अँमेज़ सरकार अमको बीस हज़ार सालाना ख़राज दे ता है । अगर तुम हमारा पया नयीं दे गा, तो अम गाँव लूट लेगा और तु हारा माशूक़ को उठा ले जायगा। ख़ून करने म अमको लुतफ़ आता है । अम ख़ून का द रया बहा दे गा! मजिलस पर आतंक छा गया। िमस मालती अपना चहकना भूल गयीं। ख ना क पंडिलयाँ काँप रह थीं। बेचारे चोट-चपेट के भय से एक मं ज़ले बँगले म रहते थे। ज़ीने पर चढ़ना उनके िलए सूली पर चढ़ने से कम न था। गरमी म भी डर के मारे कमरे म सोते थे। राय साहब को ठकुराई का अिभमान था। वह अपने ह गाँव म एक पठान से डर जाना हाःयाःपद समझते थे , ले कन उसक ब दक़ को या करते।उ ह ने ज़रा भी चीं - चपड़ कया और इसने ब दक़ चलायी। हश तो होते ह ह ये सब , और िनशाना भी इन सब का कतना अचूक होता है ; अगर उसके हाथ म ब दक़ न होती , तो राय साहब उससे सींग िमलान को भी तैयार हो जाते। मु ँकल यह थी क द कसी को बाहर नह ं जाने दे ता। नह ं , दम-के -दम म सारा गाँव जमा हो जाता और इसके पूरे ज थे को पीट-पाटकर रख दे ता। आ ख़र उ ह ने दल मज़बूत कया और जान पर खेलकर बोले -- हमने आपसे कह दया क हम चोर-डाकू नह ं ह। म यहाँ क क िसल का मे बर हँ ू और यह दे वीजी लखनऊ क सुूिस डा टर ह। यहाँ सभी शर फ़ और इएज़तदार लोग जमा ह। हम बलकुल ख़बर नह ं , आपके आदिमय को कसने लूटा? आप जाकर थाने म रपट क जए। खान न ज़मीन पर पैर पटके , पतरे बदले और ब दक़ दहाड़ा -- मत बक- को क धे से उतारकर हाथ म लेता हआ बक करो। काउं िसल का मे बर को अम इस तरह पैर से कुचल दे ता है । (ज़मीन पर पाँव रगड़ता है ) अमारा हाथ मज़बूत है , अमारा दल मज़बूत है , अम ख़ुदा ताला के िसवा और कसी से नयीं डरता। तुम अमारा पया नह ं दे गा, तो अम (राय साहब क तरफ़ इशारा कर) अभी तुमको कतल कर दे गा। अपनी तरफ़ ब दक़ क नली दे खकर राय साहब झुककर मेज़ के बराबर आ गये। अजीब मुसीबत म जान फँसी थी। शैतान बरबस कहे जाता है , तुमने हमार पए लूट िलये। न कुछ सुनता है , न कुछ समझता है , न कसी को बाहर जाने - आने दे ता है । नौकर-चाकर, िसपाह - यादे , सब धनुष -य दे खने म म न थे। ज़मींदार के नौकर य भी आलसी और काम-चोर होते ह ह, जब तक दस दफ़े न पुकारा जाय बोलते ह नह ं ; और इस वईत तो वे एक शुभ काम म लगे हए थे। धनुष -य उनके िलए केवल तमाशा नह ं , भगवान ् क लीला थी ; अगर एक आदमी भी इधर आ जाता, तो िसपा हय को ख़बर हो जाती और दम- भर म खान का सारा खानपन िनकल जाता, डाढ़ के एक-एक बाल नुच जाते। कतना ग़ुःसेवर है । होत भी तो ज लाद ह। न मरने का ग़म, न जीने क ख़ुशी। िमरज़ा साहब ने च कत नेऽ से दे खा -- या बताऊँ , कुछ अ ल काम नह ं करती। म आज अपना पःतौल घर ह छोड़ आया, नह ं मज़ा चखा दे ता। ख ना रोना मुँह बनाकर बोले -- कुछ पए दे कर कसी तरह इस बला को टािलए। राय साहब ने मालती क ओर दे खा -- दे वीजी, अब आपक या सलाह है ? मालती का मुख -मंडल तमतमा रहा था। बोलीं -- होगा या, मेर इतनी बेईएज़ती हो रह है और आप लोग बैठे दे ख रहे ह! बोस मद के होते एक उज डा पठान मेर इतनी दगित कर रहा है और आप लोग के ख़ून म ज़रा भी गमीर ् नह ं आती ! आपको जान इतनी यार है ? य एक आदमी बाहर जाकर शोर नह ं मचाता? य आप लोग उस पर झपटकर उसके हाथ से ब दक़ नह ं छ न लेते ? ब दक़ ह तो चलायेगा ? चलाने दो। एक या दो क जान ह तो जायगी? जाने दो। मगर दे वीजी मर जाने को जतना आसान समझती थीं और लोग न समझते थे। कोई आदमी बाहर िनकलने क फर ह मत करे और पठान ग़ुःसे म आकर दस-पाँच फैर कर दे , तो यहाँ सफ़ाया हो जायगा। बहत होगा , पुिलस उसे फाँसी क सज़ा दे दे गी। वह भी या ठ क। एक बड़े क़बीले का सरदार है । उसे फाँसी दे ते हए सरकार भी सोच - वचार करे गी। ऊपर से दबाव पड़े गा। राजनीित के सामन याय को कौन पूछता है । हमारे ऊपर उलटे मुक़दमे दायर हो जायँ और दं डकार पुिलस बठा द जाय, तो आ य नह ं ; कतने मज़े से हँ सी-मज़ाक़ हो रहा था। अब तक सामा का आन द उठाते होते। इस शैतान ने आकर एक नयी वप खड़ कर द , और ऐसा जान पड़ता है , बना दो-एक ख़ून कये मानेगा भी नह ं। ख ना न मालती को फटकारा -- दे वीजी, आप तो हम ऐसा लताड़ रह ह मानो अपनी ूाण र ा करना कोई पाप है , ूाण का मोह ूाणी-माऽ म होता है और हम लोग म भी हो, तो कोई ल जा क बात नह ं। आप हमारजान इतनी सःती समझती ह; यह दे खकर मुझे खेद होता है । एक हज़ार का ह तो मुआमला है । आपके पास मुझत के एक हज़ार ह, उसे दे कर इसम हमारा य नह ं बदा कर दे तीं ? आप ख़ुद अपनी बेईएज़ती करा रह ह, या दोष? राय साहब ने गम होकर कहा -- अगर इसने दे वीजी को हाथ लगाया, तो चाह मेर लाश यह ं तड़पने लगे , म उससे िभड़ जाऊँगा। आ ख़र वह भी आदमी ह तो है । िमरज़ा साहब न स दे ह से िसर हलाकर कहा -- राय साहब, आप अभी इन सब के िमज़ाज से वा क़फ़ नह ं ह। यह फैर करना श करे गा, तो फर कसी को ज़ दा न छोड़े गा। इनका िनशाना बेखता होता है । िम. तंखा बेचार आनेवाले चुनाव क समःया सुलझने आये थे। दस-पाँच हज़ार का वारा- यारा करके घर जाने का ःव न दे ख रहे थे। यहाँ जीवन ह संकट म पड़ गया। बोले -- सबसे सरल उपाय वह है , जो अभी ख नाजी न बतलाया। एक हज़ार ह क बात है और पए मौजूद ह, तो आप लोग य इतना सोच- वचार कर रहे ह? िमस मालती ने तंखा को ितरःकार-भर आँख से दे खा। ' आप लोग इतने कायर ह, यह म न समझती थी। ' ' म भी यह न समझता था क आप को पए इतने यारे ह और वह भी मुझत के ! ' ' जब आप लोग मेरा अपमान दे ख सकते ह, तो अपने घर क य का अपमान भी दे ख सकते ह गे ? ' ' तो आप भी पैसे के िलए अपने घर के पु ष को होम करने म संकोच न करगी। ' खान इतनी दे र तक झ लाया हआ -सा इन लोग क िगट पट सुन रहा था। एका-एक गरजकर बोला -- अम अब नयीं मानेगा। अम इतनी दे र यहाँ खड़ा है , तुम लोग कोई जवाब नह ं दे ता। ( जेब से सीट िनकालकर ) अम तुमको एक लमहा और दे ता है ; अगर तुम पया नह ं दे ता तो अम सीट बजायेगा और अमारा पचीस जवान यहाँ आ जायगा। बस! फर आँख म ूेम क वाला भरकर उसने िमस मालती को दे खा। ' तुम अमारे साथ चलेगा दलदार! अम तु हारे ऊपर फ़दा हो जायगा। अपना जान तु हारे क़दम पर रख दे गा। इतना आदमी तु हारा आिशक़ है ; मगर कोई स चा आिशक़ नह ं। स चा इँक़ या है , अम दखा दे गा। तु हारा इशारा पाते ह अम अपने सीने म खंजर चुबा सकता है । ' िमरज़ा ने िघिघयाकर कहा -- दे वीजी, ख़ुदा के िलए इस मूज़ी को पए दे द जए। ख ना ने हाथ जोड़कर याचना क -- हमारे ऊपर दया करो िमस मालती! राय साहब तनकर बोले -- हिगज़ नह ं। आज जो कुछ होना है , हो जाने द जये। या तो हम ख़ुद मर जायँगे , या इन जािलम को हमेशा के िलए सबक़ दे दगे। तंखा ने राय साहब को डाँट बतायी -- शेर क माँद म घुसना कोई बहादर ु नह ं है । म इसे मूख ता समझता हँ ू । मगर िमस मालती के मनोभाव कुछ और ह थे। खान के लालसाूद कर दया था और अब इस कांड म उ ह मनचलेपन का आन द आ रहा था। उनका नेऽ ने उ ह आ ःत दय कुछ दे र इन नरपुँगव के बीच म रहकर उनके बबर ूेम का आन द उठाने के िलए ललचा रहा था। िश दबलता और िनज वता का उ ह अनुभव हो चुका था। आज अ खड़, अनघड़ पठान के उ म ूेम क ूेम के िलए उनका मन दौड़ रहा था, जैसे संगीत का आन द उठाने के बाद कोई मःत हािथय क लड़ाई दे खने के िलए दौड़े । उ ह ने खाँ साहब के सामने जाकर िनँशंक भाव से कहा -- तु ह खान ने हाथ बढ़ाकर कहा -- तो अम तुमको लूट ले जायगा। ' तुम इतने आदिमय के बीच से हम नह ं ले जा सकता। ' ' अम तुमको एक हज़ार आदिमय के बीच से ले जा सकता है । ' पये नह ं िमलगे।' तुमको जान से हाथ धोना पड़े गा। ' ' अम अपने माशूक़ के िलए अपने जःम का एक-एक बोट नुचवा सकता है । ' उसने मालती का हाथ पकड़कर खींचा। उसी वईत होर ने कमरे म क़दम रखा। वह राजा जनक का माली बना हआ था और उसके अिभनय ने दे हाितय को हँ साते -हँ साते लोटा दया था। उसने सोचा मािलक अभी तक य नह ं आये। वह भी तो आकर दे ख क दे हाती इस काम म कतने कुशल होते ह। उनके यार- दोःत भी दे ख । कैसे मािलक को बुलाये ? वह अवसर खोज रहा था, और यहाँ आया; मगर यहाँ का य ह मुहलत िमली, दौड़ा हआ ँय दे खकर भौच का-सा खड़ा रह गया। सब लोग चु पी साधे , थर-थर काँपते , कातर नेऽ से खान को दे ख रहे थे और ख़ान मालती को अपनी तरफ़ खींच रहा था। उसक सहज ब न प र ःथित का अनुमान कर िलया। उसी वईत राय साहब ने पुकारा -- होर , दौड़कर जा और िसपा हय को बुला, ला ज द दौड़! होर पीछे मुड़ा था क ख़ान ने उसके सामने ब दक़ तानकर डाँटा -- कहाँ जाता है सुअर, हम गोली मार दे गा। होर गँवार था। लाल पगड़ दे खकर उसके ूाण िनकल जाते थे ; ले कन मःत साँड़ पर लाठ लेकर पल पड़ता था। वह कायर न था, मारना और मरना दोन ह जानता था; मगर पुिलस के हथकंड के सामन उसक एक न चलती थी। बँधे - बँधे कौन फरे , र त के पए कहाँ से लाये , बाल-ब च को कस पर छोड़े ; मगर जब मािलक ललकारते ह, तो फर कसका डर। तब तो वह मौत के मुँह म भी कूद सकता है । उसन झपटकर ख़ान क कमर पकड़ और ऐसा अड़ं गा मारा क ख़ान चार खाने िच ज़मीन पर आ रहे और लगे पँत म गािलयाँ दे ने। होर उनक छाती पर चढ़ बैठा और ज़ोर से दाढ़ पकड़कर खींची। दाढ़ उसके हाथ म आ गयी। ख़ान ने तुर त अपनी कुलाह उतार फ क और ज़ोर मारकर खड़ा हो गया। अरे ! यह तो िमःटर मेहता ह। वह ! लोग ने चार तरफ़ से मेहता को घेर िलया। कोई उनके गले लगता, कोई उनक पीठ पर थप कयाँ दे ता था और िमःटर मेहता के चेहरे पर न हँ सी थी, न गव; चुपचाप खड़े थे , मानो कुछ हआ ह नह ं। मालती ने नक़ली रोष से कहा -- आपने यह बह ु पपन कहाँ सीखा ? मेरा दल अभी तक धड़-धड़ कर रहा है । मेहता ने मुःकराते हए कहा -- ज़रा इन भले आदिमय क जवाँमद क पर हई हो , उस मा क जएगा। ा ले रहा था। जो गुःताख़ी ूेमच द गोदान यह अिभनय जब समा हआ , तो उधर रं गशाला म धनुष -य समा हो चुका था और सामा जक ूहसन क तैयार हो रह थी; मगर इन स जन को उससे वशेष दलचःपी न थी। केवल िमःटर मेहता दे खने गये और आ द से अ त तक जमे रहे । उ ह बड़ा मज़ा आ रहा था। बीच-बीच म तािलयाँ बजाते थे और ' फर कहो, फर कहो ' का आमह करके अिभनेताओं को ूो साहन भी दे ते जात थे। राय साहब ने इस ूहसन म एक मुक़दमेबाज़ दे हाती ज़मींदार का ख़ाका उड़ाया था। कहने को तो ूहसन था; मगर क णा से भरा हआ। नायक का बात -बात म क़ानून क धाराओं का उ लेख करना, प ी पर केवल इसिलए मुक़दमा दायर कर दे ना क उसने भोजन तैयार करने म ज़रा-सी दे र कर द , फर वक ल के नख़रे और दे हाती गवाह क चाला कयाँ और झाँसे , पहले गवाह के िलए चट-पट तैयार हो जाना; मगर इजलास पर तलबी के समय ख़ूब मनावन कराना और नाना ूकार के फ़रमाइश करके उ ल बनाना, ये सभी ँय दे खकर लोग हँ सी के मारे लोटे जाते थे। सबसे सु दर वह ँय था, जसम वक ल गवाह को उनके बयान रटा रहा था। गवाह का बार-बार भूल करना, वक ल का बगड़ना, फर नायक का दे हाती बोली म गवाह को समझाना और अ त म इजलास पर गवाह का बदल जाना, ऐसा सजीव और स य था क िमःटर मेहता उछल पड़े और तमाशा समा होने पर नायक को गले लगा िलया और सभी नट को एक-एक मेडल दे ने क घोषणा क । राय साहब के ूित उनके मन म ौ ा के भाव जाग उठे । राय साहब ःटे ज के पीछे सामे का संचालन कर रहे थे। मेहता दौड़कर उनके गले िलपट गये और मु ध होकर बोले -- आपक इतनी पैनी है , इसका मुझे अनुमान न था। दसर दन जलपान के बाद िशकार का ूोमाम था। वह ं कसी नद के तट पर बाग़ म भोजन बने , ख़ूब जल- ड़ा क जाय और शाम को लोग घर आयँ। दे हाती जीवन का आन द उठाया जाय। जन मेहमान को वशेष काम था, वह तो बदा हो गये , केवल वे ह लोग बच रहे जनक राय साहब से घिन ता थी। िमसेज़ ख ना के िसर म दद था, न जा सक ं , और स पादकजी इस मंडली से जले हए थे और इनके व एक लेख -माला िनकालकर इनक ख़बर लेने के वचार म म न थे। सब-के -सब छटे हए गुंडे ह। हराम के पैसे उड़ाते ह और मूछ पर ताव दे ते ह। दिनया म या हो रहा है , इ ह या ख़बर। इनके पड़ोस म कौन मर रहा है , इ ह या परवा। इ ह तो अपने भोग- वलास से काम है । यह मेहता, जो फ़लासफ़र बना फरता है , उसे यह धुन है क जीवन को स पूण बनाओ। मह ने म एक हज़ार मार लेते हो, तु ह अ उतयार है , जीवन को स पूण बनाओ या प रपूण बनाओ। जसको यह फ़ब दबाये डालती है क लड़क का याह कैसे हो, या बीमार व ी के िलए कैसे आयँ या अब क घर का कराया कसके घर से आएगा, वह अपना जीवन कैसे स पूण बनाये ! साँड़ बने दसर छट के खेत म मुँह मारते फरते हो और समझते हो संसार म सब सुखी ह। तु हार आँख तब खुल गी, जब बा त होगी और तुमसे कहा जायगा -- बचा, खेत म चलकर हल जोतो। तब दे ख , तु हारा जीवन कैसे स पूण होता है । और वह जो है मालती, जो बह र घाट का पानी पीकर भी िमस बनीफरती है ! शाद नह ं करे गी, इससे जीवन ब धन म पड़ जाता है , और ब धन म जीवन का पूरा वकास नह ं होता। बस जीवन का पूरा वकास इसी म है क दिनया को लूटे जाओ और िन वलास कय जाओ! सारे ब धन तोड़ दो, धम और समाज को गोली मारो, जीवन के कत य को पास न फटकने दो, बस तु हारा जीवन स पूण हो गया। इससे एयादा आसान और या होगा। माँ - बाप से नह ं पटती, उ ह धता बताओ; शाद मत करो, यह ब धन है ; ब चे ह गे , यह मोहपाश है ; मगर टै स भी तो ब धन है , उस य नह ं तोड़ते ? उसस य दे ते हो? क़ानून य क नी काटते हो। जानते हो न क क़ानून क ज़रा भी अव ा क और बे ड़याँ पड़ जायँगी। बस वह ब धन तोड़ो, जसम अपनी भोग-िल सा म बाधा नह ं पड़ती। रःसी को साँप बनाकर पीटो और तीस मारखाँ बनो। जीते साँप के पास जाओ ह य वह फूकार भी मारे गा तो, लहर आने लगगी। उसे आते दे खो, तो दम दबाकर भागो। यह तु हारा स पूण जीवन है ! आठ बजे िशकार-पाट चली। ख ना ने कभी िशकार न खेला था, ब दक़ क आवाज़ से काँपते थे ; ले कन िमस मालती जा रह थीं , वह कैस क सकते थे। िमःटर तंखा को अभी तक एले शन के वषय म बातचीत करने का अवसर न िमला था। शायद वहाँ वह अवसर िमल जाय। राय साहब अपने इस इलाक़े म बहत दन से नह ं गये थे। वहाँ का रं ग -ढं ग दे खना चाहते थे। कभी-कभी इलाक़े म आने - जाने से आदिमय से एक स ब ध भी हो जाता है और रोब भी रहता है । कारकून और यादे भी सचेत रहते ह। िमरज़ा खुश द को जीवन के नये अनुभव ूा करने का शौक़ था, वशेषकर ऐसे , जनम कुछ साहस दखाना पड़े । िमस मालती अकेले कैसे रहतीं। उ ह तो रिसक का जमघट चा हए। केवल िमःटर मेहता िशकार खेलने के स चे उ साह से जा रहे थे। राय साहब क इ छा तो थी क भोजन क साममी, रसोईया, कहार, ख़दमतगार, सब साथ चल, ले कन िमःटर मेहता ने उसका वरोध कया। ख ना ने कहा -- आ ख़र वहा भोजन करगे या भूख मरगे ? मेहता ने जवाब दया -- भोजन य न करगे , ले कन आज हम लोग ख़ुद अपना सारा काम करगे। दे खना तो चा हए क नौकर के बग़ैर हम ज़ दा रह सकते ह या नह ं। िमस मालती पकायँगी और हम लोग खायँगे। दे हात म हाँ डयाँ और प ल िमल ह जाते ह, और ईधन क कोई कमी नह ं। िशकार हम करग ह । मालती ने िगला कया -- मा क जए। आपने रात मेर क़लाई इतने ज़ोर से पकड़ क अभी तक दद हो रहा है । ' काम तो हम लोग करगे , आप केवल बताती जाइएगा। ' िमरज़ा खुश द बोले -- अजी आप लोग तमाशा दे खते र हएगा, म सारा इ तज़ाम कर दँ ग ा। बात ह कौन -सी है । जंगल म हाँड और बतन ढँ ू ढ़ना हमाक़त है । हरन का िशकार क जए, भूिनए, खाइए, और वह ं दरउत के साये म खराटे ली जए। यह ूःताव ःवीकित हआ। दो मोटर चलीं। एक िमस मालती साइव कर रह थीं , दसर ख़ुद राय साहब। कोई बीस -पचीस मील पर पहाड़ ूा त श हो गया। दोन तरफ़ ऊँची पवतमाला दौड़ चली आ रह थी। सड़क भी पचदार होती जाती थी। कुछ दर ू क चढ़ाई के बाद एकाएक ढाल आ गया और मोटर नीचे क ओर चली। दर ू से नद का पाट नज़र आया, कसी रोगी क भाँित दबल , िनःप द कगार पर एक घने वटव क छाँह म कार रोक द गयीं और लोग उतरे । यह सलाह हई क दो -दो क टोली बने और िशकार खेलकर बारह बजे तक यहाँ आ जाय। िमस मालती मेहता के साथ चलने को तैयार हो गयीं। ख ना मन म ऐंठकर रह गये। जसवचार से आये थे , उसम जैसे पंचर हो गया; अगर जानते , मालती दग़ा दे गी, तो घर लौट जाते ; ले कन राय साहब का साथ उतना रोचक न होते हए भी बुरा न था। उनसे बहत -सी मुआमले क बात करनी थीं। खुश द और तंखा बच रहो। उनक टोली बनी-बनायी थी। तीन टोिलयाँ एक-एक तरफ़ चल द ं। कुछ दर ू तक पथर ली पगडं ड पर मेहता के साथ चलने के बाद मालती ने कहा -- तुम तो चले ह जाते हो। ज़रा दम ले लेने दो। मेहता मुःकराये -- अभी तो हम एक मील भी नह ं आये। अभी से थक गयीं ? ' थक ं नह ं ; ले कन य न ज़रा दम ले लो। ' ' जब तक कोई िशकार हाथ न आ जाय, हम आराम करने का अिधकार नह ं। ' ' म िशकार खेलने न आयी थी। ' मेहता ने अनजान बनकर कहा -- अ छा यह म न जानता था। फर या करने आयी थीं ? ' अब तुमस या बताऊँ। ' हरन का एक झुंड चरता हआ नज़र आया। दोन एक च टान क आड़ म िछप गये और िनशाना बाँधकर गोली चलायी। िनशाना ख़ाली गया। झुंड भाग िनकला। मालती ने पूछा -- अब? ' कुछ नह ं , चलो फर कोई िशकार िमलेगा। ' दोन कुछ दे र तक चुपचाप चलते रहे । फर मालती ने ज़रा है । आओ, इस व ककर कहा -- गम के मारे बुरा हाल हो रहा के नीचे बैठ जायँ। ' अभी नह ं। तुम बैठना चाहती हो, तो बैठो। म तो नह ं बैठता। ' ' बड़े िनदयी हो तुम , सच कहती हँ ू । ' ' जब तक कोई िशकार न िमल जाय, म बैठ नह ं सकता। ' ' तब तो तुम मुझे मार ह डालोगे। अ छा बताओ; रात तुमने मुझे इतना बड़ा बोध आ रहा था। याद है , तुमने मुझे य सताया? मुझे तु हारे ऊपर या कहा था? तुम हमारे साथ चलेगा दलदार? म न जानती थी, तुम इतने शर र हो। अ छा, सच कहना, तुम उस वईत मुझे अपने साथ ले जाते ? ' मेहता ने कोई जवाब न दया, मानो सुना ह नह ं। दोन कुछ दर ू चलते रहे । एक तो जेठ क धूप , दसर पथर ला राःता। मालती थककर बैठ गयी। मेहता खड़े - खड़े बोले -- अ छ बात है , तुम आराम कर लो। म यह ं आ जाऊँगा। ' मुझे अकेले छोड़कर चले जाओगे ? ' ' म जानता हँू , तुम अपनी र ा कर सकती हो। ' ' कैसे जानते हो? ' ' नये युग क दे वय क यह िसफ़त है । वह मद का आौय नह ं चाहतीं , उससे क धा िमलाकर चलना चाहती ह। ' मालती ने झपते हए कहा -- तुम कोरे फ़लासफ़र हो मेहता, सच। सामने व पर एक मोर बैठा हआ था। मेहता ने िनशाना साधा और ब दक़ चलायी। मोर उड़ गया। मालती ूस न होकर बोली -- बहत अ छा हआ। मेरा शाप पड़ा। मेहता ने ब दक़ क धे पर रखकर कहा -- तुमने मुझे नह ं , अपने आपको शाप दया। िशकार िमल जाता, तो म तु ह दस िमनट क मुहलत दे ता। अब तो तुमको फ़ौरन चलना पड़े गा। मालती उठकर मेहता का हाथ पकड़ती हई बोली -- फ़लासफ़र के शायद दय नह ं होता। तुमने अ छा कया, ववाह नह ं कया। उस ग़र ब को मार ह डालते ; मगर म य न छोड़ँ ू गी। तुम मुझे छोड़कर नह ं जासकते। मेहता ने एक झटके से हाथ छड़ा िलया और आगे बढ़े । मालती सजलनेऽ होकर बोली -- म कहती हँू , मत जाओ। नह ं म इसी च टान पर िसर पटक दँ ग ी। मेहता ने तेज़ी से क़दम बढ़ाये। मालती उ हदे खती रह । जब वह बीस क़दम िनकल गये , तो झुँझलाकर उठ और उनके पीछे दौड़ । अकेले वौाम करने म कोई आन द न था। समीप आकर बोली -- म तु ह इतना पशु न समझती थी। ' म जो हरन मा ँ गा, उसक खाल तु ह भट क ँ गा। ' ' खाल जाय भाड़ म। म अब तुमसे बात न क ँ गी। ' ' कह ं हम लोग के हाथ कुछ न लगा और दसर ने अ छे िशकार मारे तो मुझे बड़ झप होगी। ' एक चौड़ा नाला मुँह फैलाये बीच म खड़ा था। बीच क च टान उसके दाँत से लगती थीं। धार म इतना वेग था क लहर उछली पड़ती थीं। सूय म या पर आ पहँ ु चा था और उसक यासी करणजल म ब ड़ा कर रह थीं। मालती ने ूस न होकर कहा -- अब तो लौटना पड़ा। ' य ? उस पार चलगे। यह ं तो िशकार िमलगे। ' ' धारा म कतना वेग है । म तो बह जाऊँगी। ' ' अ छ बात है । तुम यह ं बैठो, म जाता हँ ू । ' ' हाँ आप जाइए। मुझे अपनी जान से बैर नह ं है । ' मेहता ने पानी म क़दम रखा और पाँव साधते हए चले। य - य आगे जाते थे , पानी गहरा होता जाता था। यहाँ तक क छाती तक आ गया। मालती अधीर हो उठ । शंका से मन चंचल हो उठा। ऐसी वकलता तो उसे कभी न होती थी। ऊँचे ःवर म बोली -- पानी गहरा है । ठहर जाओ, म भी आती हँ ू । ' नह ं - नह ं , तुम फसल जाओगी। धार तेज़ है । ' ' कोई हरज़ नह ं , म आ रह हँ ू । आगे न बढ़ना , ख़बरदार। ' मालती साड़ ऊपर चढ़ाकर नाले म पैठ । मगर दस हाथ आते - आते पानी उसक कमर तक आ गया। मेहता घबड़ाये। दोन हाथ से उसे लौट जान को कहते हए बोले -- तुम यहाँ मत आओ मालती! यहाँ तु हार गदन तक पानी है । मालती ने एक क़दम और आगे बढ़कर कहा -- होने दो। तु हार यह इ छा है क म मर जाऊँ , तो तु हारे पास ह म ँ गी। मालती पेट तक पानी म थी। धार इतनी तेज़ थी क मालूम होता था, क़दम उखड़ा। मेहता लौट पड़े और मालती को एक हाथ से पकड़ िलया। मालती ने नशीली आँख म रोष भरकर कहा -- मने तु हारे - जैसे बेदद आदमी कभी न दे खा था। ब कुल प थर हो। ख़ैर , आज सता लो, जतना सताते बने ; म भी कभी समझूँगी। मालती के पाँव उखड़ते हए वह ब दक़ सँभालती हई मालूम हए। उनसे िचमट गयी। मेहता न आ ासन दे ते हए कहा -- तुम यहाँ खड़ नह ं रह सकती। म तु ह अपने क धे पर बठाये लेता हँ ू । मालती ने भृकुट टे ढ़ करके कहा -- तो उस पार जाना या इतना ज़ र है ? मेहता ने कुछ उ र न दया। ब दक़ कनपट से क धे पर दबा ली और मालती को दोन हाथ से उठाकर क धे पर बैठा िलया। मालती अपनी पुलक को िछपाती हई बोली -- अगर कोई दे ख ले ? ' भं◌ा तो लगता है । ' दो पग के बाद उसने क ण ःवर म कहा -- अ छा बताओ, म यह ं पानी म डब जाऊँ , तो तु ह रं ज हो या न हो? म तो समझती हँू , तु ह बलकुल रं ज न होगा। मेहता ने आहत ःवर से कहा -- तुम समझती हो, म आदमी नह ं हँू ? ' म तो यह समझती हँू , य िछपाऊँ। '' सच कहती हो मालती? ' ' तुम या समझते हो? ' ' म! कभी बतलाऊँगा। ' पानी मेहता के गदन तक आ गया। कह ं अगला क़दम उठाते ह िसर तक न आ जाय। मालती का दय धक-धक करने लगा। बोली, मेहता, ई र के िलए अब आगे मत जाओ, नह ं , म पानी म कूद पड़ँ ू गी। उस संकट म मालती को ई र याद आया , जसका वह मज़ाक़ उड़ाया करती थी। जानती थी, ई र कह ं बैठा नह ं है जो आकर उ ह उबार लेगा; ले कन मन को जस अवल बन और श क ज़ रत थी, वह और कहाँ िमल सकती थी। पानी कम होने लगा था। मालती ने ूस न होकर कहा -- अब तुम मुझे उतार दो। ' नह ं - नह ं , चुपचाप बैठ रहो। कह ं आगे कोई गढ़ा िमल जाय। ' ' तुम समझते होगे , यह कतनी ःवािथनी है । ' ' मुझे इसक मज़दर ू दे दे ना। ' मालती के मन म गुदगुद हई। ' या मज़दर ू लोगे ? ' ' यह क जब तु ह जीवन म ऐसा ह कोई अवसर आय तो मुझे बुला लेना। ' कनारे आ गये। मालती ने रे त पर अपनी साड़ का पानी िनचोड़ा, जूते का पानी िनकाला, मुँह -हाथ धोया; पर ये श द अपने रहःयमय आशय के साथ उसके सामने नाचते रहे । उसने इस अनुभव का आन द उठात हए कहा -- यह दन याद रहे गा। मेहता ने पूछा -- तुम बहत डर रह थीं ? ' पहले तो डर ; ले कन फर मुझे व ास हो गया क तुम हम दोन क र ा कर सकते हो। ' मेहता ने गव से मालती को दे खा -- इनके मुख पर प रौम क लाली के साथ तेज था। ' मुझे यह सुनकर कतना आन द आ रहा है , तुम यह समझ सकोगी मालती? ' ' तुमने समझाया कब। उलटे और जंगल म घसीटते फरते हो; और अभी फर लौटती बार यह नाला पार करना पड़े गा। तुमने कैसी आफ़त म जान डाल द । मुझे तु हारे साथ रहना पड़े , तो एक दन न पटे । ' मेहता मुःकराये। इन श द का संकेत ख़ूब समझ रहे थे। ' तुम मुझे इतना द समझती हो ! और जो म कहँ ू क तुमसे ूेम करता हँ ू । मुझसे ववाह करोगी ? ' ' ऐसे काठ-कठोर से कौन ववाह करे गा! रात- दन जलाकर मार डालोगे। ' और मधुर नेऽ से दे खा, मानी कह रह हो -- इसका आशय तुम ख़ूब समझते हो। इतने बु ू नह ं हो। मेहता ने जैसे सचेत होकर कहा -- तुम सच कहती हो मालती। म कसी रमणी को ूस न नह ं रख सकता। मुझसे कोई ी ूेम का ःवाँग नह ं कर सकती। म इसके अ तःतल तक पहँ ु च जाऊँगा। फर मुझे उससे अ िच हो जायगी। मालती काँप उठ । इन श द म कतना स य था। उसने पूछा -- बताओ, तुम कैसे ूेम से स त होगे ? ' बस यह क जो मन महो, वह मुख पर हो! मेरे िलए रं ग --प और हाव-भाव और नाज़ो-अ दाज़ का मू य इतना ह है ; जतना होना चा हए। म वह भोजन चाहता हँू , जससे आ मा क तृि हो। उ ेजक और शोषक पदाथ क मुझे ज़ रत नह ं। ' मालती ने ओठ िसकोड़कर ऊपर साँस खींचते हए कहा -- तुमसे कोई पेश न पायेगा। एक ह घाघ हो। अ छा बताओ, मेरे वषय मतु हारा या ख़याल है ? मेहता ने नटखटपन से मुःकराकर कहा -- तुम सब कुछ कर सकती हो, बु मती हो, चतुर हो, ूितभावान हो, दयालु हो, चंचल हो, ःवािभमानी हो, याग करसकती हो; ले कन ूेम नह ं कर सकती। मालती ने पैनी से ताककर कहा -- झूठे हो तुम , बलकुल झूठे। मुझे तु हारा यह दावा िनःसार मालूम होता है क तुम नार - दय तक पहँ ु च जाते हो। दोन नाले के कनारे - कनारे चले जा रहे थे। बारह बज चुके थे ; पर अब मालती को न वौाम क इ छा थी, न लौटने क । आज के स भाषण म उसे एक ऐसा आन द आ रहा था, जो उसके िलए बलकुल नया था। उसने कतने ह व ान और नेताओं को एक मुःकान म, एक िचतवन म, एक रसीले वा य म उ ल बनाकर छोड़ दया था। ऐसी बालू क द वार पर वह जीवन का आधार नह ं रख सकती थी। आज उसे वह कठोर, ठोस, प थर-सी भूिम िमल गयी थी, जो फावड़ से िचनगा रयाँ िनकाल रह थी और उसक कठोरता उसे उ रो र मोह लेती थी। धायँ क आवाज़ हई। एक लालसर नाले पर उड़ा जा रहा था। मेहता न िनशाना मारा। िच ड़या चोट खाकर भी कुछ दर ू उड़ , फर बीच धार म िगर पड़ और लहर के साथ बहन लगी। ' अब? ' ' अभी जाकर लाता हँ ू । जाती कहाँ है ? ' यह कहने के साथ वह रे त म दौड़े और ब दक़ कनारे पर रख गड़ाप से पानी म कूद पड़े और बहाव क ओर तैरने लगे ; मगर आध मील तक पूरा ज़ोर लगाने पर भी िच ड़या न पा सके। िच ड़या मर कर भी जैसे उड़ जा रह थी। सहसा उ ह ने दे खा, एक युवती कनारे क एक झोपड़ से िनकली, िच ड़या को बहत दे खकर साड़ को जाँघ तक चढ़ाया और पानी म घुस पड़ । एक ण म उसने िच ड़या पकड़ ली और मेहता को दखाती हई बोली -- पानी से िनकल जाओ बाबूजी, तु हार िच ड़या यह है । मेहता युवती क चपलता और साहस दे खकर मु ध हो गये। तुर त कनारे क ओर हाथ चलाये और दो िमनट म युवती के पास जा खड़े हए। युवती का रं ग था तो काला और वह भी गहरा , कपड़े बहत ह मैले और फूहड़ आभूषण के नाम पर केवल हाथ म दो-दो मोट चू ड़याँ , िसर के बाल उलझे अलग-अलग। मुख -मंडल का कोई भाग ऐसा नह ं , जसे सु दर या सुघड़ कहा जा सके ; ले कन उस ःव छ, िनमल जलवायु ने उसके कालेपन म ऐसा लाव य भर दया था और ूकृ ित क गोद म पलकर उसके अंग इतने सुडौल, सुग ठत और ःव छ द हो गये थे क यौवन का िचऽ खींचने के िलए उससे सु दर कोई प न िमलता। उसका सबल ःवाः य जैसे मेहता के मन म बल और तेज भर रहा था। मेहता ने उसे ध यवाद दे ते हए कहा -- तुम बड़े मौक़े से पहँ ु च गयीं , नह ं मुझे न जाने कतनी दर ू तैरना पड़ता। युवती ने ूस नता से कहा -- मने तु ह तैरत आते दे खा, तो दौड़ । िशकार खेलने आये ह गे ? ' हाँ , आये तो थे िशकार ह खेलने ; मगर दोपहर हो गया और यह िच ड़या िमली है । ' तदआ मारना चाहो , तो म उसका ठौर दखा दँ । ू रात को यहाँ रोज़ पानी पीने आता है । कभी -कभी दोपहर म भी आ जाता है । ' फर ज़रा सकुचाकर िसर झुकाये बोली -- उसक खाल हमदे नी पड़े गी। चलो मेरे ार पर। वहाँ पीपल क छाया है । यहाँ धूप मकब तक खड़े रहोगे। कपड़े भी तो गीले हो गये ह। मेहता ने उसक दे ह म िचपक हई गीली साड़ क ओर दे खकर कहा -- तु हारे कपड़े भी तो गीले ह। उसने लापरवाह से कहा -- ऊँह हमारा या, हम तो जंगल के ह। दन- दन भर धूप और पानी म खड़े रहते ह। तुम थोड़े ह रह सकते हो। लड़क कतनी समझदार है और बलकुल गँवार।' तुम खाल लेकर या करे गी? ' ' हमारे दादा बाज़ार म बेचते ह। यह तो हमारा काम है । ' ' ले कन दोपहर यहाँ काट, तो तुम खलाओगी हमारे घर म या? ' युवती ने लजाते हए कहा -- तु हारे खाने लायक़ या है । म के क रो टयाँ खाओ, जो धर ह। िच ड़ये का सालन पका दँ ग ी। तुम बताते जाना जैसे बनाना हो। थोड़ा-सा दध भी है । हमार गैया को एक बार तदए ने घेरा था। उसे सींग से भगाकर भाग आयी, तब से तदआ उससे डरता है । ' ले कन म अकेला नह ं हँ ू । मेरे साथ एक औरत भी है । ' ' तु हार घरवाली होगी? ' ' नह ं , घरवाली तो अभी नह ं है , जान-पहचान क है । ' ' तो म दौड़कर उनको बुला लाती हँ ू । तुम चलकर छाँह मबैठो। ' ' नह ं - नह ं , म बुला लाता हँ ू । ' ' तुम थक गये होगे। शहर का रहै या जंगल म काहे आते ह गे। हम तो जंगली आदमी ह। कनारे ह तो खड़ ह गी। ' जब तक मेहता कुछ बोल, वह हवा हो गयी। मेहता ऊपर चढ़कर पीपल क छाँह म बैठे। इस ःव छ द जीवन से उनके मन म अनुराग उ प न हआ। सामने क पवतमाला दशन -त व क भाँित अग य और अ य त फै हई , मानो ान का वःतार कर रह हो, मानो आ मा उस को, उस अग यता को, उसके ू य वराट छोटा-सा म दर था, जो उस अग यता म ब ान को, उस ूकाश प म दे ख रह हो। दर ू के एक बहत ऊँचे िशखर पर एक क भाँित ऊँचा, पर खोया हआ -सा खड़ा था, मानो वहा तक पर मारकर प ी वौाम लेना चाहता है और कह ं ःथान नह ं पाता। मेहता इ ह ं वचार म डब हए थे क युवती िमस मालती को साथ िलये आ पहँ ु ची , एक वन-पुंप क भाँित धूप म खली हई , दसर गमले के फूल क भाँित धूप ममुरझायी और िनजी व। मालती ने बे दली के साथ कहा -- पीपल क छाँह बहत अ छ लग रह ह या ? और यहाँ भूख के मारे ूाण िनकले जा रहे ह। युवती दो बड़े - बड़े मटके उठा लायी और बोली -- तुम जब तक यह ं बैठो, म अभी दौड़कर पानी लाती हँू , फर चू हा जला दँ ग ी ; और मेरे हाथ का खाओ, तो म एक छन म बो टयाँ सक दँ ग ी , नह ं , अपने आप सक लेना। हाँ , गेह ू ँ का आटा मेरे घर म नह ं है और यहाँ कह ं कोई दकान भी नह ं है क ला दँ । ू मालती को मेहता पर बोध आ रहा था। बोली -- तुम यहा य आकर पड़ रहे ? मेहता ने िचढ़ाते हए कहा -- एक दन ज़रा इस जीवन का आन द भी तो उठाओ। दे खो, म के क रो टय म कतना ःवाद है । ' मुझसे म के क रो टयाँ खायी ह न जायँगी, और कसी तरह िनगल भी जाऊँ तो हज़म न ह गी। तु हारे साथ आकर म बहत पछता रह हँ ू । राःते - भर दौड़ा के मार डाला और अब यहाँ लाकर पटक दया! ' मेहता ने कपड़े उतार दये थे और केवल एक नीला जाँिघया पहने बैठे हए थे। युवती को मटके ले जाते दे खा , तो उसके हाथ से मटके छ न िलय और कुएँ पर पानी भरने चले। दशन के गहरे अ ययन म भी उ ह ने अपने ःवाः य क र ा क थी और दोन मटके लेकर चलते हए उनक मांसल भुजाएँ और चौड़ छाती और मछलीदार जाँघ कसी यूनानी ूितमा के सुग ठत अंग क भाँित उनके पु षाथ का प रचय दे रह थीं। युवती उ ह पानी खींचते हए अनुराग भर आँख से दे ख रह थी। वह अब उसक दया के पाऽ नह ं , ौ ा के पाऽ हो गये थे। कुआँ बहत गहरा था, कोई साठ हाथ, मटके भार थे और मेहता कसरत का अ यास करते रहने पर भी एक मटका खींचते - खींचते िशिथल हो गये। युवती ने दौड़कर उनके हाथ से रःसी छ न ली और बोली -- तुमसे नखंचेगा। तुम जाकर खाट पर बैठो, म खींचे लेती हँ ू । मेहता अपने पु ष व का यह अपमान न सह सके। रःसी उसके हाथ से फर ले ली और ज़ोर मारकर एक हाथ म दोन मटके िलए आकर झ पड़ के ण म दसरा मटका भी खींच िलया और दोन ार पर खड़े हो गये। युवती ने चटपट आग जलायी, लालसर से उसक बो टयाँ बनायीं और चू हे मआग जलाकर मांस चढ़ा दया और चू हे के के पंख झुलस डाले। छर दसर ऐले पर कढ़ाई मदध उबालने लगी। और मालती भ हचढ़ाये , खाट पर ख न-मन पड़ इस तरह यह द ँय दे ख रह थी मानो उसके आपरे शन क तैयार हो रह हो। मेहता झोपड़ के युवती के ग ह-कौशल को अनुर युवती ने मीठ ार पर खड़े होकर, नेऽ से दे खते हए बोले -- मुझे भी तो कोई काम बताओ, म या क ँ ? झड़क के साथ कहा -- तु हकुछ नह ं करना है , जाकर बाई के पास बैठो, बेचार बहत भूखी है । दध जाता है , उसे पला दे ना। उसने एक घड़े से आटा िनकाला और गूँधने लगी। गरम हआ मेहता उसके अंग का वलास दे खते रहे । युवती भी रह-रहकर उ हकन खय से दे खकर अपना काम करन लगती थी। मालती ने पुकारा -- तुम वहा या खड़े हो? मेरे िसर मज़ोर का दद हो रहा है । आधा िसर ऐसा फटा पड़ता है , जैसे िगर जायगा। मेहता ने आकर कहा -- मालूम होता है , धूप लग गयी है । ' म या जानती थी, तुम मुझे मार डालने के िलए यहाँ ला रहे हो। ' ' तु हारे साथ कोई दवा भी तो नह ं है ? ' ' या म कसी मर ज़ को दे खने आ रह थी, जो दवा लेकर चलती? मेरा एक दवाओं का ब स है , वह सेमर म है । उफ़! िसर फटा जाता है ! ' मेहता ने उसके िसर क ओर ज़मीन पर बैठकर धीरे - धीरे उसका िसर सहलाना श कया। मालती ने आँख ब द कर लीं। युवती हाथ म आटा भरे , िसर के बाल बखेरे , आँख धुएँ से लाल और सजल, सार दे ह पसीने म तर, जससे उसका उभरा हआ व साफ़ झलक रहा था , आकर खड़ हो गयी और मालती को आँख ब द कये पड़ दे खकर बोली -- बाई को या हो गया है ? मेहता बोले -- िसर म बड़ा दद है । ' पूरे िसर म है क आधे म? ' ' आधे म बतलाती ह। ' ' दा ओर है , क बा ' बा ओर। ' ओर? ' ' म अभी दौड़ के एक दवा लाती हँ ू । िघसकर लगाते ह अ छा हो जायगा। ' ' तुम इस धूप म कहाँ जाओगी? ' युवती ने सुना ह नह ं। वेग से एक ओर जाकर पहा ड़य म िछप गयी। कोई आधा घंटे बाद मेहता ने उस ऊँची पहाड़ पर चढ़ते दे खा। दर ू से बलकुल गु ड़या -सी लग रह थी। मन म सोचा -- इस जंगली छोकर म सेवा का कतना भाव और कतना यावहा रक ान है । लू और धूप म आसमान पर चढ़ चली जा रह है । मालती ने आँख खोलकर दे खा -- कहाँ गयी वह कलूट । ग़ज़ब क काली है , जैसे आबनूस का कु दा हो। इसे भेज दो, राय साहब से कह आये , कार यहाँ भेज द। इस त पश ममेरा दम िनकल जायगा। ' कोई दवा लेने गयी है । कहती है , उससे आधा-सीसी का दद बहत ज द आराम हो जाता है ! ' ' इनक दवाएँ इ ह ं को फ़ायदा करती ह, मुझे न करगी। तुम तो इस छोकर पर ल ट ू हो गये हो। कतन िछछोरे हो। जैसी ह वैसे फ़ रँते ! ' मेहता को कट ु स य कहने म संकोच न होता था। ' कुछ बाततो उसम ऐसी ह क अगर तुमम होतीं , तोतुम सचमुच दे वी हो जातीं। ' ' उसक ख़ू बयाँ उसे मुबारक, मुझे दे वी बनने क इ छा नह ं है । ' ' तु हार इ छा हो, तो म जाकर कार लाऊँ , य प कार यहाँ आ भी सकेगी, म नह ं कह सकता। ' ' उस कलूट को य नह ं भेज दे ते ? ' ' वह तो दवा लेने गयी है , फर भोजन पकायेगी। ' ' तो आज आप उसके मेहमान ह। शायद रात को भी यह ं रहने का वचार होगा। रात को िशकार भी तो अ छा िमलते ह। ' मेहता ने इस आ ेप से िचढ़कर कहा -- इस युवती के ूित मेरे मन म जो ूेम और ौ ा है , वह ऐसी ह क अगर म उसक ओर वासना से दे खूँ तो आँख फूट जायँ। म अपने कसी घिन िमऽ के िलए भी इस धूप और लू म उस ऊँची पहाड़ पर न जाता। और हम केवल घड़ -भर के मेहमान ह, यह वह जानती है । वह कसी ग़र ब औरत के िलए भी इसी त परता से दौड़ जायगी। म व -ब धु व और व -ूेम पर केवल लेख िलख सकता हँू , केवल भाषण दे सकता हँू ; वह उस ूेम और याग का यवहार कर सकती है । कहने से करना कह ं क ठन है । इसे तुम भी जानती हो। मालती ने उपहास भाव से कहा -- बस-बस, वह दे वी है । म मान गयी। उसके व भार पन है , दे वी होने के िलए और म उभार है , िनत ब म या चा हए। मेहता ितलिमला उठे । तुर त उठे , और कपड़े पहने जो सूख गये थे , ब दक़ उठायी और चलने को तैयार हए। मालती ने फुंकार मार -- तुम नह ं जा सकते , मुझे अकेली छोड़कर। ' तब कौन जायगा? ' ' वह तु हार दे वी। ' मेहता हतबु -से खड़े थे। नार पु ष पर कतनी आसानी से वजय पा सकती है , इसका आज उ ह जीवन म पहला अनुभव हआ। वह दौड़ हाँफती चली आ रह थी। वह कलूट युवती , हाथ म एक झाड़ िलये हए। समीप जाकर मेहता को कह ं जाने को तैयार दे खकर बोली -- म वह जड़ खोज लायी। अभी िघसकर लगाती हँू ; ले कन तुम कहाँ जा रहे हो। मांस तो पक गया होगा, म रो टयाँ सक दे ती हँ ू । दो -एक खा लेना। बाई दध पी लेगी। ठं डा हो जाय , तो चले जाना। उसने िनःसंकोच भाव से मेहता के अचकन क बटन खोल द ं। मेहता अपने को बहत रोके हए थे। जी होता था , इस गँवा रन के चरण को चूम ल। मालती ने कहा -- अपनी दवाई रहने दो। नद के कनारे , बरगद के नीचे हमार मोटरकार खड़ है । वहा और लोग ह गे। उनसे कहना, कार यहाँ लाय। दौड़ हई जा। युवती ने द न नेऽ से मेहता को दे खा। इतनी मेहनत से बूट लायी, उसका यह अनादर। इस गँवा रन क दवा इ ह नह ं जँची, तो न सह , उसका मन रखने को ह ज़रा-सी लगवा लेतीं , तो या होता। उसने बूट ज़मीन पर रखकर पूछा -- तब तक तो चू हा ठं डा हो जायगा बाईजी। कहो तो रोि◌टयाँ सककर रख दँ । ू बाबूजी खाना खा ल , तुम दध पी लो और दोन जने आराम करो। तब तक म मोटरवाले को बुला लाऊँगी। वह झोपड़ म गयी, बुझी हई आग फर जलायी। दे खा तो मांस उबल गया था। कुछ जल भी गया था। ज द -ज द रो टयाँ सक , दध गम था , उसे ठं डा कया और एक कटोरे म मालती के पास लायी। मालती ने कटोरे के भपन पर मुँह बनाया; ले कन दध याग न सक । मेहता झोपड़ के ार पर बैठकर एक थाली म मांस और रो टयाँ खाने लगे। युवती खड़ पंखा झल रह थी। मालती ने युवती से कहा -- उ ह खाने दे । कह ं भागे नह ं जाते ह। तजाकर गाड़ ला। युवती ने मालती क ओर एक बार सवाल क आँख से दे खा, यह आशय या चाहती ह। इनका या है ? उसे मालती के चेहरे पर रोिगय क -सी नॆता और कृ ित ता और याचना न दखायी द । उसक जगह अिभमान और ूमाद क झलक थी। गँवा रन मनोभाव के पहचानने म चतुर थी। बोली -- म कसी क ल ड नह ं हँ ू बाईजी ! तुम बड़ हो, अपने घर क बड़ हो। म तुमसे कुछ माँगने तो नह ं जाती। म गाड़ लेने न जाऊँगी। मालती ने डाँटा -- अ छा, तूने गुःताख़ी पर कमर बाँधी! बता तू कसके इलाक़े म रहती है ? ' यह राय साहब का इलाक़ा है । ' ' तो तुझे उ ह ं राय साहब के हाथ हं टर से पटवाऊँगी। ' ' मुझे पटवाने से तु ह सुख िमले तो पटवा लेना बाईजी! कोई रानी-महारानी थोड़ हँ ू क लःकर भेजनी पड़े गी। ' मेहता ने दो-चार कौर िनगले थे क मालती क यह बातसुनीं। कौर कंठ म अटक गया। ज द से हाथ धोया और बोले -- वह नह ं जायगी। म जा रहा हँ ू । मालती भी खड़ हो गयी -- उसे जाना पड़े गा। मेहता ने अँमेज़ी म कहा -- उसका अपमान करके तुम अपना स मान बढ़ा नह ं रह हो मालती! मालती ने फटकार बतायी -- ऐसी ह ल डयाँ मद को पस द आती ह, जनम और कोई गुण हो या न हो, उनक टहल दौड़-दौड़कर ूस न मन से कर और अपना भा य सराह क इस पु ष ने मुझसे यह काम करने को तो कहा। वह दे वयाँ ह, श याँ ह, वभूितयाँ ह। म समझती थी, वह पु ष व तुमम कम-से - कम नह ं है ; ले कन अ दर से , संःकार से , तुम भी वह बबर हो। मेहता मनो व ान के प डत थे। मालती के मनोरहःय को समझ रहे थे। ईंया का ऐसा अनोखा उदाहरण उ ह कभी न िमला था। उस रमणी म, जो इतनी मृद - ु ःवभाव, इतनी उदार, इतनी ूस नमुख थी, ईंया क ऐसी ूचंड वाला! बोले -- कुछ भी कहो, म उसे न जाने दँ ग ा। उसक सेवाओं और क पओं का यह पुरःकार दे कर म अपनी नज़र म नीच नह ं बन सकता। मेहता के ःवर म कुछ ऐसा तेज था क मालती धीरे से उठ और चलने को तैयार हो गयी। उसन जलकर कहा -- अ छा, तो म ह जाती हँू , तुम उसके चरण क पूजा करके पीछे आना। मालती दो-तीन क़दम चली गयी, तो मेहता ने युवती से कहा -- अब मुझे आ ा दो बहन; तु हारा यह नेह , तु हार िनःःवाथ सेवा हमेशा याद रहे गी। युवती ने दोन हाथ से , सजलनेऽ होकर उ ह ूणाम कया और झोपड़ के अ दर चली गयी। दसर टोली राय साहब और ख ना क थी। राय साहब तो अपने उसी रे शमी कुरते और रे शमी चादर म थे। मगर ख ना ने िशकार सूट डाटा था, जो शायद आज ह के िलए बनवाया गया था; य क ख ना को असािमय के िशकार से इतनी फ़ुरसत कहाँ थी क जानवर का िशकार करते। ख ना ठं गने , इकहरे , पवान आदमी थे ; गेह ु ँ आ रं ग , बड़ -बड़ आँख , मुँह पर चेचक के दाग़; बात-चीत म बड़े कुशल। कुछ दर ू चलने के बाद ख ना ने िमःटर मेहता का ज़कर छे ड़ दया जो कल से ह उनके म ःतंक म राह ु क मालूम होता भाँित समाये हए थे। बोले -- यह मेहता भी कुछ अजीब आदमी है । मुझे तो कुछ बना हआ है । राय साहब मेहता क इएज़त करते थे और उ ह स चा और िनंकपट आदमी समझते थे ; पर ख ना स लेन -दे न का यवहार था, कुछ ःवभाव से शा त- ूय भी थे , वरोध न कर सके। बोले -- म तो उ ह केवल मनोरं जन क वःतु समझता हँ ू । कभी उनसे बहस नह ं करता। और करना भी चाहँ ू तो उतनी व ाकहाँ से लाऊँ। जसने जीवन के ेऽ म कभी क़दम ह नह ं रखा, वह अगर जीवन के वषय म कोई नया िस ा त अलापता ह तो मुझे उस पर हँ सी आती है । मज़े से एक हज़ार माहवार फटकारते ह, न जो जाँता, न कोई िच ता न बाधा, वह दशन न बघार, तो कौन बघारे ? आप िन बनाने का ःव न दे खते ह। ऐसे आदमी स न रहकर जीवन को स पूण या बहस क जाय। ' मने सुना च रऽ का अ छा नह ं है । ' ' बे फ़ब म च रऽ अ छा रह ह कैसे सकता है । समाज म रहो और समाज के कत य और मयादाओं का पालन करो तब पता चले ! ' ' मालती न जान या दे खकर उन पर ल ट ू हई जाती है । ' ' म समझता हँू , वह केवल तु ह जला रह है । ' ' मुझे वह या जलायगी। बेचार । म उ ह खलौने से एयादा नह ं समझता। ' ' यह तो न कहो िमःटर ख ना, िमस मालती पर जान तो दे ते हो तुम। ' ' य तो म आपको भी यह इलज़ाम दे सकता हँ ू । ' ' म सचमुच खलौना समझता हँ ू । आप उ ह ूितमा बनाये हए ह। ' ख ना ने ज़ोर से क़हक़हा मारा, हालाँ क हँ सी क कोई बात न थी! ' अगर एक लोटा जल चढ़ा दे ने स वरदान िमल जाय, तो या बुरा है । ' अबक राय साहब ने ज़ोर से क़हक़हा मारा, जसका कोई ूयोजन न था। ' तब आपने उस दे वी को समझा ह नह ं। आप जतनी ह उसक पूजा करगे , उतना ह वह आप स दर ू भागेगी। जतना ह दर ू भािगयेगा , उतना ह आपक ओर दौड़े गी। ' ' तब तो उ ह आपक ओर दौड़ना चा हए था। ' ' मेर ओर! म उस रिसक-समाज से बलकुल बाहर हँ ू िमःटर ख ना , सच कहता हँ ू । मुझम जतनी बु , जतना बल ह वह इस इलाक़े के ूब ध म ह ख़च हो जाता है । घर के जतने ूाणी ह, सभी अपनी- अपनी धुन म मःत; कोई उपासना म, कोई वषय-वासना म। कोऊ काह ू म मगन , कोऊ काह ू म मगन। और इन सब अजगर को भआय दे ना मेरा काम ह कत य है । मेरे बहत से ता लुक़ेदार भाई भोग - वलास करते ह, यह सब म जानता हँ ू । मगर वह लोग घर फूँककर तमाशा दे खते ह। क़रज़ का बोझ िसर पर लदा जा रहा ह रोज़ डिमयाँ हो रह ह। जससे लेते ह, उसे दे ना नह ं जानते , चार तरफ़ बदनाम। म तो ऐसी ज़ दगी से मर जाना अ छा समझता हँ ू । मालूम नह ं , कस संःकार से मेर आ मा म ज़रा-सी जान बाक़ रह गयी, जो मुझे दे श और समाज के ब धन म बाँधे हए है । स यामह -आ दोलन िछड़ा। मेरे सारे भाई शराब-क़बाब म मःत थे। म अपने को न रोक सका। जेल गया और लाख पए क ज़ेरबार उठाई और अभी तक उसका तावान दे रहा हँ ू । मुझे उसका पछतावा नह ं है । बलकुल नह ं। मुझे उसका गव है । म उस आदमी को आदमी नह ं समझता, जो दे श और समाज क भलाई के िलए उ ोग न करे और बिलदान न करे । मुझे क तृि या अ छा लगता है क िनज व कसान का र के साधन जुटाऊँ ; मगर क उसका मोह चूसूँ और अपने प रवारवाल क वासनाओ या? जस यवःथा म पला और जया, उससे घ णा होने पर भी याग नह ं सकता और उसी चरखे म रात- दन पड़ा रहता हँ ू क कसी तरह इएज़त -आब बची रहे , और आ मा क ह या न होने पाये। ए◌ेसा आदमी िमस मालती या, कसी भी िमस के पीछ नह ं पड़ सकता, और पड़े तो उसका सवनाश ह सम झये। हाँ , थोड़ा-सा मनोरं जन कर लेना दसर बात है । िमःटर ख ना भी साहसी आदमी थे , संमाम म आगे बढ़नेवाले। दो बार जेल हो आये थे। कसी से दबनान जानते थे। ख र न पहनते थे और ६ांस क शराब पीते थे। अवसर पड़ने पर बड़ -बड़ तकलीफ़ झेल तक नह ं , और ए. सकते थे। जेल म शराब छई लास म रहकर भी सी. लास क रो टयाँ खाते रहे , हालाँ क, उ ह हर तरह का आराम िमल सकता था; मगर रण- ेऽ म जानेवाला रथ भी तो बना तेल के नह ं चल सकता। उनके जीवन म थोड़ -सी रिसकता ला ज़मा थी। बोले -- आप सं यासी बन सकते ह, म तो नह ं बन सकता। म तो समझता हँू , जो भोगी नह ं ह वह संमाम म भी पूरे उ साह से नह ं जा सकता। जो रमणी से ूेम नह ं कर सकता, उसके दे श -ूेम म मुझे व ास नह ं। राय साहब मुःकराये -- आप मुझी पर आवाज़ कसने लगे। ' आवाज़ नह ं ह त व क बात है । ' ' शायद हो। ' ' आप अपने दल के अ दर पैठकर दे खए तो पता चले। ' ' मने तो पैठकर दे खा ह और म आपको व ास दलाता हँू , वहाँ और चाहे जतनी बुराइयाँ ह , वषय क लालसा नह ं है । ' ' तब मुझे आपके ऊपर दया आती है । आप जो इतने दखी और िनराश और िच तत ह , इसका एकमाऽ कारण आपका िनमह है । म तो यह नाटक खेलकर रहँ ू गा , चाहे दःखा त ह य न हो ! वह मुझसे मज़ाक़ करती ह दखाती है क मुझे तेर परवाह नह ं है ; ले कन म ह मत हारनेवाला मनुंय नह ं हँ ू । म अब तक उसका िमज़ाज नह ं समझ पाया। कहाँ िनशाना ठ क बैठेगा, इसका िन य न कर सका। ' ' ले कन वह कुंजी आपको शायद ह िमले। मेहता शायद आपसे बाज़ी मार ले जायँ। ' एक हरन कई हरिनय के साथ चर रहा था, बड़े सींग वाला, बलकुल काला। राय साहब ने िनशाना बाँधा। ख ना ने रोका -- य ह या करते हो यार? बेचारा चर रहा ह चरने दो। धूप तेज़ हो गयी ह आइए कह बैठ जायँ। आप से कुछ बात करनी ह। राय साहब ने ब दक़ चलायी ; मगर हरन भाग गया। बोले -- एक िशकार िमला भी तो िनशाना ख़ाली गया। ' एक ह या से बचे। ' ' आपके इलाक़े म ऊख होती है ? ' ' बड़ कसरत से। ' ' तो फर य न हमारे शुगर िमल म शािमल हो जाइए। हःसे धड़ाधड़ बक रहे ह। आप एयादा नह एक हज़ार हःसे ख़र द ल? ' ' ग़ज़ब कया, म इतन पए कहाँ से लाऊँगा? ' ' इतने नामी इलाक़ेदार और आपको पय क कमी! कुछ पचास हज़ार ह तो होते ह। उनम भी अभी २५ फ़ सद ह दे ना है । ' ' नह ं भाई साहब, मेरे पास इस वईत बलकुल ' पए नह ं ह। ' पए जतने चाह, मुझसे ली जए। बक आपका है । हाँ , अभी आपने अपनी ज़ दगी इं ँयोड न करायी होगी। मेर क पनी म एक अ छ -सी पािलसी ली जए। सौ-दो सौ पए तो आप बड़ आसानी से हर मह न दे सकते ह और इक ठ रक़म िमल जायगी -- चालीस-पचास हज़ार। लड़क के िलए इससे अ छा ूब ध आप नह ं कर सकते। हमार िनयमावली दे खए। हम पूण सहका रता के िस ा त पर काम करते ह। दझतर और कमचा रय के ख़च के िसवा नफ़े क एक पाई भी कसी क जेब म नह ं जाती। आपको आ य होगा क इस नीित से क पनी चल कैसे रह है । और मेर सलाह से थोड़ा-सा ःपेकुलेशन का काम भी श करद जए। यह जो आज सैकड़ करोड़पित बने हए ह , सब इसी ःपेकुलेशन से बने ह। ई, श कर, गेह ू ँ , रबर कसी जंस का स टा क जए। िमनट म लाख का वारा- यारा होता है । काम ज़रा अटपटा है । बहत स लोग ग चा खा जाते ह, ले कन वह , जो अनाड़ ह। आप जैसे अनुभवी, सुिश त और दर ू दे श लोग के िलए इससे एयादा नफ़े का काम ह नह ं। बाज़ार का चढ़ाव-उतार कोई आ कःमक घटना नह ं। इसका भी व नान है । एक बार उसे ग़ौर से दे ख ली जए, फर या मजाल क धोखा हो जाय। ' राय साहब क पिनय पर अ व ास करते थे , दो-एक बार इसका उ ह कड़वा अनुभव हो भी चुका था, ले कन िमःटर ख ना को उ ह ने अपनी आँख से बढ़ते दे खा था और उनक कायद ता के क़ायल हो गये थे। अभी दस साल पहले जो य बक म लक था, वह केवल अपने अ यवसाय, पु षाथ और ूितभा से शहर म पुजता है । उसक सलाह क उपे ा न क जा सकती थी। इस वषय म अगर ख ना उनके पथ-ूदशक हो जायँ , तो उ ह बहत कुछ कामयाबी हो सकती है । ए◌ेसा अवसर य छोड़ा जाय। तरह -तरह के ू करत रहे । सहसा एक दे हाती एक बड़ -सी टोकर म कुछ जड़, कुछ प याँ , कुछ फल िलये जाता नज़र आया। ख ना ने पूछा -- अरे , या बेचता है ? दे हाती सकपका गया। डरा, कह ं बेगार म न पकड़ जाय। बोला -- कुछ तो नह ं मािलक! यह घास-पात है । ' या करे गा इनका? ' ' बेचूँगा मािलक! जड़ -बूट है । ' ' कौन-कौन सी जड़ बूट ह बता? ' दे हाती ने अपना औषधालय खोलकर दखलाया। मामूली चीज़ थीं जो जंगल के आदमी उखाड़कर ले जाते ह और शहर म अ ार के हाथ दो-चार आने म बेच आते ह। जैसे मकोय, कंघी, सहदे ईया, कुकर धे , धतूरे के बीज, मदार के फूल, करजे , घमची आ द। हर-एक चीज़ दखाता था और रटे हए श द म उसके गुण भी बयान करता जाता था। यह मकोय है सरकार ! ताप हो, म दा न हो, ित ली हो, धड़कन हो, शूल हो, खाँसी हो, एक खोराक म आराम हो जाता है । यह धतूरे के बीज ह मािलक, ग ठया हो, बाई हो ...। ख ना ने दाम पूछा -- उसने आठ आने कहे । ख ना ने एक पया फ क दया और उसे पड़ाव तक रख आने का ह ु म दया। ग़र ब ने मुँह -माँगा दाम ह नह ं पाया, उसका दग ना पाया। आशीवाद दे ता चला गया। राय साहब ने पूछा -- आप यह घास-पात लेकर या करगे ? ख ना न मुःकराकर कहा -- इनक अश फ़ याँ बनाऊँगा। म क िमयागर हँ ू । यह आपको शायद नह ं मालूम। ' तो यार, वह म ऽ हम िसखा दो। ' ' हाँ - हाँ , शौक़ से। मेर शािगद क जए। पहले सवा सेर ल ड ू लाकर चढ़ाइए , तब बताऊँगा। बात यह है क मेरा तरह-तरह के आदिमय से साबक़ा पड़ता है । कुछ ए◌ेसे लोग भी आते ह, जो जड़ -बूि◌टय पर जान दे ते ह। उनको इतना मालूम हो जाय क यह कसी फ़क र क द हई बूट ह फर आपक ख़ुशामद करगे , नाक रगड़गे , और आप वह चीज़ उ ह दे द, तो हमेशा के िलए आपके ऋणी हो जायँगे। एक दस-बीस बु ओ पर एहसान का नमदा कसा जा सके , तो पए म अगर या बुरा है । ज़रा से एहसान से बड़े - बड़े काम िनकल जाते ह। राय साहब ने कुतूहल से पूछा -- मगर इन बू टय के गुण आपको याद कैसे रहगे ? ख ना ने क़हक़हा मारा -- आप भी राय साहब! बड़े मज़े क बात करते ह। जस बूट म जो गुण चाहे बता द जए, वह आपक िलयाक़त पर मुनहसर है । सेहत तो पए म आठ आने व ास से होती है । आप जो इन बड़े - बड़े अफ़सर को दे खते ह, और इन ल बी पूँछवाले व ान को, और इन रईस को, ये सब अ ध व ासी होते ह। म तो वनःपित-शा के ूोफ़ेसर को जानता हँू , जो कुकर धे का नाम भी नहजानते। इन व ान का मज़ाक़ तो हमारे ःवामीजी ख़ूब उड़ाते ह। आपको तो कभी उनके दशन न हए ह गे। अबक आप आयगे , तो उनसे िमलाऊँगा। जब से मेरे बग़ीचे म ठहरे ह, रात- दन लोग का ताँता लगा रहता है । माया तो उ ह छ ू भी नह ं गयी। केवल एक बार दध पीते ह। ऐसा व ान महा मा मन आज तक नह ं दे खा। न जाने कतने वष; हमालय पर तप करते रहे । पूरे िस अवँय द पु ष ह। आप उनस ा ली जए। मुझे व ास ह आपक यह सार क ठनाइयाँ छम तर हो जायँगी। आपको दे खते ह आपका भूत -भ वंय सब कह सुनायगे। ऐसे ूस नमुख ह क दे खते ह मन खल उठता है । ता जुब तो यह है क ख़ुद इतने बड़े महा मा ह; मगर सं यास और सबको ढ ग कहते ह, पाखंड कहते ह, याग िम दर और मठ, स ूदाय और प थ, इन ढ़य के ब धन को तोड़ो और मनुंय बनो, दे वता बनने का ख़याल छोड़ो। दे वता बनकर तुम मनुंय न रहोगे। राय साहब के मन म शंका हई। महा माओं म उ ह भी वह व ास था, जो ूभुता-वाल म आम तौर पर होता है । दखी ूाणी को आ मिच तन म जो शा त िमलती है । उसके िलए वह भी लालाियत रहते थे। जब आिथक क ठनाइय से िनराश हो जाते , मन म आता, संसार से मुँह मोड़कर एका त म जा बैठ और मो क िच ता कर। संसार के ब धन को वह भी साधारण मनुंय क भाँित आ मो नित के माग क बाधाएँ समझते थे और इनसे दर ू हो जाना ह उनके जीवन का भी आदश था; ले कन सं यास और याग के बना ब धन को तोड़ने का और ' ले कन जब वह सं यास को ढ ग कहते ह, तो ख़ुद या उपाय है ? य सं यास िलया है ? ' ' उ ह ने सं यास कब िलया है साहब, वह तो कहते ह -- आदमी को अ त तक काम करते रहना चा हए। वचार-ःवात य उनके उपदे श का त व है । ' ' मेर समझ म कुछ नह ं आ रहा है । वचार-ःवात य का आशय या है ? ' ' समझ म तो मेरे भी कुछ नह ं आता, अबक आइए, तो उनसे बात ह । वह ूेम को जीवन का स य कहते ह। और इसक ऐसी सु दर या या करते ह क मन मु ध हो जाता है । ' ' िमस मालती को उनसे िमलाया या नह ं ? ' ' आप भी द लगी करते ह। मालती को भला इनस या िमलता । । । ' वा य पूरा न हआ था क वह सामने झाड़ म सरसराहट क आवाज़ सुनकर च क पड़े और ूाण-र ा क ूेरणा से राय साहब के पीछ आ गये। झाड़ म से एक तदआ िनकला और म द गित से सामने क ओर चला। राय साहब ने ब दक़ उठायी और िनशाना बाँधना चाहते थे क ख ना ने कहा -- यह या करते ह आप? उवाहमउवाह उसे छे ड़ रहे ह। कह ं लौट पड़े तो? ' लौट या पड़े गा, वह ं ढे र हो जायगा। ' ' तो मुझे उस ट ले पर चढ़ जाने द जए। म िशकार का ऐसा शौक़ न नह ं हँ ू । ' ' तब या िशकार खेलने चले थे ? ' ' शामत और या। ' राय साहब ने ब दक़ नीचे कर ली। ' बड़ा अ छा िशकार िनकल गया। ए◌ेसे अवसर कम िमलते ह। ' ' म तो अब यहाँ नह ं ठहर सकता। ख़तरनाक जगह है । ' ' एकाध िशकार तो मार लेने द जए। ख़ाली हाथ लौटते शम आती है । ' ' आप मुझे कृ पा करके कार के पास पहँ ु चा द जए , फर चाहे तदए का िशकार क जए या चीते का। ' ' आप बड़े डरपोक ह िमःटर ख ना, सच। '' यथ म अपनी जान ख़तरे म डालना बहादर ु नह ं है । ' ' अ छा तो आप ख़ुशी से लौट सकते ह। ' ' अकेला? ' ' राःता बलकुल साफ़ है । ' ' जी नह ं। आपको मेरे साथ चलना पड़े गा। ' राय साहब ने बहत समझाया ; मगर ख ना ने एक न मानी। मारे भय के उनका चेहरा पीला पड़ गया था। उस वईत अगर झाड़ म से एक िगलहर भी िनकल आती, तो वह चीख़ मारकर िगर पड़ते। बोट -बोट काँप रह थी। पसीने से तर हो गये थे ! राय साहब को लाचार होकर उनके साथ लौटना पड़ा। जब दोन आदमी बड़ दर ू िनकल आये , तो ख ना के होश ठकाने आये। बोले -- ख़तरे से नह ं डरता; ले कन ख़तर के मुँह म उँ गली डालना हमाक़त है । ' अजी जाओ भी। ज़रा-सा तदआ दे ख िलया , तो जान िनकल गयी। ' ' म िशकार खेलना उस ज़माने का संःकार समझता हँू , जब आदमी पशु था। तब से संःकृ ित बहत आग बढ़ गयी है । ' ' म िमस मालती से आपक क़लई खोलूँगा। ' ' म अ हं सावाद होना ल जा क बात नह ं समझता। ' ' अ छा, तो यह आपका अ हं सावाद था। शाबाश! ' ख ना ने गव से कहा -- जी हाँ , यह मेरा अ हं सावाद था। आप ब और शंकर के नाम पर गव करते ह और पशुओं क ह या करते ह, ल जा आपको आनी चा हए, न क मुझे। कुछ दर ू दोन फर चुपचाप चलते रहे । तब ख ना बोले -- तो आप कब तक आयँगे ? म चाहता हँू , आप पािलसी का फ़ाम आज ह भर द और श कर के हःस का भी। मेरे पास दोन फ़ाम भी मौजूद ह। राय साहब ने िच तत ःवर म कहा -- ज़रा सोच लेने द जए। ' इसम सोचने क ज़ रत नह ं। ' तीसर टोली िमरज़ा खुश द और िमःटर तंखा क थी। िमरज़ा खुश द के िलए भूत और भ वंय सादे काग़ज़ क भाँित था। वह वतमान म रहते थे। न भूत का पछतावा था, न भ वंय क िच ता। जो कुछ सामने आ जाता था, उसम जी-जान से लग जाते थे। िमऽ क मंडली म वह वनोद के पुतले थे। क िसल म उनस एयादा उ साह मे बर कोई न था। जस ू के पीछे पड़ जाते , िमिनःटर को ला दे ते। कसी के साथ -- रयायत करना नह ं जानते थे। बीच-बीच म प रहास भी करते जाते थे। उनके िलए आज जीवन था, कल का पता नह ं। ग़ुःसेवर भी ऐस थे क ताल ठ ककर सामने आ जाते थे। नॆता के सामने दं डवत करते थे ; ले कन जहाँ कसी ने शान दखायी और यह हाथ धोकर उसके पीछे पड़े । न अपना लेना याद रखते थे , न दसर का दे ना। शौक़ था शायर का और शराब का। औरत केवल मनोरं जन क वःतु थी। बहत दन हए दय का दवाला िनकाल चुके थे। िमःटर तंखा दाँव -पच के आदमी थे , सौदा पटाने म, मुआमला सुलझाने म, अड़ं गा लगाने म, बाल से तेल िनकालने म, गला दबाने म, दम झाड़कर िनकल जाने म बड़े िस हःत। क हये रे त म नाव चला द, प थर पर दब उगा द। ता लुक़ेदार को महाजन से क़रज़ दलाना , नयी क पिनयाँ खोलना, चुनाव के अवसर पर उ मेदवार खड़े करना, यह उनका यवसाय था। ख़ासकर चुनाव के समय उनक तक़द रचमकती थी। कसी पोढ़े उ मेद -वार को खड़ा करते , दलोज़ान से उसका काम करते और दस-बीस हज़ार बना लेते। जब काँमेस का ज़ोर था काँमेस के उ मेदवार के सहायक थे। जब सा ूदाियक दल का ज़ोर हआ क ओर से काम करने लगे ; मगर इस उलट-फेर के समथन के िलए उनके पास ऐसी , तो ह दसभा दलील थीं क कोई उँ गली न दखा सकता था। शहर के सभी रईस, सभी ह ु काम , सभी अमीर से उनका याराना था। दल म चाहे लोग उनक नीित पस द न कर; पर वह ःवभाव के इतने नॆ थे क कोई मुँह पर कुछ न कह सकता था। िमरज़ा खुश द न माल से माथे का पसीना प छकर कहा -- आज तो िशकार खेलने के लायक़ दन नह ं है । आज तो कोई मुशायरा होना चा हए था। वक ल ने समथन कया -- जी हाँ , वह ं बाग़ म। बड़ बहार रहे गी। थोड़ दे र के बाद िमःटर तंखा न मामले क बात छे ड़ । ' अबक चुनाव म बड़े - बड़े गुल खलगे। आपके िलए भी मु ँकल है । ' िमरज़ा वर मन से बोले -- अबक म खड़ा ह न हँ ू गा। तंखा ने पूछा -- करे । फ़ायदा ह या! मुझे अब इस डे माबेसी म भ य ? मुझत क बकबक कौन नह ं रह । ज़रा-सा काम और मह न क बहस। हाँ , जनता क आँख म धूल झ कने के िलए अ छा ःवाँग है । इससे तो कह ं अ छा है क एक गवनर रहे , चाहे वह ह दःतानी हो , या अँमेज़ , इससे बहस नह ं। एक इं जन जस गाड़ को बड़े मज़े से हज़ार मील खींच ले जा सकता ह उसे दस हज़ार आदमी िमलकर भी उतनी तेज़ी से नह ं खींच सकते। म तो यह सारा तमाशा दे खकर क िसल से बेज़ार हो गया हँ ू । मेरा बस चले , तो क िसल म आग लगा दँ । ू जसे हम डे माबेसी कहते ह, वह यवहार म बड़े - बड़ वह बाज़ी ले जाता ह जसके पास पए ह। यापा रय और ज़मींदार का रा य ह और कुछ नह ं। चुनाव म पए के ज़ोर से उसके िलए सभी सु वधाएँ तैयार हो जाती ह। बड़े - बड़े प डत, बड़े - बड़े मौलवी, बड़े - बड़े िलखने और बोलनेवाले , जो अपनी ज़बान और क़लम से प लक को जस तरफ़ चाह फेर द, सभी सोने के दे वता के पैर पर माथा रगड़ते ह। मने तो इरादा कर िलया ह अब एले शन के पास न जाऊँगा! मेरा ूोपेगंडा अब डे माबेसी के ख़लाफ़ होगा। ' िमरज़ा साहब ने कुरान क आयत से िस कया क पुराने ज़माने के बादशाह के आदश कतने ऊँचे थे। आज तो हम उसक तरफ़ ताक भी नह ं सकते। हमार आँख म चकाच ध आ जायगी। बादशाह को ख़ज़ान क एक कौड़ भी िनजी ख़च म लाने का अिधकार न था। वह कताब नक़ल करके , कपड़े सीकर, लड़क को पढ़ाकर अपना गुज़र करता था। िमरज़ा ने आदश मह प क एक ल बी सूची िगना द । कहाँ तो वह ूजा को पालनेवाला बादशाह, और कहाँ आजकल के म ऽी और िमिनःटर, पाँच , छः, सात, आठ हज़ार माहवार िमलना चा हए। यह लूट है या डे मा सी! हरन का एक झुंड चरता हआ नज़र आया। िमरज़ा के मुख पर िशकार का जोश चमक उठा। ब दक़ सँभाली और िनशाना मारा। एक काला -सा हरन िगर पड़ा। वह मारा! इस उ म विन के साथ िमरज़ा भी बेतहाशा दौड़े । बलकुल ब च क तरह उछलते , कूदते , तािलयाँ बजाते। समीप ह एक व पर एक आदमी लक ड़याँ काट रहा था। वह भी चट-पट व स उतरकर िमरज़ाजी के साथ दौड़ा। हरन क गदन म गोली लगी थी, उसके पैर म क पन हो रहा था और आँख पथरा गयी थीं। लकड़हारे ने हरन को क ण नेऽ से दे खकर कहा -- अ छा प ठा था, मन-भर स कम न होगा। हक िमरज़ा कुछ बोले नह ं। हरन क टँ गी हई ु म हो , तो म उठाकर पहँ ु चा दँ ? , द न वेदना से भर आँख दे ख रहे थे। अभी एक िमनट पहले इसम जीवन था। ज़रा-सा प ा भी खड़कता, तो कान खड़ करके चौक ड़याँ भरता हआ िनकल भागता। अपने िमऽ और बाल -ब च के साथ ई र क उगाई हई घासखा रहा था; मगर अब िनःप द पड़ा है । उसक खाल उधेड़ लो, उसक बो टयाँ कर डालो, उसका क़ मा बना डालो, उसे ख़बर न होगी। उसके ब ड़ामय जीवन म जो आकषण था, जो आन द था, वह या इस िनज व शव म है ? कतनी सु दर गठन थी, कतनी यार आँख , कतनी मनोहर छ व? उसक छलाँग दय म आन द क तरं ग पैदा कर दे ती थीं , उसक चौक ड़य के साथ हमारा मन भी चौक ड़याँ भरन लगता था। उसक ःफूित जीवन-सा बखेरती चलती थी, जैसे फूल सुग ध बखेरता है ; ले कन अब! उस दे खकर लािन होती है । लकड़हारे ने पूछा -- कहाँ पहँ ु चाना होगा मािलक ? मुझे भी दो-चार पैसे दे दे ना। िमरज़ाजी जैसे यान से चौक पड़े । बोले -- अ छा उठा ले। कहाँ चलेगा? ' जहाँ हक ु म हो मािलक। ' ' नह ं , जहाँ तेर इ छा हो, वहाँ ले जा। म तुझे दे ता हँ ू । ' लकड़हारे ने िमरज़ा क ओर कुतूहल से दे खा। कान पर व ास न आया। ' अरे नह ं मािलक, हज़ र ने िसकार कया ह तो हम कैसे खा ल। ' ' नह ं - नह ं म ख़ुशी से कहता हँू , तुम इसे ले जाओ। तु हारा घर यहाँ से कतनी दर ू है ? ' ' कोई आधा कोस होगा मािलक! ' ' तो म भी तु हारे साथ चलूँगा। दे खूँगा, तु हारे बाल-ब चे कैसे ख़ुश होते ह। ' ' ऐसे तो म न ले जाऊँगा सरकार! आप इतनी दर ू से आये , इस कड़ धूप म िसकार कया, म कैसे उठा ले जाऊँ ? ' उठा उठा, दे र न कर। मुझे मालूम हो गया तू भला आदमी है । ' लकड़हारे ने डरते - डरते और रह-रह कर िमरज़ाजी के मुख क ओर सशंक नेऽ से दे खते हए क कह ं बगड़ न जायँ , हरन को उठाया। सहसा उसने हरन को छोड़ दया और खड़ा होकर बोला -- म समझ गया मािलक, हज़ूर ने इसक हलाली नह क । िमरज़ाजी ने हँ सकर कहा -- बस-बस, तूने ख़ूब समझा। अब उठा ले और घर चल। िमरज़ाजी धम के इतने पाब द न थे। दस साल से उ ह ने नमाज़ न पढ़ थी। दो मह ने म एक दन ोत रख लेते थे। बलकुल िनराहार, िनजल; मगर लकड़हारे को इस ख़याल से जो स तोष हआ था क हरन अब इन लोग के िलए अखा हो गया ह उसे फ का न करना चाहते थे। लकड़हारे ने हलके मन से हरन को गरदन पर रख िलया और घर क ओर चला। तंखा अभी तक-तटःथ से वह ं पेड़ के नीचे खड़े थे। धूप म हरन के पास जाने का क को उ ट य उठाते। कुछ समझ म न आ रहा था क मुआमला या है ; ले कन जब लकड़हार दशा म जाते दे खा, तो आकर िमरज़ा से बोले -- आप उधर कहाँ जा रहे ह हज़रत! या राःता भूल गये ? िमरज़ा ने अपराधी भाव से मुःकराकर कहा -- मने िशकार इस ग़र ब आदमी को दे दया। अब ज़रा इसके घर चल रहा हँ ू । आप भी आइए न। तंखा ने िमरज़ा को कुतूहल क से दे खा और बोले -- आप अपने होश म ह या नह ं। ' कह नह ं सकता। मुझे ख़ुद नह ं मालूम। ' ' िशकार इस य दे दया? ' इसीिलए क उसे पाकर इसे जतनी ख़ुशी होगी, मुझे या आपको न होगी। ' तंखा खिसयाकर बोले -- जाइए! सोचा था, ख़ूब कबाब उड़ायगे , सो आपने सारा मज़ा कर करा कर दया। ख़ैर , राय साहब और मेहता कुछ न कुछ लायगे ह । कोई ग़म नह ं। म इस एले शन के बारे म कुछ अरज़ करना चाहता हँ ू । आप नह ं खड़ा होना चाहते न सह , आपक जैसी मरज़ी; ले कन आपको इसम या ता मुल है क जो लोग खड़े हो रहे ह, उनसे इसक अ छ क़ मत वसूल क जाय। म आपसे िसफ़ इतना चाहता हँ ू क आप कसी पर यह भेद न खुलने द क आप नह ं खड़े हो रहे ह। िसफ़ इतनी मेहरबानी क जए मेरे साथ।उवाजा जमाल ता हर इसी शहर से खड़े हो रहे ह। रईस के वोट सोलह आने उनक तरफ़ ह ह , ह ु काम भी उनके मददगार ह। फर भी पबिलक पर आपका जो असर ह इससे उनक कोर दब रह है । आप चाह तो आपको उनसे दस-बीस हज़ार पए महज़ यह ज़ा हर कर दे ने के िमल सकते ह क आप उनक ख़ाितर बैठ जाते ह । । । नह ं मुझे अरज़ कर लेने द जए। इस मुआमले म आपको कुछ नह ं करना है । आप बे फ़ब बैठे र हए। म आपक तरफ़ से एक मेिनफ़ेःटो िनकाल दँ ग ा। और उसी शाम को आप मुझसे दस हज़ार नक़द वसूल कर ली जए। िमरज़ा साहब ने उनक ओर हकारत से दे खकर कहा -- म ऐस पए पर और आप पर लानत भेजता हँ ू । िमःटर तंखा ने ज़रा भी बुरा नह ं माना। माथे पर बल तक न आने दया। ' मुझ पर आप जतनी लानत चाह भेज ; मगर पए पर लानत भेजकर आप अपना ह नुक़सान कर रह ह। ' ' म ऐसी रक़म को हराम समझता हँ ू । ' ' आप शर यत के इतने पाब द तो नह ं ह। ' ' लूट क कमाई को हराम समझने के िलए शरा का पाब द होने क ज़ रत नह ं है । ' ' तो इस मुआमले म या आप अपना फ़ैसला त द ल नह ं कर सकते ? ' ' जी नह ं। ' ' अ छ बात ह इसे जाने द जए। कसी बीमा क पनी के डाइरे टर बनने म तो आपको कोई एतराज़ नह है ? आपको क पनी का एक हःसा भी न ख़र दना पड़े गा। आप िसफ़ अपना नाम दे द जएगा। ' ' जी नह ं , मुझे यह भी मंज़ूर नह ं है । म कई क पिनय का डाइरे टर, कई का मैने जंग एजट, कई का चेयरमैन था। दौलत मेरे पाँव चूमती थी। म जानता हँू , दौलत से आराम और तक लुफ़ के कतने सामान जमा कये जा सकते ह; मगर यह भी जानता हँ ू क दौलत इं सान को कतना ख़ुद -ग़रज़ बना दे ती ह कतना ऐश-पस द, कतना म कार, कतना बेग़ैरत। ' वक ल साहब को फर कोई ूःताव करने का साहस न हआ। िमरज़ाजी क ब और ूभाव म उनका जो व ास था, वह बहत कम हो गया। उनके िलए धन ह सब कुछ था और ऐसे आदमी से , जो लआमी को ठोकर मारता हो, उनका कोई मेल न हो सकता था। लकड़हारा हरन को क धे पर रखे लपका चला जा रहा था। िमरज़ा ने भी क़दम बढ़ाया; पर ःथूलकाय तंखा पीछे रह गये। उ ह ने पुकारा -- ज़रा सुिनए, िमरज़ाजी, आप तो भागे जा रहे ह। िमरज़ाजी ने बना तेज़ी से चला जा रहा है । हम के हए जवाब दया -- वह ग़र ब बोझ िलये इतनी या अपना बदन लेकर भी उसके बराबर नह ं चल सकते ? लकड़हारे न हरन को एक ठँ ू ठ पर उतारकर रख दया था और दम लेने लगा था। िमरज़ा साहब ने आकर पूछा -- थक गये , य ? लकड़हारे ने सकुचाते हए कहा -- बहत भार है सरकार ! ' तो लाओ, कुछ दर ू म ले चलूँ। ' लकड़हारा हँ सा। िमरज़ा ड ल-डौल म उससे कह ं ऊँचे और मोटे - ताज़े थे , फर भी वह दबला -पतला आदमी उनक इस बात पर हँ सा। िमरज़ाजी पर जैसे चाबुक पड़ गया। ' तुम हँ से य ? लकड़हारे ने मानो या तुम समझते हो, म इसे नह ं उठा सकता? ' मा माँगी -- सरकार आप लोग बड़े आदमी ह। बोझ उठाना तो हम-जैसे मजूर ह का काम है । ' म तु हारा दग ना जो हँ ू । '' इसस या होता है मािलक! ' िमरज़ाजी का पु ष व अपना और अपमान न सह सका। उ ह ने बढ़कर हरन को गदन पर उठा िलया और चले ; मगर मु ँकल से पचास क़दम चले ह गे क गदन फटने लगी; पाँव थरथराने लगे और आँख म ितितिलयाँ उड़ने लगीं। कलेजा मज़बूत कया और एक बीस क़दम और चले। क बउत कहाँ रह गया? जैसे इस लाश म सीसा भर दया गया हो। ज़रा िमःटर तंखा क गदन पर रख दँ , ू तो मज़ा आये। मशक क तरह जो फूले चलते ह, ज़रा उसका मज़ा भी दे ख ; ले कन बोझा उतार कैसे ? दोन अपने दल म कहगे , बड़ जवाँमद दखाने चले थे। पचास क़दम म चीं बोल गये। लकड़हारे ने चुटक ली -- कहो मािलक, कैस रं ग -ढं ग ह। बहत हलका है न ? िमरज़ाजी को बोझ कुछ हलका मालूम होने लगा। बोले -- उतनी दर ू तो ल ह जाऊँगा, जतनी दर ू तुम लाये हो। ' कई दन गदन दख गी मािलक ! ' ' तुम या समझते हो, म य ह फूला हआ हँ ू ! ' ' नह ं मािलक, अब तो ऐसा नह ं समझता। मुदा आप है रान न ह ; वह च टान ह उस पर उतार द जए। ' ' म अभी इसे इतनी ह दर ू और ले जा सकता हँ ू । ' ' मगर यह अ छा तो नह ं लगता क म ठाला चलूँ और आप लदे रह। ' िमरज़ा साहब ने च टान पर हरन को उतारकर रख दया। वक ल साहब भी आ पहँ ु चे। िमरज़ा ने दाना फ का -- अब आप को भी कुछ दर ू ले चलना पड़े गा जनाब ! वक ल साहब क नज़र म अब िमरज़ाजी का कोई मह व न था। बोले -- मुआफ़ क जए। मुझे अपनी पहलवानी का दावा नह ं है । ' बहत भार नह ं ह सच। ' ' अजी रहने भी द जए। ' ' आप अगर इसे सौ क़दम ले चल, तो म वादा करता हँ ू आप मेरे सामने जो तजवीज़ रखगे , उसे मंज़ूर कर लूँगा। ' ' म इन चकम म नह ं आता। ' ' म चकमा नह ं दे रहा हँू , व लाह। आप जस हलके से कहगे खड़ा हो जाऊँगा। जब ह ु म दगे , बैठ जाऊँगा। जस क पनी का डाइरे टर, मे बर, मुनीम, कनवेसर, जो कुछ क हएगा, बन जाऊँगा। बस सौ क़दम ले चिलए। मेर तो ऐसे ह दोःत से िनभती ह जो मौक़ा पड़ने पर सब कुछ कर सकते ह । ' तंखा का मन चुलबुला उठा। िमरज़ा अपने क़ौल के प के ह, इसम कोई स दे ह न था। हरन ऐसा या बहत भार होगा। आ ख़र िमरज़ा इतनी दर ू ले ह आये। बहत एयादा थके तो नह ं जान पड़ते ; अगर इनकार करते ह तो सुनहरा अवसर हाथ से जाता है । आ ख़र ऐसा पाँच पँसेर होगा। दो-चार दन गदन ह तो दख गी ! जेब म या कोई पहाड़ है । बहत होगा , चार- पए ह , तो थोड़ -सी बीमार सुख क वःतु है । ' सौ क़दम क रह । ' ' हाँ , सौ क़दम। म िगनता चलूँगा। ' ' दे खए, िनकल न जाइएगा। ' ' िनकल जानेवाले पर लानत भेजता हँ ू । ' तंखा ने जूते का फ़ ता फर से बाँधा, कोट उतारकर लकड़हारे को दया, पतलून ऊपर चढ़ाया, माल स मुँह प छा और इस तरह हरन को दे खा, मानो ओखली म िसर दे ने जा रहे ह । फर हरन को उठाकरगदन पर रखने क चे ा क । दो-तीन बार ज़ोर लगाने पर लाश गदन पर तो आ गयी; पर गदन न उठ सक । कमर झुक गयी, हाँफ उठे और लाश को ज़मीन पर पटकनेवाले थे क िमरज़ा ने उ ह सहारा दे कर आगे बढ़ाया। तंखा ने एक डग इस तरह उठाया जैसे दलदल म पाँव रख रहे ह । िमरज़ा ने बढ़ावा दया -- जाती है । शाबाश! मेरे शेर , वाह-वाह! तंखा ने एक डग और रखा। मालूम हआ , गदन टट ' मार िलया मैदान! जीते रहो प ठे ! ' तंखा दो डग और बढ़े । आँख िनकली पड़ती थीं। ' बस, एक बार और ज़ोर मारो दोःत। सौ क़दम क शत ग़लत। पचास क़दम क ह रह । ' वक ल साहब का बुरा हाल था। वह बेजान हरन शेर क तरह उनको दबोचे हए , उनका था। सार श दय-र चूस रहा याँ जवाब दे चुक थीं। केवल लोभ, कसी लोहे क धरन क तरह छत को सँभाले हए था। एक से प चीस हज़ार तक क गोट थी। मगर अ त म वह शहतीर भी जवाब दे गयी। लोभी क कमर भी गयी। आँख के सामने अँधेरा छा गया। िसर म च कर आया और वह िशकार गदन पर िलये पथर ली टट ज़मीन पर िगर पड़े । िमरज़ा ने तुर त उ ह उठाया और अपन माल से हवा करते हए उनक पीठ ठ क । ' ज़ोर तो यार तुमने ख़ूब मारा; ले कन तक़द र के खोटे हो। ' तंखा ने हाँफते हए ल बी साँस खींचकर कहा -- आपने तो आज मेर जान ह ले ली थी। दो मन से कम न होगा ससुर। िमरज़ा ने हँ सते हए कहा -- ले कन भाईजान म भी तो इतनी दर ू उठाकर लाया ह था। वक ल साहब ने ख़ुशामद करनी श क -- मुझै तो आपक फ़रमाइश पूर करनी थी। आपको तमाशा दे खना था, वह आपने दे ख िलया। अब आपको अपना वादा पूरा करना होगा। ' आपने मुआहदा कब पूरा कया। ' ' कोिशश तो जान तोड़कर क । ' ' इसक सनद नह ं। ' लकड़हारे ने फर हरन उठा िलया था और भागा चला जा रहा था। वह दखा दे ना चाहता था क तुम लोग ने काँख -काँखकर दस क़दम इसे उठा िलया, तो यह न समझो क पास हो गये। इस मैदान म म दबल होने पर भी तुमसे आगे रहँ ू गा। हाँ , कागद तुम चाहे जतना काला करो और झूठे मुक़दमे चाहे जतन बनाओ। एक नाला िमला, जसम बहत थोड़ा पानी था। नाले के उस पार ट ले पर एक छोटा -सा पाँच -छः घर का पुरवा था और कई लड़के इमली के पेड़ के नीचे खेल रहे थे। लकड़हारे को दे खते ह सब ने दौड़कर उसका ःवागत कया और लगे पूछने -- कसने मारा बापू ? कैसे मारा, कहाँ मारा, कैसे गोली लगी, कहाँ लगी, इसी को य लगी, और हरन को य न लगी? लकड़हारा हँू - हाँ करता इमली के नीचे पहँ ु चा और हरन को उतार कर पास क झोपड़ से दोन महानुभाव के िलए खाट लेने दौड़ा। उसके चार लड़क और लड़ कय ने िशकार को अपने चाज म ले िलया और अ य लड़क को भगाने क चे ा करने लगे। सबस छोटे बालक ने कहा -- यह हमारा है । उसक बड़ बहन ने , जो चौदह-प िह साल क थी, मेहमान क ओर दे खकर छोटे भाई को डाँटा -- चुप , नह ं िसपाई पकड़ ले जायगा। िमरज़ा ने लड़के को छे ड़ा -- तु हारा नह ं हमारा है । बालक ने हरन पर बैठकर अपना क़ ज़ा िस कर दया और बोला -- बापू तो लाये ह। बहन ने िसखाया -- कह दे भैया, तु हारा है । इन ब च क माँ बकर के िलए प याँ तोड़ रह थी। दो नये भले आदिमय को दे खकर उसने ज़रा-सा घूँघट िनकाल िलया और शमायी क उसक साड़ कतनी मैली, कतनी फट , कतनी उटं गी है । वह इसवेष म मेहमान के सामने कैसे जाय? और गये बना काम नह ं चलता। पानी-वानी दे ना है । अभी दोपहर होने म कुछ कसर थी; ले कन िमरज़ा साहब ने दोपहर इसी गाँव म काटने का िन य कया। गाँव के आदिमय को जमा कया। शराब मँगवायी, िशकार पका, समीप के बाज़ार से घी और मैदा मँगाया और सारे गाँव को भोज दया। छोटे - बड़ ी-पु ष सब ने दावत उड़ायी। मद ने ख़ूब शराब पी और मःत होकर शाम तक गाते रहे । और िमरज़ाजी बालक के साथ बालक, शरा बय के साथ शराबी, बूढ़ के साथ बूढ़े , जवान के साथ जवान बने हए थे। इतनी दे र म सारे गाँव से उनका इतना घिन प रचय हो गया था , मानो यह ं के िनवासी ह । लड़के तो उनपर लदे पड़ते थे। कोई उनक फुँदनेदार टोपी िसर पर रखे लेता था, कोई उनक राइफ़ल क धे पर रखकर अकड़ता हआ चलता था , कोई उनक क़लाई क घड़ खोलकर अपनी क़लाई पर बाँध लेता था। िमरज़ा ने ख़ुद ख़ूब दे शी शराब पी और झूम -झूमकर जंगली आदिमय के साथ गाते रहे । जब ये लोग सूयाःत के समय यहाँ से बदा हए तो गाँव -भर के नर-नार इ ह बड़ दर ू तक पहँ ु चाने आये। कई तो रोते थे। ऐसा सौभा य उन ग़र ब के जीवन म शायद पहली ह बार आया हो क कसी िशकार ने उनक दावत क हो। ज़ र यह कोई राजा ह नह ं तो इतना द रयाव दल कसका होता है । इनके दशन फर काहे को ह गे ! कुछ दर ू चलने के बाद िमरज़ा ने पीछे फरकर दे खा और बोले -- बेचारे कतने ख़ुश थे। काश मेर ज़ दगी म ऐसे मौक़े रोज़ आते। आज का दन बड़ा मुबारक था। तंखा न बे खी के साथ कहा -- आपके िलए मुबारक होगा, मेरे िलए तो मनहस ह था। मतलब क कोई बात न हई। दन -भर जँगल और पहाड़ क ख़ाक छानने के बाद अपना-सा मुँह िलये लौट जाते ह। िमरज़ा न िनदयता से कहा -- मुझे आपके साथ हमदद नह ं है । दोन आदमी जब बरगद के नीचे पहँ ु चे , तो दोन टोिलयाँ लौट चुक थीं। मेहता मुँह लटकाये हए थे। मालती वमन -सी अलग बैठ थी, जो नयी बात थी। राय साहब और ख ना दोन भूखे रह गये थे और कसी के मुँह से बात न िनकलती थी। वक ल साहब इसिलए दखी थे क िमरज़ा ने उनके साथ बेवफ़ाई क । अकेले िमरज़ा साहब ूस न थे और वह ूस नता अलौ कक थी। ूेमच द गोदान जब से होर के घर म गाय आ गयी है , घर क ौी ह कुछ और हो गयी है । धिनया का घमंड तो उसके सँभाल से बाहर हो-हो जाता है । जब दे खो गाय क चचा। भूसा िछज गया था। ऊख म थोड़ -सी चर बो द गयी थी। उसी क कु ट काटकर जानवर को खलाना पड़ता था। आँख आकाश क ओर लगी रहती थीं क कब पानी बरसे और घास िनकले। आधा आसाढ़ बीत गया और वषा न हई। सहसा एक दन बादल उठे और आसाढ़ का पहला द गड़ा िगरा। कसान ख़र फ़ बोने के िलए हल ले - लेकर िनकले क राय साहब के कारकुन ने कहला भेजा, जब तक बाक़ न चुक जायगी कसी को खेत म हल न ले जाने दया जायगा। कसान पर जैसे वळापात हो गया। और कभी तो इतनी कड़ाई न होती थी, अबक यह कैसा ह ु म। कोई गाँव छोड़कर भागा थोड़ा ह जाता है ; अगर खेती म हल न चले , तो पए कहाँ से आ जायगे। िनकालगे तो खेत ह से। सब िमलकर कारकुन के पास जाकर रोये। कारकुन का नाम था प डत नोखेराम। आदमी बुरे न थे ; मगर मािलक का ह ु म था। उसे कैसे टाल। अभी उस दन राय साहब ने होर से कैसी दया और धम क बात क थीं और आज आसािमय पर यह ज़ु म। होर मािलक के पास जान को तैयार हआ ; ले कन फर सोचा, उ ह ने कारकुन को एक बार जो ह ु म दे दया , उस वह अगुवा बनकर य बुरा बने। जब और कोई कुछ नह ं बोलता, तो यह आग म य टालने लगे। य कूदे । जो सब के िसर पड़े गी, वह भी झेल लेगा। कसान म खलबली मची हई थी। सभी गाँव के महाजन के पास िलए दौड़े । गाँव म मँग पए के साह क आजकल चढ़ हई था। थी। इस साल सन म उसे अ छा फ़ायदा हआ गेह ू ँ और अलसी म भी उसने कुछ कम नह ं कमाया था। प डत दाताद न और दलार सहआइन भी लेन - दे न करती थीं। सबसे बड़े महाजन थे झंगुर िसंह। वह शहर के एक बड़े महाजन के एजट थे। उनके नीच कई आदमी और थे , जो आस-पास के दे हात म घूम -घूमकर लेन -दे न करते थे। इनके उपरा त और भी कई छोटे - मोटे महाजन थे , जो दो आन पये याज पर बना िलखा-पढ़ के लेन -दे न का कुछ ऐसा शौक़ था क जसके पास दस-बीस पए दे ते थे। गाँववाल को पए जमा हो जाते , वह महाजन बन बैठता था। एक समय होर ने भी महाजनी क थी। उसी का यह ूभाव था क लोग अभी तक यह समझते थ क होर के पास दबे हए पए ह। आ ख़र वह धन गया कहाँ। बँटवारे म िनकला नह ं , होर ने कोई तीथ, ोत, भोज कया नह ं ; गया तो कहाँ गया। जूते जाने पर भी उनके घ ठे बने रहते ह। कसी ने कसी दे वता को सीधा कया, कसी ने कसी को। कसी ने आना पया याज दे ना ःवीकार कया, कसी ने दो आना। होर म आ म-स मान का सवथा लोप न हआ था। जन लोग के पए उस पर बाक़ थे उनके पास कौन मुँह लेकर जाय। झंगुर िसंह के िसवा उसे और कोई न सूझा। वह प का काग़ज़ िलखाते थे , नज़राना अलग लेते थे , दःतूर अलग, ःटा प क िलखाई अलग। उस पर एक साल का याज पेशगी काटकर पया दे ते थे। पचीस गाढ़े समय म और पए का काग़ज़ िलखा, तो मु ँकल से सऽह पए हाथ लगते थे ; मगर इस या कया जाय? राय साहब क ज़बरदःती है , नह ं इस समय कसी के सामन य हाथ फैलाना पड़ता। झंगुर िसंह बैठे दातून कर रहे थे। नाटे , मोटे , ख वाट, काले , ल बी नाक और बड़ - बड़ मूछ वाले आदमी थे , बलकुल वदषक -जैसे। और थे भी बड़े हँ सोड़। इस गाँव को अपनी ससुरालबनाकर मद से साले या ससुर और औरत से साली या सलहज का नाता जोड़ िलया था। राःते म लड़के उ ह िचढ़ाते -- प डतजी पा लगी! और झंगुर िसंह उ ह चटपट आशीवाद दे ते -- तु हार आँख फूटे , , िमरगी आये , घर म आग लग जाय आ द। लड़के इस आशीवाद से कभी न अघाते थे ; मगर घुटना टट लेन -दे न म बड़े कठोर थे। सूद क एक पाई न छोड़ते थे और वादे पर बना पए िलय ार से न टलत थे। होर ने सलाम करके अपनी वप -कथा सुनायी। झंगुर िसंह ने मुःकराकर कहा -- वह सब पुराना पया 'पुरान या कर डाला? पए होते ठाकुर, तो महाजनी से अपना गला न छड़ा लेता , क सूद भरते कसी को अ छा लगता है । ' 'गड़ पए न िनकल चाहे सूद कतना ह दे ना पड़े । तुम लोग क यह नीित है । ' 'कहाँ के गड़ पए बाबू साहब, खाने को तो होता नह ं। लड़का जवान हो गया; याह का कह ं ठकाना नह ं। बड़ लड़क भी याहने जोग हो गयी। झंगुर िसंह ने जब से उसके पए होते , तो कस दन के िलए गाड़ रखते। ' ार पर गाय दे खी थी, उस पर दाँत लगाये हए गाय का ड ल -डौल और गठन कह रहा था क उसम पाँच सेर से कम दध नह ं है । मन म सोच िलया था , होर को कसी अरदब म डालकर गाय को उड़ा लेना चा हए। आज वह अवसर आ गया। बोले -- अ छा भाई, तु हारे पास कुछ नह है , अब राज़ी हए। जतन तो िगरो रखकर पए चाहो , ले जाओ ले कन तु हारे भले के िलए कहते ह, कुछ गहने - गाठे ह , पए ले लो। इसटाम िलखोगे , तो सूद बढ़े गा और झमेले म पड़ जाओगे। होर ने क़सम खाई क घर म गहने के नाम क चा सूत भी नह ं है । धिनया के हाथ म कड़े ह, वह भी िगलट के। झंगुर िसंह ने सहानुभूित का रं ग मुँह पर पोतकर कहा -- तो एक बात करो, यह नयी गाय जो लाये हो, इसे हमारे हाथ बेच दो। सूद इसटाम सब झगड़ से बच जाओ; चार आदमी जो दाम कह, वह हमसे ल लो। हम जानते ह, तुम उसे अपने शौक़ से लाये हो और बेचना नह ं चाहते ; ले कन यह संकट तो टालना ह पड़े गा। होर पहले तो इस ूःताव पर हँ सा, उस पर शा त मनसे वचार भी न करना चाहता था; ले कन ठाकुर ने ऊँच-नीच सुझाया, महाजनी के हथकंड का ऐसा भीषण यह बात बैठ गयी। ठाकुर ठ क ह तो कहते ह, जब हाथ म कागद िलखने पर कह ं पचीस प दखाया क उसके मन म भी पए आ जायँ , गाय ले लेना। तीस पए का पए िमलगे और तीन चार साल तक न दये गये , तो पूरे सौ हो जायँगे। पहले का अनुभव यह बता रहा था क क़रज़ वह मेहमान है , जो एक बार आकर जाने का नाम नह लेता। बोला -- म घर जाकर सबसे सलाह कर लूँ , तो बताऊँ। 'सलाह नह ं करना है , उनसे कह दे ना है क पए उधार लेने म अपनी बबाद के िसवा और कुछ नह ं। ' 'म समझ रहा हँ ू ठाकुर , अभी आके जवाब दे ता हँ ू । ' ले कन घर आकर उसन य ह वह ूःताव कया क कुहराम मच गया। धिनया तो कम िच लाई, दोन लड़ कय ने तो दिनया िसर पर उठा ली। नह ं दे ते अपनी गाय , पए जहाँ से चाहो लाओ। सोना ने तो यहाँ तक कह डाला, इससे तो कह ं अ छा है , मुझे बेच डालो। गाय से कुछ बेसी ह िमल जायगा, दोन लड़ कयाँ सचमुच गाय पर जान दे ती थीं। पा तो उसके गले से िलपट जाती थी और बना उसे खलायकौर मुँह म न डालती थी। गाय कतने यार से उसका हाथ चाटती थी, कतनी ःनेहभर आँख से उस दे खती थी। उसका बछड़ा कतना सु दर होगा। अभी से उसका नाम-करण हो गया था -- मट । वह उस अपने साथ लेकर सोयेगी। इस गाय के पीछे दोन बहन म कई बार लड़ाइयाँ हो चुक थीं। सोना कहती, मुझे एयादा चाहती है , पा कहती, मुझे। इसका िनणय अभी तक न हो सका था। और दोन दावे क़ायम थे। मगर होर ने आगा-पीछा सुझाकर आ ख़र धिनया को कसी तरह राज़ी कर िलया। एक िमऽ से गाय उधार लेकर बेच दे ना भी बहत ह वैसी बात है ; ले कन बपत म तो आदमी का धरम तक चला जाता है , यह कौन-सी बड़ बात है । ऐसा न हो, तो लोग बपत से इतना डर य । गोबर ने भी वशेष आ प न क । वह आजकल दसर ह धुन म मःत था। यह तै कया गया क जब दोन लड़ कयाँ रात को सो जायँ , तो गाय झंगुर िसंह के पास पहँ ु चा द जाय। दन कसी तरह कट गया। साँझ हई। दोन लड़ कयाँ आठ बजते - बजते खा-पीकर सो गयीं। गोबर इस क ण ँय से भागकर कह ं चला गया था। वह गाय को जात कैसे दे ख सकेगा? अपने आँसुओं को कैसे रोक सकेगा? होर भी ऊपर ह से कठोर बना हआ था। मन उसका चंचल था। ऐसा कोई माई का लाल नह ं , जो इस वईत उसे पचीस पचास पए उधार दे - दे , चाहे फर पए ह ले - ले। वह गाय के सामने जाकर खड़ा हआ तो उसे ऐसा जान पड़ा क उसक काली -काली सजीव आँख म आँसू भरे हए ह और वह कह रह है -- या चार दन म ह तु हारा मन मुझसे भर गया? तुमने तो वचन दया था क जीते - जी इसे न बेचूँगा। यह वचन था तु हारा! मने तो तुमसे कभी कसी बात का िगला नह ं कया। जो कुछ खा-सूखा तुमने दया, वह खाकर स त धिनया ने कहा -- लड़ कयाँ तो सो गयीं। अब इसे ल हो गयी। बोलो। य नह ं जाते। जब बेचना ह है , तो अभी बेच दो। होर ने काँपते हए ःवर म कहा -- मेरा तो हाथ नह ं उठता धिनया! उसका मुँह नह ं दे खती? रहने दो, पए सूद पर ले लूँगा। भगवान ् ने चाहा तो सब अदा हो जायँगे। तीन -चार सौ होते ह ऊख लग जाय। धिनया ने गव-भरे ूेम से उसक ओर दे खा -- और म गऊ आयी। उसे भी बेच दो। ले लो कल या ह। एक बार या! इतनी तपःया के बाद तो घर पए। जैसे और सब चुकाये जायँगे वैसे इसे भी चुका दगे। भीतर बड़ उमस हो रह थी। हवा ब द थी। एक प ी न हलती थी। बादल छाये हए थे ; पर वषा के ल ण न थे। होर ने गाय को बाहर बाँध दया। धिनया ने टोका भी, कहाँ िलये जाते हो? पर होर ने सुना नह ं , बोला -- बाहर हवा म बाँधे दे ता हँ ू । आराम से रहे गी। उसके भी तो जान है । गाय बाँधकर वह अपन मँझले भाई शोभा को दे खने गया। शोभा को इधर कई मह ने से दमे का आरजा हो गया था। दवा-दा क जुगत नह ं। खाने - पीने का ूब ध नह ं , और काम करना पड़ता था जी तोड़कर; इसिलए उसक दशा दन- दन बगड़ती जाती थी। शोभा सहनशील आदमी था, लड़ाई-झगड़े से कोस भागनेवाला। कसी से मतलब नह ं। अपने काम से काम। होर उसे चाहता था। और वह भी होर का अदब करता था। दोन म पए-पैसे क बात होने लगीं। राय साहब का यह नया फ़रमान आलोचनाओं का के ि बना हआ था। कोई यारह बजते - बजते होर लौटा और भीतर जा रहा था क उसे भास हआ , जैसे गाय के पास कोई आदमी खड़ा है । पूछा -- कौन खड़ा है वहाँ ? ह रा बोला -- म हँ ू दादा , तु हारे कौड़े म आग लेने आया था। ह रा उसके कौड़ म आग लेने आया है , इस ज़रा-सी बात म होर को भाई क आ मीयता का प रचय िमला। गाँव म और भी तो कौड़े ह। कह ं से आग िमल सकती थी। ह रा उसके कौड़े म आग ले रहा है , तो अपना ह समझकर तो। सारा गाँव इस कौड़े म आग लेने आता था। गाँव से सबसे स प न यह कौड़ा था; मगर ह रा का आना दसर बात थी। और उस दन क लड़ाई के बाद ! ह रा के मन म कपट नह ं रहता। ग़ुःसैल है ;ले कन दल का साफ़। उसने ःनेह भरे ःवर म पूछा -- तमाखू है क ला दँ ? ' नह ं , तमाखू तो है दादा! ' सोभा तो आज बहत बेहाल है । ' ' कोई दवाई नह ं खाता, तो या कया जाय। उसके लेखे तो सारे बैद , डा टर, हक म अनाड़ ह। भगवान के पास जतनी अ कल थी, वह उसके और उसक घरवाली के हःसे पड़ गयी। ' होर ने िच ता से कहा -- यह तो बुराई है उसम। अपने सामने कसी को िगनता ह नह ं। और िचढ़ने तो बमार म सभी हो जाते ह। तु ह याद है क नह ं , जब तु ह इ फ़ंजा हो गया था, तो दवाई उठाकर फ क दे ते थे। म तु हारे दोन हाथ पकड़ता था, तब तु हार भाभी तु हारे मुँह म दवाई डालती थीं। उस पर तुम उसे हज़ार गािलयाँ दे ते थे। ' हाँ दादा, भला वह बात भूल सकता हँ ू । तुमने इतना न कया होता , तो तुमसे लड़ने के िलए कैसे बचा रहता। ' होर को ऐसा मालूम हआ क ह रा का ःवर भार हो गया है । उसका गला भी भर आया। ' बेटा, लड़ाई-झगड़ा तो ज़ दगी का धरम है । इससे जो अपने ह, वह पराये थोड़े ह हो जाते ह। जब घर म चार आदमी रहते ह, तभी तो लड़ाई-झगड़े भी होते ह। जसके कोई है ह नह ं , उसके कौन लड़ाई करे गा। ' दोन ने साथ िचलम पी। तब ह रा अपने घर गया, होर अ दर भोजन करने चला। धिनया रोष से बोली -- दे खी अपने सपूत क लीला? इतनी रात हो गयी और अभी उसे अपने सैल से छ ु ट नह ं िमली। म सब जानती हँ ू । मुझको सारा पता िमल गया है । भोला क वह राँड़ लड़क नह ं है , झुिनया! उसी के फेर म पड़ा रहता है । होर के कान म भी इस बात क भनक पड़ थी, पर उसे व ास न आया था। गोबर बेचारा इन बात को या जाने। बोला -- कसने कहा तुमसे ? धिनया ूचंड हो गयी -- तुमसे िछपी होगी, और तो सभी जगह चचा चल रह है । यह भु गा, वह बह र घाट का पानी पये हए। इसे उँ गिलय पर नचा रह है , और यह समझता है , वह इस पर जान दे ती है । तुम उसे समझा दो नह ं कोई ऐसी-वैसी बात हो गयी, तो कह ं के न रहोगे। होर का दल उमंग पर था। चुहल क सूझी -- झुिनया दे खने - सुनने म तो बुर नह ं है । उसी से कर ले सगाई। ऐसी सःती मेह रया और कहाँ िमली जाती है । धिनया को यह चुहल तीर-सा लगा -- झुिनया इस घर म आये , तो मुँह झुलस दँ ू राँड़ का। गोबर क चहे ती है , तो उसे लेकर जहाँ चाहे रहे । ' और जो गोबर इसी घर म लाये ? ' तो यह दोन लड़ कयाँ कसके गले बाँधोगे ? फर बरादर म तु ह कौन पूछेगा, कोई ' उसे इसक ार पर खड़ा तक तो होगा नह ं। ' या परवाह। ' ' इस तरह नह ं छोड़ँ ू गी लाला को। मर -मर के पाला है और झुिनया आकर राज करे गी। मुँह म आग लगा दँ ग ी राँड़ के। 'सहसा गोबर आकर घबड़ाई हई आवाज़ म बोला -- दादा, सु द रया को या हो गया? या काले नाग न छ ू िलया ? वह तो पड़ तड़प रह है । होर चौके म जा चुका था। थाली सामने छोड़कर बाहर िनकल आया और बोला -- या असगुन मुँह से िनकालते हो। अभी तो म दे खे आ रहा हँ ू । लेट थी। तीन बाहर गये। िचराग़ लेकर दे खा। सु द रया के मुँह से फचकुर िनकल रहा था। आँख पथरा गयी थीं , पेट फूल गया था और चार पाँव फैल गये थे। धिनया िसर पीटने लगी। होर प डत दाताद न के पास दौड़ा। गाँव म पशु - िच क सक के वह आचाय थे। प डतजी सोने जा रहे थे। दौड़े हए आये। दम -के -दम म सारा गाँव जमा हो गया। गाय को कसी ने कुछ खला दया। ल ण ःप थे। साफ़ वष दया गया है ; ले कन गाँव म कौन ऐसा मु ई है , जसने वष दया हो; ऐसी वारदात तो इस गाँव म कभी हई नह ं ; ले कन बाहर का कौन आदमी गाँव म आया। होर क कसी से दँमनी भी न थी क उस पर स दे ह कया जाय। ह रा स कुछ कहा-सुनी हई तो ह रा ह था। धम कयाँ द थी ; मगर वह भाई-भाई का झगड़ा था। सबसे जयादा दखी रहा था क जसने यह ह यार का काम कया है , उसे पाय तो ख़ून पी जाय। वह लाख ग़ुःसैल हो; पर इतना नीच काम नह ं कर सकता। आधी रात तक जमघट रहा। सभी होर के दःख म दखी थे और बिधक को गािलयाँ दे ते थे। वह इस समय पकड़ा जा सकता, तो उसके ूाण क कुशल न थी। जब यह हाल ह तो कोई जानवर को बाहर कैसे बाँधेगा। अभी तक रात- बरात सभी जानवर बाहर पड़े रहते थे। कसी तरह क िच ता न थी; ले कन अब तो एक नयी व प आ खड़ हई थी। या गाय थी क बस दे खता रहे । पूजने जोग। पाँच सेर से दध कम न था। सौ -सौ का एक-एक बाछा होता। आते दे र न हई और यह वळा िगर पड़ा। जब सब लोग अपने - अपने घर चले गये , तो धिनया होर को कोसने लगी -- तु ह कोई लाख समझाये , करोगे अपने मन क । तुम गाय खोलकर आँगन से चले , तब तक म जूझती रह जाओ। हमारे दन पतले ह, न जाने कब क बाहर न ल या हो जाय; ले कन नह ं , उसे गमीर ् लग रह है । अब तो ख़ूब ठं ड हो गयी और तु हारा कलेजा भी ठं डा हो गया। ठाकुर माँगते थे ; दे दया होता, तो एक बोझ िसर स उतर जाता और िनहोरा का िनहोरा होता; मगर यह तमाचा कैसे पड़ता। कोई बुर बात होनेवाली होती ह तो मित पहले ह हर जाती है । इतने दन मज़े से घर म बँधती रह ; न गमीर ् लगी , न जूड़ आयी। इतनी ज द सबको पहचान गयी थी क मालूम ह न होता था क बाहर से आयी है । ब चे उसके सींग स खेलते रहते थे। िसर तक न हलाती थी। जो कुछ नाद म डाल दो, चाट-प छकर साफ़ कर दे ती थी। ल छमी थी, अभाग के घर या रहती। सोना और पा भी यह हलचल सुनकर जग गयी थीं और बलख- बलखकर रो रह थीं। उसक सेवा का भार अिधकतर उ ह ं दोन पर था। उनक संिगनी हो गयी थी। दोन खाकर उठतीं , तो एक-एक टकड़ा रोट उसे अपने हाथ से खलातीं। कैसा जीभ िनकालकर खा लेती थी , और जब तक उनके हाथ का कौर न पा लेती, खड़ ताकती रहती। भा य फूट गये ! सोना और गोबर और दोन लड़ कयाँ रो-धोकर सो गयी थीं। होर भी लेटा। धिनया उसके िसरहाने पानी का लोटा रखने आयी तो होर ने धीरे से कहा -- तेरे पेट म बात पचती नह ं ; कुछ सुन पायेगी, तो गाँव भर म ढं ढोरा पीटती फरे गी। धिनया ने आप क -- भला सुनूँ ; मने कौन-सी बात पीट द ' अ छा तेरा स दे ह कसी पर होता है । ' ' मेरा स दे ह तो कसी पर नह ं है । कोई बाहर आदमी था। ' क य नाम बदनाम कर दया।' कसी से कहे गी तो नह ं ? ' ' कहँ ू गी नह ं , तो गाँववाले मुझे गहने कैसे गढ़वा दगे। ' ' अगर कसी से कहा, तो मार ह डालूँगा। ' ' मुझे मारकर सुखी न रहोगे। अब दसर मेह रया नह ं िमली जाती। जब तक हँ ू , तु हारा घर सँभाले हए हँ ू । जस दन मर जाऊँगी , िसर पर हाथ धरकर रोओगे। अभी मुझम सार बुराइयाँ ह बुराइयाँ ह, तब आँख से आँसू िनकलगे। ' ' मेरा स दे ह ह रा पर होता है । ' ' झूठ , बलकुल झूठ ! ह रा इतना नीच नह ं है । वह मुँह का ह ख़राब है । ' ' मने अपनी आँख दे खा। सच, तेरे िसर क स ह। ' ' तुमने अपनी आँख दे खा! कब? ' ' वह , म सोभा को दे खकर आया; तो वह सु द रया क नाँद के पास खड़ा था। मने पूछा -- कौन है , तो बोला, म हँ ू ह रा , कौड़े म से आग लेने आया था। थोड़ दे र मुझसे बात करता रहा। मुझे िचलम पलायी। वह उधर गया, म भीतर आया और वह गोबर ने पुकार मचायी। मालूम होता है , म गाय बाँधकर सोभा के घर गया हँू , और इसने इधर आकर कुछ खला दया है । साइत फर यह दे खने आया था क मर या नह ं। धिनया ने ल बी साँस लेकर कहा -- इस तरह के होते ह भाई, ज ह भाई का गला काटने म भी हचक नह ं होती। उझफ़ोह। ह रा मन का इतना काला है ! और दाढ़ जार को मने पाल-पोसकर बड़ा कया। ' अ छा जा सो रह, मगर कसी से भूलकर भी ज़कर न करना। ' ' कौन, सबेरा होते ह लाला को थाने न पहँ ु चाऊँ , तो अपने असल बाप क नह ं। यह ह यारा भाई कहन जोग है ! यह भाई का काम है ! वह बैर है , प का बैर और बैर को मारने म पाप नह ं , छोड़ने म पाप है । ' होर ने धमक द -- म कहे दे ता हँ ू धिनया , अनथ हो जायगा। धिनया आवेश म बोली -- अनथ नह ं , अनथ का बाप हो जाय। म बना लाला को बड़े घर िभजवाये मानूँगी नह ं। तीन साल च क पसवाऊँगी, तीन साल। वहाँ से छटग , तो ह या लगेगी। तीरथ करना पड़े गा। भोज दे ना पड़े गा। इस धोखे म न रह लाला! और गवाह दलाऊँगी तुमसे , बेटे के िसर पर हाथ रखकर। उसने भीतर जाकर कवाड़ ब द कर िलये और होर बाहर अपने को कोसता पड़ा रहा। जब ःवयम ् उसके पेट म बात न पची , तो धिनया के पेट म या पचेगी। अब यह चुड़ैल माननेवाली नह ं ! ज़द पर आ जाती है , तो कसी क सुनती ह नह ं। आज उसने अपने जीवन म सबसे बड़ भूल क । चार ओर नीरव अ धकार छाया हआ था। दोन बैल के गले क घ टयाँ कभी-कभी बज उठती थीं। दस क़दम पर मृतक गाय पड़ हई थी और होर घोर प ा ाप म करवट बदल रहा था। अ धकार म ूकाश क रे खा कह ं नज़र न आती थी। ूेमच द गोदान ूातःकाल होर के घर म एक पूरा हं गामा हो गया। होर धिनया को मार रहा था। धिनया उस गािलयाँ दे रह थी। दोन लड़ कयाँ बाप के पाँव से िलपट िच ला रह थीं और गोबर माँ को बचा रहा था। बार-बार होर का हाथ पकड़कर पीछे ढकेल दे ता; पर य ह धिनया के मुँह से कोई गाली िनकल जाती, होर अपने हाथ छड़ाकर उसे दो -चार घूँसे और लात जमा दे ता। उसका बूढ़ा बोध जैसे कसी ग संिचत श को िनकाल लाया हो। सारे गाँव म हलचल पड़ गयी। लोग समझाने के बहाने तमाशा दे खन आ पहँ ु चे। शोभा लाठ टे कता खड़ा हआ। दाताद न ने डाँटा -- यह या है होर , तुम बावले हो गये हो या? कोई इस तरह घर क लआमी पर हाथ छोड़ता है ! तु ह यह रोग न था। तु ह भी या ह रा क छत लग गयी। होर ने पालागन करके कहा -- महाराज, तुम इस बखत न बोलो। म आज इसक बान छड़ाकर तब दम लूँगा। म जतना ह तरह दे ता हँू , उतना ह यह िसर चढ़ती जाती है । धिनया सजल बोध म बोली -- महाराज तुम गवाह रहना। म आज इसे और इसके ह यारे भाई को जेहल भेजवाकर तब पानी पऊँगी। इसके भाई ने गाय को माहर खलाकर मार डाला। अब जो म थाने म रपट िलखाने जा रह हँ ू तो यह ह यारा मुझे मारता है । इसके पीछे अपनी ज़ दगी चौपट कर द , उसका यह इनाम दे रहा है । होर न दाँत पीसकर और आँख िनकालकर कहा -- फर वह बात मुँह से िनकाली। तूने दे खा था ह रा को माहर खलाते ? ' तू क़सम खा जा क तूने ह रा को गाय क नाँद के पास खड़े नह ं दे खा? ' ' हाँ , मने नह ं दे खा, क़सम खाता हँ ू । ' ' बेटे के माथे पर हाथ रख के क़सम खा! ' होर ने गोबर के माथे पर काँपता हआ हाथ रखकर काँपते हए ःवर म कहा -- म बेटे क क़सम खाता ह ू क मने ह रा को नाँद के पास नह ं दे खा। धिनया ने ज़मीन पर थूक कर कहा -- थुड़ है । तेर झुठाई पर। तूने ख़ुद मुझसे कहा क ह रा चोर क तरह नाँद के पास खड़ा था। और अब भाई के प म झूठ बोलता है । थुड़ है ! अगर मेरे बेटे का बाल भी बाँका हआ ी। सार गृहःथी म आग लगा , तो घर म आग लगा दँ ग दँ ग ी। भगवान ्, आदमी मुँह से बात कहकर इतनी बेसरमी से मुकुर जाता है । होर पाँव पटककर बोला -- धिनया, ग़ुःसा मत दखा, नह ं बुरा होगा। ' मार तो रहा है , और मार ले। जा, तू अपने बाप का बेटा होगा तो आज मुझे मारकर तब पानी पयेगा। पापी ने मारते - मारते मेरा भुरकस िनकाल िलया, फर भी इसका जी नह ं भरा। मुझे मारकर समझता है म बड़ा वीर हँ ू । भाइय के सामने भीगी ब ली बन जाता है , पापी कह ं का, ह यारा! ' फर वह बैन कहकर रोने लगी -- इस घर म आकर उसन या नह ं झेला, कस कस तरह पेट -तन नहकाटा, कस तरह एक-एक ल े को तरसी, कस तरह एक-एक पैसा ूाण क तरह संचा, कस तरह घर- भर को खलाकर आप पानी पीकर सो रह । और आज उन सारे बिलदान का यह पुरःकार! भगवान ् बैठे यह अ याय दे ख रहे ह और उसक र ा को नह ं दौड़ते। गज क और िौपद क र ा करने बैकुंठ से दौड़ थे। आज य नींद म सोये हए ह। जनमत धीरे -धीरे धिनया क ओर आने लगा। इसम अब कसी को स दे ह नह ं रहा क ह रा ने ह गाय को ज़हर दया। होर ने बलकुल झूठ क़सम खाई है , इसका भी लोग को व ास हो गया। गोबर को भी बाप क इस झूठ क़सम और उसके फलःव प आनेवाली व प शंका ने होर के व क कर दया। उस पर जो दाताद न ने डाँट बतायी, तो होर पराःत हो गया। चुपके स बाहर चला गया, स य ने वजय पायी। दाताद न ने शोभा से पूछा -- तुम कुछ जानते हो शोभा, या बात हई बोला -- म तो महाराज, आठ दन से बाहर नह ं िनकला। होर दादा ? शोभा ज़मीन पर लेटा हआ कभी-कभी जाकर कुछ दे आते ह, उसी से काम चलता है । रात भी वह मेरे पास गये थे। कसन या कया, म कुछ नह ं जानता। हाँ , कल साँझ को ह रा मेरे घर खुरपी माँगने गया था। कहता था, एक जड़ खोदना है । फर तब से मेर उससे भट नह ं हई। धिनया इतनी शह पाकर बोली -- प डत दादा, वह उसी का काम है । सोभा के घर से खुरपी माँगकर लाया और कोई जड़ खोदकर गाय को खला द । उस रात को जो झगड़ा हआ था , उसी दन से वह खार खाये बैठा था। दाताद न बोले -- यह बात सा बत हो गयी, तो उसे ह या लगेगी। पुिलस कुछ करे या न करे , धरम तो बना दं ड दये न रहे गा। चली तो जा पया, ह रा को बुला ला। कहना, प डत दादा बुला रहे ह। अगर उसने ह या नह ं क है , तो गंगाजली उठा ले और चौरे पर चढ़कर क़सम खाय। धिनया बोली -- महाराज, उसके क़सम का भरोसा नह ं। चटपट खा लेगा। जब इसने झूठ क़सम खा ली, जो बड़ा धमा मा बनता है , तो ह रा का खा ले झूठ क़सम। बंस का अ त हो जाय। बूढ़े जीते रह। जवान जीकर या व ास। अब गोबर बोला -- या करगे ! पा एक ण म आकर बोली -- काका घर म नह ं है , प डत दादा! काक कहती ह, कह ं चले गये ह। दाताद न ने ल बी दाढ़ फटकारकर कहा -- तूने पूछा नह ं , कहाँ चले गये कया? घर म िछपा बैठा न हो। दे ख तो सोना, भीतर तो नह ं बैठा है । धिनया ने टोका -- उसे मत भेजो दादा! ह रा के िसर ह या सवार है , न जान या कर बैठे। दाताद न ने ख़ुद लकड़ सँभाली और ख़बर लाये क ह रा सचमुच कह ं चला गया है । पुिनया कहती है लु टया-डोर और डं डा सब लेकर गये ह। पुिनया ने पूछा भी, कहाँ जाते हो; पर बताया नह ं। उसने पाँच पए आले म रखे थे। पए वहाँ नह ं ह। साइत पए भी लेता गया। धिनया शीतल ◌ृदय स बोली -- मुँह म कािलख लगाकर कह ं भागा होगा। शोभा बोला -- भाग के कहाँ जायगा। गंगा नहाने न चला गया हो। धिनया ने शंका क -- गंगा जाता तो नह ं है ? इस शंका का कोई समाधान न िमला। धारणा पए य ले जाता, और आजकल कोई परब भी तो ढ़ हो गयी। आज होर के घर भोजन नह ं पका। न कसी ने बैल को सानी-पानी दया। सारे गाँव म सनसनी फैली हई थी। दो -दो चार-चार आदमी जगह- जगह जमा होकर इसी वषय क आलोचना कर रहे थे। ह रा अवँय कह ं भाग गया। दे खा होगा क भेद खुल गया, अब जेहल जाना पड़े गा, ह या अलग लगेगी। बस, कह ं भाग गया। पुिनया अलग रो रह थी, कुछ कहा न सुना, न जाने कहाँ चल दये। जो कुछ कसर रह गयी थी वह स या-समय हलके के थानेदार ने आकर पूर कर द । गाँव के चौक दार ने इस घटना क रपट क , जैसा उसका कत य था। और थानेदार साहब भला अपने कत य से कब चूकनेवाले थे। अब गाँववाल को भी उनक सेवा-स कार करके अपने कत य का पालन करना चा हए। दाताद न, झंगुर िसंह , नोखेराम, उनके चार यादे , मँग साह औरलाला पटे र , सभी आ पहँ ु चे और दारोग़ाजी के सामने हाथ बाँधकर खड़े हो गये। होर क तलबी हई। जीवन म यह पहला अवसर था क वह दारोग़ा के सामने आया। ऐसा डर रहा था, जैसे फाँसी हो जायेगी। क भाँित भीतर धिनया को पीटते समय उसका एक-एक अंग फड़क रहा था। दारोग़ा के सामने कछए िसमटा जाता था। दारोग़ा ने उसे आलोचक नेऽ से दे खा और उसके दय तक पहँ ु च गये। आदिमय क नस पहचानने का उ ह अ छा अ यास था। कताबी मनो व ान म कोरे , पर यावहा रक मनो व ान के मम न थे। यक़ न हो गया, आज अ छे का मुँह दे खकर उठे ह। और होर का चेहरा कहे दे ता था, इस और हाथ केवल एक घुड़क काफ़ है । दारोग़ा ने पूछा -- तुझे कस पर शुबहा है ? होर ने ज़मीन छई बाँधकर बोला -- मेरा सुबहा कसी पर नह ं है सरकार, गाय अपनी मौत से मर है । बु ढ हो गयी थी। धिनया भी आकर पीछे खड़ थी। तुर त बोली -- गाय मार है तु हारे भाई ह रा ने। सरकार ऐसे बौड़म नह ं ह क जो कुछ तुम कह दोगे , वह मान लगे। यहाँ जाँच -तह क़क़ात करने आये ह। दारोग़ाजी ने पूछा -- यह कौन औरत है ? कई आदिमय ने दारोग़ाजी से कुछ बातचीत करने का सौभा य ूा करने के िलए चढ़ा-ऊपर क । एक साथ बोले और अपने मन को इस क पना से स तोष दया क पहले म बोला -- होर क घरवाली है सरकार! ' तो इसे बुलाओ, म पहले इसी का बयान िलखूँगा। वह कहाँ है ह रा? ' विश जन ने एक ःवर से कहा -- वह तो आज सबेरे से कह ं चला गया है सरकार! ' म उसके घर क तलाशी लूँगा। ' तलाशी! होर क साँस तले - ऊपर होने लगी। उसके भाई ह रा के घर क तलाशी होगी और ह रा घर म नह ं है । और फर होर के जीते - जी, उसके दे खते यह तलाशी न होने पायेगी; और धिनया स अब उसका कोई स ब ध नह ं। जहाँ चाहे जाय। जब वह उसक इएज़त बगाड़ने पर आ गयी है , तो उसके घर म कैसे रह सकती है । जब गली-गली ठोकर खायेगी, तब पता चलेगा। गाँव के विश महान संकट को टालने के िलए काना-फूसी श कमाने के ढं ग ह। पूछो, ह रा के घर म जन ने इस क । दाताद न ने गंजा िसर हलाकर कहा -- यह सब या रखा है । पटे र लाल बहत ल बे थे ; पर ल बे होकर भी बेवक़ूफ़ न थे। अपना ल बा काला मुँह और ल बा करके बोले -- और यहाँ आया है कस िलए, और जब आया है बना कुछ िलये - दये गया कब है ? झंगुर िसंह ने होर को बुलाकर कान म कहा -- िनकालो जो गा। दारोग़ाजी ने अब ज़रा गरजकर कहा -- म ह रा के घर क तलाशी कुछ दे ना हो। य गला न छट लूँगा। होर के मुख का रं ग ऐसा उड़ गया था, जैसे दे ह का सारा र सूख गया हो। तलाशी उसके घर हई तो, उसके भाई के घर हई तो जानती है , वह उसका भाई तो , एक ह बात है । ह रा अलग सह ; पर दिनया है ; मगर इस वईत उसका कुछ बस नह ं। उसके पास पए होते , तो इसी वईत पचास पए लाकर दारोग़ाजी के चरण पर रख दे ता और कहता -- सरकार, मेर इएज़त अब आपके हाथ है । मगर उसके पास तो ज़हर खाने को भी एक पैसा नह ं है । धिनया के पास चाहे दो-चार पए पड़े ह ; पर वह चुड़ैल भला य दे ने लगी। मृ यु - दं ड पाये हए आदमी क भाँित िसर झुकाये , अपने अपमान क वेदना का तीो अनुभव करता हआ चुपचाप खड़ा रहा। दाताद न ने होर को सचेत कया -- अब इस तरह खड़े रहने स काम न चलेगा होर , पए क कोई जुगत करे । होर द न ःवर म बोला -- अब म या अरज क महाराज! अभी तो पहले ह क गठर िसर पर लद है ; और कस मुँह से मागूँ ; ले कन इस संकट से उबार लो। जीता रहा, तो कौड़ -कौड़ चुका दँ ग ा। म मर भी जाऊँ तो गोबर तो है ह । नेताओं म सलाह होन लगी। दारोग़ाजी को या भट कया जाय। दाताद न ने पचास का ूःताव कया। झंगुर िसंह के अनुमान म सौ से कम पर सौदा न होगा। नोखेराम भी सौ के प म थे। और होर के िलए सौ और पचास म कोईअ तर न था। इस तलाशी का संकट उसके िसर से टल जाय। पूजा चाहे कतनी ह चढ़ानी पड़े । मरे को मन-भर लकड़ से जलाओ, या दस मन से ; उस या िच ता! मगर पटे र से यह अ याय न दे खा गया। कोई डाका या क़तल तो हआ नह ं। केवल तलाशी हो रह है । इसके िलए बीस पए बहत ह। नेताओं न िध कारा -- तो फर दारोग़ाजी से बातचीत करना। हम लोग नगीच न जायगे। कौन घुड़ कयाँ खाय। होर ने पटे र के पाँव पर अपना िसर रख दया -- भैया, मेरा उ ार करो। जब तक जऊँगा, तु हार ताबेदार क ँ गा। दारोग़ाजी ने फर अपने वशाल व और वशालतर उदर क पूर िश से कहा -- कहाँ है ह रा का घर? म उसके घर क तलाशी लूँगा। पटे र ने आगे बढ़कर दारोग़ाजी के कान म कहा -- तलासी लेकर या करोगे हज़ र , उसका भाई आपक ताबेदार के िलए हा ज़र है । दोन आदमी ज़रा अलग जाकर बात करने लगे। ' कैसा आदमी है ? ' ' बहत ह ग़र ब हज़ र ! भोजन का ठकाना भी नह ं ! ' ' सच? ' ' हाँ , हज़ र , ईमान से कहता हँ ू । ' ' अरे तो या एक पचासे का डौल भी नह ं है ? ' ' कहाँ क बात हज़ र ! दस िमल जायँ , तो हज़ार सम झए। पचास तो पचास जनम म भी मुम कन नह और वह भी जब कोई महाजन खड़ा हो जायगा! ' दारोग़ाजी ने एक िमनट तक वचार करके कहा -- तो फर उसे सताने स या फ़ायदा। म ऐस को नह सताता, जो आप ह मर रहे ह । पटे र ने दे खा, िनशाना और आगे जा पड़ा। बोले -- नह ं हज़ र , ऐसा न क जए, नह ं फर हम कहाँ जायँगे। हमारे पास दसर और कौन -सी खेती है ? ' तुम इलाक़े के पटवार हो जी, कैसी बात करते हो? ' ' जब ऐसा ह कोई अवसर आ जाता है , तो आपक बदौलत हम भी कुछ पा जाते ह। नह ं पटवार को कौन पूछता है । ' ' अ छा जाओ, तीस पए दलवा दो; बीस पए हमारे , दस पए तु हारे । ' ' चार मु खया ह, इसका उयाल क जए। ' ' अ छा आधे - आधे पर रखो, ज द करो। मुझे दे र हो रह है । ' पटे र ने झंगुर से कहा, झंगुर ने होर को इशारे से बुलाया, अपने घर ले गये , तीस पए िगनकर उसके हवाले कये और एहसान से दबाते हए बोले -- आज ह कागद िलखा लेना। तु हारा मुँह दे खकर पए दे रहा हँू , तु हार भलमंसी पर। होर न पए िलये और अँगोछे के कोर म बाँधे ूस न मुख आकर दारोग़ाजी क ओर चला। सहसा धिनया झपटकर आगे आयी और अँगोछ एक झटके के साथ उसके हाथ से छ न ली। गाँठ प क न थी। झटका पाते ह खुल गयी और सार क तरह फुँकारकर बोली -- य पए ज़मीन पर बखर गये। नािगन पए कहाँ िलये जा रहा है , बता। भला चाहता है , तो सब पए लौटा दे ,नह ं कहे दे ती हँ ू । घर के परानी रात - दन मर और दाने - दाने को तरस, ल ा भी पहनने को मयःसर न हो और अँजुली-भर पए लेकर चला है इएज़त बचाने ! ऐसी बड़ है तेर इएज़त! जसके घर म चूहे लोट, वह भी इएज़तवाला है ! दारोग़ा तलासी ह तो लेगा। ले - ले जहाँ चाहे तलासी। एक तो सौ पए क गाय गयी, उस पर यह पलेथन! वाह र तेर इएज़त! होर ख़ून का घूँट पीकर रह गया। सारा समूह जैसे थरार ् उठा। नेताओं के िसर झुक गये। दारोग़ा का मुँह ज़रा-सा िनकल आया। अपने जीवन म उसे ऐसी लताड़ न िमली थी। होर ःत भत-सा खड़ा रहा। जीवन म आज पहली बार धिनया ने उसे भरे अखाड़े म पटकनी द , आकाश तका दया। अब वह कैसे िसर उठाये ! मगर दारोग़ाजी इतनी ज द हार माननेवाले न थे। खिसयाकर बोले -- मुझे ऐसा मालूम होता है , क इस शैतान क ख़ाला ने ह रा को फँसाने के िलए ख़ुद गाय को ज़हर दे दया। धिनया हाथ मटकाकर बोली -- हाँ , दे दया। अपनी गाय थी, मार डाली, फर कसी दसर का जानवर तो नह ं मारा ? तु हारे तहक़ क़ात म यह िनकलता है , तो यह िलखो। पहना दो मेरे हाथ म हथक ड़याँ। दे ख िलया तु हारा याय और तु हारे अ कल क दौड़। ग़र ब का गला काटना दसर बात है । दध बात। होर आँख से अँगारे बरसाता धिनया का दध और पानी का पानी करना दसर क ओर लपका; पर गोबर सामने आकर खड़ा हो गया और उम भाव से बोला -- अ छा दादा, अब बहत हआ। पीछे हट जाओ , नह ं म कहे दे ता हँू , मेरा मुँह न दे खोगे। तु हारे ऊपर हाथ न उठाऊँगा। ऐसा कपूत नह ं हँ ू । यह ं गले म फाँसी लगा लूँगा। होर पीछे हट गया और धिनया शेर होकर बोली -- तू हट जा गोबर, दे खूँ तो या करता है मेरा। दारोग़ाजी बैठे ह। इसक ह मत दे खूँ। घर म तलाशी होने से इसक इएज़त जाती है । अपनी मेह रया को सारे गाँव के सामने लितयाने से इसक इएज़त नह ं जाती! यह तो बीर का धरम है । बड़ा बीर है , तो कसी मद से लड़। जसक बाँह पकड़कर लाया, उसे मारकर बहादर ु न कहलायेगा। तू समझता होगा, म इसे रोट कपड़ा दे ता हँ ू । आज से अपना घर सँभाल। दे ख तो इसी गाँव म तेर छाती पर मूँग दलकर रहती हँ ू क नह ं , और उससे अ छा खाऊँ -पहनूँगी। इ छा हो, दे ख ले। होर पराःत हो गया। उस ात हआ , ी के सामने पु ष कतना िनबल, कतना िन पाय है । नेताओं न पए चुनकर उठा िलये थे और दारोग़ाजी को वहाँ से चलने का इशारा कर रहे थे। धिनया ने एक ठोकर और जमायी -- जसके पए ह , ले जाकर उसे दे दो। हम कसी से उधार नह ं लेना है । और जो दे ना है , तो उसी से लेना। म दमड़ भी न दँ ग ी , चाहे मुझे हा कम के इजलास तक ह चढ़ना पड़े । हम बाक़ चुकाने को पचीस पए माँगते थे , कसी ने न दया। आज अँजुली-भर पये ठनाठन िनकाल के दये। म सब जानती हँ ू । यहाँ तो बाँट -बखरा होनेवाला था, सभी के मुँह मीठे होते। ये ह यारे गाँव के मु खया ह, ग़र ब का ख़ून चूसनेवाले ! सूद - याज डे ढ़ -सवाई, नज़र-नज़राना, घूस -घास जैसे भी हो, ग़र ब को लूटो। उस पर सुराज चा हए। जेल जाने से सुराज न िमलेगा। सुराज िमलेगा धरम से , याय से। नेताओं के मुँह म कािलख-सी लगी हई थी। दारोग़ाजी के मुँह पर झाड़ -सी फर हई थी। इएज़त बचाने के िलए ह रा के घर क ओर चले। राःते म दारोग़ा ने ःवीकार कया -- औरत है बड़ दलेर ! पटे र बोले -- दलेर है हज़ र , कक शा है । ऐसी औरत को तो गोली मार दे । ' तुम लोग का क़ा फ़या तंग कर दया उसने। चार-चार तो िमलते ह । ' ' हज़ र के भी तो प िह पए गये। ' ' मेरे कहाँ जा सकते ह। वह न दे गा, गाँव के मु खया दगे और प िह पये क जगह पूरे पचास पए।आप लोग चटपट इ तज़ाम क जए। ' पटे र लाल ने हँ सकर कहा -- हज़ र बड़े द लगीबाज़ ह। दाताद न बोले -बड़े आदिमय के यह ल ण ह। ऐसे भा यवान के दशन कहाँ होते ह। दारोग़ाजी ने कठोर ःवर म कहा -- यह ख़ुशामद फर क जएगा। इस वईत तो मुझे पचास पए दलवाइए, नक़द; और यह समझ लो क आनाकानी क , तो म तुम चार के घर क तलाशी लूँगा। बहत मुम कन है क तुमने ह रा और होर को फँसाकर उनसे सौ -पचास ऐंठने के िलए यह पाखंड रचा हो। नेतागण अभी तक यह समझ रहे ह, दारोग़ाजी वनोद कर रहे ह। झंगुर िसंह न आँख मारकर कहा -- िनकालो पचास पए पटवार साहब! नोखेराम ने उनका समथन कया -- पटवार साहब का इलाक़ा है । उ ह ज़ र आपक ख़ाितर करनी चा हए। प डत नोखेरामजी क चौपाल आ गयी। दारोग़ाजी एक चारपाई पर बैठ गये और बोले -- तुम लोग न तलाशी करवाते हो? दाताद न ने आप या िन य कया? पए िनकालते हो या क -- मगर हज़ र ... ' म अगर-मगर कुछ नह ं सुनना चाहता। ' झंगुर िसंह ने साहस कया -- सरकार यह तो सरासर... ' म प िह िमनट का समय दे ता हँ ू । अगर इतनी दे र म पूरे पचास पए न आये , तो तुम चार के घर क तलाशी होगी। और गंडािसंह को जानते हो। उसका मारा पानी भी नह ं माँगता। ' पटे र लाल ने तेज़ ःवर से कहा -- आपको अ उतयार है , तलाशी ले ल। यह अ छ द लगी है , काम कौन करे , पकड़ा कौन जाय। ' मने पचीस साल थानेदार क है जानते हो? ' ' ले कन ऐसा अँधेर तो कभी नह ं हआ। ' ' तुमने अभी अँधेर नह ं दे खा। कहो तो वह भी दखा दँ । ू एक -एक को पाँच -पाँच साल के िलए भेजवा दँ । ू यह मेरे बाय हाथ का खेल है । डाके म सारे गाँव को काले पानी भेजवा सकता हँ ू । इस धोखे म न रहना ! ' चार स जन चौपाल के अ दर जाकर वचार करने लगे। फर या हआ कसी को मालूम नह ं , हाँ , दारोग़ाजी ूस न दखायी दे रहे थे। और चार स जन के मुँह पर फटकार बरस रह थी। दारोग़ाजी घोड़ पर सवार होकर चले , तो चार नेता दौड़ रहे थे। घोड़ा दर ू िनकल गया तो चार स जन लौटे ; इस तरह मानो कसी ूयजन का संःकार करके ँमशान से लौट रहे ह । सहसा दाताद न बोले -- मेरा सराप न पड़ तो मुँह न दखाऊँ। नोखेराम ने समथन कया -- ऐसा धन कभी फलते नह ं दे खा। पटे र ने भ वंयवाणी क -- हराम क कमाई हराम म जायगी। झंगुर िसंह को आज ई र क यायपरता म स दे ह हो गया था। भगवान ् न जाने कहाँ ह क यह अँधेर दे खकर भी पा पय को दं ड नह ं दे ते। इस वईत इन स जन क तःवीर खींचने लायक़ थी। ूेमच द गोदान ह रा का कह ं पता न चला और दन गुज़रते जाते थे। होर से जहाँ तक दौड़धूप हो सक क ; फर हारकर बैठ रहा। खेती-बार क भी फ़ब करनी थी। अकेला आदमी या- या करता। और अब अपनी खेती स एयादा फ़ब थी पुिनया क खेती क । पुिनया अब अकेली होकर और भी ूचंड हो गयी थी। होर को अब उसक ख़ुशामद करते बीतती थी। ह रा था, तो वह पुिनया को दबाये रहता था। उसके चले जाने से अब पुिनया पर कोई अंकुस न रह गया था। होर क प ट दार ह रा से थी। पुिनया अबला थी। उससे वह या तनातनी करता। और पुिनया उसके ःवभाव से प रिचत थी और उसक स जनता का उसे ख़ूब दं ड दे ती थी। ख़ै रयत यह हई क कारकुन साहब ने पुिनया से बक़ाया लगान वसूल करने क कोई सउती न क , केवल थोड़ सी पूजा लेकर राज़ी हो गये। नह ं , होर अपनी बक़ाया के साथ उसक बक़ाया चुकाने के िलए भी क़रज़ लेने को तैयार था। सावन म धान क रोपाई क ऐसी धूम रह क मजूर न िमले और होर अपने खेत म धान न रोप सका; ले कन पुिनया के खेत म कैसे न रोपाई होती। होर ने पहर रात-रात तक काम करके उसके धान रोपे। अब होर ह तो उसका र क है ! अगर पुिनया को कोई क हआ , तो दिनया उसी को तो हँ सेगी। नतीजा यह हआ क होर को ख़र फ़ फ़सल म बहत थोड़ा अनाज िमला , और पुिनया के बखार म धान रखने क जगह न रह । होर और धिनया म उस दन से बराबर मनमुटाव चला आता था। गोबर से भी होर क बोल-चाल ब द थी। माँ - बेटे ने िमलकर जैसे उसका ब हंकार कर दया था। अपने घर म परदे शी बना हआ था। दो नाव पर सवार होनेवाल क जो दगित होती है , वह उसक हो रह थी। गाँव म भी अब उसका उतना आदर न था। धिनया ने अपने साहस स का नेत ृ व भी ूा क वह अलौ कक दारोग़ाजी न य का ह नह ं , पु ष कर िलया था। मह न तक आसपास के इलाक़ म कांड क ख़ूब चचा रह । यहाँ तक प तक धारण करता जाता था -- 'धिनया नाम है उसका जी। भवानी का इ है उसे। य ह उसके आदमी के हाथ म हथकड़ डाली क धिनया ने भवानी का सुिमरन कया। भवानी उसके िसर आ गयी। फर तो उसम इतनी िश आ गयी क उसने एक झटके म पित क हथकड़ तोड़ डाली और दारोग़ा क मूँछ पकड़कर उखाड़ लीं , फर उसक छाती पर चढ़ बैठ । दारोग़ा ने जब बहत मानता क , तब जाकर उसे छोड़ा' कुछ दन तक तो लोग धिनया के दशन को आते रहे । वह बात अब पुरानी पड़ गयी थी; ले कन गाँव म धिनया का स मान बहत साहस है और समय पड़ने पर वह मद के भी कान काट बढ़ गया। उसम अ त सकती है । मगर धीरे - धीरे धिनया म एक प रवतन हो रहा था। होर को पुिनया क खेती म लगे दे खकर भी वह कुछ न बोलती थी। और यह इसिलए नह ं क वह होर से वर हो गयी थी; ब क इसिलए क पुिनया पर अब उसे भी दया आती थी। ह रा का घर से भाग जाना उसक ूितशोध-भावना क त िलए काफ़ था। इसी बीच म होर को गया। और कई साल के बाद जो के वर आने लगा। फ़ःली बुख़ार फैला था ह । होर उसके चपेट म आ वर आया, तो उसने सार बक़ाया चुका ली। एक मह ने तक होर खाट पर पड़ा रहा। इस बीमार ने होर को तो कुचल डाला ह , पर धिनया पर भी वजय पा गयी। पित जब मर रहा है , तो उससे कैसा बैर। ऐसी दशा म तो बै रय से भी बैर नह ं रहता, वह तो अपना पित है । लाख बुराहो; पर उसी के साथ जीवन के पचीस साल कटे ह, सुख कया है तो उसी के साथ, दःख भोगा है तो उसी के साथ, अब तो चाहे वह अ छा है या बुरा, अपना है । दाढ़ जार ने मुझे सबके सामने मारा, सारे गाँव के सामने मेरा पानी उतार िलया; ले कन तब से कतना ल जत है क सीधे ताकता नह ं। खाने आता है तो िसर झुकाये खाकर उठ जाता है , डरता रहता है क म कुछ कह न बैठ ू ँ । होर जब अ छा हआ , तो पित- प ी म मेल हो गया था। एक दन धिनया ने कहा -- तु ह इतना ग़ुःसा कैसे आ गया। मुझे तो तु हार ऊपर कतना ह ग़ुःसा आये मगर हाथ न उठाऊँगी। होर लजाता हआ बोला -- अब उसक चचा न कर धिनया! मेरे ऊपर कोई भूत सवार था। इसका मुझे कतना दःख हआ है , वह म ह जानता हँ ू । 'और जो म भी उस बोध म डब मर होती !' 'तो या म रोने के िलए बैठा रहता? मेर लहाश भी तेरे साथ िचता पर जाती।' 'अ छा चुप रहो, बेबात क बात मत बको। ' 'गाय गयी सो गयी, मेरे िसर पर एक वप डाल गयी। पुिनया क फ़ब मुझे मारे डालती है । ' 'इसीिलए तो कहते ह, भगवान ् घर का बड़ा न बनाये। छोट को कोई नह ं हँ सता। नेक -बद सब बड़ के िसर जाती है । ' माघ के दन थे। मघावट लगी हई था। एक तो जाड़ क रात , दसर माघ थी। घटाटोप अँधेरा छाया हआ था। अँधेरा तक न सूझता था। होर भोजन करके पुिनया के क वषा। मौत का-सा स नाटा छाया हआ मटर के खेत क मड़ पर अपनी मड़ै या म लेटा हआ था। चाहता था , शीत को भूल जाय और सो रहे ; ले कन तार-तार क बल और फट हई िमरज़ई और शीत के झ क से गीली पुआल। इतने शऽुओं के स मुख आने का नींद म साहस न था। आज तमाखू भी न िमला क उसी से मन बहलाता। उपला सुलगा लाया था, पर शीत म वह भी बुझ गया। बेवाय फटे पैर को पेट म डालकर और हाथ को जाँघ के बीच म दबाकर और क बल म मुँह िछपाकर अपनी ह गम साँस से अपने को गम करने क चे ा कर रहा था। पाँच साल हए , यह िमरज़ई बनवाई थी। धिनया ने एक ूकार से ज़बरदःती बनवा द थी, वह जब एक बार काबुली से कपड़े िलये थे , जसके पीछे कतनी साँसत हई , कतनी गािलयाँ खानी पड़ ं , और क बल तो उसके ज म से भी पहले का है । बचपन म अपने बाप के साथ वह इसी म सोता था, जवानी म गोबर को लेकर इसी क बल म उसके जाड़े कटे थे और बुढ़ापे म आज वह बूढ़ा क बल उसका साथी है , पर अब वह भोजन को चबानेवाला दाँत नह ं , दखन वाला दाँत है । जीवन म ऐसा तो कोई दन ह नह आया क लगान और महाजन को दे कर कभी कुछ बचा हो। और बैठे बैठाये यह एक नया जंजाल पड़ हँ से , करो तो यह संशय बना रहे क लोग गया। न करो तो दिनया या कहते ह। सब यह समझते ह क वह दिनया को लूट लेता है , उसक सार उपज घर म भर लेता है । एहसान तो या होगा उलटा कलंक लग रहा है । और उधर भोला कई बेर याद दला चुके ह क कह ं कोई सगाई का डौल करो, अब काम नह चलता। सोभा उससे कई बार कह चुका है क पुिनया के वचार उसक ओर से अ छे नह ं ह। न ह । पुिनया क गृहःथी तो उसे सँभालनी ह पड़े गी, चाहे हँ सकर सँभाले या रोकर। धिनया का दल भी अभी तक साफ़ नह ं हआ। अभी तक उसके मन म मलाल बना हआ है । मुझे सब आदिमय के सामने उसको मारना न चा हए था। जसके साथ पचीस साल गुज़र गये , उसे मारना और सारे गाँव के सामने , मेरनीचता थी; ले कन धिनया ने भी तो मेर आब उतारने म कोई कसर नह ं छोड़ । मेरे सामने से कैसा कतराकर िनकल जाती है जैसे कभी क जान-पहचान ह नह ं। कोई बात कहनी होती है , तो सोना या पा से कहलाती है । दे खता हँ ू उसक साड़ फट गयी है ; मगर कल मुझसे कहा भी, तो सोना क साड़ के िलए, अपनी साड़ का नाम तक न िलया। सोना क साड़ अभी दो-एक मह ने थेगिलयाँ लगाकर चल सकती है । उसक साड़ तो मारे पेव द के बलकुल कथर हो गयी है । और फर म ह कौन उसका मनुहार कर रहा हँ ू । अगर म ह उसके मन क दो -चार बात करता रहता, तो कौन छोटा हो जाता। यह तो होता वह थोड़ा- सा अदरवान कराती, दो-चार लगनेवाली बात कहती तो या मुझे चोट लग जाती; ले कन म बु ढा होकर भी उ लू बना रह गया। वह तो कहो इस बीमार ने आकर उसे नम कर दया, नह ं जाने कब तक मुँह फुलाये रहती। और आज उन दोन म जो बात हई थीं , वह मानो भूखे का भोजन थीं। वह दल से बोली थी और होर ग द हो गया था। उसके जी म आया, उसके पैर पर िसर रख दे और कहे -- मने तुझे मारा है तो ले म िसर झुकाये लेता हँू , जतना चाहे मार ले , जतनी गािलयाँ दे ना चाहे दे ले। सहसा उसे मँड़ैया के सामने चू ड़य क झंकार सुनायी द । उसने कान लगाकर सुना। हाँ , कोई है । पटवार क लड़क होगी, चाहे प डत क घरवाली हो। मटर उखाड़ने आयी होगी। न जान य इन लोग क नीयत इतनी खोट है । सारे गाँव से अ छा पहनते ह, सारे गाँव से अ छा खाते ह, घर म हज़ार पए गड़े ह, लेन -दे न करते ह, डयोढ़ -सवाई चलाते ह, घूस लेते ह, दःतूर लेते ह, एक-न-एक मामला खड़ा करके हमा-सुमा को पीसत रहते ह, फर भी नीयत का यह हाल! बाप जैसा होगा, वैसी ह स तान भी होगी। और आप नह ं आते , औरत को भेजते ह। अभी उठकर हाथ पकड़ लूँ तो या पानी रह जाय। नीच कहने को नीच ह; जो ऊँच ह, उनका मन तो और नीचा है । औरत जात का हाथ पकड़ते भी तो नह ं बनता, आँख दे खकर म खी िनगलनी पड़ती है । उखाड़ ले भाई, जतना तेरा जी चाहे । समझ ले , म नह ं हँ ू । बड़े आदमी अपनी लाज न रख, छोट को तो उनक लाज रखनी ह पड़ती है । मगर नह ं , यह तो धिनया है । पुकार रह है । धिनया न पुकारा -- सो गये क जागते हो? होर झटपट उठा और मँड़ैया के बाहर िनकल आया। आज मालूम होता है , दे वी ूस न हो गयी, उसे वरदान दे ने आयी ह, इसके साथ ह इस बादल-बूँद और जाड़े - पाले म इतनी रात गये उसका आना शंकाूद भी था। ज़ र कोई-न-कोई बात हई है । बोला -- ठं ड के मारे नींद भी आती है ? तू इस जाड़े - पाले म कैसे आयी? कुसल तो है ? 'हाँ सब कुसल है । ' 'गोबर को भेजकर मुझे य नह ं बुलवा िलया। ' धिनया ने कोई उ र न दया। मँड़ैया म आकर पुआल पर बैठती हई बोली -- गोबर ने तो मुँह म कािलख लगा द , उसक करनी ' या हआ या पूछते हो। जस बात को डरती थी, वह होकर रह । या ? कसी से मार-पीट कर बैठा?' 'अब म जानूँ , या कर बैठा, चलकर पूछो उसी राँड़ से ?' ' कस राँड़ से ? या कहती है तू ? बौरा तो नह ं गयी?' 'हाँ , बौरा य न जाऊँगी। बात ह ऐसी हई नी हो जाय। ' है क छाती दगहोर के मन म ूकाश क एक ल बी रे खा ने ूवेश कया। ' साफ़-साफ़ य नह ं कहती। कस राँड़ को कह रह है ? ' 'उसी झुिनया को, और कसको! ' 'तो झुिनया या यहाँ आयी है ? ' ' और कहाँ जाती, पूछता कौन? ' ' गोबर या घर म नह ं है ? ' ' गोबर का कह ं पता नह ं। जाने कहाँ भाग गया। इसे पाँच मह ने का पेट है । ' होर सब कुछ समझ गया। गोबर को बार-बार अ हराने जाते दे खकर वह खटका था ज़ र; मगर उसे ऐसा खलाड़ न समझता था। युवक म कुछ रिसकता होती ह है , इसम कोई नयी बात नह ं। मगर जस ई के गाले को उसने नीले आकाश म हवा के झ के से उड़ते दे खकर केवल मुःकरा दया था, वह सारे आकाश म छाकर उसके माग को इतना अ धकारमय बना दे गा, यह तो कोई दे वता भी न जान सकता था। गोबर ऐसा ल पट! वह सरल गँवार जसे वह अभी ब चा समझता था; ले कन उसे भोज क िच ता न थी, पंचायत का भय न था, झुिनया घर म कैसे रहे गी इसक िच ता भी उसे न थी। उसे िच ता थी गोबर क । लड़का ल जाशील है , अनाड़ है आ मािभमानी है , कह ं कोई नादानी न कर बैठे। घबड़ाकर बोला -- झुिनया ने कुछ कहा नह ं , गोबर कहाँ गया? उससे कहकर ह गया होगा। धिनया झुँझलाकर बोली -- तु हार अ कल तो घास खा गयी है । उसक चहे ती तो यहाँ बैठ है , भागकर जायगा कहाँ ? यह ं कह ं िछपा बैठा होगा। दध थोड़े ह पीता है क खो जायगा। मुझे तो इस कलमुँह झुिनया क िच ता है क इस या क ँ ? अपने घर म तो म छन-भर भी न रहने दँ ग ी। जस दन गाय लाने गया है , उसी दन से दोन म ताक- झाँक होने लगी। पेट न रहता तो अभी बात न खुलती। मगर जब पेट रह गया तो झुिनया लगी घबड़ाने। कहने लगी, कह ं भाग चलो। गोबर टालता रहा। एक औरत को साथ लेके कहाँ जाय, कुछ न सूझा। आ ख़र जब आज वह िसर हो गयी क मुझे यहाँ से ले चलो, नह ं म परान दे दँ ग ी , तो बोला -- त चलकर मेरे घर म रह, कोई कुछ न बोलेगा, अ माँ को मना लूँगा। यह गधी उसके साथ चल पड़ । कुछ दर ू तो आगे -आगे आता रहा, फर न जाने कधर सरक गया। यह खड़ -खड़ उसे पुकारती रह । जब रात भींग गयी और वह न लौटा, भागी यहाँ चली आयी। मने तो कह दया, जैसा कया है वैसा फल भोग। चुड़ैल ने लेके मेरे लड़के को चौपट कर दया। तब से बैठ रो रह है । उठती ह नह ं। कहती है , अपने घर कौन मुँह लेकर जाऊँ। भगवान ् ऐसी स तान से तो बाँझ ह रखे तो अ छा। सबेरा होते -होते सारे गाँव म काँव काँव मच जायगी। ऐसा जी होता है , माहर खा लूँ। म तुमसे कहे दे ती हँ ू , म अपने घर म न रखूँगी। गोबर को रखना हो, अपने िसर पर रखे। मेरे घर म ऐसी छ ीिसय के िलए जगह नह ं है और अगर तुम बीच म बोले , तो फर या तो तु ह ं रहोगे , या म ह रहँ ू गी। होर बोला -- तुझसे बना नह ं। उसे घर म आने ह न दे ना चा हए था। ' सब कुछ कहके हार गयी। टलती ह नह ं। धरना दये बैठ है । '' अ छा चल, दे खूँ कैसे नह ं उठती, घसीटकर बाहर िनकाल दँ ग ा। ' ' दाढ़ जार भोला सब कुछ दे ख रहा था; पर चु पी साधे बैठा रहा। बाप भी ऐसे बेहया होते ह! ' ' वह या जानता था, इनके बीच म ' जानता या खचड़ पक रह है । ' य नह ं था। गोबर रात- दन घेरे रहता था तो था न, क यहा या उसक आँख फूट गयी थीं। सोचना चा हए य दौड़-दौड़ आता है । ' 'चल म झुिनया से पूछता हँ ू न। ' दोन मँड़ैया से िनकलकर गाँव क ओर चले। होर ने कहा -- पाँच घड़ रात के ऊपर गयी होगी। धिनया बोली -- हाँ , और या; मगर कैसा सोता पड़ गया है । कोई चोर आये , तो सारे गाँव को मूस ले जाय। ' चोर ऐसे गाँव म नह ं आते। धिनय के घर जाते ह। ' धिनया ने ठठक कर होर का हाथ पकड़ िलया और बोली -- दे खो, ह ला न मचाना; नह ं सारा गाँव जाग उठे गा और बात फैल जायगी। होर ने कठोर ःवर म कहा -- म यह कुछ नह ं जानता। हाथ पकड़कर घसीट लाऊँगा और गाँव के बाहर कर दँ ग ा। बात तो एक दन खुलनी ह है , फर आज ह जाय। वह मेरे घर आयी य ? जाय जहाँ गोबर है । उसके साथ कुकरम कया, तो य न खुल या हमसे पूछकर कया था? धिनया ने फर उसका हाथ पकड़ा और धीरे से बोली -- तुम उसका हाथ पकड़ोगे , तो वह िच लायेगी। ' तो िच लाया करे । ' ' मुदा इतनी रात गये इस अँधेरे स नाटे रात म जायगी कहाँ , यह तो सोचो। ' ' जाय जहाँ उसके सगे ह । हमारे घर म उसका या रखा है ! ' ' हाँ , ले कन इतनी रात गये घर से िनकालना उिचत नह ं। पाँव भार है , कह ं डर-डरा जाय, तो और आफ़त हो। ऐसी दशा म कुछ करते - धरते भी तो नह ं बनता! ' ' हम या करना है , मरे या जीये। जहाँ चाहे जाय। य अपने मुँह म कािलख लगाऊँ। म तो गोबर को भी िनकाल बाहर क ँ गा। ' धिनया ने ग भीर िच ता से कहा -- कािलख जो लगनी थी, वह तो अब लग चुक । वह अब जीते - जी नह सकती। गोबर ने नौका डबा छट द । ' गोबर ने नह ं , डबाई इसी ने। वह तो ब चा था। इसके पंजे म आ गया। ' ' कसी ने डबाई , अब तो डब गयी। ' दोन ार के सामने पहँ ु च गये। सहसा धिनया ने होर के गले म हाथ डालकर कहा -- दे खो तु ह मेर स ह, उस पर हाथ न उठाना। वह तो आप ह रो रह है । भाग क खोट न होती, तो यह दन ह यआता। होर क आँख आिर ् हो गयीं। धिनया का यह मातृ -ःनेह उस अँधेरे म भी जैसे द पक के समान उसक िच ता-जजर आकृ ित को शोभा ूदान करने लगा। दोन ह के उठा। होर को इस वीत-यौवना म भी वह कोमल दय म जैसे अतीत-यौवन सचेत हो दय बािलका नज़र आयी, जसने प चीस साल पहल उसके जीवन म ूवेश कया था। उस आिलंगन म कतना अथाह वा स य था, जो सारे कलंक , सार बाधाओं और सार मूलब पर पराओं को अपने अ दर समेटे लेता था। दोन न ार पर आकर कवाड़ के दराज़ से अ दर झाँका। द वट पर तेल क कु पी जल रह थी और उसके म यम ूकाश म झुिनया घुटन पर िसर रखे , ार क ओर मुँह कये , अ धकार म उस आन द को खोज रह थी, जो एक अपनी मो हनी छ व दखाकर वलीन हो गया था। वह आफ़त क मार के आघात से यिथत कसी व ण पहल यंग -बाण से आहत और जीवन क छाँह खोजती फरती थी, और उसे एक भवन िमल गया था, जसके आौय म वह अपने को सु र त और सुखी समझ रह थी; पर आज वह भवन अपना सारा सुख - वलास िलये अलाद न के राजमहल क भाँित ग़ायब हो गया था और भ वंय एक वकराल दानव के समान उस िनगल जाने को खड़ा था। एकाएक ार खुलते और होर को आते दे खकर वह भय से काँपती हई उठ और होर के पैर पर िगरकर रोती हई ठौर नह ं है , चाहे मारो बोली -- दादा, अब तु हारे िसवाय मुझे दसरा चाहे काटो; ले कन अपन ार से दरदराओ मत। होर ने झुककर उसक पीठ पर हाथ फेरते हए यार -भर ःवर म कहा -- डर मत बेट , डर मत। तेरा घर है , तेरा ार है , तेरे हम ह। आराम से रह। जैसी तू भोला क बेट है , वैसी ह मेर बेट है । जब तक हम जीते ह, कसी बात क िच ता मत कर। हमारे रहते कोई तुझे ितरछ आँख न दे ख सकेगा। भोज-भात जो लगेगा, वह हम सब दे लगे , तू ख़ाितर-जमा रख। झुिनया, सा वना पाकर और भी होर के पैर से िचमट गयी और बोली -- दादा अब तु ह ं मेरे बाप हो और अ माँ , तु ह ं मेर माँ हो। म अनाथ हँ ू । मुझे सरन दो , नह ं मेरे काका और भाई मुझे क चा ह खा जायँगे। धिनया अपनी क णा के आवेश को अब न रोक सक । बोली -- तू चल घर म बैठ , म दे ख लूँगी काका और भैया को। संसार म उ ह ं का राज नह ं है । बहत करगे , अपने गहने ले लगे। फ क दे ना उतारकर। अभी ज़रा दे र पहले धिनया न कलमुँह न जान ःनेह , ोध के आवेश म झुिनया को कुलटा और कलं कनी और या- या कह डाला था। झाड़ ू मारकर घर से िनकालने जा रह थी। अब जो झुिनया न मा और आ ासन से भरे यह वा य सुने , तो होर के पाँव छोड़कर धिनया के पाँव से िलपट गयी और वह सा वी जसने होर के िसवा कसी पु ष को आँख भरकर दे खा भी न था, इस पा प ा को गल लगाये उसके आँसू पोछ रह थी और उसके ऽःत दय को अपने कोमल श द से शा त कर रह थी, जैसे कोई िच ड़या अपने ब चे को पर म िछपाये बैठ हो। होर ने धिनया को संकेत कया क इसे कुछ खला- पला दे और झुिनया से पूछा -- य बेट , तुझे कुछ मालूम है , गोबर कधर गया! झुिनया ने िससकत हए कहा -- मुझसे तो कुछ नह ं कहा। मेरे कारन तु हारे ऊपर । यह कहते - कहते उसक आवाज़ आँसुओं म डब गयी। होर अपनी याकुलता न िछपा सका। ' जब तूने आज उसे दे खा, तो कुछ दखी था ? ' ' बात तो हँ स -हँ सकर कर रहे थे। मन का हाल भगवान ् जाने। ' ' तेरा मन या कहता है , है गाँव म ह क कह ं बाहर चला गया? ' ' मुझे तो शंका होती है , कह ं बाहर चले गये ह। '' यह मेरा मन भी कहता है , कैसी नादानी क । हम उसके दसमन थोड़े ह थे। जब भली या बुर एक बात हो गयी, तो उसे िनभानी पड़ती है । इस तरह भागकर तो उसने हमार जान आफ़त म डाल द । ' धिनया ने झुिनया का हाथ पकड़कर अ दर ले जाते हए कहा -- कायर कह ं का। जसक बाँह पकड़ , उसका िनबाह करना चा हए क मुँह म कािलख लगाकर भाग जाना चा हए। अब जो आये , तो घर म पैठन न दँ । ू होर वह ं पुआल म लेटा। गोबर कहाँ गया ? यह ू मँडराने लगा। उसके दयाकाश म कसी प ी क भाँित ूेमच द गोदान ऐसे असाधारण कांड पर गाँव म जो कुछ हलचल मचना चा हए था, वह मचा और मह न तक मचता रहा। झुिनया के दोन भाई ला ठयाँ िलये गोबर को खोजते फरते थ। भोला ने क़सम खायी क अब न झुिनया का मुँह दे ख गे और न इस गाँव का। होर से उ ह ने अपनी सगाई क जो बातचीत क थी, वह अब टट गयी थी। अब वह अपनी गाय के दाम लगे और नक़द और इसम वल ब हआ तो होर पर दावा करके उसका घर- ार नीलाम करा लगे। गाँववाल ने होर को जाित-बाहर कर दया। कोई उसका हईक़ा नह पीता, न उसके घर का पानी पीता है । पानी ब द कर दे ने क कुछ बातचीत थी; ले कन धिनया का चंड - प सब दे ख चुके थे ; इसिलये कसी क आगे आने क ह मत न पड़ । धिनया ने सबको सुना-सुनाकर कह दया -- कसी ने उसे पानी भरने से रोका, तो उसका और अपना ख़ून एक कर दे गी। इस ललकार न सभी के प े पानी कर दये। सबसे दखी है झुिनया , जसके कारण यह सब उपिव हो रहा है , और गोबर क कोई खोज-ख़बर न िमलना इस दःख को और भी दा ण बना रहा है । सारे दन मुँह िछपाये घर म पड़ रहती है । बाहर िनकले तो चार ओर से वा बाण क ऐसी वषा हो क जान बचाना मु ँकल हो जाय। दन-भर घर के ध धे करती रहती है और जब अवसर पाती है , रो लेती है । हरदम थर-थर काँपती रहती ह क कह ं धिनया कुछ कह न बैठे। अकेला भोजन तो नह ं पका सकती; य क कोई उसके हाथ का खायेगा नह ं , बाक़ सारा काम उसने अपने ऊपर ले िलया। गाँव म जहाँ चार ी-पु ष जमा हो जाते ह, यह कु सा होने लगती है । एक दन धिनया हाट से चली आ रह थी क राःते म प डत दाताद न िमल गये। धिनया ने िसर नीचा कर िलया और चाहती थी क कतराकर िनकल जाय; पर प डतजी छे ड़ने का अवसर पाकर कब चूकनेवाले थे। छे ड़ ह तो दया -- गोबर का कुछ सर-स दे श िमला क नह ं धिनया? ऐसा कपूत िनकला क घर क सार मरजाद बगाड़ द । धिनया के मन म ःवयम ् यह भाव आते रहत थे। उदास मन से बोली -- बुरे दन आते ह बाबा, तो आदमी क मित फर जाती है , और या कहँ ू । दाताद न बोले -- तु ह इस द ु ा को घर म न रखना चा हए था। दध म म खी पड़ जाती है , तो आदमी उसे िनकालकर फ क दे ता है , और दध पी जाता है । सोचो , कतनी बदनामी और जग-हँ साई हो रह है । वह कुलटा घर म न रहती, तो कुछ न होता। लड़क से इस तरह क भूल -चूक होती रहती है । जब तक बरादर को भात न दोगे , बा हन को भोज न दोगे , कैसे उ ार होगा? उसे घर म न रखते , तो कुछ न होता। होर तो पागल है ह , तू कैसे धोखा खा गयी। दाताद न का लड़का माताद न एक चमा रन से फँसा हआ था। इसे सारा गाँव जानता था ; पर वह ितलक लगाता था, पोथी-पऽे बाँचता था, कथा-भागवत कहता था, धम-संःकार कराता था। उसक ूित ा म ज़रा भी कमी न थी। वह िन य ःनान-पूजा कर के अपन पाप का ूाय त कर लेता था। धिनया जानती थी, झुिनया को आौय दे ने ह से यह सार है । उसे न जाने कैसे दया आ गयी, नह ं उसी रात को झुिनया को िनकाल दे ती, तो व प आयी य इतना उपहास होता; ले कन यह भय भी होता था क तब उसके िलए नद या कुआँ के िसवा और ठकाना कहाँ था। एक ूाण का मू य दे कर -- एक नह ं दो ूाण का -- वह अपने मरजाद क र ा कैसे करती? फर झुिनया के गभ म जो बालक है , वह घिनया ह के दय का टकड़ा तो है । हँ सी के डर से उसके ूाण कैसे ले लेती !और फर झुिनया क नॆता और द नता भी उसे िनर पर करती रहती थी। यह जली-भुनी बाहर से आती; य ह झुिनया लोटे का पानी लाकर रख दे ती और उसके पाँव दबाने लगती, उसका जाता। बेचार अपनी ल जा और दःख से आप दबी हई है , उसे और या दबाये , मरे को ोध पानी हो या मारे । उसन तीो ःवर म कहा -- हमको कुल-परितसठा इतनी यार नह ं है महाराज, क उसके पीछे एक जीव क ह या कर डालते। याहता न सह ; पर उसक बाँह तो पकड़ है मेरे बेटे ने ह । कस मुँह से िनकाल दे ती। वह काम बड़े - बड़े करते ह, मुदा उनसे कोई नह ं बोलता, उ ह कलंक ह नह ं लगता। वह काम छोट आदमी करते ह, तो उनक मरजाद बगड़ जाती है , नाक कट जाती है । बड़े आदिमय को अपनी नाक दसर क जान से यार होगी , हम तो अपनी नाक इतनी यार नह ं। दाताद न हार माननेवाले जीव न थे। वह इस गाँव के नारद थे। यहाँ क वहाँ , वहाँ क यहाँ , यह उनका यवसाय था। वह चोर तो न करते थे , उसम जान-जो ख़म था; पर चोर के माल म हःसा बँटाने के समय अवँय पहँ ु च जाते थे। कह ं पीठ म धूल न लगने दे ते थे। ज़मींदार को आज तक लगान क एक पाई न द थी, क़ुक़ र ् आती , तो कुएँ म िगरने चलते , नोखेराम के कये कुछ न बनता; मगर असािमय को सूद पर पए उधार दे ते थे। कसी ी को कोई आभूषण बनवाना है , दाताद न उसक सेवा के िलए हा ज़र ह। शाद - याह तय करने म उ ह बड़ा आन द आता है , यश भी िमलता है , द णा भी िमलती है । बीमार म दवा-दा भी करते ह, झाड़-फूँक भी, जैसी मर ज़ क इ छा हो। और सभा-चतुर इतने ह क जवान म जवान बन जाते ह, बालक म बालक और बूढ़ म बूढ़े। चोर के भी िमऽ ह और साह के भी। गाँव म कसी को उन पर व ास नह ं है ; पर उनक वाणी म कुछ ऐसा आकषण है क लोग बार-बार धोखा खाकर भी उ ह ं क शरण जाते ह। िसर और दाढ़ हलाकर बोले -- यह तू ठ क कहती है धिनया! धमा मा लोग का यह धरम है ; ले कन लोक- र ित का िनबाह तो करना ह पड़ता है । इसी तरह एक दन लाला पटे र ने होर को छे ड़ा। वह गाँव म पु या मा मशहर थे। पूणमासी को िन य स यनारायण क कथा सुनते ; पर पटवार होने के नाते खेत बेगार म जुतवाते थे , िसंचाई बेगार म करवाते थे और असािमय को एक दसर से लड़ाकर रक़म मारते थे। सारा गाँव उनसे काँपता था! ग़र ब को दस-दस, पाँच -पाँच क़रज़ दे कर उ ह ने कई हज़ार क स प बना ली थी। फ़सल क चीज़ असािमय से लेकर कचहर और पुिलस के अमल क भट करते रहते थे। इसस इलाक़े भर म उनक अ छ धाक थी। अगर कोई उनके ह थे नह ं चढ़ा, तो वह दारोग़ा गंडािसंह थे , जो हाल म इस इलाक़े म आये थे। परमाथ भी थे। बुख़ार के दन म सरकार कुनैन बाँटकर यश कमाते थे , कोई बीमार आराम हो, तो उसक कुशल पूछने अवँय जाते थे। छोटे - मोटे झगड़े आपस म ह तय करा दे ते थे। शाद - याह म अपनी पालक , क़ालीन, और मह फ़ल के सामान मँगनी दे कर लोग का उबार कर दे ते थे। मौक़ा पाकर न चूकते थे , पर जसका खाते थे , उसका काम भी करते थे। बोले -- यह तुमन रोग पाल िलया होर ? होर ने पीछे फरकर पूछा -- तुमन या कहा लाला -- मने सुना नह ं। पटे र पीछे से क़दम बढ़ाते हए बराबर आकर बोले , यह कह रहा था क धिनया के साथ घास खा गयी। झुिनया को या या तु हार ब भी य नह ं उसके बाप के घर भेज दे ते , सत-मत म अपनी हँ सीं करा रहे हो। न जाने कसका लड़का लेकर आ गयी और तुमने घर म बैठा िलया। अभी तु हार दो-दो लड़ कयाँ याहने को बैठ हई ह , सोचो कैसे बेड़ा पार होगा। होर इस तरह क आलोचनाएँ , और शुभ कामनाएँ सुनते - सुनते तंग आ गया था। ख न होकर बोला -- यह सब म समझता हँ ू लाला ! ले कन तु ह ं बताओ, म या क ँ ! म झुिनया को िनकाल दँ , ू तो भोला उसे रख लगे ? अगर वह राज़ी ह , तो आज म उसे उनके घर पहँ ु चा दँ , ूअगर तुम उ ह राज़ी कर दो, तो जनम-भर तु हारा औसान मानूँ ; मगर वहाँ तो उनके दोन लड़के ख़ून करने को उता हो रहे ह। फर म उसे कैसे िनकाल दँ । ू एक तो नालायक़ आदमी िमला क उसक बाँह पकड़कर दग़ा दे गया। म भी िनकाल दँ ग ा , तो इस दशा म वह कह ं मेहनत-मजूर भी तो न कर सकेगी। कह ं डब -धस मर तो कसे अपराध लगेगा। रहा लड़ कय का याह सो भगवान ् मािलक ह। जब उसका समय आयेगा, कोई न कोई राःता िनकल ह आयेगा। लड़क तो हमार बरादर म आज तक कभी कुँआर नह ं रह । बरादर के डर से ह यारे का काम नह ं कर सकता। होर नॆ ःवभाव का आदमी था। सदा िसर झुकाकर चलता और चार बात ग़म खा लेता था। ह रा को छोड़कर गाँव म कोई उसका अ हत न चाहता था, पर समाज इतना बड़ा अनथ कैसे सह ले ! और उसक मुटमद र ् तो दे खो क समझाने पर भी नह समझता। ी-पु ष दोन जैसे समाज को चुनौती दे रहे ह क दे ख कोई उनका या कर लेता है । तो समाज भी दखा दे गा क उसक मयादा तोड़नेवाले सुख क नींद नह ं सो सकते। उसी रात को इस समःया पर वचार करने के िलए गाँव के वधाताओं क बैठक हई। दाताद न बोले -- मेर आदत कसी क िन दा करने क नह ं है । संसार म धिनया तो मुझसे लड़ने पर उता कुपथ के िसवा और या या कुकम नह ं होता; अपने स या मतलब। मगर वह राँड़ हो गयी। भाइय का हःसा दबाकर हाथ म चार पैसे हो गये , तो अब या सूझेगी। नीच जात, जहाँ पेट -भर रोट खायी और टे ढ़े चले , इसी से तो सासतर म कहा है -- नीच जात लितयाये अ छा। पटे र ने ना रयल का कश लगाते हए कहा -- यह तो इनम बुराई है क चार पैसे दे खे और आँख बदलीं। आज होर ने ऐसी हे कड़ जतायी क म अपना-सा मुँह लेकर रह गया। न जाने अपने को को दे खकर दसर या समझता है । अब सोचो, इस अनीित का गाँव म या फल होगा। झुिनया वधवाओं का मन बढ़े गा क नह ं ? आज भोला के घर म यह बात हई। कल हमारे - तु हारे घर म भी होगी। समाज तो भय के बल से चलता है । आज समाज का आँकुस जाता रहे , फर दे खो संसार म या- या अनथ होने लगते ह। झंगुर िसंह दो य के पित थे। पहली ी पाँच लड़के -लड़ कया छोड़कर मर थी। उस समय इनक अवःथा पतािलस के लगभग थी; पर आपने दसरा याह कया और जब उससे कोई स तान न हई , तो तीसरा याह कर डाला। अब इनक पचास क अवःथा थी और दो जवान प याँ घर म बैठ हई थीं। उन दोन ह के वषय म तरह -तरह क बात फैल रह थीं ; पर ठाकुर साहब के डर से कोई कुछ कह न सकता था, और कहने का अवसर भी तो हो। पित क आड़ म सब कुछ जायज़ है । मुसीबत तो उसको है , जसे कोई आड़ नह ं। ठाकुर साहब और उ ह घमंड था क उनक होता है , उसक उ ह य पर बड़ा कठोर शासन रखते थ प य का घूँघट तक कसी ने न दे खा होगा। मगर घूँघट क आड़ म या या ख़बर? बोले -- ऐसी औरत का तो िसर काट ले। होर ने इस कुलटा को घर रखकर समाज म वष बोया है । ऐसे आदमी को गाँव म रहने दे ना सारे गाँव को ॅ करना है । राय साहब को इसक सूचना दे नी चा हए। साफ़-साफ़ कह दे ना चा हए, अगर गाँव म यह अनीित चली तो कसी क आब सलामत न रहे गी। प डत नोखेराम कारकुन बड़े कुलीन ॄा ण थे। इनके दादा कसी राजा के द वान थे ! पर अपना सब कुछ भगवान ् के चरण म भट करके साधु हो गये थे। इनके बाप ने भी राम - नाम क खेती म उॆ काट द । नोखेराम ने भी वह िभ तरके म पायी थी। ूातःकाल पूजा पर बैठ जात थे और दस बजे तक बैठे राम-नाम िलखा करते थे ; मगर भगवान ् के सामने से उठते ह उनक मानवता इस अवरोध से वकृ त होकर उनके मन, वचन और कम सभी को वषा कर दे ती थी। इस ूःताव म उनके अिधकार का अपमान होता था। फूले हए गाल म धँसी हई आँख िनकालकर बोले -- इसम रायसाहब स या पूछना है । म जो चाहँू , कर सकता हँ ू । लगा दो सौ पये डाँड़। आप गाँव छोड़कर भागेगा। इधर बेदख़ली भी दायर कये दे ता हँ ू । पटे र ने कहा -- मगर लगान तो बेबाक़ कर चुका है ? झंगुर िसंह ने समथन कया -- हाँ , लगान के िलए ह तो हमसे तीस -- ले कन अभी रसीद तो नह ं द । सबूत हआ क होर पर सौ पए िलये ह। नोखेराम ने घमंड के साथ कहा या है क लगान बेबाक़ कर दया। सवस मित से यह तय पए तवान लगा दया जाय। केवल एक दन गाँव के आदिमय को बटोरकर उनक मंज़ूर ले लेने का अिभनय आवँयक था। स भव था, इसम दस-पाँच दन क दे र हो जाती। पर आज ह रात को झुिनया के लड़का पैदा हो गया। और दसर ह दन गाँववाल क पंचायत बैठ गयी। होर और धिनया, दोन अपनी क़ःमत का फ़ैसला सुनने के िलए बुलाए गये। चौपाल म इतनी भीड़ थी क कह ितल रखने क जगह न थी। पंचायत ने फ़ैसला कया क होर पर सौ पए नक़द और तीस मन अनाज डाँड़ लगाया जाय। धिनया भर सभा म रकुँआरधे हए कंठ से बोली -- पंचो, ग़र ब को सताकर सुख न पाओगे , इतना समझ लेना। हम तो िमट जायँगे , कौन जाने , इस गाँव म रह या न रह, ले कन मेरा सराप तुमको भी ज़ र से ज़ र लगेगा। मुझसे इतना कड़ा जर बाना इसिलये िलया जा रहा है क मने अपनी बह ू को य अपने घर म रखा। य उसे घर से िनकालकर सड़क क िभखा रन नह ं बना दया। यह है , ऐं ? पटे र बोले -- वह तेर बह ू नह ं है , हरजाई है । होर ने धिनया को डाँटा -- त याय य बोलती ह धिनया! पंच म परमेसर रहते ह। उनका जो याय है , वह िसर आँख पर; अगर भगवान ् क यह इ छा ह क हम गाँव छोड़कर भाग जायँ , तो हमारा या बस। पंचो, हमारे पास जो कुछ है , वह अभी खिलहान म है । एक दाना भी घर म नह ं आया, जतना चाहो, ले लो। सब लेना चाहो, सब ले लो। हमारा भगवान मािलक है , जतनी कमी पड़े , उसम हमारे दोन बैल ले लेना। धिनया दाँत कटकटाकर बोली -- म एक दाना न अनाज दँ ग ी , न एक कौड़ डाँड़। जसम बूता हो, चलकर मुझसे ले। अ छ द लगी है । सोचा होगा डाँड़ के बहाने इसक सब जैजात ले लो और नज़राना लेकर दसर को दे दो। बाग़ -बग़ीचा बेचकर मज़े स तर माल उड़ाओ। धिनया के जीते - जी यह नह ं होने का, और तु हार लालसा तु हारे मन म ह रहे गी। हम नह ं रहना है बरादर म। बरादर म रहकर हमार मुकुत न हो जायगी। अब भी अपने पसीने क कमाई खाते ह, तब भी अपने पसीने क कमाई खायँगे। होर ने उसके सामने हाथ जोड़कर कहा -- धिनया, तेरे पैर पड़ता हँू , चुप रह। हम सब बरादर के चाकर ह, उसके बाहर नह ं जा सकते। वह जो डाँड़ लगाती है , उसे िसर झुकाकर मंज़ूर कर। न कू बनकर जीने से तो गले म फाँसी लगा लेना अ छा है । आज मर जायँ , तो बरादर ह तो इस िम ट को पार लगायेगी? बरादर ह तारे गी तो तरगे। पंचो, मुझे अपने जवान बेटे का मुँह दे खना नसीब न हो, अगर मेरे पास खिलहान के अनाज के िसवा और कोई चीज़ हो। म बरादर से दग़ा न क ँ गा। पंच को मेरे बाल-ब च पर दया आये , तो उनक कुछ परव रस कर, नह ं मुझे तो उनक आ ना पालनी है । धिनया झ लाकर वहाँ से चली गयी और होर पहर रात तक खिलहान से अनाज ढो-ढोकर झंगुर िसंह क चौपाल म ढे र करता रहा। बीस मन जौ था, पाँच मन गेह ू ँ और इतना ह मटर , थोड़ा-सा चना और तेलहन भी था। अकेला आदमी और दो गृ हःथय का बोझ। यह जो कुछ हआ , धिनया के पु षाथ से हआ। झुिनया भीतर का सारा काम कर लेती थी और धिनया अपनी लड़ कय के साथ खेती म जुट गयी थी। दोन ने सोचा था, गेह ू ँ और तेलहन से लगान क एक क़ःत अदा हो जायगी और हो सके तो थोड़ा-थोड़ा सूद भी दे दगे। जौ खाने के काम म आयेगा। लंगे - तंगे पाँच -छः मह ने कट जायँगे तब तक जुआर, म का, साँवाँ , धान के दन आ जायगे। वह सार आशा िम ट म िमल गयी। अनाज तो हाथसे गये ह , सौ पए क गठर और िसर पर लद गयी। अब भोजन का कह ं ठकाना नह ं। और गोबर का या हाल हआ , भगवान ् जाने। न हाल न हवाल। अगर दल इतना क चा था , तो ऐसा काम ह य कया; मगर होनहार को कौन टाल सकता है । बरादर का वह आतंक था क अपने िसर पर लादकर अनाज ढो रहा था, मानो अपने हाथ अपनी क़ॄ खोद रहा हो। ज़मींदार, साहकार , सरकार कसका इतना रोब था? कल बाल-ब च या खायँगे , इसक िच ता ूाण को सोखे लेती थी; पर बरादर का भय पशाच क भाँित िसर पर सवार आँकुस दये जा रहा था। बरादर से पृथक जीवन क वह कोई क पना ह न कर सकता था। शाद - याह, मूँड़न-छे दन, ज म-मरण सब कुछ बरादर के हाथ म है । बरादर उसके जीवन म व क भाँित जड़ जमाये हए थी और उसक नस उसके रोम -रोम म ब धी हई थीं। बरादर से िनकलकर उसका जीवन वशृंखल हो जायगा -- तार-तार हो जायगा। जब खिलहान म केवल डे ढ़ -दो मन जौ रह गया, तो धिनया ने दौड़कर उसका हाथ पकड़ िलया और बोली -- अ छा, अब रहने दो। ढो तो चुके बरादर क लाज। ब च के िलए भी कुछ छोड़ोगे क सब बरादर के भाड़ म झ क दोगे। म तुमसे हार जाती हँ ू । मेरे भा य म तु ह ं जैसे बु ू का संग िलखा था ! होर ने अपना हाथ छड़ाकर टोकर म शेष अनाज भरते हए कहा -- यह न होगा धिनया, पंच क आँख बचाकर एक दाना भी रख लेना मेरे िलए हराम है । म ले जाकर सब-का-सब वहाँ ढे र कर दे ता हँ ू । फर पंच के मन म दया उपजेगी , तो कुछ मेरे बाल-ब च के िलए दगे। नह ं भगवान ् मािलक ह। धिनया ितलिमलाकर बोली -- यह पंच नह ं ह, रा स ह, प के राछस! यह सब हमार जगह-ज़मीन छ नकर माल मारना चाहते ह। डाँड़ तो बहाना है । समझाती जाती हँू ; पर तु हार आँख नह ं खुलतीं। तुम इन पशाच से दया क आसा रखते हो। सोचते हो, दस-पाँच मन िनकालकर तु ह दे दगे। मुँह धो रखो। जब होर ने न माना और टोकर िसर पर रखने लगा तो धिनया ने दोन हाथ से पूर िश के साथ टोकर पकड़ ली और बोली -- इसे तो म न ले जाने दँ ग ी , चाहे तुम मेर जान ह ले लो। मर-मरकर हमने कमाया, पहर रात-रात को सींचा, अगोरा, इसिलये क पंच लोग मूछ पर ताव दे कर भोग लगाय और हमारे ब चे दाने - दाने को तरस। तुमने अकेले ह सब कुछ नह कर िलया है । म भी अपनी ब चय के साथ सती हई हँ ू । सीधे से टोकर रख दो , नह ं आज सदा के िलए जायगा। कहे दे ती हँ ू । होर सोच म पड़ गया। धिनया के कथन म स य था। उसे अपने बाल - नाता टट ब च क कमाई छ नकर तावान दे ने का या अिधकार है ? वह घर का ःवामी इसिलए है क सबका पालन करे , इसिलए नह ं क उनक कमाई छ नकर बरादर क नज़र म सुख़ - बने। टोकर उसके हाथ स गयी। धीरे से बोला -- तू ठ क कहती है धिनया! दसर छट के हःसे पर मेरा कोई ज़ोर नह ं है । जो कुछ बचा है , वह ले जा, म जाकर पंच से कहे दे ता हँ ू । धिनया अनाज क टोकर घर म रखकर अपनी दोन लड़ कय के साथ पोते के ज मो सव म गला फाड़-फाड़कर सोहर गा रह थी, जसम सारा गाँव सुन ले। आज यह पहला मौक़ा था क ऐसे शुभ अवसर पर बरादर क कोई औरत न थी। सौर से झुिनया न कहला भेजा था, सोहर गाने का काम नह ं है ; ले कन धिनया कब मानने लगी। अगर वरादर को उसक परवा नह ं है , तो वह भी बरादर क परवा नह ं करती। उसी वईत होर अपने घर को अःसी झंगुर िसंह के हाथ िगर रख रहा था। डाँड़ के था। बीस पए पर पए का इसके िसवा वह और कोई ूब ध न कर सकता पए तो तेलहन, गेह ू ँ और मटर से िमल गये। शेष के िलए घर िलखना पड़ गया। नोखेराम तो चाहते थे क बैल बकवा िलए जायँ ; ले कन पटे र और दाताद न ने इसका वरोध कया। बैल बक गये , तो होर खेती कैसे करे गा? बरादर उसक जायदाद स पए वसूल करे ; पर ऐसा तो न करे क वह गाँवछोड़कर भाग जाय। इस तरह बैल बच गये। होर रे हननामा िलखकर कोई यारह बजे रात घर आया तो, धिनया ने पूछा -- इतनी रात तक वहा कहा -- करता या करते रहे ? होर ने जुलाहे का ग़ुःसा दाढ़ पर उतारते हए या रहा, इस ल डे क करनी भरता रहा। अभागा आप तो िचनगार छोड़कर भागा, आग मुझे बुझानी पड़ रह है । अःसी बरादर ने अपराध पए म घर रे हन िलखना पड़ा। करता मा कर दया। धिनया ने ओठ चबाकर कहा -- न हईक़ा खुलता , तो हमारा बगड़ा जाता था। चार-पाँच मह ने नह ं कसी का हईक़ा पया , तो इतने भ द या! अब हईक़ा खुल गया। या या छोटे हो गये ? म कहती हँू , तुम य हो ? मेरे सामने तो बड़े बु मान बनते हो, बाहर तु हारा मुँह य ब द हो जाता है ? ले - द के बाप-दाद क िनसानी एक घर बच रहा था, आज तुमने उसका भी वारा- यारा कर दया। इसी तरह कल यह तीन-चार बीघे ज़मीन है , इसे भी िलख दे ना और तब गली-गली भीख माँगना। म पूछती हँू , तु हारे मुँह म जीभ न थी क उन पंच से पूछते , तुम कहाँ के बड़े धमा मा हो, जो दसर पर डाँड़ लगात फरते हो, तु हारा तो मुँह दे खना भी पाप है । होर ने डाँटा -- चुप रह, बहत चढ़ -चढ़ न बोल। बरादर के च कर म अभी पड़ नह ं है , नह ं मुँह से बात न िनकलती। धिनया उ े जत हो गयी -- कौन-सा पाप कया है , जसके िलए बरादर से डर, कसी क चोर क है , कसी का माल काटा है ? मेह रया रख लेना पाप नह ं है , हाँ , रख के छोड़ दे ना पाप है । आदमी का बहत सीधा होना भी बुरा है । उसके सीधेपन का फल यह होता है क कु े भी मुँह चाटने लगते ह। आज उधर तु हार वाह-वाह हो रह होगी क बरादर क कैसी मरजाद रख ली। मेरे भाग फूट गये थे क तुम जैसे मद से पाला पड़ा। कभी सुख क रोट न िमली। ' म तेरे बाप के पाँव पड़ने गया था? वह तुझे मेरे गले बाँध गया। ' ' प थर पड़ गया था उनक अ कल पर और उ ह या कहँ ू ? न जान कोई बड़े सु दर भी तो न थे तुम। ' ववाद वनोद के या दे खकर ल ट ू हो गये। ऐस ेऽ म आ गया। अःसी पए गये तो गये , लाख पए का बालक तो िमल गया! उसे तो कोई न छ न लेगा। गोबर घर लौट आये , धिनया अलग झोपड़ म भी सुखी रहे गी। होर ने पूछा -- ब चा कसको पड़ा है ? धिनया ने ूस न मुख होकर जवाब दया -- बलकुल गोबर को पड़ा है । सच! ' र -प तो है ? ' ' हाँ , अ छा है । ' ूेमच द गोदान रात को गोबर झुिनया के साथ चला, तो ऐसा काँप रहा था, जैसे उसक नाक कट हई हो। झुिनया को दे खते ह सारे गाँव म कुहराम मच जायगा, लोग चार ओर से कैसी हाय-हाय मचायगे , धिनया कतनी गािलयाँ दे गी, यह सोच-सोचकर उसके पाँव पीछे रहे जाते थे। होर का तो उसे भय न था। वह केवल एक बार धाड़गे , फर शा त हो जायँगे। डर था धिनया का, ज़हर खाने लगेगी, घर म आग लगान लगेगी। नह ं , इस वईत वह झुिनया के साथ घर नह ं जा सकता। ले कन कह ं धिनया ने झुिनया को घर म घुसने ह न दया और झाड़ ू लेकर मारने दौड़ , तो वह बेचार कहाँ जायगी। अपने घर तो लौट ह नह सकती। कह ं कुएँ म कूद पड़े या गले म फाँसी लगा ले , तो या हो। उसने ल बी साँस ली। कसक शरण ले। मगर अ माँ इतनी िनदयी नह ं ह क मारने दौड़। बोध म दो-चार गािलयाँ दगी! ले कन जब झुिनया उसके पाँव पड़कर रोने लगेगी, तो उ ह ज़ र दया आ जायगी। तब तक वह ख़ुद कह ं िछपा रहे गा। जब उपिव शा त हो जायगा, तब वह एक दन धीरे से आयेगा और अ माँ को मना लेगा, अगर इस बीच उस कह ं मजूर िमल जाय और दो-चार पए लेकर घर लौटे , तो फर धिनया का मुँह ब द हो जायगा। झुिनया बोली -- मेर छाती धक-धक कर रह है । म या जानती थी, तुम मेरे गले यह रोग मढ़ दोगे। न जाने कस बुर साइत म तुमको दे खा। न तुम गाय लेने आते , न यह सब कुछ होता। तुम आगे - आग जाकर जो कुछ कहना-सुनना हो, कह-सुन लेना। म पीछे से जाऊँगी। गोबर ने कहा -- नह ं - नह ं , पहले तुम जाना और कहना, म बाज़ार से सौदा बेचकर घर जा रह थी। रात हो गयी है , अब कैसे जाऊँ। तब तक म आ जाऊँगा। झुिनया ने िच तत मन से कहा -- तु हार अ माँ बड़ ग़ुःसैल ह। मेरा तो जी काँपता है । कह ं मुझे मारने लग तो या क ँ गी। गोबर ने धीरज दलाया -- अ माँ क आदत ऐसी नह ं। हम लोग तक को तो कभी एक तमाचा मारा नह ं , तु ह या मारगी। उनको जो कुछ कहना होगा मुझे कहगी, तुमसे तो बोलगी भी नह ं। गाँव समीप आ गया। गोबर ने ठठककर कहा -- अब तुम जाओ। झुिनया न अनुरोध कया -- तुम भी दे र न करना। ' नह ं - नह ं , छन भर म आता हँू , तू चल तो। ' ' मेरा जी न जाने कैसा हो रहा है । तु हारे ऊपर बोध आता है । ' ' तुम इतना डरती य हो? म तो आ ह रहा हँ ू । ' ' इससे तो कह ं अ छा था क कसी दसर जगह भाग चलते। ' ' जब अपना घर है , तो य कह ं भाग? तुम नाहक़ डर रह हो। ' ' ज द से आओगे न? ' ' हाँ - हाँ , अभी आता हँ ू । ' ' मुझसे दग़ा तो नह ं कर रहे हो? मुझे घर भेजकर आप कह ं चलते बनो। ' ' इतना नीच नह ं हँ ू झूना ! जब तेर बाँह पकड़ है , तो मरते दम तक िनभाऊँगा। ' झुिनया घर क ओर चली। गोबर एक ण द ु वधे म पड़ा खड़ा रहा। फर एका -एक िसर पर मँडरानेवालीिध कार क क पना भयंकर तो प धारण करके उसके सामने खड़ हो गयी। कह ं सचमुच अ माँ मारने दौड़, या हो? उसके पाँव जैसे धरती से िचमट गये। उसके और उसके घर के बीच केवल आम का छोटा- सा बाग़ था। झुिनया क काली परछा धीरे - धीरे जाती हई द ख रह थी। उसक ान ियाँ बहत तेज़ हो गयी थीं। उसके कान म ऐसी भनक पड़ , जैसे अ माँ झुिनया को गाली दे रह ह। उसके मन क कुछ ऐसी दशा हो रह थी, मानो िसर पर गड़ाँसे का हाथ पड़ने वाला हो। दे ह का सारा र एक जैसे सूख गया हो। ण के बाद उसने दे खा, जैसे धिनया घर से िनकलकर कह ं जा रह हो। दादा के पास जाती होगी! साइत दादा खा-पीकर मटर अगोरने चले गये ह। वह मटर के खेत क ओर चला। जौ-गेह ू ँ के खेत को र दता हआ वह इस तरह भागा जा रहा था , मानो पीछे दौड़ आ रह है । वह है दादा क मँड़ैया। वह क गया और दबे पाँव जाकर मँड़ैया के पीछे बैठ गया। उसका अनुमान ठ क िनकला। वह पहँ ु चा ह था क धिनया क बोली सुनायी द । ओह! ग़ज़ब हो गया। अ माँ इतनी कठोर ह। एक अनाथ लड़क पर इ ह तिनक भी दया नह ं आती। और जो म भी सामने जाकर फटकार दँ ू क तुमको झुिनया से बोलने का कोई मजाल नह ं है , तो सार सेखी िनकल जाय। अ छा! दादा भी बगड़ रहे ह। केले के िलए आज ठ करा भी तेज़ हो गया। म ज़रा अदब करता हँू , उसी का फल है । यह तो दादा भी वह ं जा रहे ह। अगर झुिनया को इ ह ने मारा-पीटा तो मुझसे न सहा जायगा। भगवान ्! अब तु हारा ह भरोसा है । म न जानता था इस वपत म जान फँसेगी। झुिनया मुझे अपने मन म कतना धूत , कायर और नीच समझ रह होगी; मगर उसे मार कैसे सकते ह? घर से िनकाल भी कैसे सकते ह? या घर म मेरा हःसा नह ं है ? अगर झुिनया पर कसी ने हाथ उठाया, तो आज महाभारत हो जायगा। माँ - बाप जब तक लड़क क र ा कर, माँ - बाप ह। जब उनम ममता ह नह ं है , तो कैसे माँ - बाप! होर पाँव धीरे - धीरे पीछे -पीछे चला; ले कन तब तक य ह मँड़ैया से िनकला, गोबर भी दब ार पर ूकाश दे खकर उसके पाँव बँध गये। उस ूकाशरे खा के अ दर वह पाँव नह ं रख सकता। वह अँधेरे म ह द वार से िचमट कर खड़ा हो गया। उसक ह मत न जवाब दे दया। हाय! बेचार झुिनया पर िनरपराध यह लोग झ ला रहे ह, और वह कुछ नह ं कर सकता। उसने खेल -खेल म जो एक िचनगार फ क द थी, वह सारे खिलहान को भःम कर दे गी, यह उसने न समझा था। और अब उसम इतना साहस न था क सामने आकर कहे -- हाँ , मने िचनगार फ क थी। जन टकौन से उसने अपने मन को सँभाला था, वे सब इस भूक प म नीचे आ रहे और वह झ पड़ा नीच िगर पड़ा। वह पीछे लौटा। अब वह झुिनया को या मुँह दखाये। वह सौ क़दम चला; पर इस तरह, जैसे कोई िसपाह मैदान से भागे। उसने झुिनया से ूीित और ववाह क जो बात क थीं , वह सब याद आन लगीं। वह अिभसार क मीठ ःमृितयाँ याद आयीं जब वह अपने उ म उसास म, अपनी नशीली िचतवन म मानो अपने ूाण िनकालकर उसके चरण पर रख दे ता था। झुिनया कसी वयोगी प ी क भाँित अपन छोटे - से घ सले म एका त-जीवन काट रह थी। वहाँ नर का म आमह न था, न वह उ उ लास, न शावक क मीठ आवाज़; मगर बहे िलये का जाल और छल भी तो वहाँ न था। गोबर ने उसके एका त घोसले म जाकर उसे कुछ आन द पहँ ु चाया या नह ं , कौन जाने ; पर उसे व प म तो डाल ह दया। वह सँभल गया। भागता हआ िसपाह मानो अपने एक साथी का बढ़ावा सुनकर पीछे लौट पड़ा। उसन ार पर आकर दे खा, तो कवाड़ ब द हो गये थे। कवाड़ के दराज से ूकाश क रे खाएँ बाहर िनकल रह थीं। उसने एक दराज़ से बाहर झाँका। धिनया और झुिनया बैठ हई थीं। होर खड़ा था। झुिनया क िसस कया सुनायी दे रह थीं और धिनया उसे समझा रह थी -- बेट , तू चलकर घर म बैठ। म तेरे काका औरभाइय को दे ख लूँगी। जब तक हम जीते ह, कसी बात क िच ता नह ं है । हमारे रहते कोई तुझे ितरछ आँख दे ख भी न सकेगा। गोबर ग द हो गया। आज वह कसी लायक़ होता, तो दादा और अ माँ को सोने से मढ़ दे ता और कहता -- अब तुम कुछ परवा न करो, आराम से बैठे खाओ और जतना दान-पुन करना चाहो, करो। झुिनया के ूित अब उसे कोई शंका नह ं है । वह उसे जो आौय दे ना चाहता था वह िमल गया। झुिनया उसे दग़ाबाज़ समझती है , तो समझे। वह तो अब तभी घर आयेगा, जब वह पैसे के बल से सारे गाँव का मुँह ब द कर सके और दादा और अ माँ उसे कुल का कलंक न समझकर कुल का ितलक समझ। मन पर जतना ह गहरा आघात होता है , उसक ूित बया भी उतनी ह गहर होती है । इस अपक ित और कलंक ने गोबर के अ तःतल को मथकर वह र पड़ा था। आज पहली बार उसे अपने दािय व का िनकाल िलया जो अभी तक िछपा ान हआ और उसके साथ ह संक प भी। अब तक वह कम से कम काम करता और एयादा से एयादा खाना अपना हक़ समझता था। उसके मन म कभी यह वचार ह नह ं उठा था क घरवाल के साथ उसका भी कुछ कत य है । आज माता- पता क उदा ने जैसे उसके मा दय म ूकाश डाल दया। जब धिनया और झुिनया भीतर चली गयीं , तो वह होर क उसी मड़ै या म जा बैठा और भ वंय के मंसूबे बाँधने लगा। शहर के बेलदार को पाँच -छः आने रोज़ िमलते ह, यह उसने सुन रखा था। अगर उसे छः आने रोज़ िमल और वह एक आने म गुज़र कर ले , तो पाँच आन रोज़ बच जायँ। मह ने म दस पए होते ह, और साल-भर म सवा सौ। वह सवा सौ क थैली लेकर घर आये , तो कसक मजाल है , जो उसके सामने मुँह खोल सके। यह दाताद न और यह पटे सुर आकर उसक हाँ म हाँ िमलायगे। और झुिनया तो मारे गव के फूल जाय। दो चार साल वह इसी तरह कमाता रहे , तो घर का सारा दिल र िमट जाय। अभी तो सारे घर क कमाई भी सवा सौ नह ं होती। अब वह अकेला सवा सौ कमायेगा। यह तो लोग कहगे क मजूर करता है । कहने दो। मजूर करना कोई पाप तो नह ं है । और सदा छः आने ह थोड़े िमलगे। जैसे - जैसे वह काम म होिशयार होगा, मजूर भी तो बढ़े गी। तब वह दादा से कहे गा, अब तुम घर बैठकर भगवान ् का भजन करो। इस खेती म जान खपाने के िसवा और या रखा है । सबसे पहले वह एक पछायीं गाय लायेगा, जो चार-पाँच सेर दध दे गी और दादा स कहे गा, तुम गऊ माता क सेवा करो। इससे तु हारा लोक भी बनेगा, परलोक भी। और उसका गुज़र आराम से न होगा? घर- ार लेकर या करना है । कसी के ओसार म पड़ा रहे गा। सैकड़ म दर ह, धरमसाले ह। और फर जसक वह मजूर करे गा, आटा या, एक आने म या वह उसे रहने के िलए जगह न दे गा? पए का दस सेर आता है । एक आने म ढाई पाव हआ। एक आने का तो वह आटा ह खा जायगा। लकड़ , दाल, नमक, साग यह सब कहाँ से आयेगा? दोन जून के िलए सेर भर तो आटा ह चा हए। ओह! खाने क तो कुछ न पूछो। मु ठ भर चने म भी काम चल सकता है । हलुवा और पूर खाकर भी काम चल सकता है । जैसी कमाई हो। वह आध सेर आटा खाकर दन भर मज़े से काम कर सकता है । इधर- उधर से उपले चुन िलये , लकड़ का काम चल गया। कभी एक पैसे क दाल ले ली, कभी आलू। आल भूनकर भुरता बना िलया। यहाँ दन काटना है क चैन करना है । प ल पर आटा गूँधा, उपल पर बा टया सक , आलू भूनकर भुरता बनाया और मज़े से खाकर सो रहे । घर ह पर कौन दोन जून रोट िमलती है , एक जून चबेना ह िमलता है । वहाँ भी एक जून चबेने पर काटगे। उसे शंका हई ; अगर कभी मजूर न िमली, तो वह या करे गा? मगर मजूर य न िमलेगी? जब वह जी तोड़कर काम करे गा, तो सौ आदमी उसे बुलायगे। काम सबको यारा होता है , चाम नह ं यारा होता। यहाँ भी तो सूखा पड़ता है , पाला िगरताहै , ऊख म द मक लगते ह, जौ म गे ई लगती है , सरस म लाह लग जाती है । उसे रात को कोई काम िमल जायगा, तो उसे भी न छोड़े गा। दन-भर मजूर क ; रात कह ं चौक दार कर लेगा। दो आने भी रात के काम म िमल जायँ , तो चाँद है । जब वह लौटे गा, तो सबके िलए सा ड़याँ लायेगा। झुिनया के िलए हाथ का कंगन ज़ र बनवायेगा और दादा के िलए एक मुँड़ासा लायेगा। इ ह ं मनमोदक का ःवाद लेता हआ वह सो गया; ले कन ठं ड म नींद कहाँ ! कसी तरह रात काट और तड़के उठ कर लखनऊ क सड़क पकड़ ली। बीस कोस ह तो है । साँझ तक पहँ ु च जायगा। गाँव का कौन आदमी वहाँ आता -जाता है और वह अपना ठकाना नह ं िलखेगा, नह ं दादा दसर ह यह क झुिनया स दन िसर पर सवार हो जायँगे। उसे कुछ पछतावा था , तो य न साफ़-साफ़ कह दया -- अभी तू घर जा, म थोड़े दन म कुछ कमा-धमाकर लौटँ ू गा ; ले कन तब वह घर जाती ह य । कहती -- म भी तु हारे साथ लौटँ ू गी। उसे वह कहाँ -कहाँ बाँधे फरता। दन चढ़ने लगा। रात को कुछ न खाया था। भूख मालूम होने लगी। पाँव लड़खड़ाने लगे। कह बैठकर दम लेने क इ छा होती थी। बना कुछ पेट म डाले वह अब नह ं चल सकता; ले कन पास एक पैसा भी नह ं है । सड़क के कनारे झुड़ -बे रय के झाड़ थे। उसने थोड़े से बेर तोड़ िलये और उदर को बहलाता हआ चला। एक गाँव म गुड़ पकने क सुग ध आयी। अब मन न माना। को हाड़ म जाकर लोटा - डोर माँगा और पानी भर कर चु लू से पीने बैठा क एक कसान ने कहा -- अरे भाई, या िनराला ह पानी पयोगे ? थोड़ा-सा मीठा खा लो। अबक और चला ल को ह ू और बना ल खाँड़। अगले साल तक िमल तैयार हो जायगी। सार ऊख खड़ बक जायगी। गुड़ और खाँड़ के भाव चीनी िमलेगी, तो हमारा गुड़ कौन लेगा? उसने एक कटोरे म गुड़ क कई प डयाँ लाकर द ं। गोबर ने गुड़ खाया, पानी पया। तमाखू तो पीते होगे ? गोबर ने बहाना कया। अभी िचलम नह ं पीता। बु ढे ने ूस न होकर कहा -- बड़ा अ छा करते हो भैया! बुरा रोग है । एक बेर पकड़ ले , तो ज़ दगी भर नह ं छोड़ता। इं जन को कोयला-पानी भी िमल गया, चाल तेज़ हई। जाड़े के दन , न जाने कब दोपहर हो गया। एक जगह दे खा, एक युवती एक व के नीचे पित से स यामह कये बैठ थी। पित सामने खड़ा उसे मना रहा था। दो-चार राहगीर तमाशा दे खने खड़े हो गये थे। गोबर भी खड़ा हो गया। मानलीला से रोचक और कौन जीवन-नाटक होगा? युवती ने पित क ओर घूरकर कहा -- म न जाऊँगी, न जाऊँगी, न जाऊँगी। पु ष ने ये जैसे अ टमेटम दया -- न जायगी? ' न जाऊँगी। ' ' न जाऊँगी? ' ' न जाऊँगी। ' पु ष ने उसके केश पकड़कर घसीटना श फर कहता हँू , उठकर चल। ी ने उसी कया। युवती भूिम पर लोट गयी। पु ष ने हारकर कहा -- म ढ़ता से कहा -- म तेरे घर सात जनम न जाऊँगी, बोट -बोट काट डाल। ' म तेरा गला काट लूँगा। ' ' तो फाँसी पाओगे। ' पु ष ने उसके केश छोड़ दये और िसर पर हाथ रखकर बैठ गया। पु ष व अपनी चरम सीमा तक पहँ ु च गया। उसके आगे अब उसका कोई बस नह ं है । एक ण म वह फर खड़ा हआ और पराःत होकर बोला-- आ ख़र त या चाहती है ? युवती भी उठ बैठ , और िन ल भाव से बोली -- म यह चाहती हँू , तू मुझे छोड़ दे । ' कुछ मुँह से कहे गी, ' मेरे भाई-बाप को कोई या बात हई ? ' य गाली दे ? ' ' कसने गाली द , तेरे भाई-बाप को? ' ' जाकर अपने घर म पूछ ! ' ' चलेगी तभी तो पूछ ू ँ गा ? ' ' त या पूछेगा? कुछ दम भी है । जाकर अ माँ के आँचल म मुँह ढाँककर सो। वह तेर माँ होगी। मेर कोई नह ं है । तू उसक गािलयाँ सुन। म य य सुनूँ ? एक रोट खाती हँू , तो चार रोट का काम करती हँ ू । कसी क ध स सहँू ? म तेरा एक पीतल का छ ला भी तो नह ं जानती! ' राहगीर को इस कलह म अिभनय का आन द आ रहा था; मगर उसके ज द समा होने क कोई आशा न थी। मं ज़ल खोट होती थी। एक-एक करके लोग खसकने लगे। गोबर को पु ष क िनदयता बुर लग रह थी। भीड़ के सामने तो कुछ न कह सकता था। मैदान ख़ाली हआ , तो बोला -- भाई मद और औरत के बीच म बोलना तो न चा हए, मगर इतनी बेदरद भी अ छ नह ं होती। पु ष ने कौड़ क -सी आँख िनकालकर कहा -- तुम कौन हो? गोबर ने िनःशंक भाव से कहा -- म कोई हँू ; ले कन अनुिचत बात दे खकर सभी को बुरा लगता है । पु ष ने िसर हलाकर कहा -- मालूम होता है , अभी मेह रया नह ं आयी, तभी इतना दद है ! ' मेह रया आयेगी, तो भी उसके झ टे पकड़कर न खीचूँगा। ' ' अ छा तो अपनी राह लो। मेर औरत है , म उसे मा ँ गा, काटँ ू गा। तुम कौन होते हो बोलने -वाले ! चल जाओ सीध से , यहाँ मत खड़े हो। ' गोबर का गम ख़ून और गम हो गया। वह य चला जाय। सड़क सरकार क है । कसी के बाप क नह ं है । वह जब तक चाहे वहाँ खड़ा रह सकता है । वहाँ से उसे हटान का कसी को अिधकार नह ं है । पु ष ने ओठ चबाकर कहा -- तो तुम न जाओगे ? आऊँ ? गोबर ने अँगोछा कमर म बाँध िलया और समर के िलए तैयार होकर बोला -- तुम आओ या न आओ। म तो तभी जाऊँगा, जब मेर इ छा होगी। 'तो मालूम होता है , हाथ पैर तुड़वा के जाओगे। ' । ' 'यह कौन जानता है , कसके हाथ-पाँव टटग 'तो तुम न जाओगे ? ' 'ना। ' पु ष मु ठ बाँधकर गोबर क ओर झपटा। उसी खींचती हई गोबर से बोली -- तुम ण युवती ने उसक धोती पकड़ ली और उसे अपनी ओर य लड़ाई करने पर उता हो रहे हो जी, अपनी राह य नह ं जाते। यहाँ कोई तमाशा है । हमारा आपस का झगड़ा है । कभी वह मुझे मारता है , कभी म उसे डाँटती हँ ू । तुमस मतलब। गोबर यह िध कार पाकर चलता बना। दल म कहा -- यह औरत मार खाने ह लायक़ है । गोबर आगे िनकल गया, तो युवती ने पित को डाँटा -- तुम सबसे लड़न य लगते हो। उसने कौन-सी बुर बातकह थी क तु ह चोट लग गयी। बुरा काम करोगे , तो दिनया बुरा कहे गी ह ; मगर है कसी भले घर का और अपनी बरादर का ह जान पड़ता है । स दे ह के ःवर म कहा -- या अब तक य उसे अपनी बहन के िलए नह ं ठ क कर लेते ? पित न वाँरा बैठा होगा? ' तो पूछ ह य न लो? ' पु ष ने दस क़दम दौड़कर गोबर को आवाज़ द और हाथ से ठहर जाने का इशारा कया। गोबर ने समझा, शायद फर इसके िसर भूत सवार हआ , तभी ललकार रहा है । मार खाये बना न मानेगा। अपने गाँव म कु ा भी शेर हो जाता है ले कन आने दो। ले कन उसके मुख पर समर क ललकार न थी। मैऽी का िनम ऽण था। उसने गाँव और नाम और जात पूछ । गोबर ने ठ क-ठ क बता दया। उस पु ष का नाम कोदई था। कोदई ने मुःकराकर कहा -- हम दोन म लड़ाई होते - होते बची। तुम चले आये , तो, मने सोचा, तुमने ठ क ह कहा। म नाहक़ तुमसे तन बैठा। कुछ खेती-बार घर म होती है न? गोबर ने बताया, उसके मौ-सी पाँच बीघे खेत ह और एक हल क खेती होती है । ' मने तु ह जो भला-बुरा कहा है , उसक माफ़ दे दो भाई! बोध म आदमी अ धा हो जाता है । औरत गुन -सहर म िल छमी है , मुदा कभी-कभी न जाने कौन-सा भूत इस पर सवार हो जाता है । अब तु ह ं बताओ, माता पर मेरा या बस है ? ज म तो उ ह ंने दया है , पाला-पोसा तो उ ह ंने है । जब कोई बात होगी, तो म जो कुछ कहँ ू गा , लुगाई ह से कहँ ू गा। उस पर अपना बस है । तु ह ं सोचो, म कुपद तो नह ं कह रहा हँ ू । हाँ , मुझे उसका बाल पकड़कर घसीटना न था; ले कन औरत जात बना कुछ ताड़ना दये क़ाबू म भी तो नह ं रहती। चाहती है , माँ से अलग हो जाऊँ। तु ह सोचो, कैसे अलग हो जाऊँ और कससे अलग हो जाऊँ। अपनी माँ से ? जसने जनम दया? यह मुझसे न होगा। औरत रहे या जाय। ' गोबर को भी अपनी राय बदलनी पड़ । बोला -- माता का आदर करना तो सबका धरम ह है भाई। माता से कौन उ रन हो सकता है ? कोदई ने उसे अपने घर चलने का नेवता दया। आज वह कसी तरह लखनऊ नह ं पहँ ु च सकता। कोस दो कोस जाते -जाते साँझ हो जायगी। रात को कह ं न कह ं टकना ह पड़े गा। गोबर ने वनोद दया -- लुगाई मान गयी? ' न मानेगी तो या करे गी। ' ' मुझे तो उसने ऐसी फटकार बतायी क म लजा गया। ' ' वह ख़ुद पछता रह है । चलो, ज़रा माता जी को समझा दे ना। मुझसे तो कुछ कहते नह ं बनता। उ ह भी सोचना चा हए क बह ू को बाप -भाई क गाली य दे ती ह। हमार ह बहन है । चार दन म उसक सगाई हो जायगी। उसक सास हम गािलयाँ दे गी, तो उससे सुना जायगा? सब दोस लुगाई ह का नह ं है । माता का भी दोस है । जब हर बात म वह अपनी बेट का प छ करगी, तो हम बुरा लगेगा ह । इसम इतनी बात अ छ है क घर स ठकर चली जाय; पर गाली का जवाब गाली से नह ं दे ती। ' गोबर को रात के िलए कोई ठकाना चा हए था ह । कोदई के साथ हो िलया। दोन फर उसी जगह आये जहाँ युवती बैठ हई थी। वह अब गृ हणी बन गयी थी। ज़रा-सा घूँघट िनकाल िलया था और लजाने लगी थी। कोदई ने मुःकराकर कहा -- यह तो आते ह न थे। कहते थे , ऐसी डाँट सुनने के बाद उनके घर कैसे जायँ ? युवती ने घूँघट क आड़ से गोबर को दे खकर कहा -- इतनी ह डाँट म डर गये ? लुगाई आ जायगी, तब कहाँ भागोगे ? गाँव समीप ह था। गाँव या था, पुरवा था; दस-बारह घर का, जसम आधे खपरै ल के थे , आधे फूस के। कोदई ने अपने घर पहँ ु चकर खाट िनकाली , उस पर एक दर डाल द , शबत बनाने को कह, िचलम भरलाया। और एक मानो ण म वह युवती लोटे म शबत लेकर आयी और गोबर को पानी का एक छ ंटा मारकर मा माँग ली। वह अब उसका ननदोई हो रहा था। फर य न अभी से छे ड़-छाड़ श कर दे ! ूेमच द गोदान गोबर अँधेरे ह मुँह उठा और कोदई से बदा माँगी। सबको मालूम हो गया था क उसका याह हो चुका है ; इसिलए उससे कोई ववाह-स ब धी चचा नह ं क । उसके शील-ःवभाव ने सारे घर को मु ध कर िलया था। कोदई क माता को तो उसने ऐसे मीठे श द म और उसके मातृपद क र ा करते हए , ऐसा उपदे श दया क उसने ूस न होकर आशीवाद दया था। ' तुम बड़ हो माता जी, पू य हो। पुऽ माता के रन से सौ ज म लेकर भी उ रन नह ं हो सकता, लाख ज म लेकर भी उ रन नह ं हो सकता। करोड़ ज म लेकर भी नह ं ... ' बु ढ़या इस सं यातीत ौ ा पर ग द हो गयी। इसके बाद गोबर ने जो कुछ कहा, उसम बु ढ़या को अपना मंगल ह उसके हाथ दखायी दया। व एक बार रोगी को चंगा कर दे , फर रोगी वष भी ख़ुशी से पी लेगा -- अब जैसे आज ह बह ू घर स ठकर चली गयी , तो कसक हे ठ हई। बह ू को कौन जानता है ? कसक लड़क है , कसक नाितन है , कौन जानता है ! स भव है , उसका बाप घिसयारा ह रहा हो... बु ढ़या ने िन या मक भाव से कहा -- घिसयारा तो है ह बेटा, प का घिसयारा सबेरे उसका मुँह दे ख लो, तो दन-भर पानी न िमले। गोबर बोला -- तो ऐसे आदमी क या हँ सी हो सकती है ! हँ सी हई तु हार और तु हारे आदमी क । जसने पूछा , यह पूछा क कसक बह ू है ? फर वह अभी लड़क है , अबोध, अ हड़। नीच माता- पता क लड़क है , अ छ कहाँ से बन जाय! तुमको तो बूढ़े तोते को राम-नाम पढ़ाना पड़े गा। मारने से तो वह पढ़े गा नह ं , उसे तो सहज ःनेह ह से पढ़ाया जा सकता है । ताड़ना भी दो; ले कन उसके मुँह मत लगो। उसका तो कुछ नह ं बगड़ता, तु हारा अपमान होता है । जब गोबर चलने लगा, तो बु ढ़या ने खाँड़ और स ू िमलाकर उसे खाने को दया। गाँव के और कई आदमी मजूर क टोह म शहर जा रहे थे। बातचीत म राःता कट गया और नौ बजते - बजते सब लोग अमीनाबाद के बाज़ार म जा पहँ ु चे। गोबर है रान था , इतने आदमी नगर म कहाँ से आ गये ? आदमी पर आदमी िगरा पड़ता था। उस दन बाज़ार म चार-पाँच सौ मज़दर ू से कम न थे। राज और बढ़ई और लोहार और बेलदार और खाट बुननेवाले और टोकर ढोनेवाले और संगतराश सभी जमा थे। गोबर यह जमघट दे खकर िनराश हो गया। इतने सारे मजूर को कहाँ काम िमला जाता है । और उसके हाथ म तो कोई औजार भी नह ं है । कोई या जानेगा क वह या काम कर सकता है । कोई उस य रखने लगा। बना औज़ार के उसे कौन पूछेगा? धीरे - धीरे एक-एक करके मजूर को काम िमलता जा रहा था। कुछ लोग िनराश होकर घर लौटे जा रहे थे। अिधकतर वह बूढ़े और िनक मे बच रहे थे , जनका कोई पुछ र न था। और उ ह ं म गोबर भी था। ले कन अभी आज उसके पास खाने को है । कोई ग़म नह ं। सहसा िमरज़ा खुश द ने मज़दर ू के बीच म आकर ऊँची आवाज़ से कहा -- जसको छः आने रोज़ पर काम करना हो, वह मेरे साथ आये। सबको छः आने िमलगे। पाँच बजे छ ु ट िमलेगी। दस -पाँच राज और बढ़इय को छोड़कर सब के सब उनके साथ चलने को तैयार हो गये। चार सौ फटे - हाल क एक वशाल सेना सज गयी। आगे िमरज़ा थे , क धे पर मोटा सोटा रखे हए। पीछे भुखमर क ल बी क़तार थी , जैसे भेड़ ह । एक बूढ़े ने िमरज़ा से पूछा -- कौन काम करना है मािलक? िमरज़ा साहब ने जो काम बतलाया, उस पर सब और भी च कत हो गये। केवलएक कब ड खेलना! यह कैसा आदमी है , जो कब ड खेलने के िलए छः आना रोज़ दे रहा है । सनक तो नह ं है कोई! बहत धन पाकर आदमी सनक ह जाता है । बहत पढ़ लेने से भी आदमी पागल हो जाते ह। कुछ लोग को स दे ह होने लगा, कह ं यह कोई मखौल तो नह ं है ! यहाँ से घर पर ले जाकर कह दे , कोई काम नह ं है , तो कौन इसका या कर लेगा! वह चाहे कब ड खेलाये , चाहे आँख िमचौनी, चाहे गु लीडं डा, मजूर पेशगी दे दे । ऐसे झ कड़ आदमी का या भरोसा? गोबर ने डरते - डरते कहा -- मािलक, हमारे पास कुछ खाने को नह ं है । पैसे िमल जायँ , तो कुछ लेकर खा लूँ। िमरज़ा ने झट छः आने पैसे उसके हाथ म रख दये और ललकारकर बोले -- मजूर सबको चलते - चलते पेशगी दे द जायगी। इसक िच ता मत करो। िमरज़ा साहब ने शहर के बाहर थोड़ -सी ज़मीन ले रखी थी। मजूर ने जाकर दे खा, तो एक बड़ा अहाता िघरा हआ था और उसके अ दर केवल एक छोट -सी फूस क झ पड़ थी, जसम तीन-चार कुिसया थीं , एक मेज़। थोड़ -सी कताब मेज़ पर रखी हई थीं। झ पड़ बेल और लताओं से ढक हई बहत सु दर लगती थी। अहाते म एक तरफ़ आम और नीबू और अम द के पौधे लगे हए तरफ़ कुछ फूल। थे , दसर बड़ा हःसा परती था। िमरज़ा ने सबको क़तार म खड़ा करके ह मजूर बाँट द । अब कसी को उनके पागलपन म स दे ह न रहा। गोबर पैसे पहले ह पा चुका था, िमरज़ा ने उसे बुलाकर पौधे सींचने का काम स पा। उसे कब ड खेलने को न िमलेगी। मन म ऐंठकर रह गया। इन बु ढ को उठा-उठाकर पटकता; ले कन कोई परवाह नह ं। बहत कब ड खेल चुका है । पैसे तो पूरे िमल गये। आज युग के बाद इन ज़रा - मःत को कब ड खेलने का सौभा य िमला। अिधक-तर तो ऐसे थे , ज ह याद भी न आता था क कभी कब ड खेली है या नह ं। दनभर शहर म पसते थे। पहर रात गये घर पहँ ु चते थे और जो कुछ िमल जाता था, खाकर पड़े रहते थे। ूातःकाल फर वह चरखा श खा -सूखा हो जाता था। जीवन नीरस, िनरान द, केवल एक ढरा माऽ हो गया था। आज जो यह अवसर िमला, तो बूढ़े भी जवान हो गये। अधमरे बूढ़े , ठठ रयाँ िलये , मुँह म दाँत न पेट म आँत , जाँघ के ऊपर धोितयाँ या तहमद चढ़ाये ताल ठोक-ठोककर उछल रहे थे , मानो उन बूढ़ ह डय म जवानी धँस पड़ हो। चटपट पाली बन गयी, दो नायक बन गये। गोईय का चुनाव होने लगा। और बारह बजते - बजते खेल श हो गया। जाड़ क ठं ड धूप ऐसी ब ड़ाओं के िलए आदश ऋतु है । इधर अहाते के फाटक पर िमरज़ा साहब तमाशाइय को टकट बाँट रहे थे। उन पर इस तरह क कोई-न-कोई सनक हमेशा सवार रहती थी। अमीर से पैसा लेकर ग़र ब को बाँट दे ना। इस बूढ़ कब ड का व ापन कई दन से हो रहा था। बड़े - बड़े पोःटर िचपकाये गये थे , नो टस बाँटे गये थे। यह खेल अपने ढं ग का िनराला होगा, बलकुल अभूतपूव । भारत के बूढ़े आज भी कैसे पोढ़े ह, ज ह यह दे खना हो, आय और अपनी आँख त फर न िमलेगा। टकट दस कर ल। जसने यह तमाशा न दे खा, वह पछतायेगा। ऐसा सुअवसर पए से लेकर दो आने तक के थे। तीन बजते - बजते सारा अहाता भर गया। मोटर और फटन का ताँता लगा हआ था। दो हज़ार से कम क भीड़ न थी। रईस के िलए कुिसय और बच का इ तज़ाम था। साधारण जनता के िलए साफ़ सुथर ज़मीन। िमस मालती, मेहता, ख ना, तंखा और राय साहब सभी वराजमान थे। खेल श हआ , तो िमरज़ा ने मेहता से कहा -- आइए डा टर साहब, एक गोई हमार और आपक भी हो जाय। िमस मालती बोली -- फ़लासफ़र का जोड़ फ़लासफ़र ह से हो सकता है । िमरज़ा ने मूँछ पर ताव दे कर कहा -- तो या आप समझती ह, म फ़लासफ़र नह ं हँ ू । मेरे पास पुछ ला नह ं है ; ले कन हँ ू म फ़लासफ़र। आप मेरा इ तहान ले सकते ह मेहताजी ! मालती ने पूछा -- अ छा बतलाइए, आप आइ डयिलःट ह या मेट रयिलःट।' म दोन हँ ू । ' ' यह य कर? ' ' बहत अ छ तरह। जब जैसा मौक़ा दे खा , वैसा बन गया। ' ' तो आपका अपना कोई िन य नह ं है । ' ' जस बात का आज तक कभी िन य न हआ , और न कभी होगा, उसका िन य म भला या कर सकता हँू ! और लोग आँख फोड़कर और कताब चाटकर जस नतीजे पर पहँ ु चते ह , वहाँ म य ह पहँ ु च गया। आप बता सकती ह, कसी फ़लासफ़र ने अ ली ग े लड़ाने के िसवाय और कुछ कया है ? ' डा टर मेहता ने अचकन के बटन खोलते हए कहा -- तो चिलए हमार और आपक हो ह जाय। और कोई माने या न माने , म आपको फ़लासफ़र मानता हँ ू । िमरज़ा ने ख ना से पूछा -- आपके िलए भी कोई जोड़ ठ क क ँ ? मालती ने पुचारा दया -- हाँ , हाँ , इ ह ज़ र ले जाइए िमःटर तंखा के साथ। ख ना झपते हए बोले -- जी नह ं , मुझे मा क जए। िमरज़ा ने रायसाहब से पूछा -- आपके िलए कोई जोड़ लाऊँ ? राय साहब बोले -- मेरा जोड़ तो ओंकारनाथ का है , मगर वह आज नज़र ह नह ं आते। िमरज़ा और मेहता भी नंगी दे ह , केवल जाँिघए पहने हए उधर। खेल श मैदान म पहँ ु च गये। एक इधर , दसरा हो गया। जनता बूढ़े कुलेल पर हँ सती थी, तािलयाँ बजाती थी, गािलयाँ दे ती थी, ललकारती थी, बा ज़या लगाती थी। वाह! ज़रा इन बूढ़े बाबा को दे खो! कस शान से जा रहे ह, जैसे सबको मारकर ह लौटगे। अ छा, दसर तरफ़ से भी उ ह ं के बड़े भाई िनकले। दोन कैसे पतरे बदल रहे ह ! इन ह डय म अभी बहत जान है । इन लोग ने जतना घी खाया है , उतना अब हम पानी भी मयःसर नह ं। लोग कहते ह, भारत धनी हो रहा है । होता होगा। हम तो यह दे खते ह क इन बु ढ -जैसे जीवट के जवान भी आज िनकलने के िलए कतना ज़ोर मु ँकल से िनकलगे। वह उधरवाले बु ढे ने इसे दबोच िलया। बेचारा छट मार रहा है ; मगर अब नह ं जा सकते ब चा! एक को तीन िलपट गये। इस तरह लोग अपनी दलचःपी ज़ा हर कर रहे थे ; उनका सारा यान मैदान क ओर था। खला ड़य के आघात-ूितघात, उछल-कूद, धर- पकड़ और उनके मरने - जीने म सभी त मय हो रहे थे। कभी चार तरफ़ से क़हक़हे पड़ते , कभी कोई अ याय या धाँधली दे खकर लोग ' छोड़ दो, छोड़ दो ' का गुल मचाते , कुछ लोग तैश म आकर पाली क तरफ़ दौड़ते , ले कन जो थोड़े - से स जन शािमयाने म ऊँचे दरजे के टकट लेकर बैठे थे , उ ह इस खेल म वशेष आन द न िमल रहा था। वे इससे अिधक मह व क बात कर रहे थे। ख ना ने जंजर का लास ख़ाली करके िसगार सुलगाया और राय साहब से बोले -- मने आप से कह दया, बक इससे कम सूद पर कसी तरह राज़ी न होगा और यह रआयत भी मने आपके साथ क है ; य क आपके साथ घर का मुआमला है । राय साहब ने मूँछ म मुःकराहट को लपेटकर कहा -- आपक नीित म घरवाल को ह उलट से हलाल करना चा हए ? छर ' यह आप या फ़रमा रहे ह। ' ' ठ क कह रहा हँ ू । सूय ूताप िसंह से आपने केवल सात फ़ सद िलया है , मुझसे नौ फ़ सद माँग रहे ह और उस पर एहसान भी रखते ह। य न हो। ' ख ना ने क़हक़हा मारा, मानो यह कथन हँ सने के ह यो य था। ' उन शत पर म आपसे भी वह सूद ल लूँगा। हमने उनक जायदाद रे हन रख ली है और शायद यह जायदाद फर उनके हाथ न जायगी। '' म अपनी कोई जायदाद िनकाल दँ ग ा। नौ परसट दे ने से यह कह ं अ छा है क फ़ालतू जायदाद अलग कर दँ । ू मेर जैकसन रोडवाली कोठ आप िनकलवा द। कमीशन ले ली जएगा। ' ' उस कोठ का सुभीते से िनकलना ज़रा मु ँकल है । आप जानते ह, वह जगह बःती से कतनी दर ू है ; मगर ख़ैर , दे खूँगा। आप उसक क़ मत का या अ दाज़ा करते ह? ' राय साहब ने एक लाख पचीस हज़ार बताये। प िह बीघे ज़मीन भी तो है उसके साथ। ख ना ःत भत हो गये। बोले -- आप आज के प िह साल पहले का ःव न दे ख रहे ह राय साहब! आपको मालूम होना चा हए क इधर जायदाद के मू य म पचास परसट क कमी हो गयी है । राय साहब ने बुरा मानकर कहा -- जी नह ं , प िह साल पहले उसक क़ मत डे ढ़ लाख थी। ' म ख़र ददार क तलाश म रहँ ू गा ; मगर मेरा कमीशन पाँच ूितशत होगा, आपसे। ' ' और से शायद दस ूितशत हो य ; या करोगे इतन पए लेकर? ' ' आप जो चाह दे द जएगा। अब तो राज़ी हए। शुगर के हःसे अभी तक आपने न ख़र दे । अब बहत थोड़े - से हःसे बच रहे ह। हाथ मलते रह जाइएगा। इं ँयोरस क पािलसी भी आपने न ली। आप म टाल- मटोल क बुर आदत है । जब अपने लाभ क बात का इतना टाल-मटोल है , तब दसर को आप लोग स या लाभ हो सकता है ! इसी से कहते ह, रयासत आदमी क अ ल चर जाती है । मेरा बस चले तो म ता लुक़े -दार क रयासत ज़ त कर लूँ। ' िमःटर तंखा मालती पर जाल फ क रहे थे। मालती ने साफ़ कह दया था क वह एले शन के झमेले म नह ं पड़ना चाहती; पर तंखा इतनी आसानी से हार माननेवाल य न थे। आकर कुहिनय के बल मेज़ पर टककर बोले -- आप ज़रा उस मुआमले पर फर वचार कर। म कहता हँ ू ऐसा मौक़ा शायद आपको फर न िमले। रानी साहब च दा को आपके मुक़ाबले म पए म एक आना भी चांस नह ं है । मेर इ छा केवल यह है क क िसल म ऐसे लोग जायँ , ज ह ने जीवन म कुछ अनुभव ूा कया है और जनता क कुछ सेवा क है । जस म हला ने भोग- वलास के िसवा कुछ जाना ह नह ं , जसने जनता को हमेशा अपनी कार का पेशोल समझा, जसक सबसे मू यवान सेवा व पा टया ह, जो वह गवनर और सेबेट रय को दया करती ह, उनके िलए इस क िसल म ःथान नह ं है । नयी क िसल म बहत कुछ अिधकार ूितिनिधय के हाथ म होगा और म नह ं चाहता क वह अिधकार अनिधका रय के हाथ म जाय। मालती ने पीछा छड़ान के िलए कहा -- ले कन साहब, मेरे पास दस-बीस हज़ार एले शन पर ख़च करने के िलए कहाँ है ? रानी साहब तो दो-चार लाख ख़च कर सकती ह। मुझे भी साल म हज़ार-पाँच सौ पए उनसे िमल जाते ह, यह रक़म भी हाथ से िनकल जायगी। ' पहले आप यह बता द क आप जाना चाहती ह, या नह ं ? ' ' जाना तो चाहती हँू , मगर ६ पास िमल जाय! ' ' तो यह मेरा ज़ मा रहा। आपको ६ पास िमल जायगा। ' ' जी नह ं , मा क जए। म हार क ज़ लत नह ं उठाना चाहती। जब रानी साहब पए क थैिलयाँ खोल दगी और एक-एक वोट पर एक-एक अशफ़ चढ़ने लगेगी, तो शायद आप भी उधर वोट दगे। ' ' आपके ख़याल म एले शन महज़ ' जी नह ं , य पए से जीता जा सकता है । ' भी एक चीज़ है । ले कन मने केवल एक बार जेल जाने के िसवा और या जन-सेवा क है ? और सच पूिछए तो उस बार भी म अपने मतलब ह से गयी थी, उसी तरह जैसे राय साहब और ख ना गये थे। इस नयी स यता का आधार धन है , व ा और सेवा और कुल और जाित सब धन के सामने हे य है । कभी-कभी इितहास म ऐसे अवसर आ जाते ह, जब धन को आ दोलन के सामने नीचादे खना पड़ता है ; मगर इसे अपवाद सम झए। म अपनी ह बात कहती हँ ू । कोई ग़र ब औरत दवाखाने म आ जाती है , तो घंट उससे बोलती तक नह ं। पर कोई म हला कार पर आ गयी, तो ार तक जाकर उसका ःवागत करती हँ ू और उसक ऐसी उपासना करती हँ ू , मानो सा ात ् दे वी है । मेर और रानी साहब का कोई मुकाबला नह ं। जस तरह के क िसल बन रहे ह, उनके िलए रानी साहब ह एयादा उपय ह। उधर मैदान म मेहता क ट म कमज़ोर पड़ती जाती थी। आधे से एयादा खलाड़ मर चुके थे। मेहता न अपने जीवन म कभी कब ड न खेली थी। िमरज़ा इस फन के उःताद थे। मेहता क तातील अिभनय के अ यास म कटती थीं। प भरने म वह अ छे -अ छे को च कत कर दे ते थे। और िमरज़ा के िलए सार दलचःपी अखाड़े म थी, पहलवान के भी और प रय के भी। मालती का यान उधर भी लगा हआ था। उठकर राय साहब से बीली -- मेहता क पाट तो बुर तरह पट रह है । राय साहब और ख ना म इं ँयोरस क बात हो रह थीं। राय साहब उस ूसंग से ऊबे हए मालूम होते थे। मालती ने मानो उ ह एक ब धन से म ' मेहता को यह कर दया। उठकर बोले -- जी हाँ , पट तो रह है । िमरज़ा प का खलाड़ है । या सनक सूझी। यथ अपनी भ करा रहे ह। ' ' इसम काहे क भ ? द लगी ह तो है । ' ' मेहता क तरफ़ से जो बाहर िनकलता है , वह मर जाता है । ' एक ण के बाद उसने पूछा -- या इस खेल म हाफ़ टाइम नह ं होता? ख ना को शरारत सूझी। बोले -- आप चले थे िमरज़ा से मुकाबला करने। समझते थे , यह भी फ़लासफ़ है । ' म पूछती हँू , इस खेल म हाफ़ टाइम नह ं होता? ' ख ना ने फर िचढ़ाया -- अब खेल ह ख़तम हआ जाता है । मज़ा आयेगा तब , जब िमरज़ा मेहता को दबोचकर रगड़ग और मेहता साहब ' चीं ' बोलगे। ' म तुमसे नह ं पूछती। राय साहब से पूछती हँ ू । ' राय साहब बोले -- इस खेल म हाफ़ टाइम! एक ह एक आदमी तो सामने आता है । ' अ छा, मेहता का एक आदमी और मर गया। ' ख ना बोले -- आप दे खती र हए! इसी तरह सब मर जायँगे और आ ख़र म मेहता साहब भी मरगे। मालती जल गयी -- आपक ह मत न पड़ बाहर िनकलने क । ' म गँवार के खेल नह ं खेलता। मेरे िलए टे िनस है । ' ' टे िनस म भी म तु ह सैकड़ गेम दे चुक हँ ू । ' ' आपसे जीतने का दावा ह कब है ? ' ' अगर दावा हो, तो म तैयार हँ ू । ' मालती उ ह फटकार बताकर फर अपनी जगह पर आ बैठ । कसी को मेहता से हमदद नह ं है । कोई यह नह ं कहता क अब खेल ख़ म कर दया जाय। मेहता भी अजीब बु ू आदमी ह , कुछ धाँधली कर बैठते। यहाँ अपनी य नह याय- ूयता दखा रहे ह। अभी हारकर लौटगे , तो चार तरफ़ से तािलयाँ पड़गी। अब शायद बीस आदमी उनक तरफ़ और ह गे और लोग कतने ख़ुश हो रहे ह। य - य अ त समीप आता जाता था, लोग अधीर होते जाते थे और पाली क तरफ़ बढ़ते जाते थे। रःसी का जो एक कठघरा- सा बनाया गया था, वह तोड़ दया गया। ःवयॆूसेवक रोकने क चे ा कर रहे थे ; पर उस उ सुकता के उ माद म उनक एक न चलती थी। यहाँ तक क वार अि◌ तम ब द ु तक आ पहँ ु चा और मेहता अकेल बच गये और अब उ ह गूँगे का पाटर ् खेलना पड़े गा। अब सारा दारमदार उ ह ं पर है ; अगर वह बचकर अपनी पाली म लौट आते ह, तो उनका प उ ह लौटना पड़ता है , वह दसर प बचता है । नह ं , हार का सारा अपमान और ल जा िलए हए के जतने आदिमय को छकर अपनी पाली म आयँगे वह सब मरजायँगे और उतने ह आदमी उनक तरफ़ जी उठगे। सबक आँख मेहता क ओर लगी हई थीं। वह मेहता चले। जनता ने चार ओर से आकर पाली को घेर िलया। त मयता अपनी पराका ा पर थी। मेहता कतन शा त भाव से शऽुओं क ओर जा रहे ह। उनक ू येक गित जनता पर ूित बि◌ बत हो जाती है , कसी क गदन टे ढ़ हई जाती है , कोई आगे को झुक पड़ता है । वातावरण गम हो गया। पारा आ पहँ ु चा है । मेहता शऽु -दल म घुसे। दल पीछे हटता जाता है । उनका संगठन इतना वाला- ब द ु पर ढ़ है क मेहता क पकड़ या ःपश म कोई नह ं आ रहा है । बहत को जो आशा थी क मेहता कम -से - कम अपने प के दस- पाँच आदिमय को तो जला ह लगे , वे िनराश होते जा रहे ह। सहसा िमरज़ा एक छलाँग मारते ह और मेहता क कमर पकड़ लेते ह। मेहता अपने को छड़ान के िलए ज़ोर मार रहे ह। िमरज़ा को पाली क तरफ़ खींचे िलये आ रहे है । लोग उ म हो जाते है । अब इसका पता चलना मु ँकल है क कौन खलाड़ ह कौन तमाशाई। सब एक गडमड हो गये ह। िमरज़ा और मेहता म म लय हो रहा है । िमरज़ा के कई बु ढ मेहता क तरफ़ लपके और उनसे िलपट गये। मेहता ज़मीन पर चुपचाप पड़े हए ह ; अगर वह कसी तरह खींच -खाँचकर दो हाथ और ले जायँ , तो उनके पचास आदमी जी उठते ह, मगर वह एक इं च भी नह खसक सकते। िमरज़ा उनक गदन पर बैठे हए ह। मेहता का मुख लाल हो रहा है । आँख बीरबहट बनी हई रहे ह। ह। पसीना टपक रहा है , और िमरज़ा अपने ःथूल शर र का भार िलये उनक पीठ पर हमच मालती ने समीप जाकर उ े जत ःवर म कहा -- िमरज़ा खुश द, यह फ़ेयर नह ं है । बाज़ी सॉ रह । खुश द ने मेहता क गदन पर एक घःसा लगाकर कहा -- जब तक यह ' चीं ' न बोलगे , म हरिगज़ न छोड़ँ ू गा। य नह ं ' चीं ' बोलते ? मालती और आगे बढ़ -- ' चीं ' बुलाने के िलए आप इतनी ज़बरदःती नह ं कर सकते। िमरज़ा ने मेहता क पीठ पर हमचकर कहा -- बेशक कर सकता हँ ू । आप इनसे कह द , ' चीं ' बोल, म अभी उठा जाता हँ ू । मेहता ने एक बार फर उठने क चे ा क ; पर िमरज़ा ने उनक गदन दबा द । मालती ने उनका हाथ पकड़कर घसीटने कोिशश करके कहा -- यह खेल नह ं , अदावत है । ' अदावत ह सह । ' ' आप न छोड़गे ? ' उसी वईत जैसे कोई भूक प आ गया। िमरज़ा साहब ज़मीन पर पड़े हए थे और मेहता दौड़े हए पाली क ओर भागे जा रहे थे और हज़ार आदमी पागल क तरह टो पयाँ और पग ड़याँ और छ ड़याँ उछाल रहे थे। कैसे यह काया पलट हई , कोई समझ न सका। िमरज़ा ने मेहता को गोद म उठा िलया और िलये हए शािमयाने तक आये। ू येक मुख पर यह श द थे -- डा टर साहब ने बाज़ी मार ली। और ू येक आदमी इस हार हई बाज़ी के एकबारगी पलट जाने पर व ःमत था। सभी मेहता के जीवट और धैय का बखान कर रहे थे। मज़दर ू के िलए पहले से नारं िगयाँ मँगा ली गयी थीं। उ ह एक -एक नारं गी दे कर वदा कया गया। शािमयाने म मेहमान के चाय-पानी का आयोजन था। मेहता और िमरज़ा एक ह मेज़ पर आमने - सामने बैठे। मालती मेहता के बग़ल म बैठ । मेहता ने कहा -- मुझे आज एक नया अनुभव हआ। म हला क सहानुभूित हार को जीत बना सकती है । िमरज़ा ने मालती क ओर दे खा -- अ छा! यह बात थी! जभी तो मुझे है रत हो रह थी क आप एकाएक कैसे ऊपर आ गये। मालती शम से लाल हई जाती थी। बोली -- आप बड़े बेमुरौवत आदमी ह िमरज़ाजी! मुझे आज मालूम हआ। ' कुसूर इनका था। यह य ' चीं 'नह ं बोलते थे ? ' ' म तो ' चीं ' न बोलता, चाहे आप मेर जान ह ले लेते। ' कुछ दे र िमऽ म गप-शप होती रह । फर ध यवाद के और मुबारकवाद के भाषण हए मालती को भी एक व जट करनी और मेहमान लोग बदा हए। थी। वह भी चली गयी। केवल मेहता और िमरज़ा रह गये। उ ह अभी ःनान करना था। िम ट म सने हए थे। कपड़े कैसे पहनते। गोबर पानी खींच लाया और दोन दोःत नहाने लगे। िमरज़ा ने पूछा -- शाद कब तक होगी? मेहता ने अच भे म आकर पूछा -- कसक ? ' आपक । ' मेर शाद ! कसके साथ हो रह है ? ' वाह! आप तो ऐसा उड़ रहे ह, गोया यह भी िछपा क बात है । ' ' नह ं - नह ं , म सच कहता हँू , मुझे बलकुल ख़बर नह ं है । या मेर शाद होने जा रह है ? ' ' और आप या समझते ह, िमस मालती आप क क पेिनयन बनकर रहगी? ' मेहता ग भीर भाव से बोले -- आपका ख़याल बलकुल ग़लत है । िमरज़ाजी! िमस मालती हसीन ह, ख़ुशिमज़ाज ह, समझदार ह, रोशन ख़याल ह और भी उनम कतनी ख़ू बयाँ ह। ले कन म अपनी जीवन-संिगनी म जो बात दे खना चाहता हँू , वह उनम नह ं है और न शायद हो सकती है । मेरे ज़ेहन म औरत वफ़ा और याग क मूितर ् है , जो अपनी बेज़बानी से , अपनी क़ुबान से , अपने को बलकुल िमटाकर पित क आ मा का एक अंश बन जाती है । दे ह पु ष क रहती है , पर आ मा ी क होती है । आप कहगे , मद अपने को य नह ं िमटाता? औरत ह स य इसक आशा करता है ? मद म वह साम य ह नह ं है । वह अपने को िमटायेगा, तो शू य हो जायगा। वह कसी खोह म जा बैठेगा और सवा मा म िमल जाने का ःव न दे खेगा। वह तेजूधान जीव है , और अहं कार म यह समझकर क वह नान का पुतला है सीधा ई र म लीन होने क क पना कया करता है । ी पृ वी क भाँित धैय वान ् है , शा त-स प न है , स हंणु है । पु ष म नार के गुण आ जाते ह, तो वह महा मा बन जाता है । नार म पु ष के गुण आ जाते ह तो वह कुलटा हो जाती है । पु ष आक षत होता ह ी क ओर, जो सवांश म श द म कहँ ू क ी हो। मालती ने अभी तक मुझे आक षत नह ं कया। म आपसे कन ी मेर नज़र म या है ? संसार म जो कुछ सु दर है , उसी क ूितमा को म ी कहता हँू ; म उससे यह आशा रखता हँ ू क म उसे मार ह डालूँ तो भी ूित हं सा का भाव उसम न आये , अगर म उसक आँख के सामने कसी ी को यार क ँ , तो भी उसक ईंया न जागे। ऐसी नार पाकर म उसके चरण म िगर पड़ँ ू गा और उसपर अपने को अपण कर दँ ग ा। िमरज़ा ने िसर हलाकर कहा -- ऐसी औरत आपको इस दिनया म तो शायद ह िमले। मेहता ने हाथ मारकर कहा -- एक नह ं हज़ार ; वरना दिनया वीरान हो जाती। ' ऐसी ह एक िमसाल द जए। ' ' िमसेज़ ख ना को ह ले ली जए। ' ' ले कन ख ना! ' ' ख ना अभागे ह, ' जो ह रा पाकर काँच का टकड़ा समझ रहे ह। सोिचए , कतना ख ना के पास याग है और उसके साथ ह कतना ूेम है । मन म शायद उसके िलए र ी-भर भी ःथान नह ं है ; ले कन आज ख ना पर कोईआफ़त आ जाय तो वह अपने को उनपर योछावर कर दे गी। ख ना आज अ धे या कोढ़ हो जायँ , तो भी उसक वफ़ादार म फ़क़ न आयेगा। अभी ख ना उसक क़ि नह ं कर सकते ह, मगर आप दे ख गे , एक दन यह ख ना उसके चरण धो-धोकर पयगे। म ऐसी बीबी नह ं चाहता, जससे म ऐंःट न के िस ा त पर बहस कर सकूँ , या जो मेर रचनाओं के ूूफ़ दे खा करे । म ऐसी औरत चाहता हँू , जो मेरे जीवन को प वऽ और उ वल बना दे , अपने ूेम और याग से। ' खुश द ने दाढ़ पर हाथ फेरते हए जैसे कोई भूली हई बात याद करके कहा -- आपका ख़याल बहत ठ क ह िमःटर मेहता! ऐसी औरत अगर कह ं िमल जाय, तो म भी शाद कर लूँ , ले कन मुझे उ मीद नह ं है क िमले। मेहता ने हँ सकर कहा -- आप भी तलाश म र हए, म भी तलाश म हँ ू । शायद कभी तक़द र जागे। ' मगर िमस मालती आपको छोड़नेवाली नह ं। क हए िलख दँ । ू ' ' ऐसी औरत से म केवल मनोरं जन कर सकता हँू , याह नह ं। याह तो आ म-समपण है । ' ' अगर याह आ म-समपण है , तो ूेम ' ूेम जब आ म-समपण का या है ? ' प लेता है , तभी याह है ; उसके पहले ऐयाशी है । ' मेहता ने कपड़े पहने और वदा हो गये। शाम हो गयी थी। िमरज़ा ने जाकर दे खा, तो गोबर अभी तक पेड़ को सींच रहा था। िमरज़ा ने ूस न होकर कहा -- जाओ, अब तु हार छ ु ट है । कल फर आओगे ? गोबर ने कातर भाव से कहा -- म कह ं नौकर चाहता हँ ू मािलक ! ' नौकर करना है , तो हम तुझे रख लगे। ' ' कतना िमलेगा हज़ र ! ' ' जतना तू माँगे। ' ' म या माँगूँ। आप जो चाहे दे द। ' ' हम तु ह प िह पए दगे और ख़ूब कसकर काम लगे। ' गोबर मेहनत से नह ं डरता। उस िमल, तो पए िमल, तो वह आठ पहर काम करने को तैयार है । प िह पए या पूछना। वह तो ूाण भी दे दे गा। बोला -- मेरे िलए कोठर िमल जाय, वह ं पड़ा रहँ ू गा। ' हाँ - हाँ , जगह का इ तज़ाम म कर दँ ग ा। इसी झोपड़ म एक कनारे तुम भी पड़ रहना। ' गोबर को जैसे ःवग िमल गया। ूेमच द गोदान होर क फ़सल सार क सार डाँड़ क भट हो चुक थी। वैशाख तो कसी तरह कटा, मगर जेठ लगते - लगते घर म अनाज का एक दाना न रहा। पाँच -पाँच पेट खानेवाले और घर म अनाज नदारद। दोन जून न िमले , एक जून तो िमलना ह चा हए। भर-पेट न िमले , आधा पेट तो िमले। िनराहार कोई कै दन रह सकता है ! उधार ले तो कससे ! गाँव के सभी छोटे - बड़े महाजन से तो मुँह चुराना पड़ता था। मजूर भी करे , तो कसक । जेठ म अपना ह काम ढे र था। ऊख क िसंचाई लगी हई थी ; ले कन ख़ाली पेट मेहनत भी कैसे हो! साँझ हो गयी थी। छोटा ब चा रो रहा था। माँ को भोजन न िमले , तो दध कहाँ से िनकले ? सोना प र ःथित समझती थी; मगर पा या समझे ! बार-बार रोट -रोट िच ला रह थी। दन-भर तो क ची अिमया से जी बहला; मगर अब तो कोई ठोस चीज़ चा हए। होर दलार सहआइन से अनाज उधार माँगने गया था; पर वह दकान ब द करके पैठ चली गयी थी। मँग साह ने केवल इनकार ह न कया , लताड़ भी द -- उधार माँगने चले ह, तीन साल से धेला सूद नह ं दया, उस पर उधार दये जाओ। अब आकबत म दगे। खोट नीयत हो जाती है , तो यह हाल होता है । भगवान ् से भी यह अनीित नह ं दे खी जाती। कारकुन क डाँट पड़ , तो कैसे चुपके स है क उसका िमज़ाज ह नह ं िमलता। वहाँ स रसोई के पए उगल दये। मेरे पए, पए ह नह ं ह। और मेह रया आँसा होकर उदास बैठा था क पु नी आग लेने आयी। ार पर जाकर दे खा तो अँधेरा पड़ा हआ था। बोली -- आज रोट नह ं बना रह हो या भाभी जी? अब तो बेला हो गयी। जब से गोबर भागा था, पु नी और धिनया म बोलचाल हो गयी थी। होर का एहसान भी मानने लगी थी। ह रा को अब वह गािलयाँ दे ती थी -- ह यारा, गऊ-ह या, करके भागा। मुँह म कािलख लगी है , घर कैसे आये ? और आये भी तो घर के अ दर पाँव न रखने दँ । ू गऊ -ह या करते इस लाज भी न आयी। बहत अ छा होता , पुिलस बाँधकर ले जाती और च क पसवाती! धिनया कोई बहाना न कर सक । बोली -- रोट कहाँ से बने , घर म दाना तो है ह नह ं। तेरे महतो ने बरादर का पेट भर दया, बाल-ब चे मर या जय। अब बरादर झाँकती तक नह ं। पु नी क फ़सल अ छ हई थी , और वह ःवीकार करती थी क यह होर का पु षाथ है । ह रा के साथ कभी इतनी बर कत न हई थी। बोली -- अनाज मेरे घर स य नह ं मँगवा िलया? वह भी तो महतो ह क कमाई है क कसी और क ? सुख के दन आय, तो लड़ लेना; दख तो साथ रोने ह से कटता है । म या ऐसी अ धी हँ ू क आदमी का दल नह ं पहचानती। महतो ने न सँभाला होता, तो आज मुझे कहाँ सरन िमलती। वह उलटे पाँव लौट और सोना को भी साथ लेती गयी। एक ण म दो ड ले अनाज से भरे लाकर आँगन म रख दये। दो मन स कम जौ न था। धिनया अभी कुछ कहने न पायी थी क वह फर चल द और एक ण म एक बड़ -सी टोकर अरहर क दाल से भर हई लाकर रख द , और बोली -- चलो, म आग जलाये दे ती हँ ू । धिनया न दे खा तो जौ के ऊपर एक छोट -सी डिलया म चार-पाँच सेर आटा भी था। आज जीवन म पहली बार वह पराःत हई। आँख म ूेम और कृ त ता के मोती भरकर बोली -- सब का सब उठा लायी क घर म भी कुछ छोड़ा? कह ं भाग जाता था? आँगन म ब चा खटोले पर पड़ा रो रहा था। पुिनया उसे गोद म लेकरदलराती हई है और दस मन गेह ू ँ । बोली -- तु हार दया से अभी बहत है भाभीजी ! प िह मन तो जौ हआ पाँच मन मटर हआ , तुमस या िछपाना है । दोन घर का काम चल जायगा। दो-तीन मह ने म फर मकई हो जायगी। आगे भगवान ् मािलक है । झुिनया ने आकर अंचल से छोट सास के चरण छए। पुिनया ने असीस दया। सोना आग जलाने चली, पा ने पानी के िलए कलसा उठाया। क हई गाड़ चल िनकली। जल म अवरोध के कारण जो च कर था, फेन था, शोर था, गित क तीोता थी, वह अवरोध के हट जाने से शा त मधुर - विन के साथ सम, धीमी, एक-रस धार म बहने लगी। पुिनया बोली -- महतो को डाँड़ दे ने क ऐसी ज द या पड़ थी? धिनया ने कहा -- बरादर म सुरख़ कैसे होते। ' भाभी, बुरा न मानो, तो एक बात कहँू ? ' ' कह, बुरा य मानूँगी? ' ' न कहँ ू गी , कह ं तुम बगड़ने न लगो? ' ' कहती हँू , कुछ न बोलूँगी, कह तो। ' ' तु ह झुिनया को घर म रखना न चा हये था। ' ' तब या करती? वह डबी मरती थी। ' ' मेरे घर म रख दे ती। तब तो कोई कुछ न कहता। ' ' यह तो तू आज कहती है । उस दन भेज दे ती, तो झाड़ ू लेकर दौड़ती ! ' ' इतने ख़रच म तो गोबर का याह हो जाता। ' ' होनहार को कौन टाल सकता है पगली! अभी इतने ह से गला नह ं छटा भोला अब अपनी गाय के दाम माँग रहा है । तब तो गाय द थी क मेर सगाई कह ं ठ क कर दो। अब कहता है , मुझे सगाई नह ं करनी, मेरे पए दे दो। उसके दोन बेटे लाठ िलये फरते ह। हमारे कौन बैठा है , जो उससे लड़े ! इस स यानासी गाय ने आकर चौपट कर दया। ' कुछ और बात करके पुिनया आग लेकर चली गयी। होर सब कुछ दे ख रहा था। भीतर आकर बोला -- पुिनया दल क साफ़ है । ' ह रा भी तो दल का साफ़ था? ' धिनया न अनाज तो रख िलया था; पर मन म ल जत और अपमािनत हो रह थी। यह दन का फेर है क आज उसे यह नीचा दे खना पड़ा। ' तू कसी का औसान नह ं मानती, यह तुझम बुराई है । ' ' औसान य मानूँ ? मेरा आदमी उसक िगरःती के पीछे जान नह ं दे रहा है ? फर मने दान थोड़े ह िलया है । उसका एक-एक दाना भर दँ ग ी। ' मगर पुिनया अपनी जठानी के मनोभाव समझकर भी होर का एहसान चुकाती जाती थी। जब यहाँ अनाज चुक जाता, मन दो मन दे जाती; मगर जब चौमासा आ गया और वषा न हई , तो समःया अ य त ज टल हो गयी। सावन का मह ना आ गया था और बगूले उठ रह थे। कुओं का पानी भी सूख गया था और ऊख ताप से जली जा रह थी। नद से थोड़ा-थोड़ा पानी िमलता था; मगर उसके पीछे आये दन ला ठयाँ िनकलती थीं। यहाँ तक क नद ने भी जवाब दे दया। जगह- जगह चो रयाँ होने लगीं , डाके पड़ने लगे। सारे ूा त म हाहाकार मच गया। बारे कुशल हई क भाद म वषार ् हो गयी और कसान के ूाण हरे हए। कतना उछाह था उस दन ! यासी पृ वी जैसे अघाती ह न थी और यासे कसान ऐसे उछल रहे थे मानो पानी नह ं , अश फ़या बरस रह ह । बटोर लो, जतना बटोरते बने। खेत म जहाँ बगूले उठते थे , वहाँ हल चलने लगे। बालवृ द िनकल-िनकलकर तालाब और पोखर और गड़ हय का मुआयना कर रहे थे। ओहो! तालाब तो आधा भर गया, और वहाँ से गड़ हया क तरफ़ दौड़े । मगर अब कतना ह पानी बरसे , ऊख तो बदा हो गयी। एक-एक हाथ ह होके रह जायगी,म का और जुआर और कोदो से लगान थोड़े ह चुकेगा, महाजन का पेट थोड़े ह भरा जायगा। हाँ , गौओ के िलए चारा हो गया और आदमी जी गया। जब माघ बीत गया और भोला के पए न िमले , तो एक दन वह झ लाया हआ होर के घर आ धमका और बोला -- यह है तु हारा क़ौल? इसी मुँह से तुमन ऊख पेरकर मेरे अपनी व प पए दे ने का वादा कया था? अब तो ऊख पेर चुके। लाओ सुनाकर और सब तरह िचरौर करके हार गया और भोला झुँझलाकर कहा -- तो महतो, इस बखत तो मेरे पास पए मेरे हाथ म! होर जब ार से न हटा, तो उसन पए नह ं ह और न मुझे कह ं उधार ह िमल सकत ह। म कहाँ से लाऊँ ? दाने - दाने क तंगी हो रह है । बःवास न हो, घर म आकर दे ख लो। जो कुछ िमले , उठा ले जाओ। भोला ने िनमम भाव से कहा -- म तु हारे घर म इससे मतलब है क तु हारे पास चुके। अब मेरे य तलासी लेने जाऊँ और न मुझे पये ह या नह ं। तुमने ऊख पेरकर पये दे ने को कहा था। ऊख पेर पए मेरे हवाले करो। ' तो फर जो कहो, वह क ँ ? ' ' म या कहँू ? ' ' म तु ह ं पर छोड़ता हँ ू । ' ' म तु हारे दोन बैल खोल ले जाऊँगा। ' होर ने उसक ओर वःमय-भर आँख से दे खा, मानो अपने कान पर व ास न आया हो। फर हतबु - सा िसर झुकाकर रह गया। भोला या उसे िभखार बनाकर छोड़ दे ना चाहते ह? दोन बैल चले गये , तब तो उसके दोन हाथ ह कट जायँगे। द न ःवर म बोला -- दोन बैल ले लोगे , तो मेरा सवनाश हो जायगा। अगर तु हारा धरम यह कहता है , तो खोल ले जाओ। ' तु हारे बनने - बगड़ने क मुझे परवा नह ं है । मुझे अपन ' और जो म कह दँ , ू मन पए चा हए। ' पए दे दये ? ' भोला स नाटे म आ गया। उसे अपने कान पर व ास न आया। होर इतनी बड़ बेईमानी कर सकता है , यह स भव नह ं। उम होकर बोला -- अगर तुम हाथ म गंगाजली लेकर कह दो क मन पए दे दये , तो सबर कर लूँ। ' कहने का मन तो चाहता है , मरता या न करता; ले कन कहँ ू गा नह ं। ' ' तुम कह ह नह ं सकते। ' ' हाँ भैया, म नह ं कह सकता। हँ सी कर रहा था। एक तुम मुझसे इतना बैर ण तक वह द ु बधे म पड़ा रहा। फर बोला -- य पाल रहे हो भोला भाई! झुिनया मेरे घर म आ गयी, तो मुझे कौन-सा सरग िमल गया। लड़का अलग हाथ से गया, दो सौ पया डाँड़ अलग भरना पड़ा। म तो कह ं का न रहा। और अब तुम भी मेर जड़ खोद रहे हो। भगवान ् जानते ह , मुझे बलकुल न मालूम था क ल डा या कर रहा है । म तो समझता था, गाना सुनने जाता होगा। मुझे तो उस दन पता चला, जब आधी रात को झुिनया घर म आ गयी। उस बखत म घर म न रखता, तो सोचो, कहाँ जाती? कसक होकर रहती? झुिनया बरौठे के ार पर िछपी खड़ यह बात सुन रह थी। बाप को अब वह बाप नह ं , शऽु समझती थीं। डर , कह ं होर बैल को दे न द। जाकर पा से बोली -- अ माँ को ज द से बुला ला। कहना, बड़ा काम है ,बलम न करो। धिनया खेत म गोबर फ कने गयी थी, बह ू का स दे श सुना , तो आकर बोली -- काहे को बुलाया बहू , म तो घबड़ा गयी। ' काका को तुमने दे खा है न? ' ' हाँ दे खा, क़साई क तरह ार पर बैठा हआ है । म तो बोली भी नह ं। ' ' हमारे दोन बैल माँग रहे ह, दादा से। ' धिनया के पेट क आँत भीतर िसमट गयीं। दोन बैल माँग रह ह? ' ' हाँ , कहते ह या तो हमार ' तेरे दादा न पए दो, या हम दोन बैल खोल ले जायँगे। ' या कहा? ' ' उ ह ने कहा, तु हारा धरम कहता हो, तो खोल ले जाओ। ' ' तो खोल ले जाय; ले कन इसी ार पर आकर भीख न माँगे , तो मेरे नाम पर थूक दे ना। हमारे लह ू स उसक छाती जुड़ाती हो, तो जुड़ा ले। ' वह इसी तैश म बाहर आकर होर से बोली -- महतो दोन बैल माँग रहे ह, तो द य नह ं दे ते ? ' उनका पेट भरे , हमारे भगवान ् मािलक ह। हमारे हाथ तो नह ं काट लगे ? अब तक अपनी मजूर करत थे , अब दसर क मजूर करगे। भगवान ् क मरज़ी होगी , तो फर बैल -बिधये हो जायँगे , और मजूर ह करते रहे , तो कौन बुराई है । बूड़ेसूखे और जोत-लगान का बोझ तो न रहे गा। म न जानती थी, यह हमार वैर ह, नह ं गाय लेकर अपने िसर पर व प तहस-नहस हो गया। भोला ने अब तक जस श य लेती! उस िनगोड़ का पौरा जस दन से आया, घर को िछपा रखा था, अब उसे िनकालने का अवसर आ गया। उसे व ास हो गया बैल के िसवा इन सब के पास कोई अवल ब नह ं है । बैल को बचाने के िलए ये लोग सब कुछ करने को तैयार हो जायँगे। अ छे िनशानेबाज़ क तरह मन को साधकर बोला -- अगर तुम चाहते हो क हमार बेइएज़ती हो और तुम चैन से बैठो, तो यह न होगा। तुम अपने दो सौ को रोत हो। यहाँ लाख पए क आब बगड़ गयी। तु हार कुशल इसी म है क जैसे झुिनया को घर म रखा था, वैसे ह घर से उसे िनकाल दो, फर न हम बैल माँग गे , न गाय का दाम माँग गे। उसने हमार नाक कटवाई है , तो म भी उसे ठोकर खाते दे खना चाहता हँ ू । वह यहाँ रानी बनी बैठ रहे , और हम मुँह म कािलख लगाये उसके नाम को रोते रह, यह नह ं दे ख सकता। वह मेर बेट है , मने उसे गोद म खलाया है , और भगवान ् साखी है , मने उसे कभी बेट से कम नह ं समझा; ले कन आज उसे भीख माँगते और घूर पर दाने चुनते दे खकर मेर छाती सीतल हो जायगी। जब बाप होकर मने अपना हरदा इतना कठोर बना िलया है , तब सोचो, मेरे दल पर कतनी बड़ चोट लगी होगी। इस मुँहजली ने सात पुःत का नाम डबा दया। और तुम उसे घर म रखे हए हो , यह मेर छाती पर मूँग दलना नह ं तो और या है ! धिनया न जैसे प थर क लक र खींचते हए कहा -- तो महतो मेर भी सुन लो। जो बात तुम चाहते हो, वह न होगी, सौ जनम न होगी। झुिनया हमार जान के साथ है । तुम बैल ह तो ले जाने को कहते हो, ले जाओ; अगर इससे तु हार कट हई नाक जुड़ती हो , तो जोड़ लो; पुरख क आब बचती हो, तो बचा लो। झुिनया से बुराई ज़ र हई। जस दन उसने मेरे घर म पाँव रखा , म झाड़ ू लेकर मारने उठ थी ; ले कन जब उसक आँख से झर-झर आँसू बहने लगे , तो मुझे उस पर दया आ गयी। तुम अब बूढ़े हो गये महतो! पर आज भी तु ह सगाई क धुन सवार है । फर वह तो अभी ब चा है । भोला ने अपील भर आँख स होर को दे खा -- सुनते हो होर इसक बात! अब मेरा दोस नह ं। म बना बैल िलये न जाऊँगा। होर न ढ़ता से कहा -- ले जाओ।' फर रोना मत क मेरे बैल खोल ले गये ! ' ' नह ं रोऊँगा। ' भोला बैल क पग हया खोल ह रहा था क झुिनया चकितय दार साड़ पहने , ब चे को गोद म िलये , बाहर िनकल आयी और क पत ःवर म बोली -- काका, लो म इस घर से िनकल जाती हँ ू और जैसी तु हार मनोकामना है , उसी तरह भीख माँगकर अपना और ब चे का पेट पालूँगी, और जब भीख भी न िमलेगी, तो कह ं डब म ँ गी। भोला खिसयाकर बोला -- दर ू हो मेरे सामने से। भगवान ् न करे मुझे फर तेरा मुँह दे खना पड़े । कुिल छनी, कुल-कलं कनी कह ं क । अब तेरे िलए डब मरना ह उिचत है । झुिनया ने उसक ओर ताका भी नह ं। उसम वह बोध था, जो अपने को खा जाना चाहता है , जसम हं सा नह ं , आ मसमपण है । धरती इस वईत मुँह खोलकर उसे िनगल लेती, तो वह कतना ध य मानती! उसन आगे क़दम उठाया। ले कन वह दो क़दम भी न गयी थी क धिनया ने दौड़कर उसे पकड़ िलया और हं सा- भरे ःनेह से बोली -- तू कहाँ जाती है बहू , चल घर म। यह तेरा घर है , हमारे जीते भी और हमारे मरन के पीछे भी। डब मरे वह , जसे अपनी स तान से बैर हो। इस भले आदमी को मुँह से ऐसी बात कहत लाज नह ं आती। मुझ पर ध स जमाता है नीच! ले जा, बैल का रकत पी ... झुिनया रोती हई ह मरने दो। बोली -- अ माँ , जब अपना बाप होके मुझे िध कार रहा है , तो मुझे डब मुझ अभािगनी के कारन तो तु ह दःख ह िमला। जब से आयी , तु हारा घर िम ट म िमल गया। तुमन इतने दन मुझे जस परे म से रखा, माँ भी न रखती। भगवान ् मुझे फर जनम द ; तो तु हार कोख से द, यह मेर अिभलाषा है । धिनया उसको अपनी ओर खींचती हई बोली -- वह तेरा बाप नह ं है , तेरा बैर ह; ह यारा। माँ होती, तो अलब े उसे कलक होता। ला सगाई। मेह रया जूत से न पीटे , तो कहना! झुिनया सास के पीछे -पीछे घर म चली गयी। उधर भोला ने जाकर दोन बैल को खूँट से खोला और हाँकता हआ घर चला , जैसे कसी नेवते म जाकर पू रय के बदले जूते पड़े ह -- अब करो खेती और बजाओ बंसी। मेरा अपमान करना चाहते ह सब, न जाने कब का बैर िनकाल रहे ह, नह ं , ऐसी लड़क को कौन भला आदमी अपने घर म रखेगा। सब के सब बेसरम हो गये ह। ल डे का कह ं याह न होता था इसी से। और इस राँड़ झुिनया क ढठाई दे खो क आकर मेरे सामने खड़ हो गयी। दसर लड़क होती , तो मुँह न दखाती। आँख का पानी मर गया है । सब के सब द और मूरख भी ह। समझते ह , झुिनया अब हमार हो गयी। यह नह ं समझते जो अपने बाप के घर न रह , वह कसी के घर नह ं रहे गी। समय ख़राब है , नह ं बीच बाज़ार म इस चुड़ैल धिनया के झ टे पकड़कर घसीटता। मुझे कतनी गािलयाँ दे ती थी। फर उसने दोन बैल को दे खा, कतने तैयार ह। अ छ जोड़ है । जहाँ चाहँू , सौ अःसी पए म बेच सकता हँ ू । मेरे पए खरे हो जायँगे। अभी वह गाँव के बाहर भी न िनकला था क पीछे से दाताद न, पटे र , शोभा और दस-बीस आदमी और दौड़े आते दखायी दये। भोला का लह ू सद हो गया। अब फ़ौजदर हई ; बैल भी िछन जायँगे , मार भी पड़े गी। वह ने समीप आकर कहा -- यह तुमन क गया कमर कसकर। मरना ह है तो लड़कर मरे गा। दाताद न या अनथ कया भोला ऐं ! उसके बैल खोल लाये , वह कुछ बोला नह ं , इसीसे सेर हो गये। सब लोग अपने - अपने काम म लगे थे , कसी को ख़बर भी न हई। होर ने ज़रा -सा इशारा कर दया होता, तो तु हारा एक-एक बाल चुन जाता। भला चाहते हो, तो ले चलो बैल , ज़रा भीभलमंसी नह ं है तुमम। पटे र बोले -- यह उसके सीधेपन का फल है । तु हार करो, डमी कराओ। बैल खोल लाने का तु ह पये उस पर आते ह, तो जाकर दवानी म दावा या अ उतयार है ? अभी फ़ौजदार म दावा कर दे तो बँधे - बँधे फरो। भोला ने दबकर कहा -- तो लाला साहब, हम कुछ ज़बरदःती थोड़े ह खोल लाये। होर ने ख़ुद दये। पटे र ने शोभा से कहा -- तुम बैल को लौटा दो शोभा। कसान अपने बैल ख़ुशी से दे गा, तो इ ह हल म जोतेगा। भोला बैल के सामने खड़ा हो गया। हमार हम बैल िलये जाते ह, अपन पए दलवा दो हम बैल को लेकर या करना है । पए के िलए दावा करो और नह ं तो मारकर िगरा दये जाओगे। पए दय थे नगद तुमने ? एक कुिल छनी गाय बेचारे के िसर मढ़ द और अब उसके बैल खोले िलये जाते हो। ' भोला बैल के सामने से न हटा। खड़ा रहा गुमसुम , ढ़, मानो मारकर ह हटे गा। पटवार से दलील करके वह कैसे पेश पाता? दाताद न ने एक क़दम आगे बढ़कर अपनी झुक कमर को सीधा करके ललकारा -- तुम सब खड़े ताकत या हो, मार के भगा दो इसको। हमारे गाँव से बैल खोल ले जाएगा। बंशी बिल युवक था। उसने भोला को ज़ोर से ध का दया। भोला सँभल न सका, िगर पड़ा। उठना चाहता था क बंशी ने फर एक घूँसा दया। होर दौड़ता हआ आ रहा था। भोला ने उसक ओर दस क़दम बढ़कर पूछा -- ईमान से कहना होर महतो, मने बैल ज़बरदःती खोल िलये ? दाताद न ने इसका भावाथ कया -- यह कहते ह क होर ने अपने ख़ुशी से बैल मुझे दे दये। हमी को उ लू बनाते ह। होर ने सकुचाते हए कहा -- यह मुझसे कहने लगे या तो झुिनया को घर से िनकाल दो, या मेरे जाऊँगा। मने कहा, म बह ु को तो न िनकालूँगा , न मेरे पास पए दो, नह ं तो म बैल खोल ल पए ह; अगर तु हारा धरम कहे , तो बैल खोल लो। बस, मने इनके धरम पर छोड़ दया और इ ह ने बैल खोल िलये। पटे र ने मुँह लटकाकर कहा -- जब तुमने धरम पर छोड़ दया, तब कोई क ज़बरदःती। उसके धरम ने कहा, िलये जाता है । जाओ भैया, बैल तु हारे ह। दाताद न ने समथन कया -- हाँ , जब धरम क बात आ गयी, तो कोई या कहे । सब के सब होर को ितरःकार क आँख से दे खते पराःत होकर लौट पड़े और वजयी भोला शान से गदन उठाये बैल को ले चला। ूेमच द गोदान मालती बाहर से िततली है , भीतर से मधुम खी। उसके जीवन म हँ सी ह हँ सी नह ं है , केवल गुड़ खाकर कौन जी सकता है ! और जये भी तो वह कोई सुखी जीवन न होगा। वह हँ सती है , इसिलए क उसे इसके भी दाम िमलते ह। उसका चहकना और चमकना, इसिलए नह ं है क वह चहकने को ह जीवन समझती है , या उसने िनज व को अपनी आँख म इतना बढ़ा िलया है क जो कुछ करे , अपने ह िलए करे । नह ं , वह य क चहकती है और वनोद करती है क इससे उसके कत य का भार कुछ हलका हो जाता है । उसके बाप उन विचऽ जीव म थे , जो केवल ज़बान क मदद से लाख के वारे - यारे करते थे। बड़े - बड़े ज़मींदार और रईस क जायदाद बकवाना, उ ह क़रज़ दलाना या उनके मुआमल को अफ़सर स िमलकर तय करा दे ना, यह उनका यवसाय था। दसर श द म , दलाल थे। इस वग के लोग बड़ ूितभावान होते ह। जस काम से कुछ िमलने क आशा हो, वह उठा लगे , कसी न कसी तरह उसे िनभा भी दगे। कसी राजा क शाद कसी राजकुमार से ठ क करवा द और दस-बीस हज़ार उसी म मार िलये। यह दलाल जब छोटे - छोटे सौदे करते ह, तो टाउट कहे जाते ह, और हम उनसे घृणा करते ह। बड़े - बड़ काम करके वह टाउट राजाओं के साथ िशकार खेलता है और गवनर क मेज़ पर चाय पीता है । िमःटर कौल उ ह ं भा यवान म से थे। उनके तीन लड़ कयाँ ह लड़ कयाँ थीं। उनका वचार था क तीन को इं गलड भेजकर िश ा के िशखर पर पहँ ु चा द। अ य बहत से बड़े आदिमय क तरह उनका भी ख़याल था क इं गलड म िश ा पाकर आदमी कुछ और हो जाता है । शायद वहाँ के जल-वायु म ब दे ने क कोई श को तेज़ कर है ; मगर उनक यह कामना एक-ितहाई से एयादा पूर न हई। मालती इं गलड म ह थी क उन पर फ़ािलज िगरा और बेकाम कर गया। अब बड़ मु ँकल से दो आदिमय के सहारे उठते - बैठत थे। ज़बान तो बलकुल ब द ह हो गयी। और जब ज़बान ह ब द हो गयी, तो आमदनी भी ब द हो गयी। जो कुछ थी, ज़बान ह क कमाई थी। कुछ बचा रखने क उनक आदत न थी। अिनयिमत आय थी और अिनयिमत ख़च था; इसिलए इधर कई साल से बहत तंगहाल हो रहे थे। सारा दािय व मालती पर आ पड़ा। मालती के चार-पाँच सौ पए म वह भोग- वलास और ठाट-बाट तो या िनभता! हाँ , इतना था क दोन लड़ कय क िश ा होती जाती थी और भलेमानस क तरह ज़ दगी बसर होती थी। मालती सुबह से पहर रात तक दौड़ती रहती थी। चाहती थी क पता सा वकता के साथ रह, ले कन पताजी को शराब- कवाब का ऐसा चःका पड़ा था क कसी तरह गला न छोड़ता था। कह ं से कुछ न िमलता, तो एक महाजन से अपने बँगले पर ूोनोट िलखकर हज़ार दो हज़ार ले लेते थे। महाजन उनका पुराना िमऽ था, जसने उनक बदौलत लेन -दे न म लाख कमाये थे , और मुरौवत के मारे कुछ बोलता न था। उसके पचीस हज़ार चढ़ चुके थे , और जब चाहता, क़ुक़ र ् करा सकता था ; मगर िमऽता क लाज िनभाता जाता था। आ मसे वय म जो िनल जता आ जाती है , वह कौल म भी थी। तक़ाज़े हआ कर , उ ह परवा न थी। मालती उनके अप यय पर झुँझलाती रहती थी; ले कन उसक माता जो सा ात ् दे वी थीं और इस युग म भी पित क सेवा को नार -जीवन का मु य हे तु समझती थीं , उसे समझाती रहती थी; इसिलए गृह -य होने पाता था। स न या हो गयी थी। हवा म अभी तक गमीर ् थी। आकाश म धु ध छाया हआ था। मालतीऔर उसक दोन बहन बँगले के सामने घास पर बैठ हई जल थीं। पानी न पाने के कारण वहाँ क दब गयी थी और भीतर क िम ट िनकल आयी थी। मालती ने पूछा -- माली या बलकुल पानी नह ं दे ता? मँझली बहन सरोज ने कहा -- पड़ा-पड़ा सोया करता है सूअर। जब कहो, तो बीस बहाने िनकालने लगता है । सरोज बी. ए. म पढ़ती थी, दबली -सी, ल बी, पीली, उसे कसी क कोई बात पस द न आती थी। हमेशा ऐब िनकालती रहती थी। खी, कट। डा टर क सलाह थी क वह कोई प रौम न करे , और पहाड़ पर रहे ; ले कन घर क क उसे पहाड़ पर भेजा जा सकता। सबसे छोट वरदा को सरोज से इसिलय ःथित ऐसी न थी ष था क सारा घर सरोज को हाथ -हाथ िलये रहता था; वह चाहती थी जस बीमार म इतना ःवाद है , वह उसे ह य नह ं हो जाती। गोर -सी, गवशील, ःवःथ, चंचल आँख वाली बािलका थी, जसके मुख पर ूितभा क झलक थी। सरोज के िसवा उसे सारे संसार से सहानुभ ि ू त थी। सरोज के कथन का वरोध करना उसका ःवभाव था। बोली -- दन-भर दादाजी बाज़ार भेजते रहते ह, फ़ुरसत ह कहाँ पाता है । मरने को छ ु ट तो िमलती नह ं , पड़ा-पड़ा सोयेगा! सरोज ने डाँटा -- दादाजी उसे कब बाज़ार भेजते ह र , झूठ कह ं क ! ' रोज़ भेजते ह, रोज़। अभी तो आज ह भेजा था। कहो तो बुलाकर पुछवा दँ ? ' ' पुछवायेगी, बुलाऊँ ? ' मालती डर । दोन गुथ जायँगी, तो बैठना मु ँकल कर दगी। बात बदलकर बोली -- अ छा ख़ैर , होगा। आज डा टर मेहता का तु हारे यहाँ भाषण हआ था , सरोज? सरोज ने नाक िसकोड़कर कहा -- हाँ , हआ तो था; ले कन कसी ने पस द नह ं कया। आप फ़रमाने लगे -- संसार म बलकुल अलग है । सी टयाँ बजानी श य का पु ष के य का ेऽ पु ष स ेऽ म आना इस युग का कलंक है । सब लड़ कय ने तािलयाँ और क ं। बेचारे ल जत होकर बैठ गये। कुछ अजीब-से आदमी मालूम होते ह। आपने यहा तक कह डाला क ूेम केवल क वय क क पना है । वाःत वक जीवन म इसका कह ं िनशान नह ं। लेड ह ु कू ने उनका ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया। मालती ने कटा कया -- लेड हईक़ ू ने ? इस वषय म वह भी कुछ बोलने का साहस रखती ह! तु ह डा टर साहब का भाषण आ द से अ त तक सुनना चा हए था। उ ह न दल म लड़ कय को या समझा होगा? ' पूरा भाषण सुनने का सॄ कसे था? वह तो जैसे घाव पर नमक िछड़कते थे। ' ' फर उ ह बुलाया ह य ? आ ख़र उ ह औरत से कोई वैर तो है नह ं। जस बात को हम स य समझते ह, उसी का तो ूचार करते ह। औरत को ख़ुश करने के िलए वह उनक -सी कहनेवाल म नह ं ह और फर अभी यह कौन जानता है क याँ जस राःते पर चलना चाहती ह वह स य है । बहत स भव है , आगे चल कर हम अपनी धारणा बदलनी पड़े । ' उसने ६ांस , जमनी और इटली क म हलाओं के जीवन आदश बतलाये और कहा -- शीय ह वीमस लीग क ओर से मेहता का भाषण होनेवाला है । सरोज को कुतूहल हआ। ' मगर आप भी तो कहती ह क य और पु ष के अिधकार समान होने चा हए। ' ' अब भी कहती हँू ; ले कन दसर प वाल या कहते ह , यह भी तो सुनना चा हए। स भव है ; हमीं ग़लती पर ह । ' यह लीग इस नगर क नयी संःथा है और मालती के उ ोग से खुली है । नगर क सभी िश त म हलाए उसम शर क ह। मेहता के पहले भाषण ने म हलाओं म बड़ हलचल मचा द थी और लीग ने िन य कया था, क उनका ख़ूब द दािशकन जवाब दया जाय। मालती ह पर यह भार डाल गया था। मालतीकई दन तक अपने प के समथन म य याँ और ूमाण खोजती रह । और भी कई दे वयाँ अपने भाषण िलख रह थीं। उस दन जब मेहता शाम को लीग के हाल म पहँ ु चे , तो जान पड़ता था हाल फट जायगा। उ ह गव हआ। उनका भाषण सुनने के िलए इतना उ साह ! और वह उ साह केवल मुख पर और आँख म न था। आज सभी दे वयाँ सोने और रे शम से लद हई थीं , मानो कसी बारात म आयी ह । मेहता को पराःत करने के िलए पूर श से काम िलया था और यह कौन कह सकता है क जगमगाहट श का अंग नह ं है । मालती ने तो आज के िलए नये फ़ैशन क साड़ िनकाली थी, नये काट के ज पर बनवाये थ और रं ग -रोगन और फूल से ख़ूब सजी हई थी , मानो उसका ववाह हो रहा हो। वीमस लीग म इतना समारोह और कभी न हआ था। डा टर मेहता अकेले थे , फर भी दे वय के दल काँप रहे थे। स य क एक िचनगार अस य के एक पहाड़ को भःम कर सकती है । सबसे पीछे क सफ़ म िमरज़ा और ख ना और स पादकजी भी वराज रहे थे। राय-साहब भाषण श होने के बाद आये और पीछे खड़े हो गये। िमरज़ा ने कहा -- आ जाइए आप भी, खड़े कब तक र हएगा। राय साहब बोले -- नह ं भाई, यहाँ मेरा दम घुटने लगेगा। ' तो म खड़ा होता हँ ू । आप बै ठए। ' राय साहब ने उनके क धे दबाये -- तक लुफ़ नह ं , बैठे र हए। म थक जाऊँगा, तो आपको उठा दँ ग ा और बैठ जाऊँगा, अ छा िमस मालती सभानेऽी ह ु । ख ना साहब कुछ इनाम दलवाइए। ख ना ने रोनी सूरत बनाकर कहा -- अब िमःटर मेहता पर ह िनगाह है । म तो िगर गया। िमःटर मेहता का भाषण श हआ -- ' दे वयो, जब म इस तरह आपको स बोिधत करता हँू , तो आपको कोई बात खटकती नह ं। आप इस स मान को अपना अिधकार समझती ह; ले कन आपने कसी म हला को पु ष के ूित ' दे वता ' का यवहार करते सुना है ? उसे आप दे वता कह, तो वह समझेगा, आप उस बना रह ह। आपके पास दान दे ने के िलए दया है , ौ ा है , याग है । पु ष के पास दान के िलए या है ? वह दे वता नह ं , लेवता है । वह अिधकार के िलए हं सा करता है , संमाम करता है , कलह करता है .. ' तािलयाँ बजीं। राय साहब ने कहा -- औरत को ख़ुश करने का इसने कतना अ छा ढं ग िनकाला। ' बजली ' स पादक को बुरा लगा -- कोई नयी बात नह ं। म कतनी ह बार यह भाव य कर चुका हँ ू । मेहता आगे बढ़े -- इसिलए जब म दे खता हँू , हमार उ नत वचार वाली दे वयाँ उस दया और ौ ा और याग के जीवन से अस त होकर संमाम और कलह और हं सा के जीवन क ओर दौड़ रह ह और समझ रह ह क यह सुख का ःवग है , तो म उ ह बधाई नह ं दे सकता। िमसेज़ ख ना ने मालती क ओर सगव नेऽ से दे खा। मालती ने गदन झुका ली। खुश द बोले -- अब क हए। मेहता दलेर आदमी है । स ची बात कहता है और मुँह पर। ' बजली ' स पादक ने नाक िसकोड़ -- अब वह दन लद गये , जब दे वयाँ इन चकम म आ जाती थीं। उनके अिधकार हड़पते जाओ और कहते जाओ, आप तो दे वी ह, ल मी ह, माता ह। मेहता आगे बढ़े -- ी को पु ष के प म, प म, पु ष के कम म, रत दे खकर मुझे उसी तरह वेदना होती है , जैसे पु ष को ी के ी के कम करते दे खकर। मुझे व ास है , ऐसे पु ष को आप अपने व ास और ूेम का पाऽ नह समझती और म आपको व ास दलाता हँू , ऐसी ी भी पु ष के ूेम और ौ ा का पाऽ नह ं बन सकती। ख ना के चेहरे पर दल क ख़ुशी चमक उठ । राय साहब ने चुटक ली -- आप बहत ख़ुश ह ख नाजी ! ख ना बोले -- मालती िमल, तो पूछँू , अब क हए। मेहता आगे बढ़े -- म ूा णय के वकास म को पु ष के पद से ौ समझता हँू , उसी तरह जैसे ूेम और ी के पद याग और ौ ा को हं सा और संमाम औरकलह से ौ समझता हँ ू । अगर हमार दे वयाँ स और पालन के दे व -म दर से हं सा और कलह के दानव- ेऽ म आना चाहती ह, तो उससे समाज का क याण न होगा। म इस वषय म ढ़ हँ ू । पु ष न अपने अिभमान म अपनी दानवी क ित को अिधक मह व दया। वह अपने भाई का ःव व छ नकर और उसका र बहाकर समझने लगा, उसने बहत बड़ वजय पायी। जन िशशुओं को दे वय ने अपने र स िसरजा और पाला उ ह बम और मशीनगन और सहॐ टक का िशकार बनाकर वह अपने को वजेता समझता है । और जब हमार ह माताय उसके माथे पर केसर का ितलक लगाकर और उसे अपनी असीस का कवच पहनाकर हं सा- ेऽ म भेजती ह, तो आ य है क पु ष ने वनाश को ह संसार के क याण क वःतु समझा और उसक हं सा-ूव दन- दन बढ़ती गयी और आज हम दे ख रहे ह क यह दानवता ूचंड होकर समःत संसार को र दती, ूा णय को कुचलती, हर -भर खेितय को जलाती और गुलज़ार बःतय को वीरान करती चली जाती है । दे वयो, म आप से पूछता हँू , या आप इस दानवलीला म सहयोग दे कर, इस संमाम- ेऽ म उतरकर संसार का क याण करगी? म आपसे वनती करता हँू , नाश करनेवाल को अपना काम करने द जए, आप अपने धम का पालन कये जाइए। ख ना बोले -- मालती क तो गदन नह ं उठती। राय साहब ने इन वचार का समथन कया -- मेहता कहते तो यथाथ ह ह। ' बजली ' स पादक बगड़े -- मगर कोई नयी बात तो नह ं कह । नार -आ दोलन के वरोधी इ ह ं उट- पटाँग बात क शरण िलया करते ह। म इसे मानता ह नह ं क याग और ूेम से संसार ने उ नित क । संसार ने उ नित क पौ ष से , पराबम से , बु -बल से , तेज से। खुश द ने कहा -- अ छा, सुनने द जएगा या अपनी ह गाये जाइएगा? मेहता का भाषण जार था -- दे वयो, म उन लोग म नह ं हँू , जो कहते ह, ी और पु ष म समान श याँ ह, समान ूवृ याँ ह, और उनम कोई विभ नता नह ं है ; इससे भयंकर अस य क म क पना नह ं कर सकता। यह वह अस य है , जो युग -युगा तर से संिचत अनुभव को उसी तरह ढँ क लेना चाहता है , जैसे बादल का एक टकड़ा सूय को ढँ क लेता है । म आपको सचेत कये दे ता ह ू क आप इस जाल म न फँस। मा और ी पु ष से उतनी ह ौ◌ो है , जतना ूकाश अँधेरे से। मनुंय के िलए याग और अ हं सा जीवन के उ चतम आदश ह। नार इस आदश को ूा कर चुक है । पु ष धम और अ या म और ऋ षय का आौ◌ाय लेकर उस लआय पर पहँ ु चने के िलए स दय से ज़ोर मार रहा है ; पर सफल नह ं हो सका। म कहता हँू , उसका सारा अ या म और योग एक तरफ़ और ना रय का याग एक तरफ़। तािलयाँ बजीं। हाल हल उठा। राय साहब ने ग द होकर कहा -- मेहता वह कहते ह, जो इनके दल म है । ओंकारनाथ ने ट का क -- ले कन बात सभी पुरानी ह, सड़ ह ु । ' पुरानी बात भी आ मबल के साथ कह जाती है , तो नयी हो जाती है । ' जो एक हज़ार पए हर मह ने फटकारकर वलास म उड़ाता हो, उसम आ मबल जैसी वःतु नह ं रह सकती। यह केवल पुराने वचार क ना रय और पु ष को ूस न करने के ढं ग ह। ' ख ना ने मालती क ओर दे खा -- यह य फूली जा रह ह? इ ह तो शरमाना चा हए। खुश द ने ख ना को उकसाया -- अब तुम भी एक तक़र र कर डालो ख ना, नह ं मेहता तु ह उखाड़ फ केगा। आधा मैदान तो उसने अभी मार िलया है । ख ना खिसयाकर बोले -- मेर न क हए, मने ऐसी कतनी िच ड़याँ फँसाकर छोड़ द ह। राय साहब ने खुश द क तरफ़ आँख मारकर कहा -- आजकल आप म हला-समाज क तरफ़ आते - जाते ह। सच कहना, कतना च दा दया? ख ना पर झप छा गयी -- म ऐसे समाज को च दे नह ं दया करता, जो कला का ढ ग रचकर दराचार फैलाते ह। मेहता का भाषण जार था -- ' पु ष कहता है , जतने दाशिनक और वै ािनक आ वंकारक हए ह , वह सब पु ष थे।जतने बड़े - बड़े महा मा हए ह , वह सब पु ष थे। सभी यो ा, सभी राजनीित के आचाय, बड़े - बड़े ना वक, बड़े - बड़े सब कुछ पु ष थे ; ले कन इन बड़ -बड़ के समूह ने िमलकर कया ूवतक ने संसार म र क न दयाँ बहाने और वैमनःय क आग भड़काने के िसवा और यो ाओं ने भाइय क गरदन काटने के िसवा और ल और या? महा माओं और धम- या यादगार छोड़ , राजनीित या कया, क िनशानी अब केवल साॆा य के खंडहर रह गये ह, और आ वंकारक ने मनुंय को मशीन का ग़ुलाम बना दे ने के िसवा या समःया हल कर द ? पु ष क रची हई इस संःकृ ित म शा त कहाँ है ? सहयोग कहाँ है ? ओंकारनाथ उठकर जाने को हए -- वलािसय के मुँह से बड़ -बड़ बात सुनकर मेर दे ह भःम हो जाती है । खुश द ने उनका हाथ पकड़कर बैठाया -- आप भी स पादकजी िनरे प गा ह रहे । अजी यह दिनया है , जसके जी म जो आता है , बकता है । कुछ लोग सुनते ह और तािलयाँ बजाते ह। चिलए क़ःसा ख़तम। ऐसे - ऐसे बेशुमार मेहते आयगे और चले जायगे। और दिनया अपनी रझतार से चलती रहे गी। यहाँ बगड़न क कौन-सी बात है ? ' अस य सुनकर मुझसे सहा नह ं जाता! ' राय साहब ने उ ह और चढ़ाया -- कुलटा के मुँह से सितय क -सी बात सुनकर कसका जी न जलेगा! ओंकारनाथ फर बैठ गये। मेहता का भाषण जार था -- ' म आपसे पूछता हँू , या बाज़ को िच ड़य का िशकार करते दे खकर हं स को यह शोभा दे गा क वह मानसरोवर क आन दमयी शाि◌ त को छोड़कर िच ड़य का िशकार करने लगे ? और अगर वह िशकार बन जाय, तो आप उसे बधाई दगी? हं स के पास उतनी तेज़ च च नह ं है , उतने तेज़ चंगुल नह ं ह, उतनी तेज़ आँख नह ं ह, उतने तेज़ पंख नह ं ह और उतनी तेज़ र क यास नह ं है । उन अ का संचय करने म उसे स दयाँ लग जायँगी, फर भी वह बाज़ बन सकेगा या नह ं , इसम स दे ह है ; मगर बाज़ बने या न बने , वह हं स न रहे गा -- वह हं स जो मोती चुगता है । ' खुश द ने ट का क -- यह तो शायर क -सी दलील ह। मादा बाज़ भी उसी तरह िशकार करती है , जैसे , नर बाज़। ओंकारनाथ ूस न हो गये -- उस पर आप फ़लासफ़र बनते ह, इसी तकर ् के बल पर! ख ना ने दल का गुबार िनकाला -- फ़लासफ़र क दम ह। फ़लासफ़र वह है , जो ... ओंकारनाथ ने बात पूर क -- जो स य से जौ-भर भी न टले। ख ना को यह समःया पूित नह ची -- म स य- व य नह ं जानता। म तो फ़लासफ़र उसे कहता हँू , जो फ़लासफ़र हो स चा! खुश द ने दाद द -- फ़लासफ़र क आपने कतनी स ची तार फ़ क है । वाह सुभान ला। फ़लासफ़र वह है , जो फ़लासफ़र हो। य न हो। मेहता आगे चले -- म नह ं कहता, दे वय को व ा क ज़ रत नह ं है । है और पु ष स अिधक। म नह ं कहता, दे वय को श और वह श क ज़ रत नह ं है । है और पु ष से अिधक; ले कन वह व ा नह ं , जससे पु ष ने संसार को हं सा ेऽ बना डाला है । अगर वह आप भी ले लगी, तो संसार म ःथल हो जायगा। आपक म नह ं , स और पालन म है । व ा और वह श व ा और आपका अिधकार हं सा और व वंस या आप समझती ह, वोट से मानव-जाित का उ ार होगा, या दझतर म और अदालत म ज़बान और क़लम चलाने से ? इन नक़ली, अूाकृ ितक, वनाशकार अिधकार के िलए आप वह अिधकार छोड़ दे ना चाहती ह, जो आपको ूकृ ित ने दये ह? सरोज अब तक बड़ बहन के अदब से ज़ त कये बैठ थी। अब न रहा गया। पुकार उठ -- हम वोट चा हए, पु ष के बराबर। और कई युवितय ने हाँक लगायी -- वोट! वोट! ओंकारनाथ ने खड़े होकर ऊँचे ःवर से कहा -- नार जाित के वरोिधय क पगड़ नीची हो। मालती ने मेज़ पर हाथ पटककर कहा -- शा त रहो, जो लोग प यावप म कुछ कहना चाहगे , उ ह पूरा अवसर दया जायगा। मेहता बोले -- वोट नये युग का मायाजाल है , मर िचका है , कलंक है , धोखा है ; उसके च कर म पड़कर आप न इधर क ह गी, न उधर क । कौन कहता है क आपका ेऽ संकुिचत है और उसम आपको अिभ य का अवकाश नह ं िमलता। हम सभी पहले मनुंय ह, पीछे और कुछ। हमारा जीवन हमारा घर है । वह ं हमार स होता है , वह ं जीवन के सार यापार होते ह; अगर वह होती है वह ं हमारा पालन ेऽ प रिमत है , तो अप रिमत कौन-सा ेऽ है ? या वह संघष, जहाँ संग ठत अपहरण है ? जस कारख़ाने म मनुंय और उसका भा य बनता है , उस छोड़कर आप उन कारखान म जाना चाहती ह, जहाँ मनुंय पीसा जाता है , जहाँ उसका र िनकाला जाता है ? िमरज़ा ने टोका -- पु ष के ज़ु म ने ह तो उनम बगावत क यह ःप रट पैदा क है । मेहता बोले -- बेशक, पु ष ने अ याय कया है ; ले कन उसका यह जवाब नह ं है । अ याय को िमटाइए; ले कन अपन को िमटाकर नह ं। मालती बोली -- ना रयाँ इसिलए अिधकार चाहती ह क उनका सदपयोग कर और पु ष को उनका द ु पयोग करने से रोक । मेहता ने उ र दया -- संसार म सबसे बड़े अिधकार सेवा और याग से िमलते ह और वह आपको िमले हए ह। उन अिधकार के सामने वोट कोई चीज़ नह ं। मुझे खेद है , हमार बहन प म का आदश ले रह ह, जहाँ नार ने अपना पद खो दया है और ःवािमनी से िगरकर वलास क वःतु बन गयी है । प म क ी ःव छ द होना चाहती है ; इसीिलए क वह अिधक स अिधक वलास कर सके। हमार माताओं का आदश कभी वलास नह ं रहा। उ ह ने केवल सेवा के अिधकार से सदै व गृहःथी का संचालन कया है । प म म जो चीज़ अ छ ह, वह उनसे ली जए। संःकृ ित म सदै व आदान-ूदान होता आया है ; ले कन अ धी नक़ल तो मानिसक दबलता का ह ल ण है ! प आज गृह -ःवािमनी नह ं रहना चाहती। भोग क ल जा और ग रमा को जो उसक सबसे बड़ जब म वहाँ क सुिश म क ी वद ध लालसा ने उसे उ छखल बना दया है । वह अपनी वभूित थी, चंचलता और आमोद-ूमोद पर होम कर रह है । त बािलकाओं को अपन प का, या भर हई गोल बाँह या अपनी न नता का ूदशन करते दे खता हँू , तो मुझे उन पर दया आती है । उनक लालसाओं ने उ ह इतना पराभूत कर दया है क वे अपनी ल जा क भी र ा नह ं कर सकतीं। नार क इससे अिधक और है ? राय साहब ने तािलयाँ बजायीं। हाल तािलय से गूँज उठा, जैसे पटाख क या अधोगित हो सकती रह ह । ट टयाँ छट िमरज़ा साहब ने स पादक जी से कहा -- इसका जवाब तो आपके पास भी न होगा? स पादक जी ने वर मन से कहा -- सार या यान म इ ह ने यह एक बात स य कह है । ' तब तो आप भी मेहता के मुर द हए। ' ' जी नह ं , अपने लोग कसी के मुर द नह ं होते। म इसका जवाब ढँ ू ढ़ िनकालूँगा , ' बजली ' म दे खएगा। ' ' इसके माने यह है क आप हक़ क तलाश नह ं करते , िसफ़ अपने प के िलए लड़ना चाहते ह। ' राय साहब ने आड़े हाथ िलया -- इसी पर आपको अपने स य-ूेम का अिभमान है । स पादकजी अ वचल रहे -- वक ल का काम अपने मुअ कल का हत दे खना है , स य या अस य का िनराकरण नह ं। ' तो य क हए क आप औरत के वक ल ह। ' ' म उन सभी लोग का वक ल हँू , जो िनबल ह, िनःसहाय ह, पी ड़त ह। ' ' बड़े बेहया हो यार। 'मेहताजी कह रहे थे -- और यह पु ष का षडय ऽ है । दे वय को ऊँचे िशखर से खींचकर अपने बराबर बनाने के िलए, उन पु ष का, जो कायर ह, जनम वैवा हक जीवन का दािय व सँभालने क मता नह है , जो ःव छ द काम-ब ड़ा क तरं ग म साँड़ क भाँित दसर क हर -भर खेती म मुँह डालकर अपनी कु सत लालसाओं को त करना चाहते ह। प म म इनका षडय ऽ सफल हो गया और दे वया िततिलयाँ बन गयीं। मुझे यह कहते हए शम आती है क इस कुछ वह हवा चलने लगी है । वशेषकर हमार िश गृ हणी का आदश याग और तपःया क भूिम भारत म भी त बहन पर वह जाद ू बड़ तेज़ी से चढ़ रहा है । वह यागकर िततिलय का रं ग पकड़ रह ह। सरोज उ े जत होकर बोली -- हम पु ष से सलाह नह ं माँगतीं। अगर वह अपने बारे म ःवत ऽ ह, तो याँ भी अपने वषय म ःवत ऽ ह। युवितयाँ अब ववाह को पेशा नह ं बनाना चाहतीं। वह केवल ूेम के आधार पर ववाह करगी। ज़ोर से तािलयाँ बजीं , वशेषकर अगली प य म जहाँ म हलाएँ थीं। मेहता ने जवाब दया -- जसे तुम ूेम कहती हो, वह धोखा है , उ जैसे सं यास केवल भीख माँगने का संःकृ त लालसा का वकृ त प, उसी तरह प है । वह ूेम अगर वैवा हक जीवन म कम है , तो म वलास म बलकुल नह ं है । स चा आन द, स ची शा त केवल सेवा-ोत म है । वह अिधकार का ॐोत है , वह श का उ म है । सेवा ह वह सीमट है , जो द पित को जीवनपय त ःनेह और साहचय म जोड़े रख सकता है , जसपर बड़े - बड़े आघात का भी कोई असर नह ं होता। जहाँ सेवा का अभाव है , वह ं ववाह- व छे द है , प र याग है , अ व ास है । और आपके ऊपर, पु ष-जीवन क नौका का कणधार होने के कारण ज़ मेदार एयादा है । आप चाह तो नौका को आँधी और तूफ़ान म पार लगा सकती ह। और आपन असावधानी क तो नौका डब जायगी और उसके साथ आप भी डब जायँगी। भाषण समा हो गया। वषय ववाद-मःत था और कई म हलाओं ने जवाब दे ने क अनुमित माँगी; मगर दे र बहत हो गयी थी। इसिलए मालती ने मेहता को ध यवाद दे कर सभा भंग कर द । हाँ , यह सूचना द द गयी क अगले र ववार को इसी वषय पर कई दे वयाँ अपने वचार ूकट करगी। राय साहब ने मेहता को बधाई द -- आपने मन क बात कह ं िमःटर मेहता। म आपके एक-एक श द स सहमत हँ ू । मालती हँ सी -- आप ना रय ह के िसर य न बधाई दगे , चोर-चोर मौसेरे भाई जो होते ह; न मगर यह सारा उपदे श ग़र ब य थोपा जाता है , उ ह ं के िसर य आदश और मयादा और याग सब कुछ पालन करने का भार पटका जाता है ? मेहता बोले -- इसिलए क वह बात समझती ह। ख ना ने मालती क ओर अपनी बड़ -बड़ आँख से दे ख कर मानो उसके मन क बात समझने क चे ा करते हए कहा -- डा टर साहब के ये वचार मुझे तो कोई सौ साल पछड़े हए मालूम होते ह। मालती ने कट ु होकर पूछा -- कौन से वचार? ' यह सेवा और कत य आ द। ' ' तो आपको ये वचार सौ साल पछड़े हए मालूम होते ह ! तो कृ पा करके अपने ताज़े वचार बतलाइए। द पित कैसे सुखी रह सकते ह, इसका कोई ताज़ा नुसख़ा आपके पास है ? ' ख ना खिसया गये। बात कह मालती को ख़ुश करने के िलए, वह और ितनक उठ । बोली -- यह नुसख़ातो मेहता साहब को मालूम होगा। ' डा टर साहब ने तो बतला दया और आपके उयाल म वह सौ साल पुराना है , तो नया नुसख़ा आपको बतलाना चा हए। आपको ात नह ं क दिनया म ऐसी बहत सी बात ह , जो कभी पुरानी हो ह नह सकतीं। समाज म इस तरह क समःयाएँ हमेशा उठती रहती ह और हमेशा उठती रहगी। ' िमसेज़ ख ना बरामदे म चली गयी थीं। मेहता ने उनके पास जाकर ूणाम करते हए पूछा -- मेरे भाषण के वषय म आपक या राय है ? िमसेज़ ख ना ने आँख झुकाकर कहा -- अ छा था, बहत अ छा ; मगर अभी आप अ ववा हत ह, सभी ना रयाँ दे वयाँ ह, ौ ह, कणधार ह। ववाह कर ली जए तो पूछ ू ँ गी , अब ना रया आपको करना पड़े गा; य क आप ववाह से मुँह चुरानेवाले मद को कायर कह चुके ह। या ह? और ववाह मेहता हँ से -- उसी के िलए तो ज़मीन तैयार कर रहा हँ ू । ' िमस मालती से जोड़ा भी अ छा है । ' ' शत यह है क वह कुछ दन आपके चरण म बैठकर आपसे नार -धम सीख। ' ' वह ःवाथ पु ष क बात! आपने पु ष-कत य सीख िलया है ? ' ' यह सोच रहा हँू , कससे सीखूँ। ' ' िमःटर ख ना आपको बहत अ छ तरह िसखा सकते ह। ' मेहता ने क़हक़हा मारा -- नह ं , म पु ष-कत य भी आप ह से सीखूँगा। ' अ छ बात है , मुझी से सी खए। पहली बात यह है क भूल जाइए क नार ौ उसी पर है , ौ है और सार ज़ मेदार पु ष है और उसी पर गृहःथी का सारा भार है । नार म सेवा और संयम और कत य सब कुछ वह पैदा कर सकता है ; अगर उसम इन बात का अभाव है , तो नार म भी अभाव रहे गा। ना रय म आज जो यह विोह है , इसका कारण पु ष का इन गुण से शू य हो जाना है । ' िमरज़ा साहब ने आकर मेहता को गोद म उठा िलया और बोले -- मुबारक! मेहता ने ू क आँख से दे खा -- आपको मेर तक़र र पस द आयी? ' तक़र र तो ख़ैर जैसी थी, वैसी थी; मगर कामयाब ख़ूब रह । आपने पर को शीशे म उतार िलया। अपनी तक़द र सरा हए क जसने आज तक कसी को मुँह नह ं लगाया, वह आपका कलमा पढ़ रह है । ' िमसेज़ ख ना दबी ज़बान से बोली -- जब नशा ठहर जाय, तो क हए। मेहता ने वर भाव से कहा -- मेरे जैसे कताब क ड़ को कौन औरत पस द करे गी दे वीजी! म तो प का आदशवाद हँ ू । िमसेज़ ख ना ने अपने पित को कार क तरफ़ जाते दे खा, तो उधर चली गयीं। िमरज़ा भी बाहर िनकल गये। मेहता ने मंच पर से अपनी छड़ उठायी और बाहर जाना चाहते थे क मालती ने आकर उनका हाथ पकड़ िलया और आमह-भर आँख से बोली -- आप अभी नह ं जा सकते। चिलए, पापा से आपक मुलाक़ात कराऊँ और आज वह ं खाना खाइए। मेहता ने कान पर हाथ रखकर कहा -- नह ं , मुझे मा क जए। वहाँ सरोज मेर जान खायगी। म इन लड़ कय से बहत घबराता हँ ू । ' नह ं - नह ं , म ज़ मा लेती हँ ू जो वह मुँह भी खोले। ' ' अ छा आप चिलए, म थोड़ दे र म आऊँगा। '' जी नह ं , यह न होगा। मेर कार सरोज को लेकर चल द । आप मुझे पहँ ु चाने तो चलगे ह । ' दोन मेहता क कार म बैठे। कार चली। एक ण के बाद मेहता ने पूछा -- मने सुना है , ख ना साहब अपनी बीबी को मारा करते ह। तब से मुझे इनक सूरत से नफ़रत हो गयी। जो आदमी इतना िनदयी हो, उसे म आदमी नह ं समझता। उस पर आप नार जाित के बड़े हतैषी बनते ह। तुमने उ ह कभी समझाया नह ं ? मालती उ न होकर बोली -- ताली हमेशा दो हथेिलय से बजती है , यह आप भूल जाते ह। ' म तो ऐसे कसी कारण क क पना ह नह ं कर सकता क कोई पु ष अपनी ' चाह ी को मारे । ' ी कतनी ह बदज़बान हो? ' ' हाँ , कतनी ह । ' ' तो आप एक नये क़ःम के आदमी ह। ' ' अगर मद बदिमज़ाज है , तो तु हार राय म उस मद पर हं टर क बौछार करनी चा हए, ' ी जतनी य ? ' माशील हो सकती है पु ष नह ं हो सकता। आपने ख़ुद आज यह बात ःवीकार क है । ' ' तो औरत क माशीलता का यह पुरःकार है । म समझता हँू , तुम ख ना को मुँह लगाकर उसे और भी शह दे ती हो। तु हारा वह जतना आदर करता है , तुमसे उसे जतनी भ है , उसके बल पर तुम बड़ आसानी से उसे सीधा कर सकती हो; मगर तुम उसक सफ़ाई दे कर ःवयम ् उस अपराध म शर क हो जाती हो। ' मालती उ े जत होकर बोली -- तुमने इस समय यह ूसंग यथ ह छे ड़ दया। म कसी क बुराई नह करना चाहती; मगर अभी आपने गो व द दे वी को पहचाना नह ं ? आपने उनक भोली-भाली शा त-मुिा दे खकर समझ िलया, वह दे वी ह। म उ ह इतना ऊँचा ःथान नह ं दे ना चाहती। उ ह ने मुझे बदनाम करन का जतना ूय कया है , मुझ पर जैसे - जैसे आघात कये ह, वह बयान क ँ , तो आप दं ग रह जायँगे और तब आपको मानना पड़े गा क ऐसी औरत के साथ यह इतना यवहार होना चा हए। ' आ ख़र उ ह आपस ष है , इसका कोई कारण तो होगा? ' ' कारण उनसे पूिछए। मुझे कसी के दल का हाल या मालूम ? ' ' उनसे बना पूछे भी अनुमान कया जा सकता है और वह यह है -- अगर कोई पु ष मेरे और मेर ी के बीच म आने का साहस करे , तो म उसे गोली मार दँ ग ा , और उसे न मार सकूँगा, तो अपनी छाती म मार लूँगा। इसी तरह अगर म कसी ी को अपने और अपनी ी के बीच म लाना चाहँू , तो मेर प ी को भी अिधकार है क वह जो चाहे , करे । इस वषय म म कोई समझौता नह ं कर सकता। यह अवै ािनक मनोव है जो हमने अपने बनैले पूव ज से पायी है और आजकल कुछ लोग इसे अस य और असामा जक यवहार कहगे ; ले कन म अभी तक उस मनोवृित पर वजय नह ं पा सका और न पाना चाहता हँ ू । इस वषय म म क़ानून क परवाह नह ं करता। मेरे घर म मेरा क़ानून है । ' मालती ने तीो ःवर म पूछा -- ले कन आपने यह अनुमान कैसे कर िलया क म आपके श द म ख ना और गो व द के बीच आना चाहती हँ ू । आप ऐसा अनुमान करके मेरा अपमान कर रहे ह। म ख ना को अपनी जूितय क नोक के बराबर भी नह ं समझती। मेहता ने अ व ास-भरे ःवर म कहा -- यह आप दल से नह ं कह रह ह िमस मालती! या आप सार दिनया को बेवक़ूफ़ समझती ह ? जो बात सभी समझ रहे ह, अगर वह बात िमसेज़ ख ना भी समझ, तो म उ ह दोष नह ं दे सकता।मालती ने ितनककर कहा -- दिनया को दसर को बदनाम करने म मज़ा आता है । यह उसका ःवभाव है । म उसका ःवभाव कैसे बदल दँ ; ू ले कन यह यथ का कलंक है । हाँ , म इतनी बेमुरौवत नह ं हँ ू क ख ना को अपने पास आते दे खकर द ु कार दे ती। मेरा काम ह ऐसा है क मुझे सभी का ःवागत और स कार करना पड़ता है । अगर कोई इसका कुछ और अथ िनकालता है , तो वह ... वह ... मालती का गला भरा गया और उसने मुँह फेरकर माल से आँसू प छे । फर एक िमनट बाद बोली -- और के साथ तुम भी मुझे .. मुझे ... इसका दख पर है ... मुझे तुमसे ऐसी आशा न थी। फर कदािचत ् उसे अपनी दबलता खेद हआ। वह ूचंड होकर बोली -- आपको मुझ पर आ ेप करने का कोई अिधकार नह ं है ; अगर आप भी उ ह ं मद म ह, जो कसी ी-पु ष को साथ दे खकर उँ गली उठाये बना नह ं रह सकते , तो शौक़ स उठाइए। मुझे र ी-भर परवा नह ं ; अगर कोई ी आपके पास बार-बार कसी न कसी बहाने से आये , आपको अपना दे वता समझे , हर-एक बात म आपसे सलाह ले , आपके चरण के नीचे आँख बछाये , आपका इशारा पाते ह आग म कूदने को तैयार हो, तो म दावे से कह सकती हँू , आप उसक उपे ा न करगे ; अगर आप उसे ठकरा सकते ह , तो आप मनुंय नह ं ह। उसके व आप कतने ह तकर ् और ूमाण क बात ह लाकर रख द; ले कन म मानूँगी नह ं। म तो कहती हँू , उपे ा तो दर ू रह , ठकरान उस नार के चरण धो-धोकर पयगे , और बहत दन गुज़रने के पहले वह आपक या , आप दये र होगी। म आपस हाथ जोड़कर कहती हँू , मेरे सामने ख ना का कभी नाम न ली जएगा। मेहता ने इस वाला म मानो हाथ सकते हए कहा -- शत यह है क म ख ना को आपके साथ न दे खूँ। ' म मानवता क ह या नह ं कर सकती। वह आयगे तो म उ ह दरु -दराऊ ँ गी नह ं। ' ' उनसे क हए, अपनी ी के साथ स जनता से पेश आय। ' ' म कसी के िनजी मुआमले म दख़ल दे ना उिचत नह ं समझती। न मुझे इसका अिधकार है ! ' ' तो आप कसी क ज़बान नह ं ब द कर सकतीं। ' मालती का बँगला आ गया। कार क गयी। मालती उतर पड़ और बना हाथ िमलाये चली गयी। वह यह भी भूल गयी क उसने मेहता को भोजन क दावत द है । वह एका त म जाकर ख़ूब रोना चाहती है । गो व द ने पहले भी आघात कये ह; पर आज उसन जो आघात कया है , वह बहत गहरा , बड़ा चौड़ा और बड़ा ममभेद है । ूेमच द गोदान राय साहब को ख़बर िमली क इलाक़े म एक वारदात हो गयी है और होर से गाँव के पंच न जुरमाना वसूल कर िलया है , तो फ़ौरन नोखेराम को बुलाकर जवाब-तलब कया -- य उ ह, इसक इ ला नह ं द गयी। ऐसे नमकहराम दग़ाबाज़ आदमी के िलए उनके दरबार म जगह नह ं है । नोखेराम ने इतनी गािलयाँ खायीं , तो ज़रा गम होकर बोले -- म अकेला थोड़ा ह था। गाँव के और पंच भी तो थे। म अकेला या कर लेता। राय साहब ने उनक त द क तरफ़ भाले - जैसी नुक ली से दे खा -- मत बको जी! तु ह उसी वईत कहना चा हए था, जब तक सरकार को इ ला न हो जाय, म पंच को जुरमाना न वसूल करन दँ ग ा। पंच को मेरे और मेर रआया के बीच म दख़ल दे ने का हक़ या है ? इस डाँड़ -बाँध के िसवा इलाक़े म और कौन-सी आमदनी है ? वसूली सरकार के घर गयी। बक़ाया असािमय ने दबा िलया। तब म कहा जाऊँ ? या खाऊँ , तु हारा िसर! यह लाख पए साल का ख़च कहाँ से आये ? खेद है क दो पुँत स का र दगीर करने पर मुझे आज तु ह यह बात बतलानी पड़ती है । कतन नोखेराम ने िसट पटा कर कहा -- अःसी पए वसूल हए थे होर से ? पए! ' नक़द? ' ' नक़द उसके पास कहाँ थे हज़ र ! कुछ अनाज दया, बाक़ म अपना घर िलख दया। ' राय साहब ने ःवाथ का प छोड़कर होर का प िलया -- अ छा तो आपने और बगुलाभगत पंच ने िमलकर मेरे एक मातबर असामी को तबाह कर दया। म पूछता हँू , तुम लोग को या हक़ था क मेरे इलाक़े म मुझे इ ला दये बग़ैर मेरे असामी से जुरमाना वसूल करते। इसी बात पर अगर म चाहँू , तो आपको और उस जािलये पटवार और उस धूत प डत को सात- सात साल के िलए जेल िभजवा सकता हँ ू । आपने समझ िलया क आप ह इलाक़े के बादशाह ह। म कह दे ता हँू , आज शाम तक जुरमाने क पूर रक़म मेरे पास पहँ ु च जाय ; वरना बुरा होगा। म एक-एक स च क पसवाकर छोड़ँ ू गा। जाइए , हाँ , होर को और उसके लड़के को मेरे पास भेज द जएगा। नोखेराम न दबी ज़बान से कहा -- उसका लड़का तो गाँव छोड़कर भाग गया। जस रात को यह वारदात हई , उसी रात को भागा। राय साहब ने रोष से कहा -- झूठ मत बोलो। तु ह मालूम है , झूठ से मेरे बदन म आग लग जाती है । मने आज तक कभी नह ं सुना क कोई युवक अपनी ूेिमका को उसके घर से लाकर फर ख़ुद भाग जाय। अगर उसे भागना ह होता, तो वह उस लड़क को लाता य ? तुम लोग क इसम भी ज़ र कोई शरारत है । तुम गंगा म डबकर भी अपनी सफ़ाई दो , तो मानने का नह ं। तुम लोग ने अपने समाज क यार मयादा क र ा के िलए उसे धमकाया होगा। बेचारा भाग न जाता, तो या करता! नोखेराम इसका ूितवाद न कर सके। मािलक जो कुछ कह वह ठ क है । वह यह भी न कह सके क आप ख़ुद चलकर झूठ -सच क जाँच कर ल। बड़े आदिमय का बोध पूरा समपण चाहता है । अपने ख़लाफ़ एक श द भी नह ं सुन सकता। पंच ने राय साहब का यह फ़ैसला सुना, तो नशा हरन हो गया। अनाज तो अभी तक य का य पड़ा था; पर पए तो कब के ग़ायब हो गये। होर का मकान रे हन िलखा गया था; पर उस मकान को दे हात म कौन पूछता था। जैसे ह द ी पित के साथ घर क ःवािमनी है , और पित याग दे , तो कह ं क नह ं रहती, उसी तरह यह घर होर के िलए लाख क़ मत कुछ भी नह ं। और इधर राय साहब बना पए का है ; पर उसक असली पए िलए मानने के नह ं। यह होर जाकर रो आयाहोगा। पटे र लाल सबसे एयादा भयभीत थे। उनक तो नौकर ह चली जायगी। चार स जन इस गहन समःया पर वचार कर रहे थे , पर कसी क अ ल काम न करती थी। एक दसर पर दोष रखता था। फर ख़ूब झगड़ा हआ। पटे र ने अपनी ल बी शंकाशील गदन हलाकर कहा -- म मना करता था क होर के वषय म हम चु पी साधकर रह जाना चा हए। गाय के मामले म सबको तावान दे ना पड़ा। इस मामले म गा , नौकर से हाथ धोना पड़े गा; मगर तुम लोग को तावान ह से गला न छट बीस-बीस पए। अब भी कुशल है । कह ं राय साहब ने रपट कर द , तो सब जने बँध जाओगे। दाताद न न ॄ तेज दखाकर कहा -- मेरे पास बीस गया, होम हआ। ॄ पए क पड़ थी। िनकालो पए क जगह बीस पैसे भी नह ं ह। ॄाहमण को भोज दया या इसम कुछ ख़रच ह नह ं हआ ? राय साहब क ह मत है क मुझे जेल ले जायँ ? बनकर घर का घर िमटा दँ ग ा। अभी उ ह कसी ॄा ण से पाला नह ं पड़ा। झंगुर िसंह ने भी कुछ इसी आशय के श द कहे । वह राय साहब के नौकर नह ं ह। उ ह ने होर को मारा नह ं , पीटा नह ं , कोई दबाव नह ं डाला। होर अगर ूािय त करना चाहता था, तो उ ह ने इसका अवसर दया। इसके िलए कोई सकती थी। यहाँ मज़ उन पर अपराध नह ं लगा सकता; मगर नोखेराम क गदन इतनी आसानी से न छट से बैठे राज करते थे। वेतन तो दस पए से एयादा न था; पर एक हज़ार साल क ऊपर क आमदनी थी, सैकड़ आदिमय पर हक ू मत , चार-चार यादे हा ज़र, बेगार म सारा काम हो जाता था, थानेदार तक कुरसी दे ते थे , यह चैन उ ह और कहाँ था! और पटे र तो नौकर के बदौलत महाजन बने हए थे। कहाँ जा सकते थे ? दो-तीन दन इसी िच ता म पड़े रहे क कैसे इस व प से िनकल। आ ख़र उ ह एक माग सूझ ह गया। कभी-कभी कचहर म उ ह दै िनक ' बजली ' दे खने को िमल जाती थी। य द एक गुमनाम पऽ उसके स पादक क सेवा म भेज दया जाय क राय साहब कस तरह असािमय से जुरमाना वसूल करते ह तो बचा को लेने के दे ने पड़ जायँ। नोखेराम भी सहमत हो गये। दोन ने िमलकर कसी तरह एक पऽ िलखा और र जःटर भेज दया। स पादक ओंकारनाथ तो ऐसे पऽ क ताक म रहते थे। पऽ पाते ह तुर त राय साहब को सूचना द । उ ह एक ऐसा समाचार िमला है , जस पर व ास करने क उनक इ छा नह ं होती; पर संवाददाता ने ऐसे ूमाण दये क सहसा अ व ास भी नह ं कया जा सकता। यह सच है क राय साहब ने अपने इलाक़े के एक असामी से अःसी या पए तावान इसिलए वसूल कये क उसके पुऽ ने एक वधवा को घर म डाल िलया था? स पादक का कत य उ ह मज़बूर करता है क वह मुआमले क जाँच कर और जनता के हताथ उसे ूकािशत कर द। राय साहब इस वषय म जो कुछ कहना चाह, स पादक जी उसे भी ूकािशत कर दगे। स पादकजी दल से चाहते ह क यह ख़बर गलत हो; ले कन उसम कुछ भी स य हआ , तो वह उसे ूकाश म लाने के िलए ववश हो जायँगे। मैऽी उ ह कत य-पथ से नह ं हटा सकती। राय साहब ने यह सूचना पायी, तो िसर पीट िलया। पहले तो उनक ऐसी उ ेजना हई क जाकर ओंकारनाथ को िगनकर पचास हं टर जमाय और कह द , जहाँ वह पऽ छापना वहा यह समाचार भी छाप दे ना; ले कन इसका प रणाम सोचकर मन को शा त कया और तुर त उनसे िमलन चले। अगर दे र क , और ओंकारनाथ ने वह संवाद छाप दया, तो उनके सारे यश म कािलमा पुत जायगी। ओंकारनाथ सैर करके लौटे थे और आज के पऽ के िलए स पादक य लेख िलखने क िच ता म बैठे हए थे ; पर मन प ी क भाँित अभी उड़ा-उड़ा फरता था। उनक धमप ी ने रात म उ ह कुछ ऐसी बात कह डाली थीं जो अभी तक काँट क तरह चुभ रह थीं। उ ह कोई द रि कह ले , अभागा कह ले , बु ू कह ले , वह ज़रा भी बुरा न मानते थे ; ले कन यह कहना क उनम पु ष व नह ं है , यह उनके िलए अस था।और फर अपनी प ी को यह कहने का या हक़ है ? उससे तो यह आशा क जाती है क कोई इस तरह का आ ेप करे , तो उसका मुँह ब द कर दे । बेशक वह ऐसी ख़बर नह ं छापते , ऐसी ट प णयाँ नह ं करत क िसर पर कोई आफ़त आ जाय। फूँक-फूँककर क़दम रखते ह। इन काले कानून के युग म वह और कर ह या सकते ह; मगर वह य साँप के बल म हाथ नह ं डालते ? इसीिलए तो क उनके घरवाल को क न उठाने पड़े । और उनक स हंणुता का उ ह यह पुरःकार िमल रहा है ? या अँधेर है ! उनके पास पए नह ं ह, तो बनारसी साड़ कैसे मँगा द? डा टर सेठ और ूोफ़ेसर भा टया और न जाने कस- कस क याँ बनारसी साड़ पहनती ह, तो वह या कर? य उनक प ी इन साड़ वािलय को अपनी ख र क साड़ से ल जत नह ं करती? उनक ख़ुद तो यह आदत है क कसी बड़े आदमी से िमलने जाते ह, तो मोटे से मोटे कपड़े पहन लेते ह और कुछ कोई आलोचना करे तो उसका मुँहतोड़ जवाब दे ने को तैयार रहते ह। उनक प ी म य वह आ मािभमान नह ं है ? वह जाती है ? उसे समझना चा हए क वह एक दे श -भ िसवा और उनका या स प य दसर का ठाट -बाट दे खकर वचिलत हो पु ष क प ी है । दे श -भ के पास अपनी भ के है । इसी वषय को आज के अमलेख का वषय बनाने क क पना करते - करत यान राय साहब के मुआमले क ओर जा पहँ ु चा। राय साहब सूचना का या उ र दे ते ह , यह दे खना है । अगर वह अपनी सफ़ाई दे ने म सफल हो जाते ह, तब तो कोई बात नह ं , ले कन अगर वह यह समझ क ओंकारनाथ दबाव, भय, या मुलाहजे म आकर अपने कत य से मुँह फेर लगे तो यह उनका ॅम है । इस सारे तप और साधन का पुरःकार उ ह इसके िसवा और या िमलता है क अवसर पड़ने पर वह इन क़ानूनी डकैत का भंडा-फोड़ कर। उ ह ख़ूब मालूम है क राय साहब बड़े ूभावशाली जीव ह। क िसल के मे बर तो ह ह । अिधका रय म भी उनका काफ़ सूख है । वह चाह, तो उन पर झूठे मुक़दमे चलवा सकते ह, अपने गुंड से राह चलते पटवा सकते ह; ले कन ओंकार इन बात से नह ं डरता। जब तक उसक दे ह म ूाण है , वह आतताियय क ख़बर लेता रहे गा। सहसा मोटरकार क आवाज़ सुन कर वह च के। तुर त काग़ज़ लेकर अपना लेख आर भ कर दया। और एक ह ण म राय साहब ने उनके कमर म क़दम र खा। ओंकारनाथ ने न उनका ःवागत कया, न कुशल- ेम पूछा, न कुरसी द । उ ह इस तरह दे खा मानो कोई मुला ज़म उनक अदालत म आया हो और रोब से िमले हए ःवर म पूछा -- आपको मेरा पुरज़ा िमल गया था? म वह पऽ िलखने के िलए बा य नह ं था, मेरा कत य यह था क ःवयम ् उसक तहक़ क़ात करता; ले कन मुरौवत म िस ा त क कुछ न कुछ ह या करनी ह पड़ती है । या उस संवाद म कुछ स य है ? राय साहब उसका स य होना अःवीकार न कर सके। हालाँ क अभी तक उ ह जुरमान के पए नह ं िमले थे और वह उनके पाने से साफ़ इनकार कर सकते थे ; ले कन वह दे खना चाहते थे क यह महाशय कस पहलू पर चलते ह। ओंकारनाथ ने खेद ूकट करते हए कहा -- तब तो मेरे िलए उस संवाद को ूकािशत करने के िसवा और कोई माग नह ं है । मुझे इसका दःख है क मुझे अपने एक परम हतैषी िमऽ क आलोचना करनी पड़ रह है ; ले कन कत य के आगे य कोई चीज़ नह ं। स पादक अगर अपना कत य न पूरा कर सके , तो उसे इस आसन पर बैठने का कोई हक़ नह ं है । राय साहब कुरसी पर डट गये और पान क िगलौ रयाँ मुँह म भरकर बोले -- ले कन यह आपके हक़ म अ छा न होगा। मुझे जो कुछ होना है , पीछे होगा, आपको त काल दं ड िमल जायगा; अगर आप िमऽ क परवाह नह करते , तो म भी उसी क ड़े का आदमी हँ ू । ओंकारनाथ ने शह द का गौरव धारण करके कहा -- इसका तो मुझे कभी भय नह ं हआ। जस दन मने पऽ -स पादन का भार िलया, उसी दन ूाण का मोह छोड़दया, और मेरे समीप एक स पादक क सबसे शानदार मौत यह है क वह याय और स य क र ा करता हआ अपना बिलदान कर दे । ' अ छ बात है । म आपक चुनौती ःवीकार करता हँ ू । म अब तक आपको िमऽ समझता आया था; मगर अब आप लड़ने ह पर तैयार ह, आपके पऽ का पँचगुना च दा रईस बनाया है । पचह र तो लड़ाई ह सह । आ ख़र म य दे ता हँ ू । केवल इसीिलए क वह मेरा ग़ुलाम बना रहे । मुझे परमा मा न पया दे ता हँू ; इसीिलए क आपका मुँह ब द रहे । जब आप घाटे का रोना रोते ह और सहायता क अपील करते ह, और ऐसी शायद ह कोई ितमाह जाती हो, जब आपक अपील न िनकलती हो, तो म ऐसे मौक़े पर आपक कुछ न कुछ मदद कर दे ता हँ ू । कसिलए ! द पावली, दसहरा, होली म आपके यहाँ बैना भेजता हँू , और साल म प चीस बार आपक दावत करता हँू , कसिलए! आप र त और कत य दोन साथ-साथ नह ं िनभा सकते। ' ओंकारनाथ उ े जत होकर बोले , -- मने कभी र त नह ं ली। राय साहब ने फटकारा -- अगर यह यवहार र त नह ं है तो र त समझा द जए। या है ? ज़रा मुझे या आप समझते ह, आपको छोड़कर और सभी गधे ह जो िनःःवाथ-भाव से आपका घाटा पूरा करते ह। िनकािलए अपनी बह और बतलाइए अब तक आपको मेर रयासत से कतना िमल चुका है । मुझे व ास है , हज़ार क रक़म िनकलेगी; अगर आपको ःवदे शी-ःवदे शी िच लाकर वदे शी दवाओं और वःतुओं का व ापन छापने म शरम नह ं आती, तो म अपने असािमय से डाँड़ , तावान और जुमाना लेते शरमाऊँ ? यह न सम झए क आप ह कसान के हत का बीड़ा उठाये हए ह। मुझे कसान के साथ जलना-मरना है , मुझसे बढ़कर दसरा उनका हते छ ु नह ं हो सकता ; ले कन मेर गुज़र कैसे हो! अफ़सर को दावत कहाँ से दँ , ू सरकार च दे कहाँ से दँ , ू ख़ानदान के सैकड़ आदिमय क ज़ रत कैसे पूर क ँ । मेरे घर का या ख़च है , यह शायद आप जानते ह। तो या मेरे घर म पये फलते है ? आयेगा तो आसािमय ह के घर से। आप समझते ह गे , ज़मींदार और ता लुक़ेदार सारे संसार का सुख भोग रहे ह। उनक असली हालत का आपको ान नह ं ; अगर वह धमा मा बन कर रह, तो उनका ज़ दा रहना मु ँकल हो जाय। अफ़सर को डािलयाँ न द, तो जेलख़ाना घर हो जाय। हम ब छ ू नह ं ह क अनायास ह सबको डं क मारते फर। न ग़र ब का गला दबाना कोई बड़े आन द का काम है ; ले कन मयादाओं का पालन तो करना ह पड़ता है । जस तरह आप मेर रईसी का फ़ायदा उठाना चाहते ह, उसी तरह और सभी हम सोने क मुरग़ी समझते ह। आइए मेरे बँगले पर तो दखाऊँ क सुबह से शाम तक कतने िनशान मुझ पर पड़ते ह। कोई काँमीर से शाल-दशाला िलये चला आ रहा है , कोई इऽ और त बाकू का एजट है , कोई पुःतक और प ऽकाओं का, कोई जीवन-बीमे का, कोई मामोफ़ोन िलये िसर पर सवार है , कोई कुछ। च दे वाले तो अनिगनती। या सबके सामने अपना दखड़ा लेकर बैठ जाऊँ ? ये लोग मेरे ार पर दखड़ा सुनाने आते ह? आते ह मुझे उ लू बनाकर मुझसे कुछ ऐंठने के िलए। आज मयादा का वचार छोड़ दँ , ू तो तािलयाँ पटने लग। ह ु काम को डािलयाँ न दँ , ू तो बागी समझा जाऊँ। तब आप अपने लेख से मेर र ा न करगे। काँमेस म शर क हआ , उसका तावान अभी तक दे ता जाता हँ ू । काली कताब म नाम दरज़ हो गया। मेरे िसर पर कतना क़रज़ है , यह भी कभी आपने पूछा है ? अगर सभी महाजन डिमयाँ करा ल, तो मेरे हाथ क यह अँगूठ तक बक जायगी। आप कहग य यह आड बर पालते हो। क हए, सात पुँत स जस वातावरण म पला हँ ू उससे अब िनकल नह ं सकता। घास छ लना मेरे िलए अस भव है । आपके पास ज़मीन नह ं , जायदाद नह ं , मयादा का झमेला नह ं , आप िनभ क हो सकते ह; ले कन आप भी दम दबाय बैठे रहते ह। आपको कुछ ख़बर है , अदालत म कतनी र त चल रह ह, कतने ग़र ब का ख़ून हो रहाहै , कतनी दे वयाँ ॅ हो रह ह! है बूता िलखने का? साममी म दे ता हँू , ूमाणस हत। ओंकारनाथ कुछ नम होकर बोले -- जब कभी अवसर आया है , मने क़दम पीछे नह ं हटाया। राय साहब भी कुछ नम हए -- हाँ , म ःवीकार करता हँ ू क दो -एक मौक़ पर आपने जवाँमरद दखायी है ; ले कन आप क िनगाह हमेशा अपने लाभ क ओर रह है , ूजा- हत क ओर नह ं। आँख न िनकािलए और न मुँह लाल क जए। जब कभी आप मैदान म आये ह, उसका शुभ प रणाम यह हआ क आपके स मान और ूभाव और आमदनी म इज़ाफ़ा हआ है ; अगर मेरे साथ भी आप वह चाल चल रहे ह , तो म आपक ख़ाितर करन को तैयार हँ ू । पए न दँ ग ा ; य क वह र त है । आपक प ीजी के िलए कोई आभूषण बनवा दँ ग ा। ह मंज़ूर ? अब म आपसे स य कहता हँ ू क आपको जो संवाद िमला वह गलत है ; मगर यह भी कह दे ना चाहता हँ ू क अपने और सभी भाइय क तरह म असािमय से जुमाना लेता हँ ू और साल म दस -पाँच हज़ार पए मेरे हाथ लग जाते ह, और अगर आप मेरे मुँह से यह कौर छ नना चाहगे , तो आप घाटे म रहगे। आप भी संसार म सुख से रहना चाहते ह, म भी चाहता हँ ू । इसस या फ़ायदा क आप याय और कत य का ढ ग रचकर मुझे भी ज़ेरबार कर, ख़ुद भी ज़ेरबार ह । दल क बात क हए। म आपका बैर नह हँ ू । आपके साथ कतनी ह बार एक चौके म , एक मेज़ पर खा चुका हँ ू । म यह भी जानता हँ ू क आप तकलीफ़ म ह। आपक हालत शायद मेर हालत से भी ख़राब है । हाँ , अगर आप ने ह रशच ि बनने क क़सम खा ली है , तो आप क ख़ुशी। म चलता हँ ू । राय साहब कुरसी से उठ खड़े हए। ओंकारनाथ ने उनका हाथ पकड़कर िस धभाव से कहा -- नह ं - नह ं , अभी आपको बैठना पड़े गा। म अपनी पोज़ीशन साफ़ कर दे ना चाहता हँ ू । आपने मेरे साथ जो सलूक कये ह , उनके िलए म आपका आभार हँू ; ले कन यहाँ िस ा त क बात आ गयी है और आप जानते ह, िस ा त ूाण से भी यारे होते ह। राय साहब कुस पर बैठकर ज़रा मीठे ःवर म बोले -- अ छा भाई, जो चाहे िलखो। म तु हारे िस ा त को तोड़ना नह ं चाहता। और तो या होगा, बदनामी होगी। हाँ , कहाँ तक नाम के पीछे पीछे म ँ ! कौन ऐसा ता लुक़ेदार है , जो असािमय को थोड़ा-बहत नह ं सताता। कु ा ह ड क रखवाली करे तो खाय या ? म इतना ह कर सकता हँ ू क आगे आपको इस तरह क कोई िशकायत न िमलेगी ; अगर आपको मुझ पर कुछ व ास है , तो इस बार मा क जए। कसी दसर स पादक से म इस तरह क ख़ुशामद न करता। उसे सरे बाज़ार पटवाता ; ले कन मुझसे आपक दोःती है ; इसिलए दबना ह पड़े गा। यह समाचार-पऽ का युग है । सरकार तक उनस डरती है , मेर हःती या! आप जसे चाह बना द। ख़ैर यह झगड़ा ख़तम क जए। क हए, आजकल पऽ क या दशा है ? कुछ माहक बढ़े ? ओंकारनाथ ने अिन छा के भाव से कहा -- कसी न कसी तरह काम चल जाता है और वतमान प र ःथित म म इससे अिधक आशा नह ं रखता। म इस तरफ़ धन और भोग क लालसा लेकर नह ं आया था; इसिलए मुझे िशकायत नह ं है । म जनता क सेवा करने आया था और वह यथाश कये जाता हँ ू । रा का क याण हो , यह मेर कामना है । एक य के सुख -दःख का कोई मू य नह ं। राय साहब ने ज़रा और स दय होकर कहा -- यह सब ठ क है भाई साहब; ले कन सेवा करन के िलए भी जीना ज़ र है । आिथक िच ताओं म आप एकामिच होकर सेवा भी तो नह ं कर सकते। या माहक-सं या बलकुल नह ं बढ़ रह है ? ' बात यह है क म अपने पऽ का आदश िगराना नह ं चाहता; अगर म आज िसनेमाःटार के िचऽ और च रऽ छापने लगूँ तो मेरे माहक बढ़ सकते ह; ले कन अपनी तो वह नीित नह ं। और भी कतने ह ऐसे हथकंडे ह, जनसे पऽ ारा धन कमाया जा सकता है , ले कन म उ ह ग हत समझता हँ ू । ' ' इसी का यह फल है क आज आपका इतना स मान है । म एक ूःतावकरना चाहता हँ ू । मालूम नह ं आप उसे ःवीकार करगे या नह ं। आप मेर ओर से सौ आदिमय के नाम ६ जार कर द जए। च दा म दे दँ ग ा। ' ओंकारनाथ ने कृ त ता से िसर झुकाकर कहा -- म ध यवाद के साथ आपका दान ःवीकार करता हँ ू । खेद यह है क पऽ क ओर से जनता कतनी उदासीन है । ःकूल और कािलज और म दर के िलए धन क कमी नह ं है पर आज तक एक भी ऐसा दानी न िनकला जो पऽ के ूचार के िलए दान दे ता, हालाँ क जन-िश ा का उ े ँय जतने कम ख़च म पऽ से पूरा हो सकता है , और कसी तरह नह ं हो सकता। जैसे िश ालय को संःथाओ ारा सहायता िमला करती है , ऐसे ह अगर पऽकार को िमलने लगे , तो इन बेचार को अपना जतना समय और ःथान व ापन क भट करना पड़ता है , वह य करना पड़े ? म आपका बड़ा अनुग ह त हँ ू । राय साहब बदा हो गये ; ओंकारनाथ के मुख पर ूस नता क झलक न थी। राय साहब ने कसी तरह क शत न क थी, कोई ब धन न लगाया था; पर ओंकारनाथ आज इतनी करार फटकार पा कर भी इस दान को अःवीकार न कर सके। प रि◌ःथित ऐसी आ पड़ थी क उ ह उबरने का कोई उपाय ह न सूझ रहा था। ूेस के कमचा रय का तीन मह न का वेतन बाक़ पड़ा हआ था। काग़ज़वाले के एक हज़ार से ऊपर आ रहे थे ; यह हाथ नह ं फैलाना पड़ा। उनक ी गोमती ने आकर विोह के ःवर म कहा -- या कम था क उ ह या अभी भोजन का समय नह ं आया, या यह भी कोई िनयम है क जब तक एक न बज जाय, जगह से न उठो। कब तक कोई चू हा अगोरता रहे । ओंकारनाथ ने दखी आँख से प ी क ओर दे खा। गोमती का विोह उड़ गया। वह उनक क ठनाइय को समझती थी। दसर म हलाओं के व ाभूषण दे खकर कभी -कभी उसके मन म विोह के भाव जाग उठते थे और वह पित को दो-चार जली-कट सुना जाती थी; पर वाःतव म यह बोध उनके ूित नह ं , अपने दभा य के ूित था , और इसक थोड़ -सी आँच अनायास ह ओंकारनाथ तक पहँ ु च जाती थी। वह उनका तपःवी जीवन दे खकर मन म कुढ़ती थी और उनसे सहानुभूित भी रखती थी। बस, उ ह थोड़ा-सा सनक समझती थी। उनका उदास मुँह दे खकर पूछा -- य उदास हो, पेट म कुछ गड़बड़ ह या? ओंकारनाथ को मुःकराना पड़ा -- कौन उदास है , म? मुझे तो आज जतनी ख़ुशी है , उतनी अपन ववाह के दन भी न हई कसी भा यवान का मुँह दे खा था। थी। आज सबेरे प िह सौ क बोहनी हई। गोमती को व ास न आया, बोली -- झूठे हो। तु ह प िह सौ कहाँ िमल जाते ह। हाँ , प िह पए कहो, मान लेती हँ ू । ' नह ं - नह ं , तु हारे िसर क क़सम, प िह सौ मारे । अभी राय साहब आये थे। सौ माहक का च दा अपनी तरफ़ से दे ने का वचन दे गये ह। ' गोमती का चेहरा उतर गया -- तो िमल चुके ? ' नह ं , राय साहब वादे के प के ह ' ' मने कसी ता लुक़ेदार को वादे का प का दे खा ह नह ं। दादा एक ता लुक़ेदार के नौकर थे। साल-साल भर तलब नह ं िमलती थी। उसे छोड़कर दसर क नौकर क । उसने दो साल तक एक पाई न द । एक बार दादा गरम पड़े , तो मारकर भगा दया। इनके वाद का कोई क़रार नह ं। ' ' म आज ह बल भेजता हँ ू । ' ' भेजा करो। कह दगे , कल आना। कल अपने इलाक़े पर चले जायँगे। तीन मह ने म लौटगे। ' ओंकारनाथ संशय म पड़ गये। ठ क तो है , कह ं राय साहब पीछे से मुकर गये , तो वह या कर लगे। फर भी दल मज़बूत करके कहा -- ऐसा नह ं हो सकता। कम-से - कम राय साहब को म इतना धोखेबाज़ नहसमझता। मेरा उनके यहाँ कुछ बाक़ नह ं है । गोमती ने उसी स दे ह के भाव से कहा -- इसी से तो म तु ह ब कहती हँ ू । ज़रा कसी ने सहानुभूित दखायी और तुम फूल उठे । ये मोटे रईस ह। इनके पेट म ऐसे कतने वादे हज़म हो सकते ह। जतने वाद करते ह, अगर सब पूरा करने लग, तो भीख माँगने क नौबत आ जाय। मेरे गाँव के ठाकुर साहब तो दो- दो, तीन-तीन साल-तक बिनय का हसाब न करते थे। नौकर का हसाब तो नाम के िलए दे ते थे। साल- भर काम िलया, जब नौकर ने वेतन माँगा, मारकर िनकाल दया। कई बार इसी ना दहे द म ःकूल स उनके लड़क के नाम कट गये। आ ख़र उ ह ने लड़क को घर बुला िलया। एक बार रे ल का टकट उधार माँगा था। यह राय साहब भी तो उ ह ं के भाईब द ह। चलो भोजन करो और च क पीसो, जो तु हार भा य म िलखा है । यह समझ लो क ये बड़े आदमी तु ह फटकारते रह, वह अ छा है । यह तु ह एक पैसा दगे , तो उसका चौगुना अपने असािमय से वसूल कर लगे। अभी उनके वषय म जो कुछ चाहते हो, िलखते हो। तब तो ठकुरसोहाती ह कहनी पड़े गी। प डत जी भोजन कर रहे थे ; पर कौर मुँह म फँसा हआ जान पड़ता था। आ ख़र बना दल का बोझ हलका कये भोजन करना क ठन हो गया। बोले -- अगर पए न दये , तो ऐसी ख़बर लूँगा क याद करगे। उनक चोट मेरे हाथ म है । गाँव के लोग झूठ ख़बर नह ं दे सकते। स ची ख़बर दे ते तो उनक जान िनकलती है , झूठ ख़बर या दगे ! राय साहब के ख़लाफ़ एक रपोट मेरे पास आयी है । छाप दँ , ू बचा को घर से िनकलना मु ँकल हो जाय। मुझे यह ख़ैरात नह ं द रहे ह, बड़े दबसट म पड़कर इस राह पर आये ह। पहले धम कयाँ दखा रहे थे , जब दे खा इससे काम न चलेगा, तो यह चारा फ का। मने भी सोचा, एक इनके ठ क हो जाने से तो दे श से अ याय िमटा जाता नह ं , फर य न इस दान को ःवीकार कर लूँ। म अपने आदश से िगर गया हँ ू ज़ र ; ले कन इतने पर भी राय साहब ने दग़ा क , तो म भी शठता पर उतर आऊँगा। जो ग़र ब को लूटता है , उसको लूटने के िलए अपनी आ मा को बहत समझाना न पड़े गा। ूेमच द गोदान िमरज़ा खुश द का हाता लब भी है , कचहर भी, अखाड़ा भी। दन भर जमघट लगा रहता है । मुह ले म अखाड़े के िलए कह ं जगह नह ं िमलती थी। िमरज़ा ने एक छ पर डलवाकर अखाड़ा बनावा दया है ; वहाँ िन य सौ-पचास ल ड़ तये आ जुटते ह। िमरज़ाजी भी उनके साथ ज़ोर करते ह। मुह ले क पंचायत भी यह ं होती ह। िमयाँ - बीबी और सास-बह ू और भाई -भाई के झगड़े - टं टे यह ं चुकाये जाते ह। मुह ले के सामा जक जीवन का यह के ि है और राजनीितक आ दोलन का भी। आये दन सभाएँ होती रहती ह। यह ं ःवयंसेवक टकते ह, यह ं उनके ूोमाम बनते ह, यह ं से नगर का राजनीितक संचालन होता है । पछले जलसे म मालती नगर-काँमेस -कमेट क सभानेऽी चुन ली गयी है । तब से इस ःथान क रौनक़ और भी बढ़ गयी है । गोबर को यहाँ रहते साल भर हो गया। अब वह सीधा-साधा मामीण युवक नह ं है । उसने बहत दे ख ली और संसार का रं ग -ढं ग भी कुछ-कुछ समझने लगा है । मूल म वह अब कुछ दिनया भी दे हाती है , पैसे को दाँत से पकड़ता है , ःवाथ को कभी नह ं छोड़ता, और प रौम से जी नह ं चुराता, न कभी ह मत हारता है ; ले कन शहर क हवा उसे भी लग गयी है । उसने पहले मह ने तो केवल मजूर क ओर आधा पेट खाकर थोड़े स पए बचा िलये। फर वह कचालू और मटर और दह -बड़े के ख चे लगान लगा। इधर एयादा लाभ दे खा, तो नौकर छोड़ द । गिमय म शबत और बरफ़ क दकान भी खोल द । उठा द और लेन -दे न म खरा था इसिलए उसक साख जम गयी। जाड़े आये , तो उसने शबत क दकान गम चाय पलाने लगा। अब उसक रोज़ाना आमदनी ढाई-तीन पए से कम नह ं। उसने अँमेज़ी फ़ैशन के बाल कटवा िलए ह, मह न धोती और प प-शू पहनता है , एक लाल ऊनी चादर ख़र द ली और पान िसगरे ट का शौक़ न हो गया है । सभाओं म आने - जाने से उसे कुछ-कुछ राजनीितक रा और वग का अथ समझने लगा है । सामा जक ान भी हो चला है । ढ़य क ूित ा और लोक-िन दा का भय अब उसम बहत कम रह गया है । आये दन क पंचायत ने उसे िनःसंकोच बना दया है । जस बात के पीछे वह यहाँ घर से दरू , मुँह िछपाये पड़ा हआ है , उसी तरह क , ब क उससे भी कह ं िन दाःपद बात यहाँ िन य हआ करती ह , और कोई भागता नह ं। फर वह पैसा भी घर नह ं भेजा। वह माता- पता को य इतना डरे और मुँह चुराये ! इतने दन म उसने एक पए-पैसे के मामले म इतना चतुर नह ं समझता। वे लोग तो पए पाते ह आकाश म उड़ने लगगे। दादा को तुर त गया करने क और अ माँ को गहने बनवाने क धुन सवार हो जायगी। ऐसे यथ के काम के िलए उसके पास है । पड़ोस के ए केवाल गाड़ वान और धो बय को सूद पर पए नह ं ह। अब वह छोटा-मोटा महाजन पए उधार दे ता है । इस दस- यारह मह ने म ह उसने अपनी मेहनत और कफ़ायत और पु षाथ से अपना ःथान बना िलया है और अब झुिनया को यह ं लाकर रखने क बात सोच रहा है । तीसरे पहर का समय है । वह सड़क के नल पर नहाकर आया ह और शाम के िलए आलू उबाल रहा है क िमरज़ा खुश द आकर ार पर खड़े हो गये। गोबर अब उनका नौकर नह ं है ; पर अदब उसी तरह करता है और उनके िलए जान दे ने को तैयार रहता है । पूछा -- ार पर जाकर या ह ु म है सरकार ? िमरज़ा ने खड़े - खड़े कहा -- तु हारे पास कुछ पए ह , तो दे दो। आज तीन दन से बोतल ख़ाली पड़ हईहै , जी बहत बेचैन हो रहा है । गोबर ने इसके पहले भी दो-तीन बार िमरज़ाजी को तक़ाज़ा करते डरता था और िमरज़ाजी पए लेकर दे ना न जानते थे। उनके हाथ म इधर आये उधर ग़ायब। यह तो न कह सका, म करने लगा -- आप इसे छोड़ पए दये थे ; पर अब तक वसूल न कर सका था। पए न दँ ग ा या मेरे पास य नह ं दे ते सरकार? पए टकते ह न थे। पए नह ं ह , शराब क िन दा या इसके पीने से कुछ फ़ायदा होता है ? िमरज़ाजी ने कोठर के अ दर खाट पर बैठते हए कहा -- तुम समझते हो, म छोड़ना नह ं चाहता और शौक़ से पीता हँ ू । म इसके बग़ैर ज़ दा नह ं रह सकता। तुम अपन पए के िलए न डरो , म एक-एक कौड़ अदा कर दँ ग ा। गोबर अ वचिलत रहा -- म सच कहता हँ ू मािलक ! मेरे पास इस समय पए होते तो आपसे इनकार करता? ' दो पए भी नह ं दे सकते ? ' ' इस समय तो नह ं ह। ' ' मेर अँगूठ िगरो रख लो। ' गोबर का मन ललचा उठा; मगर बात कैसे बदले। बोला -- यह आप या कहते ह मािलक, पए होते तो आपको दे दे ता, अँगूठ क कौन बात थी? िमरज़ा ने अपने ःवर म बड़ा द न आमह भरकर कहा -- म फर तुमसे कभी न माँगूँगा गोबर! मुझस खड़ा नह ं हआ जा रहा है । इस शराब क बदौलत मने लाख क है िसयत बगाड़ द और िभखार हो गया। अब मुझे भी ज़द पड़ गयी है क चाहे भीख ह माँगनी पड़े , इसे छोड़ँ ू गा नह ं। जब गोबर ने अबक बार इनकार कया, तो िमरज़ा साहब िनराश होकर चले गये। शहर म उनके हज़ार िमलने वाले थे। कतने ह उनक बदौलत बन गये थे। कतन ह को गाढ़े समय पर मदद क थी; पर ऐसे से वह िमलना भी न पस द करते थे। उ ह ऐसे हज़ार लटके मालूम थे , जससे वह समय-समय पर पय के ढे र लगा दे ते थे ; पर पैसे क उनक िनगाह म कोई क़ि न थी। उनके हाथ म थे। कसी न कसी बहाने उड़ाकर ह उनका िच पए जैसे काटत शा त होता था। गोबर आलू छ लने लगा। साल-भर के अ दर ह वह इतना काइयाँ हो गया था और पैसा जोड़ने म इतना कुशल क अचरज होता था। जस कोठर म वह रहता है , वह िमरज़ा साहब ने द है । इस कोठर और बरामदे का कराया बड़ आसानी स पाँच पया िमल सकता है । गोबर लगभग साल भर से उसम रहता है ; ले कन िमरज़ा ने न कभी कराया माँगा न उसने दया। उ ह शायद ख़याल भी न था क इस कोठर का कुछ कराया भी िमल सकता है । थोड़ दे र म एक इ केवाला काना। उसक लड़क पर पये माँगने आया। अलाद न नाम था, िसर घुटा हआ , खचड़ डाढ़ , और बदा हो रह थी। पाँच पए क उसे बड़ ज़ रत थी। गोबर ने एक आना पया सूद पए दे दये। अलाद न ने ध यवाद दे ते हए कहा -- भैया, अब बाल-ब च को बुला लो। कब तक हाथ से ठोकते रहोगे। गोबर ने शहर के ख़च का रोना रोया -- थोड़ आमदनी म गृहःथी कैसे चलेगी? अलाद न बीड़ जलाता हआ बोला -- ख़रच अ लाह दे गा भैया! सोचो, कतना आराम िमलेगा। म तो कहता हँू , जतना तुम अकेले ख़रच करते हो, उसी म गृहःथी चल जायगी। औरत के हाथ म बड़ बर कत होती है । ख़ुदा क़सम, जब म अकेला यहाँ रहता था, तो चाहे कतना ह कमाऊँ खा-पी सब बराबर। बीड़ -तमाखको भी पैसा न रहता। उस पर है रानी। थके -माँदे आओ, तो घोड़े को खलाओ और टहलाओ। फर नानबाई क दकान पर दौड़ो। नाक म दम आ गया। जब से घरवाली आ गयी है , उसी कमाई म उसक रो टयाँ भी िनकल आती ह और आराम भी िमलता है । आ ख़र आदमी आराम के िलए ह तो कमाता है । जब जान खपाकर भी आराम न िमला, तो ज़ दगी ह ग़ारत हो गयी। म तो कहता हँू , तु हार कमाई बढ़ जायगी भैया! जतनी दे र म आलू और मटर उबालते हो, उतनी दे र म दो-चार याले चाय बेच लोगे। अब चाय बारह मास चलती है ! रात को लेटोगे तो घरवाली पाँव दबायेगी। सार थकान िमट जायगी। यह बात गोबर के मन म बैठ गयी। जी उचाट हो गया। अब तो वह झुिनया को लाकर ह रहे गा। आल चू हे पर चढ़े रह गये , और उसने घर चलने क तैयार कर द ; मगर याद आया क होली आ रह है ; इसिलए होली का सामान भी लेता चले। कृ पण लोग म उ सव पर दल खोलकर ख़च करने क जो एक ूव होती है , वह उसम भी सजग हो गयी। आ ख़र इसी दन के िलए तो कौड़ -कौड़ जोड़ रहा था। वह माँ , बहन और झुिनया के िलए एक-एक जोड़ साड़ ले जायगा। होर के िलए एक धोती और एक चादर। सोना के िलए तेल क शीशी ले जायगा, और एक जोड़ा च पल। पा के िलए जापानी चू ड़याँ और झुिनया के िलए एक पटार , जसम तेल , िस दर ू और आईना होगा। ब चे के िलए टोप और ६ाक जो बाज़ार म बना बनाया िमलता है । उसन पए िनकाले और बाज़ार चला। दोपहर तक सार चीज़ आ गयीं। बःतर भी बँध गया, मुह लेवाल को ख़बर हो गयी, गोबर घर जा रहा है । कई मद-औरत उसे बदा करने आये। गोबर ने उ ह अपना घर स पते हए कहा -- तु ह ं लोग पर छोड़े जाता हँ ू । भगवान ् ने चाहा तो होली के दसर दन लौटँ ू गा। एक युवती ने मुःकराकर कहा -- मेह रया को बना िलये न आना, नह ं घर म न घुसने पाओगे। ूौढ़ा ने िश ा द -- हाँ , और दसर या, बहत दन तक चू हा फूँक चुके। ठकाने से रोट तो िमलेगी ! गोबर ने सबको राम-राम कया। ह द ू भी थे , मुसलमान भी थे , सभी म िमऽभाव था, सब एक-दसर के दःख -दद के साथी। रोज़ा रखनेवाले रोज़ा रखते थे। एकादशी रखनेवाले एकादशी। कभी-कभी वनोद-भाव स एक-दसर पर छ ंटे भी उड़ा लेते थे। गोबर अलाद न क नमाज़ को उठा -बैठ कहता, अलाद न पीपल के नीचे ःथा पत सैकड़ छोटे - बड़े िशविलंग को बटखरे बनाता; ले कन सा ूदाियक ष का नाम भी न था। गोबर घर जा रहा है । सब उसे हँ सी-ख़ुशी बदा करना चाहते ह। इतने म भूरे ए का लेकर आ गया। अभी दन-भर का धावा मारकर आया था। ख़बर िमली, गोबर घर जा रहा है । वैसे ह ए का इधर फेर दया। घोड़े ने आप क । उसे कई चाबुक लगाये। गोबर ने ए के पर सामान रखा, ए का बढ़ा, पहँ ु चाने वाल गली के मोड़ तक पहँ ु चाने आये , तब गोबर ने सबको राम-राम कया और ए के पर बैठ गया। सड़क पर ए का सरपट दौड़ा जा रहा था। गोबर घर जाने क ख़ुशी म मःत था। भूरे उसे घर पहँ ु चाने क ख़ुशी म मःत था। और घोड़ा था पानीदार, घोड़ा चला जा रहा था। बात क बात म ःटे शन आ गया। गोबर न ूस न होकर एक पया कमरे से िनकाल कर भूरे क तरफ़ बढ़ाकर कहा -- लो, घरवाली के िलए िमठाई लेते जाना। भूरे ने कृ त ता-भरे ितरःकार से उसक ओर दे खा -- तुम मुझे ग़ैर समझते हो भैया! एक दन ज़रा ए के पर बैठ गये तो म तुमसे इनाम लूँगा। जहाँ तु हारा पसीना िगरे , वहाँ ख़ून िगराने को तैयार हँ ू । इतना छोटा दल नह ं पाया है । और ले भी लूँ , तो घरवाली मुझे जीता छोड़े गी? गोबर ने फर कुछ न कहा। ल जत होकर अपना असबाब उतारा और टकट लेने चल दया। ूेमच द गोदान फागुन अपनी झोली म नवजीवन क वभूित लेकर आ पहँ ु चा था। आम के पेड़ दोन हाथ स बौर के सुग ध बाँट रहे थे , और कोयल आम क डािलय म िछपी हई संगीत का ग दान कर रह थी। गाँव म ऊख क बोआई लग गयी थी। अभी धूप नह ं िनकली; पर होर खेत म पहँ ु च गया है । धिनया , सोना, पा तीन तलैया से ऊख के भीगे हए ग ठे िनकाल -िनकालकर खेत म ला रह ह, और होर गँड़ास से ऊख के टकड़ कर रहा है । अब वह दाताद न क मज़दर ू करने लगा है । कसान नह ं , मजूर है । दाताद न से अब उसका पुरो हत-जजमान का नाता नह ं , मािलक-मज़दर ू का नाता है । दाताद न ने आकर डाँटा -- हाथ और फुरती से चलाओ होर ! इस तरह तो तुम दन-भर म न काट सकोगे। होर ने आहत अिभमान के साथ कहा -- चला ह तो रहा हँ ू महराज , बैठा तो नह ं हँ ू । दाताद न मजूर से रगड़ कर काम लेते थे ; इसिलए उनके यहाँ कोई मजूर टकता न था। होर उसका ःवभाव जानता था; पर जाता कहाँ ! प डत उसके सामने खड़े होकर बोले -- चलाने - चलाने म भेद है । एक चलाना वह है क घड़ भर म काम तमाम, दसरा चलाना वह है क दन -भर म भी एक बोझ ऊख न कटे । होर ने वष का घूँट पीकर और ज़ोर से हाथ चलाना श कया, इधर मह न से उसे पेट -भर भोजन न िमलता था। ूायः एक जून तो चबैने पर ह कटता था, दसर जून भी कभी आधा पेट भोजन िमला , कभी कड़ाका हो गया; कतना चाहता था क हाथ और ज द उठे , मगर हाथ जवाब दे रहा था। उस पर दाताद न िसर पर सवार थे। ण-भर दम ले लेने पाता, तो ताज़ा हो जाता; ले कन दम कैसे ले ? घुड़ कया पड़ने का भय था। धिनया और तीन लड़ कयाँ ऊख के ग ठे िलये गीली सा ड़य से लथपथ, क चड़ म सनी हई आयीं , और ग ठे पटककर दम मारने लगीं क दाताद न ने डाँट बताई -- यहाँ तमाशा या दे खती है धिनया? जा अपना काम कर। पैसे सत म नह ं आते। पहर-भर म तू एक खेप लायी है । इस पायेगी। हसाब से तो दन भर म भी उख न ढल धिनया न योर बदलकर कहा -- या ज़रा दम भी न लेने दोगे महराज! हम भी तो आदमी ह। तु हार मजूर करने से बैल नह ं हो गये। ज़रा मूड़ पर एक ग ठा लादकर लाओ तो हाल मालूम हो। दाताद न बगड़ उठे -- पैसे दे ने ह काम करने के िलए, दम मारने के िलए नह ं। दम मार लेना है , तो घर जाकर दम लो। धिनया कुछ कहने ह जा रह थी क होर ने फटकार बताई -- तू जाती य नह ं धिनया? य ह ु जत कर रह है ? धिनया ने बीड़ा उठाते हए कहा -- जा तो रह हँू , ले कन चलते हए बैल को औंगी न दे ना चा हए। दाताद न ने लाल आँख िनकाल लीं -- जान पड़ता है , अभी िमज़ाज ठं डा नह ं हआ। जभी दाने -दाने को मोहताज हो। धिनया भला य चुप रहने लगी थी -- तु हार ार पर भीख माँगने नह ं जाती।दाताद न ने पैने ःवर म कहा -- अगर यह हाल है तो भीख भी माँगोगी। धिनया के पास जवाब तैयार था; पर सोना उसे खींचकर तलैया क ओर ले गयी, नह ं बात बढ़ जाती; ले कन आवाज़ क पहँ ु च के बाहर जाकर दल क जलन िनकाली -- भीख माँगो तुम , जो िभखमंगे क जात हो। हम तो मजूर ठहरे , जहाँ काम करगे , वह ं चार पैसे पायगे। सोना ने उसका ितरःकार कया -- अ माँ , जाने भी दो। तुम तो समय नह ं दे खती, बात-बात पर लड़न बैठ जाती हो। होर उ म क भाँित िसर से ऊपर गड़ाँसा उठा-उठाकर ऊख के टकड़ के ढे र करता जाता था। उसके भीतर जैसे आग लगी हई थी। उसम अलौ कक श आ गयी थी। उसम जो पी ढ़य का संिचत पानी था , वह इस समय जैसे भाप बनकर उसे य ऽ क -सी अ ध-श ूदान कर रहा था। उसक आँख म अँधेरा छाने लगा। िसर म फरक -सी चल रह थी। फर भी उसके हाथ य ऽ क गित से , बना थके , बना के , रहा था , िसर म धम-धम उठ रहे थे। उसक दे ह से पसीने क धारा िनकल रह थी, मुँह से फचकुर छट का श द होरहा था, पर उस पर जैसे कोई भूत सवार हो गया हो। सहसा उसक आँख म िन बड़ अ धकार छा गया। मालूम हआ वह ज़मीन म धँसा जा रहा है । उसने सँभलने क चे ा से शू य म हाथ फैला दये , गया और वह औंधे मुँह ज़मीन पर पड़ गया। उसी वईत धिनया और अचेत हो गया। गँड़ासा हाथ से छट ऊख का ग ठा िलये आयी। दे खा तो कई आदमी होर को घेरे खड़े ह। एक हलवाहा दाताद न से कह रहा था -- मािलक तु ह ऐसी बात न कहनी चा हए, जो आदमी को लग जाय। पानी मरते ह मरते तो मरे गा। धिनया ऊख का ग ठा पटककर पागल क तरह दौड़ हई होर के पास गयी , और उसका िसर अपनी जाँघ पर रखकर वलाप करने लगी -- तुम मुझे छोड़कर कहाँ जाते हो। अर सोना, दौड़कर पानी ला और जाकर शोभा से कह दे , दादा बेहाल ह। हाय भगवान ! अब म कहाँ जाऊँ। अब कसक होकर रहँ ू गी , कौन मुझे धिनया कहकर पुकारे गा...। लाला पटे र भागे हए आये और ःनेह भर कठोरता से बोले -- या करती है धिनया, होश सँभाल। होर को कुछ नह ं हआ। गम से अचेत हो गये ह। अभी होश आया जाता है । दल इतना क चा कर लेगी , तो कैसे काम चलेगा? धिनया ने पटे र के पाँव पकड़ िलये और रोती हई बोली -- या क ँ लाला, जी नह ं मानता। भगवान ् न सब कुछ हर िलया। म सबर कर गयी। अब सबर नह ं होता। हाय रे मेरा ह रा! सोना पानी लायी। पटे र ने होर के मुँह पर पानी के छ ंटे दये। कई आदमी अपनी-अपनी अँगोिछय स हवा कर रहे थे। होर क दे ह ठं ड पड़ गयी थी। पटे र को भी िच ता हई ; पर धिनया को वह बराबर साहस दे ते जाते थे। धिनया अधीर होकर बोली -- ऐसा कभी नह ं हआ था। लाला , कभी नह ं। पटे र ने पूछा -- रात कुछ खाया था? धिनया बोली -- हाँ , रो टयाँ पकायी थीं ; ले कन आजकल हमारे ऊपर जो बीत रह है , वह या तुमसे िछपा है ? मह न से भरपेट रोट नसीब नह ं हई। कतना समझाती हँ ू , जान रखकर काम करो; ले कन आराम तो हमारे भा य म िलखा ह नह ं। सहसा होर ने आँख खोल द ं और उड़ती हई नज़र से इधर -उधर ताका। धिनया जैसे जी उठ । व ल होकर उसके गले से िलपटकर बोली -- अब कैसा जी है तु हारा? मेरे तो परान नह म समा गये थे। होर ने कातर ःवर म कहा -- अ छा हँ ू । न जाने कैसा जी हो गया था।धिनया ने ःनेह म डबी भ सना से कहा -- दे ह म दम तो है नह ं , काम करते हो जान दे कर। लड़क का भाग था, नह ं तुम तो ले ह डब थे ! पटे र ने हँ सकर कहा -- धिनया तो रो-पीट रह थी। होर ने आतुरता से पूछा -- सचमुच तू रोती थी धिनया? धिनया ने पटे र को पीछे ढकेल कर कहा -- इ ह बकने दो तुम। पूछो, यह य कागद छोड़कर घर स दौड़े आये थे ? पटे र ने िचढ़ाया -- तु ह ह रा-ह रा कहकर रोती थी। अब लाज के मारे मुकरती है । छाती पीट रह थी। होर ने धिनया को सजल नेऽ से दे खा -- पगली है और या। अब न जाने कौन-सा सुख दे खने के िलए मुझे जलाये रखना चाहती है । दो आदमी होर को टकाकर घर लाये और चारपाई पर िलटा दया। दाताद न तो कुढ़ रहे थे क बोआई म दे र हई लाया , और एक शीशी म जाती है , पर माताद न इतना िनदयी न था। दौड़कर घर से गम दध गुलाबजल भी लेता आया। और दध पीकर होर म जैसे जान आ गयी। उसी वईत गोबर एक मज़दर ू के िसर पर अपना सामान लादे आता दखायी दया। गाँव के कु े पहले तो भूँकते हए उसक तरफ़ दौड़े । फर हलाने लगे। दम पा ने कहा -- भैया आये , और तािलयाँ बजाती हई दौड़ । सोना भी दो -तीन क़दम आगे बढ़ ; पर अपन उछाह को भीतर ह दबा गयी। एक साल म उसका यौवन कुछ और संकोचशील हो गया था। झुिनया भी घूँघट िनकाल और ार पर खड़ हो गयी। गोबर ने माँ - बाप के चरण छए पा को गोद म उठाकर यार कया। धिनया ने उसे आशीवाद दया और उसका िसर अपनी छाती से लगाकर मानो अपने मातृ व का पुरःकार पा गयी। उसका दय गव से उमड़ा पड़ता था। आज तो वह रानी है । इस फटे - हाल म भी रानी है । कोई उसक आँख दे खे , उसका मुख दे खे , उसका दय दे खे , उसक चाल दे खे। रानी भी लजा जायगी। गोबर कतना बड़ा हो गया है और पहन-ओढ़कर कैसा भलामानस लगता है । धिनया के मन म कभी अमंगल क शंका न हई थी। उसका मन कहता था , गोबर कुशल से है और ूस न है । आज उसे आँख दे खकर मानो उसके जीवन के धूल -ध कड़ म गुम हआ र िमल गया है ; मगर होर ने मुँह फेर िलया था। गोबर ने पूछा -- दादा को या हआ है , अ माँ ? धिनया घर का हाल कहकर उसे दखी न करना चाहती थी। बोली -- कुछ नह ं है बेटा, ज़रा िसर म दद है । चलो, कपड़े उतरो, हाथ-मुँह धोओ? कहाँ थे तुम इतने दन? भला इस तरह कोई घर से भागता है ? और कभी एक िच ठ तक न भेजी। आज साल-भर के बाद जाके सुिध ली है । तु हार राह दे खते - दे खते आँख फूट गयीं। यह आसा बँधी रहती थी क कब वह दन आयेगा और कब तु ह दे खूँगी। कोई कहता था, िमरच भाग गया, कोई डमरा टापू बताता था। सुन -सुनकर जान सूखी जाती थी। कहाँ रहे इतने दन? गोबर ने शमात हए कहा -- कह ं दर ू नह ं गया था अ माँ , यह लखनऊ म तो था। ' और इतने िनयरे रहकर भी कभी एक िच ठ न िलखी! ' उधर सोना और पा भीतर गोबर का सामान खोलकर चीज़ का बाँट -बखरा करने म लगी हई थीं ; ले कन झुिनया दर ू खड़ थी ; उसके मुख पर आज मान का शोख रं ग झलक रहा है । गोबर ने उसके साथ जो यवहार कया है , आज वह उसका बदला लेगी। असामी को दे खकर महाजन उससे वह पये वसूल करने को भी याकुल हो रहा है , जो उसने ब टे खाते मडाल दये थे। ब चा उन चीज़ क ओर लपक रहा था और चाहता था, सब-का-सब एक साथ मुँह म डाल ले ; पर झुिनया उसे गोद से उतरने न दे ती थी। सोना बोली -- भैया तु हारे िलए आईना-कंघी लाये ह भाभी! झुिनया ने उपे ा भाव से कहा -- मुझे ऐना-कंघी न चा हए। अपने पास रखे रह। पा ने ब चे क चमक ली टोपी िनकाली -- ओ हो! यह तो चु नू क टोपी है । और उसे ब चे के िसर पर रख दया। झुिनया ने टोपी उतारकर फ क द । और सहसा गोबर को अ दर आते दे खकर वह बालक को िलए अपनी कोठर म चली गयी। गोबर ने दे खा, सारा सामान खुला पड़ा है । उसका जी तो चाहता है पहले झुिनया से िमलकर अपना अपराध मा कराये ; ले कन अ दर जाने का साहस नह ं होता। वह ं बैठ गया और चीज़ िनकाल-िनकाल, हर-एक को दे ने लगा, मगर गयी क उसके िलए च पल य नह ं आये , और सोना उसे िचढ़ाने लगी, त या करे गी च पल लेकर, अपनी गु ड़या से खेल। हम तो तेर गु ड़या दे खकर नह ं रोते , तू मेरा च पल दे खकर बाँटने क पा इसिलए फूल य रोती है ? िमठाई ज़ मेदार धिनया ने अपने उपर ली। इतने दन के बाद लड़का कुशल से घर आया है । वह गाँव -भर म बैना बटवायेगी। एक गुलाब-जामुन पा के िलए ऊँट के मुँह म जीरे के समान था। वह चाहती थी, हाँड उसके सामने रख द जाय, वह कूद-कूद खाय। अब स दक़ खुला और उसम से सा ड़याँ िनकलन लगीं। सभी कनारदार थीं ; जैसी पटे र लाला के घर म पहनी जाती ह, मगर ह बड़ हलक । ऐसी मह न सा ड़याँ भला कै दन चलगी! बड़े आदमी जतनी मह न सा ड़याँ चाहे पहन। उनक मेह रय को बैठने और सोने के िसवा और कौन काम है । यहाँ तो खेत -खिलहान सभी कुछ है । अ छा! होर के िलए धोती के अित र एक दप टा भी है । धिनया ूस न होकर बोली -- यह तुमने बड़ा अ छा कया बेटा! इनका दप टा बलकुल तार -तार हो गया था। गोबर को उतनी दे र म घर क प र ःथित का अ दाज़ हो गया था। धिनया क साड़ म कई पवदे लगे हए थे। सोना क साड़ िसर पर फट हई थी और उसम से उसके बाल दखाई दे रहे थे। पा क धोती म चार तरफ़ झालर-सी लटक रह थीं। सभी के चेहर खे , कसी क दे ह पर िचकनाहट नह ं। जधर दे खो, वप नता का साॆा य था। लड़ कयाँ तो सा ड़य म मगन थीं। धिनया को लड़के के िलए भोजन क िच ता हई। घर म थोड़ा -सा जौ का आटा साँझ के िलए संचकर रखा हआ था। इस वईत तो चबैने पर कटती थी; मगर गोबर अब वह गोबर थोड़े ह है । उसको जौ का आटा खाया भी जायगा। परदे श म न जान या- या खाता-पीता रहा होगा। जाकर दलार क दकान से गेह ू ँ का आटा , चावल, घी उधार लायी। इधर मह ने से सहआइन एक पैसे क चीज़ भी उधार न दे ती थी ; पर आज उसन एक बार भी न पूछा, पैसे कब दोगी। उसने पूछा -- गोबर तो ख़ूब कमा के आया है न? धिनया बोली -- अभी तो कुछ नह ं खुला द द ! अभी मने भी कुछ कहना उिचत न समझा। हाँ , सबके िलए कनारदार सा ड़याँ लाया है । तु हारे आिसरबाद से कुशल से लौट आया, मेरे िलए तो यह बहत ने असीस है । दलार दया -- भगवान ् करे , जहाँ रहे कुशल से रहे । माँ - बाप को और छोकर क तरह उड़ाऊ नह ं है । हमार या चा हए! लड़का समझदार है । और पए अभी न िमल, तो याज तो दे दो। दन- दन बोझ बढ़ ह तो रहा है । इधर सोना चु नू को उसका ६ाक और टोप और जूता पहनाकर राजा बना रह थी, बालक इन चीज़ को पहनने से एयादा हाथ म लेकर खेलना पस द करता था। अ दर गोबर और झुिनया म मान- मनौवल का अिभनय हो रहा था। झुिनया ने ितरःकार भर आँख से दे खकर कहा -- मुझे लाकर यहाँ बैठा दया। आप परदे श क राह ली। फर न खोज, न ख़बर क मरती है या जीती है । साल-भर के बाद अबहै । कतने बड़े कपट हो तुम। म तो सोचती हँ ू क तुम मेरे पीछे -पीछे आ रहे हो जाकर तु हार नींद टट और आप उड़े , तो साल-भर के बाद लौटे । मद का व ास ह या, कह ं कोई और ताक ली होगी। सोचा होगा, एक घर के िलए है ह , एक बाहर के िलए भी हो जाय। गोबर ने सफ़ाई द -- झुिनया, म भगवान ् को सा ी दे कर कहता हँ ू जो मने कभी कसी क ओर ताका भी हो। लाज और डर के मारे घर से भागा ज़ र; मगर तेर याद एक छन के िलए भी मन से न उतरती थी। अब तो मने तय कर िलया है क तुझे भी लेता जाऊँगा; इसिलए आया हँ ू । तेरे घरवाले तो बहत बगड़ ह गे ? ' दादा तो मेर जान लेने पर ह उता थे। ' ' सच! ' ' तीन जने यहाँ चढ़ आये थे। अ माँ ने ऐसा डाँटा क मुँह लेकर रह गये। हाँ , हमारे दोन बैल खोल ल गये। ' ' इतनी बड़ ज़बरदःती! और दादा कुछ बोले नह ं ? ' ' दादा अकेले कस- कस से लड़ते ! गाँववाले तो नह ं ले जाने दे ते थे ; ले कन दादा ह भलमनसी म आ गये , तो और लोग या करते ? ' ' तो आजकल खेती-बार कैसे हो रह है ? ' गयी। थोड़ -सी प डत महाराज के साझे म है । उख बोई ह नह ं गयी। ' ' खेती-बार सब टट गोबर क कमर म इस समय दो सौ पए थे। उसक गम य भी कम न थी। यह हाल सुनकर तो उसके बदन म आग ह लग गयी। बोला -- तो फर पहले म उ ह ं से जाकर समझता हँ ू । उनक यह मजाल क मेरे ार पर से बैल खोल ले जायँ ! यह डाका है , खुला हआ डाका। तीन -तीन साल को चले जायँगे तीन । य न दगे , तो अदालत से लूँगा। सारा घमंड तोड़ दँ ग ा। वह उसी आवेश म चला था क झुिनया ने पकड़ िलया और बोली -- तो चले जाना, अभी ऐसी या ज द है ? कुछ आराम कर लो, कुछ खा-पी लो। सारा दन तो पड़ा है । यहाँ बड़ -बड़ पंचायत हई। पंचायत ने अःसी पए डाँड़ लगाये। तीन मन अनाज ऊपर। उसी म तो और तबाह आ गयी। सोना बालक को कपड़े - जूते पहनाकर लायी। कपड़े पहनकर वह जैसे सचमुच राजा हो गया था। गोबर ने उसे गोद म ले िलया; पर इस समय बालक के यार म उसे आन द न आया। उसका र खौल रहा था और कमर के पए आँच और तेज़ कर रहे थे। वह एक-एक स समझेगा। पंच को उस पर डाँड़ लगाने का अिधकार या है ? कौन होता है कोई उसके बीच म बोलनेवाला? उसने एक औरत रख ली, तो पंच के बाप का या बगाड़ा? अगर इसी बात पर वह फ़ौजदार म दावा कर दे , तो लोग के हाथ म हथक ड़याँ पड़ जायँ। सार गृहःथी तहस-नहस हो गयी। या समझ िलया है उसे इन लोग ने ! ब चा उसक गोद म ज़रा-सा मुःकराया, फर ज़ोर से चीख़ उठा जैसे कोई डरावनी चीज़ दे ख ली हो। झुिनया ने ब चे को उसक गोद से ले िलया और बोली -- अब जाकर नहा-धो लो। कस सोच म पड़ गये। यहाँ सबसे लड़ने लगो, तो एक दन िनबाह न हो। जसके पास पैसे ह, वह बड़ा आदमी है , वह भला आदमी है । पैसे न ह , तो उस पर सभी रोब जमाते ह। ' मेरा गधापन था क घर से भागा। नह ं दे खता, कैसे कोई एक धेला डाँड़ लेता है । ' ' सहर क हवा खा आये हो तभी ये बात सूझने लगी ह। नह ं , घर से भागत य ! ' ' यह जी चाहता है क लाठ उठाऊँ और पटे र , दाताद न, झंगुर , सब साल को पीटकर िगरा दँ , ू औरउनके पेट स ' पए िनकाल लूँ। ' पए क बहत गम चढ़ है साइत। लाओ िनकालो , दे खूँ , इतने दन म उसने गोबर क कमर म हाथ लगाया। गोबर खड़ा होकर बोला -- अभी या कमा लाये हा? ' या कमाया; हाँ , अब तुम चलोगी, तो कमाऊँगा। साल-भर तो सहर का रं ग -ढं ग पहचानने ह म लग गया। ' अ माँ जाने दगी, तब तो? ' ' अ मा य न जाने दगी। उनसे मतलब? ' ' वाह! म उनक राज़ी बना न जाऊँगी। तुम तो छोड़कर चलते बने। और मेरा कौन था यहाँ ? वह अगर घर म न घुसने दे तीं तो म कहाँ जाती? जब तक जीऊँगी, उनका जस गाऊँगी और तुम भी या परदे श ह करते रहोगे ? ' ' और यहाँ बैठकर या क ँ गा। कमाओ और मरो, इसके िसवा यहाँ और या रखा है ? थोड़ -सी अकल हो और आदमी काम करने से न डरे , तो वहाँ भूख नह ं मर सकता। यहाँ तो अकल कुछ काम ह नह करती। दादा य मुझसे मुँह फुलाए हए ह ? ' ' अपने भाग बखानो क मुँह फुलाकर छोड़ दे ते ह। तुमने उपिव तो इतना बड़ा कया था क उस बोध म पा जाते , तो मुँह लाल कर दे ते। ' ' तो तु ह भी ख़ूब गािलयाँ दे ते ह गे ? ' ' कभी नह ं , भूलकर भी नह ं। अ माँ तो पहले बगड़ थीं ; ले कन दादा ने तो कभी कुछ नह ं कहा, जब बुलाते ह, बड़ यार से। मेरा िसर भी दखता है , तो बेचैन हो जाते ह। अपने बाप को दे खते तो म इ ह दे वता समझती हँ ू । अ माँ को समझाया करते ह , बह ू को कुछ न कहना। तु हारे ऊपर सैकड़ बार बगड़ चुके ह क इसे घर म बैठाकर आप न जाने कहाँ िनकल गया। आज-कल पैसे - पैसे क तंगी है । ऊख के पए बाहर ह बाहर उड़ गये। अब तो मजूर करनी पड़ती है । आज बेचारे खेत म बेहोश हो गये। रोना- पीटना मच गया। तब से पड़े ह ' मुँह -हाथ धोकर और ख़ूब बाल बनाकर गोबर गाँव का द वजय करन िनकला। दोन चाचाओं के घर जाकर राम-राम कर आया। फर और िमऽ से िमला। गाँव म कोई वशेष प रवतन न था। हाँ , पटे र क नयी बैठक बन गयी थी और झंगुर िसंह ने दरवाज़े पर नया कुआँ खुदवा िलया था। गोबर के मन म विोह और भी ताल ठ कने लगा। जससे िमला उसने उसका आदर कया, और युवक ने तो उसे अपना ह रो बना िलया और उसके साथ लखनऊ जाने को तैयार हो गये। साल ह भर म वह या स या हो गया था। सहसा झंगुर िसंह अपने कुएँ पर नहाते हए िमल गये। गोबर िनकला; मगर न सलाम कया, न बोला। वह ठाकुर को दखा दे ना चाहता था, म तु ह कुछ नह समझता। झंगुर िसंह ने ख़ुद ह पूछा -- कब आये गोबर, मज़े म तो रहे ? कह ं नौकर थे लखनऊ म? गोबर ने हे कड़ के साथ कहा -- लखनऊ ग़ुलामी करने नह ं गया था। नौकर है तो ग़ुलामी। म यापार करता था। ठाकुर ने कुतूहल भर आँख से उसे िसर से पाँव तक दे खा -- कतना रोज़ पैदा करते थे ? गोबर ने छर को भाला बनाकर उनके ऊपर चलाया -- यह कोई ढाई-तीन पए िमल जाते थे। कभी चटक गयी तो चार भी िमल गये। इससे बेसी नह ं। झंगुर बहत नोच -खसोट करके भी पचीस-तीस से एयादा न कमा पाते थे। और यह गँवार ल डा सौ पए कमाने लगा। उनका मःतक नीचा हो गया। अब कस दावे से उस पर रोब जमा सकते ह? वण म वह ज़ र ऊँचे ह; ले कन वण कौन दे खता है ! उससे ःपधा करने का यह अवसर नह ं , अब तो उसक िचरौरकरके उससे कुछ काम िनकाला जा सकता है । बोले -- इतनी कमाई कम नह ं है बेटा, जो ख़रच करत बने। गाँव म तो तीन आने भी नह ं िमलते। भविनया ( उनके जेठे पुऽ का नाम था ) को भी कह ं कोई काम दला दो, तो भेज दँ । ू न पढ़े न िलखे , एक न एक उपिव करता रहता है । कह ं मुनीमी ख़ाली हो तो कहना। नह ं साथ ह लेते जाना। तु हारा तो िमऽ है । तलब थोड़ हो, कुछ ग़म नह ं , हाँ , चार पैसे क ऊपर क गुंजाइस हो। गोबर ने अिभमान भर हँ सी के साथ कहा -- यह ऊपर आमदनी क चाट आदमी को ख़राब कर दे ती ह ठाकुर; ले कन हम लोग क आदत कुछ ऐसी बगड़ गयी है क जब तक बेईमानी न कर, पेट नह ं भरता। लखनऊ म मुनीमी िमल सकती है ; ले कन हर-एक महाजन ईमानदार चौकस आदमी चाहता है । म भवानी को कसी के गले बाँध तो दँ ; ू ले कन पीछे इ ह ने कह ं हाथ लपकाया, तो वह तो मेर गदन पकड़े गा। संसार म इलम क क़दर नह ं है , ईमान क क़दर है । यह तमाचा लगाकर गोबर आगे िनकल गया। झंगुर मन म ऐंठकर रह गये। ल डा कतने घमंड क बात करता है , मानो धम का अवतार ह तो है । इसी तरह गोबर ने दाताद न को भी रगड़ा। भोजन करने जा रह थे। गोबर को दे खकर ूस न होकर बोले -- मज़े म तो रहे गोबर? सुना वहाँ कोई अ छ जगह पा गय हो। माताद न को भी कसी ह ले से लगा दो न? भंग पीकर पड़े रहने के िसवा यहाँ और कौन काम है । गोबर ने बनाया -- तु हारे घर म कस बात क कमी महाराज, जस जजमान के ार पर जाकर खड़े हो जाओ कुछ न कुछ मार ह लाओगे। जनम म लो, मरन म लो, साद म लो, गमी म लो; खेती करते हो, लेन -दे न करते हो, दलाली करते हो, कसी से कुछ भूल -चूक हो जाय तो डाँड़ लगाकर उसका घर लूट लेते हो; इतनी कमाई से पेट नह ं भरता? या करोगे बहत -सा धन बटोरकर? क साथ ले जाने क कोई जुगुत िनकाल ली है ? दाताद न ने दे खा, गोबर कतनी ढठाई से बोल रहा है ; अदब और िलहाज जैसे भूल गया। अभी शायद नह ं जानता क बाप मेर ग़ुलामी कर रहा है । सच है , छोट नद को उमड़ते दे र नह ं लगती; मगर चेहर पर मैल नह ं आने दया। जैसे बड़े लोग बालक से मूँछ उखड़वाकर भी हँ सते ह, उ ह ने भी इस फटकार को हँ सी म िलया और वनोद-भाव से बोले -- लखनऊ क हवा खा के तू बड़ा चंट हो गया है गोबर! ला, या कमा के लाया है , कुछ िनकाल। ' सच कहता हँ ू गोबर तु हार बहत याद आती थी। अब तो रहोगे कुछ दन ? ' हाँ , अभी तो रहँ ू गा कुछ दन। उन पंच पर दावा करना है , ज ह ने डाँड़ के बहाने मेरे डे ढ़ सौ पए हज़म कये ह। दे खूँ , कौन मेरा हईक़ा -पानी ब द करता है । और कैसे बरादर मुझे जात बाहर करती है । ' यह धमक दे कर वह आगे बढ़ा। उसक हे कड़ ने उसके युवक भ को रोब म डाल दया था। एक ने कहा -- कर दो नािलस गोबर भैया! बु ढा काला साँप है -- जसके काटे का म तर नह ं। तुमने अ छ डाँट बताई। पटवार के कान भी ज़रा गरमा दो। बड़ा मुतफ नी है दादा! बाप-बेटे म आग लगा दे , भाई-भाई म आग लगा दे । का र दे से िमलकर असािमय का गला काटता है । अपने खेत पीछे जोतो, पहले उसके खेत जोत दो। अपनी िसंचाई पीछे करो, पहले उसक िसंचाई कर दो। गोबर ने मूँछ पर ताव दे कर कहा -- मुझस या कहते हो भाई, साल भर म भूल थोड़े ह गया। यहाँ मुझे रहना ह नह ं है , नह ं एक-एक को नचाकर छोड़ता। अबक होली धूम -धाम से मनाओ और होली का ःवाँग बनाकर इन सब को ख़ूब िभंगो-िभंगोकर लगाओ। होली का ूोमाम बनने लगा। ख़ूब भंग घुटे , दिधया भी ,नमक न भी, और रं ग के साथ कािलख भी बने और मु खय के मुँह पर कािलख ह पोती जाय। होली म कोई बोल ह या सकता है ! फर ःवाँग िनकले और पंच क भ उड़ाई जाय। पए-पैसे क कोई िच ता नह ं। गोबर भाई कमाकर आये ह। भोजन करके गोबर भोला से िमलने चला। जब तक अपनी जोड़ लाकर अपन ार पर बाँध न दे , उसे चैन नह ं। वह लड़ने - मरने को तैयार था। होर ने कातर ःवर म कहा -- राढ़ मत बढ़ाओ बेटा, भोला गो ले गये , भगवान ् उनका भला करे ; ले कन उनके पए तो आते ह थे। गोबर ने उ े जत होकर कहा -- दादा, तुम बीच म न बोलो। उनक गाय पचास क थी। हमार गो आयी थी। तीन साल हमने जोती। फर भी सौ क थी ह । वह अपन कराते , या जो चाहते कहते , हमार बैठे , उधर डे ढ़ सौ ार से जोड़ डे ढ़ सौ म पये के िलए दावा करते , डमी य खोल ले गये ? और तु ह या कहँ ू । इधर गो खो पए डाँड़ के भरे । यह है गऊ होने का फल। मेरे सामने जोड़ खोल ले जाते , तो दे खता। तीन को यहाँ ज़मीन पर सुला दे ता। और पंच से तो बात तक न करता। दे खता, कौन मुझे बरादर स अलग करता है ; ले कन तुम बैठे ताकते रहे । होर ने अपराधी क भाँित िसर झुका िलया; ले कन धिनया यह अनीत कैसे दे ख सकती थी। बोली -- बेटा, तुम भी अँधेर करते हो। हईक़ा -पानी ब द हो जाता, तो गाँव म िनवाह होता! जवान लड़क बैठ है , उसका भी कह ं ठकाना लगाना है क नह ं ? मरने - जीने म आदमी बरादर ... गोबर ने बात काट -- हईक़ा -पानी सब तो था, बरादर म आदर भी था, फर मेरा याह बोलो। इसिलए क घर म रोट न थी। य नह ं हआ ? पए ह तो न हईक़ा -पानी का काम है , न जात- बरादर का। दिनया पैसे क है , हईक़ा -पानी कोई नह ं पूछता। धिनया तो ब चे का रोना सुनकर भीतर चली गयी और गोबर भी घर से िनकला। होर बैठा सोच रहा था। लड़के क अकल जैसे खुल गयी है । कैसी बेलाग बात कहता है । उसक व ब ने होर के धम और नीित को पराःत कर दया था। सहसा होर ने उससे पूछा -- म भी चला चलूँ ? ' म लड़ाई करने नह ं जा रहा हँ ू दादा , डरो मत। मेर ओर क़ानून है , म य लड़ाई करने लगा? ' ' म भी चलूँ तो कोई हरज़ है ? ' ' हाँ , बड़ा हरज़ है । तुम बनी बात बगाड़ दोगे। ' होर चुप हो गया और गोबर चल दया। पाँच िमनट भी न हए ह गे क धिनया ब चे को िलए बाहर िनकली और बोली -- भोला या सहज म गो या गोबर चला गया, अकेले ? म कहती हँू , तु ह भगवान ् कभी ब दगे या नह ं। पड़गे , बाज़ क तरह। भगवान ् ह कुशल कर। अब दे गा? तीन उस पर टट कससे कहँू , दौड़कर गोबर को पकड़ ले। तुमसे तो म हार गयी। होर ने कोने से डं डा उठाया और गोबर के पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर आकर उसने िनगाह दौड़ाई। एक ीण-सी रे खा ितज से िमली हई दखाई द । इतनी ह दे र म गोबर इतनी दर ू कैसे िनकल गया ! होर क आ मा उसे िध कारने लगी। उसन य गोबर को रोका नह ं। अगर वह डाँटकर कह दे ता, भोला के घर मत जाओ तो गोबर कभी न जाता। और अब उससे दौड़ा भी तो नह ं जाता। वह हारकर वह ं बैठ गया और बोला -- उसक र छा करो महाबीर ःवामी! गोबर उस गाँव म पहँ ु चा , तो दे खा कुछ लोग बरगद के नीचे बैठे जुआ खेल रहे ह। उसे दे खकर लोग न समझा, पुलीस का िसपाह है । कौ ड़याँ समेटकर भागे क सहसा जंगी ने उसे पहचानकर कहा -- अरे , यह तो गोबरधन है । गोबर ने दे खा, जंगी पेड़ क आड़ म खड़ा झाँक रहा है । बोला -- डरो मत जंगी भैया, म हँ ू । राम -राम! आज ह आया हँ ू । सोचा , चलूँ सबसे िमलता आऊँ , फर न जाने कब आना हो! म तो भैया,तु हारे आिसरबाद से बड़े मज़े म िनकल गया। जस राजा क नौकर म हँू , उ ह ने मुझसे कहा है क एक-दो आदमी िमल जायँ तो लेते आना। चौक दार के िलए चा हए। मने कहा, सरकार ऐसे आदमी दँ ग ा क चाहे जान चली जाय, मैदान से हटनेवाले नह ं , इ छा हो तो मेरे साथ चलो। अ छ जगह है । जंगी उसका ठाट-बाट दे खकर रोब म आ गया। उसे कभी चमरौधे जूते भी मयःसर न हए थे। और गोबर चमाचम बूट पहने हए था। साफ़ -सुथर , धार दार कमीज़, सँवारे हए बाल , पूरा बाबू साहब बना हआ। फटे हाल गोबर और इस प रंकृ त गोबर म बड़ा अ तर था। हं सा-भाव कुछ तो य ह समय के ूभाव स शा त हो गया था और बचा-खुचा अब शा त हो गया। जुआड़ था ह , उस पर गाँजे क लत। और घर म बड़ मु ँकल से पैसे िमलते थे। मुँह म पानी भर आया। बोला -- चलूँगा ह तो मार रहा हँ ू । कै य नह ं , यहाँ पड़ा-पड़ा म खी पए िमलगे ? गोबर ने बड़े आ म व ास से कहा -- इसक कुछ िच ता न करो। सब कुछ अपने ह हाथ म है । जो चाहोगे , वह हो जायगा। हमने सोचा, जब घर म ह आदमी है , तो बाहर य जायँ। जंगी ने उ सुकता से पूछा -- काम या करना पड़े गा? ' काम चाहे चौक दार करो, चाहे तगादे पर जाओ। तगादे का काम सबसे अ छा। असामी से गठ गये। आकर मािलक से कह दया, घर पर है नह ं , चाहो तो पए आठ आने रोज़ बना सकते हो। ' ' रहने क जगह भी िमलती है ? ' ' जगह क कौन कमी। पूरा महल पड़ा है । पानी का नल, बजली। कसी बात क कमी नह ं है । कामता ह क कह ं गये ह? ' ' दध लेकर गये ह। मुझे कोई बाज़ार नह ं जाने दे ता। कहते ह , तुम तो गाँजा पी जाते हो। म अब बहत कम पीता हँ ू भैया , ले कन दो पैसे रोज़ तो चा हए ह । तुम कामता से कुछ न कहना। म तु हारे साथ चलूँगा। ' ' हाँ - हाँ , बेखटके चलो। होली के बाद। ' ' तो प क रह । ' दोन आदमी बात करते भोला के ार पर आ पहँ ु चे। भोला बैठे सुतली कात रहे थे। और इस वईत उसका गला सचमुच भर आया। बोला -- काका, मुझस गोबर ने लपक कर उनके चरण छए जो कुछ भूल -चूक हई , उस -- काम तो तुमने ऐसा ह ार पर आये हो, अब मा करो। भोला ने सुतली कातना ब द कर दया और पथर ले ःवर म बोला कया था गोबर, क तु हारा िसर काट लूँ तो भी पाप न लगे ; ले कन अपन या कहँू ! जाओ, जैसा मेरे साथ कया उसक सज़ा भगवान ् दगे। कब आये ? गोबर ने ख़ूब नमक-िमच लगाकर अपने भा योदय का वृ ा त कहा, और जंगी को अपने साथ ले जाने क अनुमित माँगी। भोला को जैसे बेमाँगे वरदान िमल गया। जंगी घर पर एक-न-एक उपिव करता रहता था। बाहर चला जायगा, तो चार पैसे पैदा तो करे गा। न कसी को कुछ दे , अपना बोझ तो उठा लेगा। गोबर न कहा -- नह ं काका, भगवान ् ने चाहा और इनसे रहते बना तो साल दो साल म आदमी हो जायँगे। ' हाँ , जब इनसे रहते बने। ' ' िसर पर आ पड़ती है , तो आदमी आप सँभल जाता है । ' ' तो कब तक जाने का वचार है ? ' ' होली करके चला जाऊँगा। यहाँ खेती-बार का िसलिसला फर जमा दँ , ू तो िनसिच त हो जाऊँ। ' ' होर से कहो, अब बैठ के राम-राम कर। ' ' कहता तो हँू , ले कन जब उनसे बैठा जाय। '' वहाँ कसी बैद से तो तु हार जान-पहचान होगी। खाँसी बहत दक कर रह है । हो सके तो कोई दवाई भेज दे ना। ' ' एक नामी बैद तो मेरे पड़ोस ह म रहते ह। उनसे हाल कहके दवा बनवा कर भेज दँ ग ा। खाँसी रात को ज़ोर करती है क दन को? ' ' नह ं बेटा, रात को। आँख नह ं लगती। नह ं वहाँ कोई डौल हो, तो म भी वह ं चलकर रहँ ू । यहाँ तो कुछ परता नह ं पड़ता। ' ' रोज़गार का जो मज़ा वहाँ है काका, यहा या होगा? यहा पए का दस सेर दध भी कोई नह ं पूछता। हलवाइय के गले लगाना पड़ता है । वहाँ पाँच -छः सेर के भाव से चाहो तो एक घड़ म मन दध बेच लो। ' जंगी गोबर के िलए दिधया शबत बनाने चला गया था। भोला ने एका त दे खकर कहा -- और भैया! अब इस जंजाल से जी ऊब गया है । जंगी का हाल दे खते ह हो। कामता दध लेकर जाता है । सानी -पानी, खोलना-बाँधना, सब मुझे करना पड़ता है । अब तो यह जी चाहता है क सुख से कह ं एक रोट खाऊँ और पड़ा रहँ ू । कहाँ तक हाय -हाय क ँ । रोज़ लड़ाई-झगड़ा। कस- कस के पाँव सहलाऊँ। खाँसी आती है , रात को गयी है , मुदा कसी को इसक उठा नह ं जाता; पर कोई एक लोटे पानी को भी नह ं पूछता। पग हया टट सुिध नह ं है । जब म बनाऊँगा तभी बनेगी। गोबर ने आ मीयता के साथ कहा -- तुम चलो लखनऊ काका। पाँच सेर का दध बेचो , नगद। कतने ह बड़े - बड़े अमीर से मेर जान-पहचान है । मन-भर दध क िनकासी का ज़ मा म लेता हँ ू । मेर चाय क दकान भी है । दस सेर दध तो म ह िनत लेता हँ ू । तु ह कसी तरह का क न होगा। जंगी दिधया शबत ले आया। गोबर ने एक िगलास शबत पीकर कहा -- तुम तो ख़ाली साँझ सबेरे चाय क दकान पर बैठ जाओ काका , तो एक पए कह ं नह ं गया है । भोला ने एक िमनट के बाद संकोच भरे भाव से कहा -- बोध म बेटा, आदमी अ धा हो जाता है । म तु हार गो खोल लाया था। उसे लेते जाना। यहाँ कौन खेती-बार होती है । ' मने तो एक नयी गो ' नह ं - नह ं , नयी गो ' तो म तु हार ' ठ क कर ली है काका! ' लेकर या करोगे ? इसे लेते जाओ। ' पए िभजवा दँ ग ा। ' पए कह ं बाहर थोड़े ह ह बेटा, घर म ह तो ह। बरादर का ढकोसला है , नह ं तुमम और हमम कौन भेद है ? सच पूछो तो मुझे ख़ुश होना चा हए था क झुिनया भले घर म है , आराम से है । और म उसके ख़ून का यासा बन गया था। ' स या समय गोबर यहाँ से चला, तो गो आ रहा था। उसके साथ थी और दह क दो हाँ ड़याँ िलये जंगी पीछे -पीछ ूेमच द गोदान गोबर और झुिनया के जाने के बाद घर सुनसान रहने लगा। धिनया को बार-बार मु नू क याद आती रहती है । ब चे क माँ तो झुिनया थी; पर उसका पालन धिनया ह करती थी। वह उसे उबटन मलती, काजल लगाती, सुलाती और जब काम-काज से अवकाश िमलता, उसे यार करती। वा स य का यह नशा ह उसक वप को भुलाता रहता था। उसका भोला-भाला, म खन-सा मुँह दे खकर वह अपनी सार िच ता भूल जाती और ःनेहमय गव से उसका दय फूल उठता। वह जीवन का आधार अब न था। उसका सूना खटोला दे खकर वह रो उठती। वह कवच जो सार िच ताओं और दराशाओ से उसक र ा करता था, उससे िछन गया था। वह बार-बार सोचती, उसने झुिनया के साथ ऐसी कौन-सी बुराई क थी, जसका उसने यह दं ड दया। डाइन ने आकर उसका सोना-सा घर िम ट म िमला दया। गोबर ने तो कभी उसक बात का जवाब भी न दया था। इसी राँड़ ने उसे फोड़ा और वहाँ ले जाकर न जाने कौन- कौन-सा नाच नचायेगी। यहाँ ह वह ब चे क कौन बहत परवाह करती थी। उसे तो अपनी िमःसी -काजल, माँग -चोट से ह छ ु ट नह ं िमलती। ब चे क दे ख -भाल या करे गी। बेचारा अकेला ज़मीन पर पड़ा रोता होगा। बेचारा एक दन भी तो सुख से नह ं रहने पाता। कभी खाँसी, कभी दःत, कभी कुछ, कभी कुछ। यह सोच-सोचकर उसे झुिनया पर बोध आता। गोबर के िलए अब भी उसके मन म वह ममता थी। इसी चुड़ैल ने उसे कुछ खला- पलाकर अपने वश म कर िलया। ऐसी माया वनी न होती, तो यह टोना ह कैस करती। कोई बात न पूछता था। भौजाइय क लात खाती थी। यह भु गा िमल गया तो आज रानी हो गयी। होर ने िचढ़कर कहा -- जब दे खा तब तू झुिनया ह को दोस दे ती है । यह नह ं समझती क अपना सोना खोटा तो सोनार का या दोस। गोबर उसे न ले जाता तो दाना-पानी लगने से ल डे क आँख बदल गयीं। ऐसा या आप-से - आप चली जाती? सहर का य नह ं समझ लेती। धिनया गरज उठ -- अ छा चुप रहो। तु ह ं ने राँड़ को मूड़ पर चढ़ा रखा था, नह ं मने पहले ह दन झाड़ ू मारकर िनकाल दया होता। खिलहान म डाठ जमा हो गयी थीं। होर बैल को जुखर कर अनाज माँड़ने जा रहा था। पीछे मुँह फेरकर बोला -- मान ले , बह ू ने गोबर को फोड़ ह िलया , तो तू इतना कुढ़ती य है ? जो सारा ज़माना करता है , वह गोबर ने भी कया। अब उसके बाल-ब चे हए। मेरे बाल -ब च के िलए य अपनी साँसत कराये , य हमारे िसर का बोझ अपने िसर पर रखे ! ' तु ह ं उपिव क जड़ हो। ' ' तो मुझे भी िनकाल दे । ले जा बैल को अनाज माँड़। म हईक़ा पीता हँ ू । ' ' तुम चलकर च क पीसो म अनाज माड़ँ ू गी। ' वनोद म दःख उड़ गया। वह उसक दवा है । धिनया ूस न होकर पा के बाल गूँथने बैठ गयी जो बलकुल उलझकर रह गये थे , और होर खिलहान चला। रिसक बस त सुग ध और ूमोद और जीवन क वभूित लुटा रहा था, दोन हाथ से , दल खोलकर। कोयल आम क डािलय म िछपी अपनी रसीली, मधुर , आ मःपश कूक से आशाओं को जगाती फरती थी। महए क डािलय पर मैन क बरात -सी लगी बैठ थी। नीम और िसरस और कर दे अपनी महक म नशा-सा घोल दे ते थे। होर आम के बाग़ म पहँ ु चा , तोव के नीचे तारे - से खले थे। उसका यिथत, िनराश मन भी इस यापक शोभा और ःफूित म आकर गाने लगा -- ' हया जरत रहत दन-रै न। आम क ड रया कोयल बोले , तिनक न आवत चैन। ' सामने से दलार सहआइन , गुलाबी साड़ पहने चली आ रह थीं। पाँव म मोटे चाँद के कड़े थे , गले म मोट सोने क हँ सली, चेहरा सूखा हआ ; पर दल हरा। एक समय था, जब होर खेत -खिलहान म उसे छे ड़ा करता था। वह भाभी थी, होर दे वर था, इस नाते से दोन म वनोद होता रहता था। जब से साहजी मर गये , दलार ने घर से िनकलना छोड़ दया। सारे दन दकान पर बैठ रहती थी और वह ं वे सारे गाँव क ख़बर लगाती रहती थी। कह ं आपस म झगड़ा हो जाय, सहआइन वहाँ बीच -बचाव करने के िलए अवँय पहँ ु चेगी। आन पए सूद से कम पर आता था -- जो पए उधार न दे ती थी। और य प सूद के लोभ म मूल भी हाथ न पए लेता, खाकर बैठ रहता -- मगर उसके याज का दर य -का- य बना रहता था। बेचार कैसे वसूल करे । नािलश-फ़ रयाद करने से रह , थाना-पुिलस करने से रह , केवल जीभ का बल था; पर य - य उॆ के साथ जीभ क तेज़ी बदलती जाती थी, उसक काट घटती जाती थी। अब उसक गािलय पर लोग हँ स दे ते थे और मज़ाक़ म कहते -- या करे गी पए लेकर काक , साथ तो एक कौड़ भी न ले जा सकेगी। ग़र ब को खला- पलाकर जतनी असीस िमल सके , ले - ले। यह परलोक म काम आयेगा। और दलार परलोक के नाम से जलती थी। होर ने छे ड़ा -- आज तो भाभी, तुम सचमुच जवान लगती हो। सहआइन मगन होकर बोली -- आज मंगल का दन है , नज़र न लगा दे ना। इसी मारे म कुछ पहनती-ओढ़ती नह ं। घर से िनकली तो सभी घूरने लगते ह, जैसे कभी कोई मेह रया दे खी न हो। पटे र । होर लाला क पुरानी बान अभी तक नह ं छट ठठक गया ; बड़ा मनोरं जक ूसंग िछड़ गया था। बैल आगे िनकल गये। ' वह तो आजकल बड़े भगत हो गये ह। दे खती नह ं हो, हर पूरनमासी को स यनारायण क कथा सुनते ह और दोन जून म दर म दशन करने जाते ह। ' ' ऐसे ल पट जतने होते ह, सभी बूढ़े होकर भगत बन जाते ह। कुकम का परासिचत तो करना ह पड़ता है । पूछो, म अब बु ढ़या हई , मुझस या हँ सी। ' ' तुम अभी बु ढ़या कैसे हो गयी भाभी? मुझे तो अब भी... ' ' अ छा चुप ह रहना, नह ं डे ढ़ सौ गाली दँ ग ी। लड़का परदे स कमाने लगा , एक दन नेवता भी न खलाया, सत-मत म भाभी बताने को तैयार। ' ' मुझसे क़सम ले लो भाभी, जो मने उसक कमाई का एक पैसा भी छआ हो। न जान या लाया , कहा ख़रच कया, मुझे कुछ भी पता नह ं। बस एक जोड़ा धोती और एक पगड़ मेरे हाथ लगी। ' ' अ छा कमाने तो लगा, आज नह ं कल घर सँभालेगा ह । भगवान ् उसे सुखी रखे। हमार पए भी थोड़ा - थोड़ा दे ते चलो। सूद ह तो बढ़ रहा है । ' ' तु हार एक-एक पाई दँ ग ा भाभी , हाथ म पैसे आने दो। और खा ह जायगे , तो कोई बाहर के तो नह ं ह, ह तो तु हारे ह । ' सहआइन ऐसी वनोद भर चापलूिसय से िनर हो जाती थी। मुःकराती हई अपनी राह चली गयी। होर लपककर बैल के पास पहँ ु च गया और उ ह पौर म डालकर च कर दे ने लगा। सारे गाँव का यह एक खिलहान था। कह ं मँड़ाई हो रह थी, कोई अनाज ओसा रहा था, कोई ग ला तौल रहा था। नाई, बार , बढ़ई, लोहार, पुरो हत, भाट, िभखार , सभी अपने - अपने जेवर लेने के िलए जमा हो गये थे। एक पेड़ केनीचे झंगुर िसंह खाट पर बैठे अपनी सवाई उगाह रहे थे। कई बिनये खड़े ग ले का भाव-ताव कर रहे थे। सारे खिलहान म मंड क -सी रौनक़ थी। एक खट कन बेर और मकोय बेच रह थी और एक ख चेवाला तेल के सेव और जले बयाँ िलये फर रहा था। प डत दाताद न भी होर से अनाज बँटवाने के िलए आ पहँ ु चे थे और झंगुर िसंह के साथ खाट पर बैठे थे। दाताद न ने सुरती मलते हए कहा -- कुछ सुना, सरकार भी महाजन से कह रह है क सूद का दर घटा दो, नह ं डमी न िमलेगी। झंगुर तमाखू फाँककर बोले -- प डत म तो एक बात जानता हँ ू । तु ह गरज पड़े गी तो सौ बार हमस और हम जो याज चाहगे , लगे। सरकार अगर असािमय को पए उधार लेने आओगे , पए उधार दे ने का कोई ब दोबःत न करे गी, तो हम इस क़ानून से कुछ न होगा। हम दर कम िलखायगे ; ले कन एक सौ म पचीस पहले ह काट लगे। इसम सरकार या कर सकती है । ' यह तो ठ क है ; ले कन सरकार भी इन बात को ख़ूब समझती है । इसक भी कोई रोक िनकालेगी, दे ख लेना। ' ' इसक कोई रोक हो ह नह ं सकती। ' ' अ छा, अगर वह शत कर दे , जब तक ःटा प पर गाँव के मु खया या का र दा के दसख़त न ह गे , वह प का न होगा, तब या करोगे ? ' ' असामी को सौ बार गरज होगी, मु खया को हाथ-पाँव जोड़ के लायेगा और दसखत करायेगा। हम तो एक चौथाई काट ह लगे। ' ' और जो फँस जाओ! जाली हसाब िलखा और गये चौदह साल को। ' झंगुर िसंह ज़ोर से हँ सा -- तुम या कहते हो प डत, या तब संसार बदल जायेगा? क़ानून और याय उसका है , जसके पास पैसा है । क़ानून तो है क महाजन कसी असामी के साथ कड़ाई न करे , कोई ज़मींदार कसी काःतकार के साथ सउती न करे ; मगर होता या है । रोज़ ह दे खते हो। ज़मींदार मुसक बँधवा के पटवाता है और महाजन लात और जूते से बात करता है । जो कसान पोढ़ा है , उससे न ज़मींदार बोलता है , न महाजन। ऐसे आदिमय से हम िमल जाते ह और उनक मदद से दसर आदिमय क गदन दबाते ह। तु हारे ह ऊपर राय साहब के पाँच सौ पए िनकलते ह; ले कन नोखेराम म है इतनी ह मत क तुमसे कुछ बोले ? वह जानते ह, तुमसे मेल करने ह म उनका हत है । असामी म इतना बूता है क रोज़ अदालत दौड़े ? सारा कारबार इसी तरह चला जायगा, जैसे चल रहा है । कचहर -अदालत उसी के साथ है , जसके पास पैसा है । हम लोग को घबराने क कोई बात नह ं। यह कहकर उ ह ने खिलहान का एक च कर लगाया और फर आकर खाट पर बैठते हए बोले -- हाँ , मतई के याह का या हआ ? हमार सलाह तो है क उसका याह कर डालो। अब तो बड़ बदनामी हो रह है । दाताद न को जैसे ततैया ने काट खाया। इस आलोचना का या आशय था, वह ख़ूब समझते थे। गम होकर बोले -- पीठ पीछे आदमी जो चाहे बके , हमारे मुँह पर कोई कुछ कहे , तो उसक मूँछ उखाड़ लूँ। कोई हमार तरह नेमी बन तो ले। कतन को जानता हँू , जो कभी स या-ब दन नह ं करते , न उ ह धरम से मतलब, न करम से ; न कथा से मतलब, न पुरान से। वह भी अपने को ॄा ण कहते ह। हमारे ऊपर या हँ सेगा कोई, जसने अपन जीवन म एक एकादसी भी नागा नह ं क , कभी बना ःनान-पूजन कये मुँह म पानी नह ं डाला। नेम का िनभाना क ठन है । कोई बता दे क हमने कभी बाज़ार क कोई चीज़ खायी हो, या कसी दसर के हाथ का पानी पया हो, तो उसक टाँग क राह िनकल जाऊँ। िसिलया हमार चौखट नह ं लाँघने पाती, चौखट; बरतन-भाँड़े छना तो दसर बात है । म यह नह ं कहता क मतई यह बहत अ छा काम कर रहा है , ले कनजब एक बार एक बात हो गयी तो यह पाजी का काम है क औरत को छोड़ दे । म तो खु लमखु ला कहता हँू , इसम िछपाने क कोई बात नह ं। ी-जाित प वऽ है । दाताद न अपनी जवानी म ःवयम ् बड़ रिसया रह चुके थे ; ले कन अपने नेम -धम से कभी नह ं चूके। माताद न भी सुयो य पुऽ क भाँित उ ह ं के पद-िच पर चल रहा था। धम का मूल त व है पूजा-पाठ, कथाोत और चौका-चू हा। जब पता-पुऽ दोन ह मूल त व को पकड़े हए ह , तो कसक मजाल है क उ ह पथ-ॅ कह सके। िछं गुर िसंह ने क़ायल होकर कहा -- मने तो भाई, जो सुना था, वह तुमसे कह दया। दाताद न ने महाभारत और पुराण स ॄा ण - ारा अ य जाितय क क याओं के महण कये जाने क एक ल बी सूची पेश क और यह िस कर दया क उनसे जो स तान हई , वह ॄा ण कहलायी और आजकल के जो ॄा ण ह, वह उ ह स तान क स तान ह। यह ूथा आ दकाल से चली आयी है और इसम कोई ल जा क बात नह ं। झंगुर िसंह उनके पा ड य पर मु ध होकर बोले -- तब य आजकल लोग वाजपेयी और सुकुल बन फरते ह? ' समय-समय क परथा है और या! कसी म उतना तेज तो हो। बस खाकर उसे पचाना तो चा हए। वह सतजुग क बात थी, सतजुग के साथ गयी। अब तो अपना िनबाह बरादर के साथ िमलकर रहने म है ; मगर क या, कोई लड़क वाला आता ह नह ं। तुमसे भी कहा, और से भी कहा, कोई नह ं सुनता तो म या लड़क बनाऊँ ? ' झंगुर िसंह ने डाँटा -- झूठ मत बोलो प डत, म दो आदिमय को फाँस -फूँसकर लाया; मगर तुम मुँह फैलाने लगे , तो दोन कान खड़े करके िनकल भागे। आ ख़र कस बरते पर हज़ार- पाँच सौ माँगते हो तुम ? दस बीघे खेत और भीख के िसवा तु हारे पास और या है ? दाताद न के अिभमान को चोट लगी। डाढ़ पर हाथ फेरकर बोले -- पास कुछ न सह , म भीख ह माँगता हँू , ले कन मने अपनी लड़ कय के याह म पाँच -पाँच सौ दये ह; फर लड़के के िलए पाँच सौ माँगूँ ? कसी ने सत-मत म मेर लड़क य न याह ली होती तो म भी सत म लड़का याह लेता। रह है िसयत क बात। तुम जजमानी को भीख समझो, म तो उसे ज़मींदार समझता हँू ; बंकघर। ज़मींदार िमट जाय, जाय , ले कन जजमानी अ त तक बनी रहे गी। बंकघर टट जब तक ह द - ू जाित रहे गी, तब तक ॄा ण भी रहगे और जजमानी भी रहे गी। सहालग म मज़े से घर बैठे सौ-दो सौ फटकार लेते ह। कभी भाग लड़ गया, तो चार-पाँच सौ मार िलया। कपड़े , बरतन, भोजन अलग। कह ं - न-कह ं िनत ह कार-परोजन पड़ा ह रहता है । कुछ न िमले तब भी एक-दो थाल और दो-चार आने द णा िमल ह जाते ह। ऐसा चैन न ज़मींदार म है , न साहकार म। और फर मेरा तो िसिलया से जतना उबार होता है , उतना ॄा न क क या स या होगा? वह तो बह ु रया बनी बैठ रहे गी। बहत होगा रो टयाँ पका दे गी। यहाँ िसिलया अकेली तीन आदिमय का काम करती है । और म उसे रोट के िसवा और या दे ता हँू ? बहत हआ , तो साल म एक धोती दे द । दसर पेड़ के नीचे दाताद न का िनजी पैरा था। चार बैल से मँड़ाई हो रह थी। ध ना चमार बैल को हाँक रहा था, िसिलया पैरे से अनाज िनकाल-िनकालकर ओसा रह थी और माताद न दसर ओर बैठा अपनी लाठ म तेल मल रहा था। िसिलया साँवली सलोनी, छरहर बािलका थी, जो पवती न होकर भी आकषक थी। उसके हास म, िचतवन म, अंग के वलास म हष का उ माद था, जससे उसक बोट -बोट नाचती रहती थी, िसर से पाँव तक भूसे के अणुओं म सनी, पसीने से तर, िसर के बाल आध खुले , वह दौड़-दौड़कर अनाज ओसा रह थी, मानो तन-मन से कोई खेल खेल रह हो। माताद न ने कहा -- आज साँझ तक नाज बाक़ न रहे िसिलया! तू थक गयी हो तो म आऊँ ? िसिलया ूस न मुख बोली --तुम काहे को आओगे प डत! म संझा तक सब ओसा दँ ग ी। ' अ छा, तो म अनाज ढो-ढोकर रख आऊँ। तू अकेली ' तुम घबड़ात या- या कर लेगी? ' य हो, म ओसा भी दँ ग ी , ढोकर रख भी आऊँगी। पहर रात तक यहाँ एक दाना भी न रहे गा। दलार सहआइन आज अपना लेहना वसूल करती फरती थी। िसिलया उसक दकान से होली के दन दो पैसे का गुलाबी रं ग लायी थी। अभी तक पैसे न दये थे। िसिलया के पास आकर बोली -- य र िसिलया, मह ना-भर रं ग लाये हो गया, अभी तक पैसे नह ं दये। माँगती हँ ू तो मटककर चली जाती है । आज म बना पैसा िलये न जाऊँगी। माताद न चुपके -से सरक गया था। िसिलया का तन और मन दोन लेकर भी बदले म कुछ न दे ना चाहता था। िसिलया अब उसक िनगाह म केवल काम करने क मशीन थी, और कुछ नह ं। उसक ममता को वह बड़े कौशल से नचाता रहता था। िसिलया ने आँख उठाकर दे खा तो माताद न वहाँ न था। बोली -- िच लाओ मत सहआइन , यह ले लो, दो क जगह चार पैसे का अनाज। अब या जान लेगी? म मर थोड़े ह जाती थी! उसने अ दाज़ से कोई सेर -भर अनाज ढे र म स िनकालकर सहआइन के फैले हए अंचल म डाल दया। उसी वईत माताद न पेड़ क आड़ से झ लाया हआ िनकला और सहआइन का अंचल पकड़कर बोला -- अनाज सीधे से रख दो सहआइन , लूट नह ं है । फर उसने लाल-लाल आँख से िसिलया को दे खकर डाँटा -- तूने अनाज य दे दया? कससे पूछकर दया? त कौन होती है मेरा अनाज दे ने वाली? सहआइन ने अनाज ढे र म डाल दया और िसिलया ह का -ब का होकर माताद न का मुँह दे खने लगी। ऐसा जान पड़ा, जस डाल पर वह िन त बैठ हई थी , वह टट गयी और अब वह िनराधार नीचे िगर जा रह है ! खिसयाये हए मुँह से , आँख म आँसू भरकर, सहआइन से बोली -- तु हारे पैसे म फर दे दँ ग ! आज मुझ पर दया करो। सहआइन ने उसे दयाि नेऽ ी सहआइन से दे खा और माताद न को िध कार भर आँख से दे खती हई चली गयी। तब िसिलया ने अनाज ओसात हए आहत गव से पूछा -- तु हार चीज़ म मेरा कुछ अ उतयार नह ं है ? माताद न आँख िनकालकर बोला -- नह ं , तुझे कोई अ उतयार नह ं है । काम करती है , खाती है । जो तू चाहे क खा भी, लुटा भी; तो यह यहाँ न होगा। अगर तुझे यहाँ न परता पड़ता हो, कह ं और जाकर काम कर। मजूर क कमी नह ं है । सत म नह ं लेते , खाना-कपड़ा दे ते ह। िसिलया ने उस प ी क भाँित, जसे मािलक ने पर काटकर पंजरे स िनकाल दया हो, माताद न क ओर दे खा। उस िचतवन म वेदना अिधक थी या भ सना, यह कहना क ठन है । पर उसी प ी क भाँित उसका मन फड़फड़ा रहा था और ऊँची डाल पर उ म श वायु - मंडल म उड़ने क न पाकर उसी पंजरे म जा बैठना चाहता था, चाहे उसे बेदाना, बेपानी, पंजरे क तीिलय से िसर टकराकर मर ह य न जाना पड़े । िसिलया सोच रह थी, अब उसके िलए दसरा कौन -सा ठौर है । वह याहता न होकर भी संःकार म और यवहार म और मनोभावना म याहता थी, और अब माताद न चाह उसे मारे या काटे , उसे दसरा आौय नह ं है , दसरा अवल ब नह ं है । उसे वह दन याद आये -- और अभी दो साल भी तो नह ं हए -- जब यह माताद न उसके तलवे सहलाता था, जब उसने जनेऊ हाथ म लेकर कहा था -- िसिलया, जब तक दम म दम है , तुझे याहता क तरह रखूँगा; जब वह ूेमातुर होकर हार म और बाग़ म और नद के तट पर उसके पीछे -पीछे पागल क भाँित फरा करता था। और आज उसका यह िन ु र यवहार! मु ठ -भर अनाज के िलए उसका पानी उतार िलया। उसने कोई जवाब न दया। कंठ म नमक के एक डले का-सा अनुभव करती हई , आहत दय और िशिथल हाथ से फर काम करने लगी। उसी वईत उसक माँ , बाप, दोन भाई और कई अ य चमार ने न जाने कधर से आकर माताद न को घेरिलया। िसिलया क माँ ने आते ह उसके हाथ से अनाज क टोकर छ नकर फ क द और गाली दे कर बोली -- राँड़ , जब तुझे मज़दर ू ह करनी थी , तो घर क मजूर छोड़ कर यहा साथ रहती है , तो ॄा ण क तरह रह। सार यहा या करने आयी। जब ॄा ण के बरादर क नाक कटवाकर भी चमा रन ह बनना था, तो या घी का ल दा लेने आयी थी। चु लू - भर पानी म डब नह ं मरती ! झंगुर िसंह और दाताद न दोन दौड़े और चमार के बदले हए तेवर दे खकर उ ह शा त करने क चे ा करने लगे। झंगुर िसंह ने िसिलया के बाप से पूछा -- या बात है चौधर , कस बात का झगड़ा है ? िसिलया का बाप हरखू साठ साल का बूढ़ा था; काला, दबला , सूखी िमच क तरह पचका हआ ; पर उतना ह तीआण। बोला -- झगड़ा कुछ नह है ठाकुर, हम आज या तो माताद न को चमार बना के छोड़गे , या उनका और अपना रकत एक कर दगे। िसिलया क या जात है , कसी-न- कसी के घर जायगी ह । इस पर हम कुछ नह ं कहना है ; मगर उसे जो कोई भी रखे , हमारा होकर रहे । तुम हम ॄा ण नह ं बना सकते , मुदा हम तु ह चमार बना सकते ह। हम ॄा ण बना दो, हमार सार बरादर बनने को तैयार है । जब यह समरथ नह ं है , तो फर तुम भी चमार बनो। हमारे साथ खाओ- पओ, हमारे साथ उठो-बैठो। हमार इएज़त लेते हो, तो अपना धरम हम दो। दाताद न ने लाठ फटकार कर कहा -- मुँह सँभाल कर बात कर हरखुआ ! तेर ब टया वह खड़ है , ले जा जहाँ चाहे । हमने उसे बाँध नह ं र खा है । काम करती थी, मजूर लेती थी। यहाँ मजूर क कमी नह ं है । िसिलया क माँ उँ गली चमकाकर बोली -- वाह-वाह प डत! ख़ूब िनयाव करते हो। तु हार लड़क कसी चमार के साथ िनकल गयी होती और तुम इस तरह क बात करते , तो दे खती। हम चमार ह इसिलए हमार कोई इएज़त ह नह ं ! हम िसिलया को अकेले न ले जायँगे , उसके साथ माताद न को भी ले जायँगे , जसने उसक इएज़त बगाड़ है । तुम बड़े नेमी-धरमी हो। उसके साथ सोओगे ; ले कन उसके हाथ का पानी न पओगे ! यह चुड़ैल है क यह सब सहती है । म तो ऐसे आदमी को माहर दे दे ती। हरखू ने अपन सािथय को ललकारा -- सुन ली इन लोग क बात क नह ं ! अब या खड़े मुँह ताकते हो। इतना सुनना था क दो चमार ने लपककर माताद न के हाथ पकड़ िलये , तीसरे ने झपटकर उसका जनेऊ तोड़ डाला और इसके प हले क दाताद न और झंगुर िसंह अपनी-अपनी लाठ सँभाल सक , दो चमार ने माताद न के मुँह म एक बड़ -सी ह ड का टकड़ा डाल दया। माताद न ने दाँत जकड़ िलये , फर भी वह िघनौनी वःत उनके ओठ म तो लग ह गयी। उ ह मतली हई और मुँह आप -से - आप खुल गया और ह ड कंठ तक जा पहँ ु ची। इतने म खिलहान के सारे आदमी जमा हो गये ; पर आ य यह क कोई इन धम के लुटेर स मुज़ा हम न हआ। माताद न का यवहार सभी को नापस द था। वह गाँव क बह ू - बे टय को घूरा करता था, इसिलए मन म सभी उसक दगित से ूस न थे। हाँ , ऊपर मन से लोग चमार पर रोब जमा रहे थे। होर ने कहा -- अ छा, अब बहत हरखू ! भला चाहते हो, तो यहाँ से चले जाओ। हरखू ने िनडरता स हआ उ र दया -- तु हारे घर म भी लड़ कयाँ ह होर महतो, इतना समझ लो। इस तरह गाँव क मरजाद बगड़ने लगी, तो कसी क आब न बचेगी। एक ण म शऽु पर पूर वहाँ से टल जाना ह उिचत समझा। जनमत बदलते दे र नह ं लगती। वजय पाकर आबमणका रय न उससे बचे रहना ह अ छा है । माताद न क़ै कर रहा था। दाताद न ने उसक पीठ सहलाते हए कहा -- एक-एक को पाँच -पाँच साल के िलए न भेजवाया, तो कहना। पाँच -पाँच साल तक च क पसवाऊँगा। हरखू ने हे कड़ के साथ जवाब दया -- इसका यहाँ कोई ग़म नह ं। कौन तु हार तरह बैठे मौज करते ह। जहाँ काम करगे , वह ं आधा पेट गयी दाना िमल जायगा। माताद न क़ै कर चुकने के बाद िनज व-सा ज़मीन पर लेट गया, मानो कमर टटहो, मानो डब मरने के िलए चु लू भर पानी खोज रहा हो। जस मयादा के बल पर उसक रिसकता और घमंड और पु षाथ अकड़ता फरता था, वह िमट चुक थी। उस ह ड के टकड़ ने उसके मुँह को ह नह ं , - वचार पर टका हआ उसक आ मा को भी अप वऽ कर दया था। उसका धम इसी खान-पान, छत था। आज उस धम क जड़ कट गयी। अब वह लाख ूाय करे , लाख गोबर खाय और गंगाजल पये , लाख दान-पु य और तीथ-ोत करे , उसका मरा हआ धम जी नह ं सकता ; अगर अकेले क बात होती, तो िछपा ली जाती; यहाँ तो सबके सामने उसका धम लुटा। अब उसका िसर हमेशा के िलए नीचा हो गया। आज स समझा जायगा। उसक ःनेहमयी माता भी उससे घृणा करे गी। और संसार स वह अपने ह घर म अछत धम का ऐसा लोप हो गया क इतने आदमी केवल खड़े तमाशा दे खते रहे । कसी ने चूँ तक न क । एक ण पहले जो लोग उसे दे खते ह पालागन करते थे , अब उसे दे खकर मुँह फेर लगे। वह कसी म दर म भी न जा सकेगा, न कसी के बरतन-भाँड़े छ ू सकेगा। और यह सब हआ इस अभािगन िसिलया के कारण। िसिलया जहाँ अनाज ओसा रह थी, वह ं िसर झुकाये खड़ थी, मानो यह उसी क दगित हो रह है । सहसा उसक माँ ने आकर डाँटा -- खड़ ताकती का नाम तो ख़ूब उजागर कर चुक , अब या है ? चल सीधे घर, नह ं बोट -बोट काट डालूँगी। बाप-दादा या करने पर लगी है ? िसिलया मूितवत ् खड़ रह । माता - पता और भाइय पर उसे बोध आ रहा था। यह लोग है , दसर स य उसके बीच म बोलते ह। वह जैसे चाहती है , रहती या मतलब ? कहते ह, यहाँ तेरा अपमान होता है , तब या कोई ॄा ण उसका पकाया खा लेगा? उसके हाथ का पानी पी लेगा? अभी ज़रा दे र पहले उसका मन दाताद न के िनठर यवहार से ख न हो रहा था, पर अपने घरवाल और बरादर के इस अ याचार ने उस वराग को ूचंड अनुराग का दया। विोह-भरे मन से बोली -- म कह ं न जाऊँगी। त प द या यहाँ भी मुझे जीने न दे गी? बु ढ़या ककश ःवर म बोली -- तू न चलेगी? ' नह ं। ' ' चल सीधे से। ' ' नह ं जाती। ' तुरत दोन भाइय ने उसके हाथ पकड़ िलये और उसे घसीटते हए ले चले। िसिलया ज़मीन पर बैठ गयी। भाइय ने इस पर भी न छोड़ा। घसीटते ह रहे । उसक साड़ फट गयी, पीठ और कमर क खाल िछल गयी; पर वह जाने पर राज़ी न हई। तब हरखू ने लड़क से कहा -- अ छा, अब इसे छोड़ दो। समझ लग मर गयी; मगर अब जो कभी मेरे हाँ , जब तु हार ार पर आयी तो लह ू पी जाऊँगा। िसिलया जान पर खेलकर बोली -- ार पर जाऊँ , तो पी लेना। बु ढ़या ने बोध के उ माद म िसिलया को कई लात जमा और हरखू ने उसे हटा न दया होता, तो शायद ूाण ह लेकर छोड़ती। बु ढ़या फर झपट , तो हरखू न उसे ध के दे कर पीछे हटाते हए कहा -- तू बड़ ह या रन है किलया! या उसे मार ह डालेगी? िसिलया बाप के पैर से िलपटकर बोली -- मार डालो दादा, सब जने िमलकर मार डालो। हाय अ माँ , तुम इतनी िनदयी हो; इसीिलए दध पलाकर पाला था ? सौर म ह को भी तुमने भ रःट कर दया। उसका धरम लेकर तु ह य न गला घ ट दया? हाय! मेरे पीछे प डत या िमला? अब तो वह भी मुझे न पूछेगा। ले कन पूछे न पूछे , रहँ ू गी तो उसी के साथ। वह मुझे चाहे भूख रखे , चाहे मार डाले , पर उसका साथ न छोड़ँ ू गी। उनक साँसत कराके छोड़ दँ ? मर जाऊँगी, पर हरजाई न बनूँगी। एक बार जसने बाँह पकड़ ली, उसी क रहँ ू गी। किलया ने ओठ चबाकर कहा -- जाने दो राँड़ को। समझती है , वह इसका िनबाह करे गा;मगर आज ह मारकर भगा न दे तो मुँह न दखाऊँ। भाइय को भी दया आ गयी। िसिलया को वह छोड़कर सब-के -सब चले गये। तब वह धीरे से उठकर लँगड़ाती, कराहती, खिलहान म आकर बैठ गयी और अंचल म मुँह ढाँपकर रोने लगी। दाताद न ने जुलाहे का ग़ुःसा डाढ़ पर उतारा -- उनके साथ चली नह ं गयी र िसिलया! अब य या करवाने पर लगी हई है ? मेरा स यानास कराके भी पेट नह ं भरा? िसिलया ने आँसू - भर आँख ऊपर उठा । उनम तेज क झलक थी। ' उनके साथ य जाऊँ ? जसने बाँह पकड़ है , उसके साथ रहँ ू गी। ' प डतजी ने धमक द -- मेरे घर म पाँव रखा, तो लात से बात क ँ गा। िसिलया ने भी उ ं डता से कहा -- मुझे जहाँ वह रखगे , वहाँ रहँ ू गी। पेड़ तले रख , चाहे महल म रख। माताद न सं ाह न-सा बैठा था। दोपहर होने आ रहा था। धूप प य से छन-छनकर उसके चेहरे पर पड़ रह थी। माथे से पसीना टपक रहा था। पर वह मौन, िनःप द बैठा हआ था। सहसा जैसे उसने होश म आकर कहा -- मेरे िलए अब या कहते हो दादा? दाताद न ने उसके िसर पर हाथ रखकर ढाढ़स दे ते हए कहा -- तु हारे िलए अभी म या कहँ ू बेटा ? चलकर नहाओ, खाओ, फर प डत क जैसी यवःथा होगी, वैसा कया जायगा। हाँ , एक बात है ; िसिलया को यागना पड़े गा। माताद न ने िसिलया क ओर र -भरे नेऽ से दे खा -- म अब उसका कभी मुँह न दे खूँगा; ले कन परासिचत हो जाने पर फर तो कोई दोष न रहे गा। ' परासिचत हो जाने पर कोई दोष-पाप नह ं रहता। ' ' तो आज ह प डत के पास जाओ। ' ' आज ह जाऊँगा बेटा! ' ' ले कन प डत लोग कह क इसका परासिचत नह ं हो सकता, तब? ' ' उनक जैसी इ छा। ' ' तो तुम मुझे घर से िनकाल दोगे ? ' दाताद न ने पुऽ -ःनेह से व ल होकर कहा -- ऐसा कह ं हो सकता है , बेटा! धन जाय, धरम जाय, लोक- मरजाद जाय, पर तु ह नह ं छोड़ सकता। माताद न ने लकड़ उठाई और बाप के पीछे -पीछे घर चला। िसिलया भी उठ और लँगड़ाती हई उसके पीछे हो ली। माताद न ने पीछे फरकर िनमम ःवर म कहा -- मेरे साथ मत आ। मेरा तुझसे कोई वाःता नह ं। इतनी साँसत करवा के भी तेरा पेट नह ं भरता। िसिलया ने धृ ता के साथ उसका हाथ पकड़कर कहा -- वाःता कैसे नह ं है ? इसी गाँव म तुमसे धनी, तुमस सु दर, तुमसे इएज़तदार लोग ह। म उनका हाथ य नह ं पकड़ती। तु हार यह ददशा ह आज य हई ? जो रःसी तु हारे गले म पड़ गयी है , उसे तुम लाख चाहो, नह ं छोड़ सकते। और न म तु ह छोड़कर कह जाऊँगी। मजूर क ँ गी, भीख माँगूँगी; ले कन तु ह न छोड़ँ ू गी। यह कहते हए उसने माताद न का हाथ छोड़ दया और फर खिलहान म जाकर अनाज ओसाने लगी। होर अभी तक वहाँ अनाज माँड़ रहा था। धिनया उसे भोजन करने के िलए बुलाने आयी थी। होर ने बैल को पैर से बाहर िनकालकर एक पेड़ म बाँध दया और िसिलया से बोला -- तू भी जा खा-पी आ िसिलया! धिनया यहाँ बैठ है । तेर पीठ पर क साड़ तो लह ू से रँ ग गयी है रे ! कह ं घाव पक न जाय। तेरे घरवाले बड़े िनदयी ह। िसिलया ने उसक ओर क ण नेऽ से दे खा -- यहाँ िनदयी कौन नह ं है , दादा! मने तो कसी को दयावान नह ं पाया। ' या कहा प डत ने ? ' ' कहते ह, मेरा तुमसे कोई वाःता नह ं। '' अ छा! ऐसा कहते ह! ' ' समझते ह गे , इस तरह अपने मुँह क लाली रख लगे ; ले कन जस बात को दिनया जानती है , उसे कैस िछपा लगे। मेर रो टयाँ भार ह, न द। मेरे िलए हाथ भर जगह तु ह ं से माँगूँगी तो या? मजूर अब भी करती हँू , तब भी क ँ गी। सोने को या तुम न दोगे ? ' धिनया दयाि होकर बोली -- जगह क कौन कमी है बेट ! तू चल मेरे घर रह। होर ने कातर ःवर म कहा -- बुलाती तो है , ले कन प डत को जानती नह ं ? धिनया ने िनभ क ःवर म कहा -- बगड़गे तो एक रोट बेसी खा लगे , और या करगे। कोई उनक दबैल हँ ू । उसक इएज़त ली , बरादर से िनकलवाया, अब कहते ह, मेरा तुझसे कोई वाःता नह ं। आदमी है क क़साई। यह उसी नीयत का आज फल िमला है । पहले नह ं सोच िलया था। तब तो बहार करते रहे । अब कहते ह, मुझसे कौन वाःता। होर के वचार म धिनया ग़लती कर रह थी। िसिलया के घरवाल ने मतई को कतना बेधरम कर दया, यह कोई अ छा काम नह ं कया। िसिलया को चाहे मारकर ले जाते , चाहे दलारकर ले जाते। वह उनक लड़क है । मतई को य बेधरम कया? धिनया ने फटकार बताई -- अ छा रहने दो, बड़ यायी बने हो। मरद-मरद सब एक होते ह। इसको मतई ने बेधरम कया तब तो कसी को बुरा न लगा। अब जो मतई बेधरम हो गये , तो य बुरा लगता है ? या िसिलया का धरम, धरम ह नह ं ? रखी तो चमा रन, उस पर नेमी-धम बनत ह। बड़ा अ छा कया हरखू चौधर ने। ऐसे गुंड क यह सज़ा है । तू चल िसिलया मेरे घर। न-जाने कैस बेदरद माँ - बाप ह क बेचार क सार पीठ लहल हान कर द । तुम जाके सोना को भेज दो। म इसे लेकर आती हँ ू । होर घर चला गया और िसिलया धिनया के पैर पर िगरकर रोने लगी।